7th House: कुंडली में सप्तम भाव (पत्नी भाव)
Seventh House in Horoscope: कुंडली में सातवे भाव (पत्नी भाव / पति भाव) का विशेष महत्व होता है। इससे प्रधानताः जीवन साथी का विचार किया जाता है। अगर आप कुंडली के सातवे भाव के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आपको इस लेख को शुरू से अंत तक अवश्य पढ़ना चाहिए..
ज्योतिष में सातवे भाव से क्या देखा जाता है?
कुंडली में सातवे भाव (Seventh House) से पत्नी / पति, वैवाहिक संबंध, व्यापार, पार्टनरशिप, यात्रा के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वृहद पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार..
जायामध्वप्रयाणं च वाणिज्यं नष्टवीक्षणम्
मरणं च सर्वदेहस्य जाया भावान्निरीक्षयेत्
अर्थ: स्त्री, यात्रा, व्यापार, डूबा धन, नष्ट वस्तु अपनी मृत्यु का विचार सप्तम भाव से करना चाहिए।
|| अथ सप्तमभावफलाध्यायः ||
अल्प स्त्री सुख योग
कलत्रपो विना स्वर्क्ष व्ययषष्ठाष्टमस्थितः
रोगिणीं कुरुते नारी तथा तुंगादिकं विना ।।
सप्तमे तु स्थिते शुक्रेतीव कामी भवेन्नरः ।
यत्र कुत्रस्थिते पापयुते स्त्रीमरणं भवेत् ।।
अर्थात: यदि सप्तमेश किसी भी राशि का (स्वगृही, उच्च के अतिरिक्त) 6, 8, 12 भाव में हो तो पत्नी प्रायः बीमार रहती है। अथवा पत्नी सुख कम होता है।
सप्तम भाव में यदि शुक्र हो तो मनुष्य अति कामुक होता है। यदि शुक्र कहीं भी पापयुक्त, दृष्ट होकर बैठे तो स्त्री की मृत्यु होती है।
स्त्री सुख योग
जायाधिपः स्वभेस्वोच्चे स्त्रीसुखं पूर्णमादिशेत
जायाधीशे शुभैर्युक्तो दृष्टो वा बलसंयुतः ।
तदा सौभाग्यशीलः स्यात् धनी मानी नरः प्रभुः ।
नीचे शत्रुग्रस्ते वा निर्बले वा कलत्रपे।।
तस्यापि रोगिणी भार्या बहुभार्यो नरो भवेत् ।
अर्थात: यदि सप्तमेश स्वराशि या उच्च राशि में हो तो पूर्ण स्त्री सुख होता है। सप्तमेश यदि बलवान् हो और शुभग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तब भी व्यक्ति पत्नी सुख से सम्पन्न, धनी व सम्मानित होता है।
यदि सप्तमेश अपनी नीच राशि या शत्रुराशि में हो, सप्तम भाव में किसी प्रकार से निर्बल हो तो उसकी पत्नी रोगिणी होती है तथा उसकी कई स्त्रियाँ होती हैं।
पत्नी वशीभूत योग
पापे द्वादशकामस्थे क्षीणचन्द्रस्तु पंचमे ।
जातश्च भार्यावश्यः स्यादिति जाति विरोधकृत् ।।
अर्थात: यदि 7, 12 भाव में पापग्रह हो तथा पंचम भाव में क्षीण चन्द्रमा हो तो ऐसा व्यक्ति पत्नी की हां में हां मिलाने वाला होता है। पत्नी के लिए वह पने बन्धुबान्धवों से भी विरोध कर बैठता है।
स्त्री-हानि योग
कलत्रे तत्पतौ वापि पापग्रहसमन्विते । ।
भार्याहानिं वदेत्तस्य निर्बले च विशेषतः |
षष्ठाष्टमव्ययस्थाने मंदेशो दुर्बलो यदि ।।
कलत्रस्थानगे चन्द्रे तदीशे व्ययराशिगे ।।
नीचराशिगतो वापि दारनाशं विनिर्दिशेत्
कारको बलहीनश्च दारसौख्यं न विद्यते ।।
अर्थात: यदि सप्तम भाव या सप्तमेश पाप ग्रह से युक्त हो तथा स्वयं निर्बल भी हो तो विशेषतया स्त्री की हानि होती है। यदि निर्बल सप्तमेश 6, 8, 12 में हो या सप्तमेश नीचस्थ हो तो स्त्री का नाश होता है।
यदि सप्तम स्थान में चन्द्रमा हो और सप्तमेश द्वादश में हो और गुरु या स्त्रीकारक निर्बल हो तो स्त्री का सुख नहीं मिलता है।
पत्नी संख्या विचार
सप्तमेशे स्वनीचस्थे पाप पापसंयुते ।
सप्तमे क्लीबराश्यंशे द्विभार्यो जातको भवेत् ।
अर्थात: यदि सप्तमेश अपनी नीच राशि में हो या पाप ग्रह की राशि में पापयुक्त हो, सप्तम स्थान में नपुसंक राशि (बुध, शनि की राशि) का नवांश हो तो जातक की दो पत्नियाँ होती हैं।
द्विस्वभावगते शुक्रे स्वोच्चे तद्राशिनायके
दारेशे बलसंयुक्ते बहुदारसमन्वितः ।।
अर्थात: यदि शुक्र द्विस्वभावराशि (मिथुन, कन्या, धनु और मीन) में हो, शुक्र की अधिष्ठितराशि का स्वामी अपने उच्च में हो, सप्तमेश बली हो तो अनेक पत्नियाँ होती हैं। कहने का अर्थ है कि उसके जीवन में अनेक स्त्री हो सकती है।
निष्कर्ष: कुंडली में छठा भाव एक महत्वपूर्ण भाव है। इसलिए इस भाव का सावधानी पूर्वक अध्यन करना चाहिए।