Astrology FAQs: ज्योतिष से जुड़े सवाल-जवाब (प्रश्नोत्तरी)
नमस्कार..🙏 ज्योतिष प्रश्नोत्तरी (Astrology FAQs), ज्योतिष में रुचि रखने वालों के मन मे ढेरों सवाल आते है। यहां कुछ ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर दिया गया है, जिससे आपके जिज्ञासाओं का समाधान हो। और आप साइंटिफिक ज्योतिष सीख सकें। जैसे-जैसे हम कक्षा में आगे बढ़ेंगे या पाठकों के प्रश्न आएंगे हम उन्हें इस सूची में शामिल करते रहेंगे।
ग्रह प्रश्नोत्तरी (Planets FAQs)
प्रश्न- ज्योतिष में ग्रह किसे कहते है?
उत्तर- जिसके प्रभाव को हम ग्रहण करते है, उसे ग्रह कहते है। ज्योतिष में ग्रहों की कुल संख्या 9 है। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, और केतु।
प्रश्न – आन्तरिक ग्रह और बाह् ग्रह किसे कहते है?
उत्तर- आंतरिक ग्रह सूर्य के सबसे निकट के ग्रह हैं। यह बाहरी ग्रहों की तुलना में आकार में छोटे हैं। आंतरिक ग्रह में बुध सबसे नजदीक इसके बाद शुक्र, पृथ्वी और फिर मंगल है।
जिन ग्रहों की दूरी, सूर्य से से अधिक होती है वे सभी ग्रह बाह्य ग्रह कहलाते है। बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो-ये सभी ग्रह बाह्य ग्रह कहलाते हैं।
आंतरिक ग्रह | बाह् ग्रह |
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यह ग्रह सूर्य के निकट स्थित होते है। बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल। | यह सूर्य से दूर स्थित होते है। बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो। |
यह भारी धातु और चट्टानों के कारण धीरे-धीरे चलते हैं। | कम वजन के कारण तेजी से आगे बढ़ते हैं। |
सूर्य से निकट होने के कारण आंतरिक ग्रह गर्म हैं। | सूर्य से दूर स्थित होने के कारण ठंडे है। |
आंतरिक ग्रह छोटे होते है। इनका औसत व्यास लगभग 13,000 किमी है | बाहरी ग्रह आंतरिक ग्रहों की तुलना में बहुत बड़े हैं इनका औसत व्यास औसत व्यास 48,000 किमी है। |
सूर्य की परिक्रमा करने मे कम समय लगता है। | सूर्य की परिक्रमा करने मे अधिक समय लगता है। |
नोट:- हमने वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार पृथ्वी को भी आंतरिक ग्रह की सूचि में रख दिया है। ज्योतिष अनुसार पृथ्वी को ग्रह न माने।
प्रश्न- क्या पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य किसी ग्रह पर जीवन सम्भव है?
उत्तर- पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य ग्रहों पर जीवन की सम्भावना अत्यन्त क्षीण है। जल व आक्सीजन के न होने के कारण वहाँ पर किसी प्रकार के प्राणी होने की आशा नहीं की जा सकती।
प्रश्न – शुद्र ग्रह (Asteroids) किसे कहते हैं?
उत्तर: खगोल मण्डल में अनेक छोटे-छोटे ग्रह भी है तो पृथ्वी की तरह अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य के चारों ओर परिक्रमा लगाते हैं। उन्हें क्षुद्र ग्रह कहते है। इनका आकार सामान्य ग्रहों के मुकाबले बहुत छोटा होता है। ये ग्रहों के परिभाषा पर ठीक से खरे नही उतरते, जिस कारण इन्हें क्षुदग्रह कहते है।
प्रश्न- शुद्र ग्रह का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर- लाखों वर्ष पूर्व जब हमारे सौर मंडल का निर्माण हो रहा था, तो उसमें से जो कुछ कण बच गए वे क्षुदग्रह कहलाये।
यह टुकड़े लाखों करोड़ों कि संख्या में मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीच चक्कर लगा रहा है। इस क्षेत्र को क्षुद्रग्रह घेरा या ऐस्टरौएड बॅल्ट कहते हैं।
अधिवर्ष, अधिक मास, मल मास
प्रश्न- अधि-वर्ष किसे कहते हैं।
उत्तर: वह वर्ष जिसमें 366 दिन होते हैं अधिवर्ष कहलाते हैं।
प्रश्न- अधिक मास या मल मास किसे कहते है?
उत्तर- हिंदू कैलेंडर में हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास, मल मास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न- अधिक मास क्यों आता है?
