10th House: कुंडली में दशम भाव (कर्म भाव)
10th House in Horoscope: कुंडली में दशम भाव (कर्म) का विशेष महत्व होता है। इस भाव से प्रधानताः व्यक्ति के कर्म, आजीविका का विचार किया जाता है। अगर आप कुंडली के दशम भाव के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आपको यह लेख शुरू से अंत तक पढ़ना चाहिए..
ज्योतिष में चतुर्थ भाव से क्या देखा जाता है?
कुंडली में दशम भाव से व्यक्ति का कर्म, आजीविका, सरकारी नौकरी, राज्य से प्राप्त लाभ यश, चिकित्सक, पढ़ाना, शुभ जीवन, दूसरों को काबू में करना आदि बातों की जानकारी प्राप्त की जाती है।
।। अथ दशमभावफलाध्यायः।।
यशस्वी योग
सबले कर्मभावेशे स्वोच्चे स्वांशे स्वराशिगे
जातस्तातसुखेनाढयो यशस्वी शुभकर्मकृत्।।
कर्माधिपो बलोनश्चेत् कर्मवैकल्यमादिशेत् ।
सैहिःकेन्द्रत्रिकोणस्थो ज्योतिष्टोमादियागकृत् ।।
यदि दशमेश बलवान् (उच्च, स्वराशि या उच्चनवांश) हो तो व्यक्ति को पिता का सुख मिलता है तथा वह शुभ कर्म करने वाला और यशस्वी होता है।
यदि दशमेश निर्बल हो तो जातक प्रायः कर्म करने में शिथिल होता है। यदि राहु त्रिकोण या केन्द्र में (विशेषतया केन्द्रेश त्रिकोण के साथ) हो तो मनुष्य धार्मिक कार्य करने वाला होता है।
शुभाशुभ कर्म निर्णय
कर्मेश शुभसंयुक्ते शुभस्थानगते तथा
राजद्वारे च वाणिज्ये सदा लाभग्न्यथाऽन्यथा ।
दशमे पापसंयुक्ते लाभे पापसमन्विते
दुष्कृतिं लभते मर्त्यः स्वजनानां विदूषकः ।।
कर्मेश नाशराशिस्थे राहुणा संयुते
तथाजनद्वेषी महामूर्खो दुष्कृतिं लभते नरः ।।
कर्मे द्यूनराशिस्थे मन्दभौमसमन्विते ।
द्यूनेशेपापसंयुक्ते शिश्नोदरपरायणः ।।
दशमेश यदि शुभ ग्रह से युक्त होकर शुभ स्थान (केंद्र, त्रिकोण) में हो तो राजा व व्यापार से धनलाभ होता है। इसके विपरीत अशुभ स्थान (6, 8,12) में हो तो राजा व व्यवसाय से धनहानि होती है।
यदि दशम भाव में पाप ग्रह हो तथा एकादश भाव में भी पाप ग्रह हो तो मनुष्य बुरे कार्य करने वाला तथा अपने लोगों को भी बदनाम करने वाला होता है।
यदि दशमेश अष्टम भाव में राहु के साथ हो तो मनुष्य जनता द्वेषी, महामूर्ख तथा बुरे कर्म करने वाला होता है।
यदि दशमेश सप्तम में शनि मंगल के साथ हो तथा सप्तमेश पापयुक्त हो तो मनुष्य सदैव अपने पेट व अपने इन्द्रियसुख के लिए कुछ भी कर सकता है।
सुख व विलास योग
तुंगराशिं समाश्रित्य कर्मेशे गुरुसंयुते
भाग्येशे कर्मराशिस्थे मानैश्वर्यप्रतापवान् ।।
लाभेशे कर्मराशिस्थे कर्मेशे लग्नसंयुते
तावुभौ केन्द्रगौ वापि सुख जीवनभाग् भवेत् ।।
कर्मेशे बलसंयुक्ते मीने गुरुसमन्विते
वस्त्राभरण सौख्यादि लभते नात्र संशयः ।।
यदि दशमेश अपने उच्च में बृहस्पति के साथ हो तथा नवमेश दशम में हो तो मनुष्य सम्मानित, ऐश्वर्यशाली व प्रतापी होता है।
यदि एकादशेश दशम स्थान में हो तथा दशमेश लग्न में हो अथवा दशमेश व लाभेश केन्द्र में ही हों तो मनुष्य सुख भोग से युक्त होता है।
यदि दशमेश बलवान् हो तथा बृहस्पति मीन राशि में हो तो मनुष्य वस्त्राभरणों से युक्त सुखी होता है।
सुख व विलास योग
तुंगराशिं समाश्रित्य कर्मेशे गुरुसंयुते ।
भाग्येशे कर्मराशिस्थे मानैश्वर्यप्रतापवान् ।
लाभेशे कर्मराशिस्थे कर्मेशे लग्नसंयुते.
