8th House: कुंडली में अष्टम भाव (आयु भाव)
8th House in Horoscope: कुंडली में अष्टम भाव (आयु भाव) का विशेष महत्व है। इस भाव से प्रधानताः व्यक्ति के आयु का विचार किया जाता है। अगर आप कुंडली के अष्टम भाव के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आपको यह लेख शुरू से अंत तक पढ़ना चाहिए..
ज्योतिष में अष्टम भाव से क्या देखा जाता है?
कुंडली में अष्टम भाव से व्यक्ति के आयु के विषय में विचार किया जाता है। इसके अलावा सुख, पराजय, स्त्री का धन, राज्य से दण्ड, अंगहीन, ऋण देना, गुप्त धन, मूत्र रोग आदि का विचार किया जाता है।
।। अथायुर्भावफलाध्यायः ।।
दीर्घायुर्योग
आयुर्भावफलं चाथ कथयामि द्विजोत्तम आयुः
स्थानाधिपः केन्द्रे दीर्घमायुः प्रयच्छति ।
आयुः स्थानाधिपः पापैः सह तत्रैव संस्थितः ।
करोत्यल्पायुषं जातं लग्नेशऽप्यत्र संस्थितः
एवं हि शनिना चिन्ता कार्या तर्कैर्विचक्षण
कर्माधिपेन च तथा चिन्तनमायुषस्तथा ।।
यदि अष्टमेश केन्द्र में स्थित हो तो व्यक्ति दीर्घायु, पणफर में हो तो मध्यायु तथा आपोक्लिम में हो तो अल्पायु होता है।
यदि अष्टमेश बहुत से पापग्रहों के साथ अष्टम में हो तो अल्पायु होती है। यदि लग्नेश भी कई पापग्रहों से युक्त होकर अष्टम में हो तो भी अल्पायु योग होता है।
इसी तरह शनि तथा दशमेश से भी विचार करना चाहिए। अर्थात् अष्टमेश शनि व दशमेश केन्द्र में हों तो दीर्घायु, बहुत पापयुक्त दृष्ट हों तो अल्पायु, पणफर में हाँ तो मध्यायु, आपोक्लिम में में हो तो अल्पायु होती है।
षष्ठे व्ययेपि षष्ठेशो व्ययाधीशो रिपौ व्यये
लग्नाष्टमे स्थितो वापि दीर्घमायुः प्रयच्छति ।।
स्वस्थाने स्वांशके वापि मिर्ऋशे मित्रमन्दिरे
दीर्घायुषं करोत्येव लग्नेशोऽष्टमपः पुनः ।।
लग्नाष्टमपकर्मेशमन्दाः केन्द्रत्रिकोणयोः
लाभे वा संस्थितास्तद्वत् दिशेयुर्दीर्घमायुषम् ।।
एवं बहुविधा विद्वन्नायुर्योगाः प्रकीर्तिताः
एषु यो बलवांस्तस्यानुसारादायुरादिशेत् ।।
यदि षष्ठेश 6,12 में हो, द्वादशेश 6,12 में हो, अथवा लग्न से अष्टम में हो तो दीर्घायु होती है। अर्थात् 6.8.12 के स्वामी किसी भी प्रकार से इन्हींभावों में हों तो दीर्घायु व सुख होता है। यह विपरीत राजयोग है।
यदि लग्नेश या अष्टमेश या दोनों ही स्वराशि, स्वनवांश, मित्रराशि मित्रनवांश में हों तो दीर्घायु करते हैं।
1.8.10 भावेश व शनि केन्द्र त्रिकोण में या लाभ में हों तो दीर्घायु होती है। इस प्रकार बहुत से आयुयोग होते हैं जिनका संकेत मात्र यहाँ किया गया है।
योगकारकों में जो सबसे बली हो, उससे बनने वाले योगानुसार आयु होगी। लग्नेश, अष्टमेश, दशमेश शनि व बृहस्पति, लग्न चन्द्र व अष्टमभाव ये आयु के उपकरण हैं। इनमें जो सबसे बली हो उससे आयु विचार होना चाहिए ।
अल्पायुर्योग
अष्टमाधिपतौ केन्द्रे लग्नेशे बलवर्जिते ।
विंशद् वर्षाण्यसौ जीवेद् द्वात्रिशंत्परमायुषम् ।
रन्ध्रेशे नीचराशिस्थे रन्धेपापग्रहैर्युते
लग्नेशे दुर्बले जन्तोरल्पायुर्भवति ध्रुवम् ।।
रन्ध्रेशे पाप संयुक्ते रन्ध्रे पापग्रहैर्युते
व्यये क्रूरग्रहाक्रान्ते जातमात्रं मृतिर्भवेत् । ।
यदि अष्टमेश केन्द्र में हो व लग्नेश बलरहित हो तो 20 से 32वर्ष के मध्य आयु होती है । अष्टमेश नीच में हो तथा अष्टम में पापग्रह हों, लग्नेश निर्बल हो तो जातक अल्पायु होता है। अष्टमेश के साथ पापग्रह हों, अष्टम में एकाधिक पापग्रह हों तथा द्वादश में पापग्रह हो तो पैदा होते ही मृत्यु हो जाती है।
केन्द्रत्रिकोणगाः पापाः शुभाः षष्ठाष्टगाः यदि ।
लग्ने नीचस्थरन्ध्रेशो जातः सद्यो मृतो भवेत् । ।
पंचमे पापसंयुक्ते रन्धेशे पाप संयुते ।
रन्ध्रे पापग्रहैर्युक्ते स्वल्पमायुः प्रजायते ।
रन्ध्रेशे रन्ध्रराशिस्थे चन्द्रेपापसमन्विते ।
शुभदृष्टिविहीने च मासान्ते च मृतिर्भवेत् ।।
(केन्द्र व त्रिकोण में पाप ग्रह हों, सारे शुभग्रह 6, 8 में हों, लग्न में अष्टमेश नीच राशि में हो तो तुरन्त मृत्यु होती है। पंचम में पाप ग्रह, अष्टमेश पापयुक्त व अष्टम में पाप ग्रह होतो स्वल्पायु होती है। अष्टमेश अष्टम में हो, चन्द्रमा पाप युक्त दृष्ट हो और शुभग्रह की दृष्टि योग न हो तो एक मास आयु होती है।
पुनर्दीर्घायुर्योग
लग्नेशे स्वोश्वराशिस्थे चन्द्रे लाभसमन्विते ।
रन्ध्रस्थानगते जीये दीर्घमायुर्न संशयः ।।
लग्नेशोऽतिबली दृष्टः केन्द्रसंस्थैः शुभग्रहैः
धनैः सर्वगुणैः सार्ध दीर्घमायुः प्रयच्छति ।
यदि लग्नेश स्वराशि या स्वोच्च में हो एवं चन्द्रमा लाभ में, गुरुअष्टम में हो तो दीर्घायु निश्चय से होती है। लग्नेश बहुत बलवान् हो तथा केन्द्रगत शुभ ग्रहों से देखा जाता हो तो धन व सब गुणों के साथ दीर्घायु भी देता है।
निष्कर्ष: कुंडली में नवम भाव एक महत्वपूर्ण भाव है। इसलिए इस भाव का सावधानी पूर्वक अध्यन करना चाहिए।