9th House: कुंडली में नवम भाव (भाग्य भाव)
9th House in Horoscope: कुंडली में नवम भाव (भाग्य भाव) का विशेष महत्व होता है। इस भाव से प्रधानताः व्यक्ति के भाग्य और अध्यात्मिता का विचार किया जाता है। अगर आप कुंडली के नवम भाव के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आपको यह लेख शुरू से अंत तक पढ़ना चाहिए..
ज्योतिष में नवम भाव से क्या देखा जाता है?
कुंडली के नवम भाव से भाग्य, धर्म, तीर्थ यात्रा, विद्या के लिए श्रम नम्रता, राज्याभिषेक, दान, पवित्रता आदि का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
भाग्यशाली योग
अथभाग्यभवं विप्र फलं वक्ष्ये तवाग्रतः ।
सबलो भाग्यपे भाग्ये जातो भाग्ययुतो नरः ।।
भाग्यस्थानगते जीवे तदीशे केन्द्रसंस्थिते
लग्नेशे बलसंयुक्ते बहुभाग्ययुतो भवेत् ।।
भाग्येशे बलसंयुक्ते भाग्ये भृगुसमन्विते
लग्नात् केन्द्रगते जीवे पिता भाग्यसमन्वितः ।।
अर्थात: यदि भाग्येश (नवमेश) बलवान् हो तथा नवम भाव में ही स्थित हो तो मनुष्य भाग्यशाली होता है।
यदि भाग्यस्थान में बृहस्पति हो तथा भाग्येश केन्द्र में गया हो एवं लग्नेश वली हो तो मनुष्य बहुत भाग्यशाली होता है।
यदि भाग्येश बलवान् हो तथा नवम में शुक्र व केन्द्र में बृहस्पति हो तो मनुष्य का पिता बहुत भाग्यशाली होता है।
निर्धन पिता के योग
भाग्यस्थानाद्वितीये वा सुखे भौमसमन्विते
भाग्येशे नीचराशिस्थे पिता निर्धन एव हि ।।
भाग्येशे परमोच्चस्थे भाग्यांशे जीवसंयुते
तत्पितावाहनैर्युक्तो राजा वा तत्समो भवेत् ।।
शुभदृष्टे धनाढ्यश्च कीर्तिमांस्तत् पिता भवेत्
लग्नाच्चतुष्टये शुक्रे तत्पिता दीर्घजीवनः ।।
भाग्येशे केन्द्रभावस्थे गुरुणा च निरीक्षिते
भाग्येशे कर्मभावस्थे कर्मेशे भाग्यराशिगे।।
अर्थात: यदि भाग्य से द्वितीय (दशम) में या लग्न में मंगल हो तथा नवमेश नीच राशि में गया हो तो जातक का पिता निर्धन होता है।यदि भाग्येश परमोच्च में गया हो तथा भाग्य भाव के नवांश में गुरु हो, लग्न से केन्द्र में शुक्र हो तो पिता दीर्घजीवी होता हैं।
यदि भाग्येश केन्द्र में हो तथा उसे बृहस्पति देखता हो तो जातक का पिता अनेक वाहनों से युक्त राजा या राजातुल्य होता है। यदि भाग्येश दशम में व दशमेश नवम में हो तथा नवमेश को शुभग्रह देखें तो मनुष्य का पिता कीर्तिमान् व धनी होता है।
पितृभक्ति योग
परमोच्यांशगे सूर्ये भाग्येशे लाभसंस्थिते ।
धर्मिष्ठोनृपवात्सल्यः पितृभक्तो भवेन्नरः ।।
त्रिकोणगे सूर्ये भाग्येशे सप्तमस्थिते
गुरुणा सहिते दृष्टे पितृभक्तिसमन्वितः।।
अर्थात: यदि सूर्य परमोच्च में हो व भाग्येश एकादश में हो तो मनुष्य पितृभक्त, धार्मिक व राजा का प्रिय पात्र होता है लग्न से त्रिकोण में सूर्य व नवमेश सप्तम में हो तथा गुरु की दृष्टि या योग हो तो मनुष्य पितृभक्त होता है।
पिता-पुत्र में शत्रुता
लग्नेशे भाग्यराशिस्थे षष्ठेशेन समन्विते ।
अन्योन्यवैरं ब्रुवते जनकः कुत्सितो भवेत् ।।
अर्थात: यदि लग्नेश नवम में हो तथा षष्ठेश साथ में हो तो पिता व पुत्र की परस्पर शत्रुता होती है तथा पिता निन्दित होता है।
पिता अनिष्ट विचार
षष्ठाष्टमव्यये भानू रन्ध्रेशे भाग्यसंयुते ।
व्ययेशे लग्नराशिस्थे षष्ठेशे पंचमे स्थिते
जातस्य जननात्पूर्व जनकस्य मृतिर्भवेत् ।
रन्धस्थानगते सूर्यो रन्ध्रेशे भाग्यभावगे
जातस्य प्रथमाब्देतु पितुर्मरणमादिशेत्।।
अर्थात: यदि सूर्य 6.8.12 में हो, भाग्य भाव में अष्टमेश एवं लग्न में व्ययेशतथा पंचम में षष्ठेश हो तो जातक के पैदा होने से पूर्व ही पिता की मृत्यु हो जाती है।
यदि सूर्य अष्टम भाव में हो और अष्टमेश नवम भाव में हो तो जातक के पिता की मृत्यु उसके जन्म से एक वर्ष के भीतर हो जाती है।
भाग्योदय
परमोच्चांशगे शुक्रे भाग्येशेन समन्विते ।
भ्रातृस्थाने शनियुते बहुभाग्याधिपो भवेत् । 1
अर्थात: यदि शुक्र अपने परमोच्च में नवमेश के साथ हो तथा तृतीय में शनि हो तो मनुष्य बहुत भाग्यशाली होता है।
लग्नेशे भाग्यराशिस्थे भाग्ये लग्नसंयुते
गुरुणा संयुते द्यूने धनवाहनलाभकृत् ।।
अर्थात: यदि लग्नेश नवम में व नवमेश लग्न में हो तथा गुरु सप्तम मेंरहे तो मनुष्य को सदैव धन व वाहन का लाभ होता रहता है।
दुर्भाग्य योग
भाग्यात्भाग्यगतो राहुस्तदीशे निधनं गते
भाग्येशेनीचराशिस्थे भाग्यहीनो भवेन्नरः । ।
भाग्यस्थानगते मन्दे शशिना च समन्विते
लग्नेशे नीचराशिस्थे भिक्षाशी च नरो भवेत् ।।
अर्थात: यदि पंचम स्थान में राहु तथा पंचमेश या भाग्येश अष्टम में नीच राशिगत हो तो मनुष्य भाग्यहीन होता है यदि नवम में शनि तथा चन्द्रमा हों और लग्नेश नीच राशि में गया तो मनुष्य भीख माँगकर जीवन बिताता है ।
निष्कर्ष: कुंडली में नवम भाव एक महत्वपूर्ण भाव है। इसलिए इस भाव का सावधानी पूर्वक अध्यन करना चाहिए।