उत्तर- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है. अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घंटे के अंतर से आता है. इसका आगमन सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है।
भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है. दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है. इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।
प्रश्न – चन्द्रमा की कलाएं क्या है?
उत्तर – चन्द्रमा पृथ्वी के चारों और चक्कर लगाता है। इस कारण इसका दिखलाई देने वाला भाग कभी घटता है और कभी बढ़ता है। चन्द्रमा की यह परिक्रमा ही उसकी “कला” कहलाती है।
प्रश्न – आकाश में शुक्र ग्रह (Venus) कब दिखाई देता है?
उत्तर : प्रायः शुक्र सूर्यास्त के कुछ देर बाद आकाश के पश्चिमी भाग में दिखलाई पड़ता है। जनवरी से अक्टूबर माह की अंतिम तारीख तक इसकी यही स्थिति होती है नवम्बर, दिसम्बर महीनों में यह भोर का तारा बनकर सुबह जल्दी सूर्योदय के कुछ समय पहले पूर्वी क्षितिज पर दिखाई पड़ता है।
प्रश्न- ज्योतिष की भाषा में तारा किसे कहते हैं? इसका महत्त्व क्या है?
उत्तर: ज्योतिष की भाषा में शुक्र ग्रह एवं बृहस्पति ग्रह को तारा कहा गया है। किसी भी मनुष्य के विवाह-समय पर तारों का विशेष महत्व हैं। शुक्र या बृहस्पति के अस्त होने पर भारतीय ज्योतिष शास्त्र विवाह करने की अनुमति नही देता।
प्रश्न – ज्योतिष में त्रिबल किसे कहते हैं?
उत्तर – ज्योतिष शास्त्र में तीन ग्रहों (सूर्य, गुरु एवं चन्द्रमा) के बल को त्रिबल कहा गया है। त्रिबल का उपयोग विवाह मुहूर्त निकालते समय किया जाता है। विवाह काल में त्रिबल के अन्तर्गत वर को सूर्यबल चाहिए, कन्या को बृहस्पति का, तथा वर कन्या दोनों को चन्द्रबल चाहिए।
ग्रहण प्रश्नोत्तरी
प्रश्न:- ग्रहण किसे कहते हैं?
उत्तर: किसी भी वर्ष में एक समय ऐसा आता है जब सूर्य या चंद्रमा के प्रकाशमय भाग का कोई अंश थोड़ी देर के लिए अंधकार से ढंक जाता है. ऐसी अवस्था को ग्रहण कहते हैं। अंग्रेजी में इसे एक्लीप्स (Eclipse) कहते हैं।
प्रश्न:-चंद्र ग्रहण किसे कहते हैं?
उत्तर : चंद्रमा के अंधकार में ढकने पर चंद्र ग्रहण कहलाता है। इसे ‘लूनर एक्लीप्स’ (Lunar-eclipse) भी कहते हैं।
प्रश्न :- सूर्य ग्रहण किसे कहते हैं?
उत्तर : सूर्य के अधकार से ढकने पर सूर्यग्रहण कहलाता है। इसे ‘सोलर एक्लीप्स’ (Solar eclipse) भी कहते हैं।
प्रश्न : चंद्र ग्रहण कब होता है?
उत्तर : चंद्र ग्रहण केवल पूर्णिमा को ही होता है। पर यह जरूरी नहीं कि सभी पूर्णिमाओं को ग्रहण हो।
प्रश्न :- खग्रास (पूर्ण चंद्र ग्रहण) किसे कहते हैं?
उत्तर : यदि चंद्रमा का सम्पूर्ण भाग पृथ्वी की छाया में छिप जाता है, तो उसे खग्रास या पूर्ण चंद्र ग्रहण कहते हैं।
प्रश्न :- खंड ग्रहण किसे कहते हैं
उत्तर : यदि चंद्रमा का कुछ भाग ही अंधकारमय छाया से ढक पाता है। तो उसे खंड ग्रहण कहते हैं।
प्रश्न : सूर्य ग्रहण की स्थिति कहां दिखलाई देगी?
उत्तर- चूंकि चंद्रमा का आकार पृथ्वी से बहुत छोटा है। यह छाया पृथ्वी के बहुत थोड़े से भाग पर ही पहुंच पाती है। जहां सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाएंगी. उस स्थान पर सूर्य ग्रहण दिखलाई देगा।
प्रश्न : चंद्र ग्रहण वर्ष में कितनी बार संभव है?
