6th House: कुण्डली में छठा भाव (रोग भाव)
Sixth House in Horoscope: कुंडली में छठे भाव (रोग भाव) का विशेष महत्व होता है। इससे प्रधानताः रोग, ऋण और शत्रु का विचार किया जाता है। अगर आप कुंडली के छठे भाव के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आपको यह लेख शुरू से अंत तक पढ़ना चाहिए..
ज्योतिष में छठे भाव से क्या देखा जाता है?
हिंदू ज्योतिष में छठा भाव (6th house) से स्वास्थ्य, रोग, दैनिक दिनचर्या, नौकरी, शत्रु, प्रतिद्वंद्वी, प्रतियोगी परीक्षा और चुनौतियों से निपटने की क्षमता का विचार किया जाता है। वृहद पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार..
मातुलाककानां शत्रुंश्चैव प्रणादिकान्
सपत्नीमातरं चापि षष्ठभावान्निरीक्षयेत् ।।
अर्थात: मामा, आतंक, डर, आशंका, शत्रु, घाव चोट, सौत, सास का विचार षष्ठ भाव से किया जाता है।
।। अथ षष्ठभावफलाध्यायः ।।
व्रणादियोग :-
पापः षष्ठाधिपो गेहे लग्ने वाष्टमसंस्थिते
तदा व्रणो भवेद्देहे षष्ठराशिसमाश्रिते ।।
एवं पित्रादिभावेशास्तत्तत्कारकसंयुताः
व्रणाधिपयुताश्चापि षष्ठाष्टमयुता यदि ।।
तेषामपि व्रणं वाच्यमादित्वेन शिरोव्रणम् ।
इन्दुना च मुखे कण्ठे भौमेन झेन नाभिषु ।।
गुरुणा नासिकायां च भृगुणा नयने पदे
शनिना राहुणा कुक्षौ केतुना च तथा भवेत् ।।
अर्थात: अगर षष्ठेश स्वग्रही, लग्न या अष्टम भाव में स्थित हो तो छठे भाव में जो राशि है, उसके द्योतित अंग में व्रण (घाव) होता है।
परीजन रोग: षष्ठेश, दशमेश (पिता भाव के अधिपति) के साथ युक्त हो, 6 या 8 भाव में स्थित हो तो पिता को व्रण हों सकता है। इसी तरह पुत्र, माता, स्त्री भ्राता आदि भावों से गणना करके षष्ठेश के आधार पर इन संबंधियों के व्रण की स्थिती का पता लगाया जा सकता है।
यदि षष्ठेश सूर्य हो तो सिर में, चन्द्रमा हो तो मुँह, मंगल गला, बुध पेट में, गुरु नासिका, शुक्र आंख, शनि पैर और राहु केतु से पेट में घाव होता है।
मुख रोग :-
लग्नाधिपः कुजक्षेत्रे बुधभे यदि संस्थितः।
यत्र कुत्रस्थितो ज्ञेन वीक्षितो मुख रुवप्रदः।।
अर्थात: यदि लग्नेश बुध या मंगल की राशियों (मेष, वृश्चिक, मिथुन, कन्या) में हो तथा कहीं भी स्थित होकर बुध से दृष्ट हो तो मुख रोग होता है।
ज्वर रोग :-
लग्ने षष्ठाष्टमाधीशी रविणा यदि संयुती।।
ज्वरगण्डः कुजे ग्रन्थिः शस्त्र व्रणमथापि वा।।
अर्थात:, यदि लग्न में षष्ठेश व अष्टमेश सूर्य के साथ हो तो जातक को बार-बार ज्वर होता है। यदि मंगल के साथ हो तो गाँठ या शस्त्र की चोट का घाव होता है।
रोगी व्यक्ति :-
रोगस्थानगते पापे तदीशे पापसंयुते ।
राहुणासंयुते मन्दे सर्वदा रोगसंयुतः ।।
अर्थात: यदि षष्ठभाव व षष्ठेश दोनों ही पापयुक्त हों और शनि राहु साथ साथ हों तो जातक सदैव रोगी रहता है।
शत्रु विचार :-
लाभेशे रिपुभावस्थे रोगेशे लाभराशिगे
एकत्रिंशत्तमे वर्षे शत्रुमूलाद्धनव्ययः।।
अर्थात: यदि एकादशेश षष्ठभाव में हो तथा षष्ठेश एकादश में हो तो 31 वें वर्ष में शत्रुओं के कारण धन व्यय होता है।
पुत्र से शत्रुता :-
सुतेशे रिपुभावस्थे षष्ठेशे गुरुसंयुते ।
व्ययेशे लग्नभावस्थे तस्य पुत्रो रिपुर्भवेत् ।
अर्थात: पंचमेश षष्ठभाव में हो व षष्ठेश गुरु के साथ हो, व्ययेश लग्न में गया हो तो जातक का पुत्र ही उसका शत्रु हो जाता है।
निष्कर्ष: कुंडली में छठा भाव एक महत्वपूर्ण भाव है। इसलिए इस भाव का सावधानी पूर्वक अध्यन करना चाहिए।