तावुभौ केन्द्रगौ वापि सुख जीवनभाग् भवेत् ।।
कर्मेशे बलसंयुक्ते मीने गुरुसमन्विते
वस्त्राभरण सौख्यादि लभते नात्र संशयः । ।
यदि दशमेश अपने उच्च में बृहस्पति के साथ हो तथा नवमेश दशम में हो तो मनुष्य सम्मानित, ऐश्वर्यशाली व प्रतापी होता है।
यदि एकादशेश दशम स्थान में हो तथा दशमेश लग्न में हो अथवा दशमेश व लाभेश केन्द्र में ही हों तो मनुष्य सुख भोग से युक्त होता है । यदि दशमेश बलवान् हो तथा बृहस्पति मीन राशि में हो तो मनुष्य वस्त्राभरणों से युक्त सुखी होता है।
अशुभ योग
लाभस्थानगते सूर्ये राहुभीमसमन्विते
रविपुत्रेणसंयुक्ते कर्मच्छेत्ताभवेन्नरः ।।
यदि सूर्य एकादश स्थान में राहु मंगल शनि से युक्त हो तो मनुष्य कर्मच्छेत्ता कार्यनाशक, स्वयं अपनी हानि करने वाला होता है।
सुकर्म योग
मीने जीवे भृगुयुते लग्नेशे बलसंयुते
स्वोच्चराशिगते चन्द्रे सम्यज्ज्ञानार्थवान् भवेत् । ।
कर्मेशे लाभराशिस्थे लाभेशे लग्नसंस्थिते ।
कर्मराशिस्थिते शुक्रे रत्नवान् स नरो भवेत् । ।
केन्द्रत्रिकोणगे कर्मनाथे स्वोच्चसमाश्रिते ।
गुरुणासहिते दृष्टे स कर्मसहितो भवेत् । ।
कर्मेशे लग्न भावस्थे लग्नेशेन समन्विते ।
केन्द्रत्रिकोणगे चन्द्रे सत्कर्मनिरतो भवेत् । ।
यदि बृहस्पति मीन राशि में शुक्र के साथ हो, लग्नेश बलवान् हो तथा चन्द्रमा उच्च में हो तो मनुष्य विशेष ज्ञानवान्, धनवान् होता है।
यदि दशमेश एकादश में व एकादशेश लग्न में एवं शुक्र दशम में हो तो मनुष्य रत्नों से युक्त अर्थात् हीरे-मोती वाला होता है।
यदि दशमेश केन्द्रत्रिकोण में हो तथा वह अपने उच्च में हो एवं गुरु से युतदृष्ट हो तो मनुष्य सदैव कर्मशील होता है । अर्थात् सदैव व्यवसाय, व्यापार या रोजगार से युक्त होता है ।यदि दशमेश लग्न में लग्नेश के साथ हो तथा चन्द्रमा केन्द्र त्रिकोण में हो तो मनुष्य सदैव अच्छे कर्मों में रत रहता है ।
कुकर्म योग
कर्मस्थानगते मन्दे नीचखेचरसंयुते।
कर्मेशे पापसंयुक्ते कर्महीनो भवेन्नरः ।।
कर्मेशे नाशराशिस्थे रन्ध्रेशे कर्मसंस्थिते
पापग्रहेण संयुक्ते दुष्कर्मनिरतो भवेत् ।।
कर्मेशे नीचराशिस्थे कर्मस्थे पापखेचरे
कर्मभात्कर्मगे पापे कर्मवैकल्यमादिशेत् ।।
यदि दशमस्थान में शनि किसी नीचस्थ ग्रह के साथ हो तथा दशमगत नवांश राशि में कोई पाप ग्रह हो तो मनुष्य कर्महीन (आलसी या क्रिया रहित) बुरे कर्म करने वाला होता हैयदि दशमेश अष्टम में हो तथा अष्टमेश दशम में रहे साथ मेंकोई पाप ग्रह भी हो तो मनुष्य बुरे कर्म करने वाला होता है। यदि दशमेश नीच राशि में हो, दशम स्थान में पाप ग्रह हो, दशम से दशम अर्थात् लग्न में पापग्रह हो तो मनुष्य कार्यहीन होता है।
कीर्तिलाभ योग
कर्मस्थानगते चन्द्रे तदीशे तत् त्रिकोणगे
लग्नेश केन्द्रभावस्थे सत्कीर्तिसहितो भवेत् ।।
लाभेशे कर्मभावस्थे कर्मेशे बलसंयुते
देवेन्द्रगुरुणा दृष्टे सत्कीर्तिसहितो भवेत् 19 ।
कर्मस्थानाधिपे भाग्ये लग्नेशे कर्मसंयुते
लग्नात्पंचमगे चन्द्रे ख्यातनामा नरो भवेत् ।1
इति कर्मफलं प्रोक्तं संक्षेपेण द्विजोत्तम !
ज्ञानकर्मेश सम्बन्धादूयमन्यदपि स्वयम् ।।
यदि दशम स्थान में चन्द्रमा, दशमेश त्रिकोण में व लग्नेश केन्द्र में हो तो मनुष्य सत्कीर्तियुक्त (प्रसिद्ध) होता है। यदि लाभेश दशम स्थान में हो, दशमेश बलवान् हो तथा बृहस्पति द्वारा देखा जाए तो मनुष्य सत्कीर्तियुक्त होता है। यदि दशमेश नवम में व लग्नेश दशम में हो, लग्न से पंचम में चन्द्रमा रहे तो मनुष्य बहुत प्रसिद्ध होता है।
निष्कर्ष: कुंडली में दशम भाव एक महत्वपूर्ण भाव है। इसलिए इस भाव का सावधानी पूर्वक अध्यन करना चाहिए।