उत्तर : चंद्र ग्रहण वर्ष में अधिक से अधिक 3 तथा कम से कम 1 या नहीं भी होता है।
प्रश्न: सूर्य ग्रहण कब-कब होता है?
उत्तर : सूर्य ग्रहण प्रति अमावस्या को हो सकता है जब चंद्रमा की कक्षा और पृथ्वी की कक्षा एक ही समतल (Plane) में होगी तो प्रति अमावस्या को सूर्य ग्रहण संभव है।
प्रश्न : सूर्य ग्रहण वर्ष में कितनी बार संभव है?
उत्तर : अधिक से अधिक 4-5 और कम से कम 2 बार सूर्य ग्रहण होता ही है।
प्रश्न- ग्रहण सूतक काल क्या है?
उत्तर- चंद्र ग्रहण से 9 घंटे पहले औऱ सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक लगता है। इस काल में पूजा-पाठ भी नहीं की जाती है. इस दौरान मंदिर के कपाट भी बंद रहते हैं।
प्रश्न- ग्रहण काल में भोजन क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर- सूर्य-चंद्र ग्रहण के समय पृथ्वी पर पड़ने वाली पराबैंगनी (Ultra Violet rays) किरणों से भोजन विषैला हो जाता है। जिससे भोजन में बैक्टीरिया बहुत जल्दी फैलता है। इसलिए ग्रहण के दौरान भोजन करने से शरीर को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।
हिन्दू लोग पके हुए भोजन को दूषित होने से बचाने के लिए उसमे कुशा एवं तुलसी दल औषध के रूप में डाल देते है। जिसे ग्रहण समाप्त होने पर स्नान आदि से निवृत होकर खाया जा सकता है।
देवी भागवत् 9/35 के अनुसार -“सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितना अन्न का दाना खाता है। उतने वर्षों तक ‘अरन्तुद’ नरक में रहता है। फिर वह उदररोग से पीड़ित होकर गुल्मरोगी, काना एवं दन्तहीन हो जाता है।”
प्रश्न- ग्रहण काल में गर्भवती स्त्री क्या-क्या सावधानी बरतें?
उत्तर- हिन्दू मान्यता अनुसार ग्रहण काल में गर्भवती स्त्री को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- ग्रहण की नग्न आखों से न देखें।
- जितना हो सके आराम करें घर से बाहर न निकलें।
- ग्रहण के दौरान खाना खाने और बनाने से बचें।
- कैंची, चाकू, सुई-धाग आदि धारदार और नुकीली वस्तु का इस्तेमाल न करें।
- ग्रहण खत्म होने पर यदि संभव हो तो स्नान करें अथवा हाथ मुंह धोये।
प्रश्न : बरसी में ग्रहण पड़े तो क्या करें?
उत्तर: यदि पूर्वजों की बरसी ग्रहण काल में पड़ती है. तो उस दिन अन्य बरसी की तरह ब्राह्मणों को भोजन के स्थान पर अन्न पका भोजन दिया जाता है। रस्म रात को भी पूरी की जा सकती हैं।
मुहूर्त और संस्कार
प्रश्न – ब्रह्म मुहूर्त किसे कहते हैं?
उत्तर- रात्रि के अंतिम प्रहर में जो तीसरा भाग है, उसे ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। निंद्रा त्यागने के लिए यही समय शास्त्र निहित है।
प्रश्न- संस्कार किसे कहते हैं?
उत्तर- (‘सम’ उपसर्ग का ‘क’ धातु) शरीर एवं वस्तुओं की शुद्धि के लिए उनके विकास के साथ समय-समय पर जो कर्म किए जाते हैं, उन्हें ‘संस्कार’ कहते हैं। संस्कारों से पापों व दोषों का मार्जन होता है तथा नवीन गुणों की प्राप्ति के साथ-साथ अदृष्ट फल की प्राप्ति होती है।
प्रश्न- संस्कार कितने प्रकार के होते है?
उत्तर- संस्कार सोलह प्रकार के कहे गए है। जिनके नाम निम्न है-
1. गर्भाधान, 2, पुंसवन, 3. सीमन्तोत्रयनন, 4. जातकर्म, 5. नामकरण, 6. निष्क्रमण, 7. अन्नप्राशन, . चूडाकर्म, 9. कर्णवेध, 10, यज्ञोपवीत. 11 वेदारम्भ, 12. केशान्त, 13 समावर्तन, 14. विवाह, 15 आवसश्याधान, 16, श्रीताधान।
प्रश्न- मंत्र पाठ के प्रारम्भ में ‘हरि ओम्’ क्यों बोलते है?
उत्तर- मंत्र के अशुद्ध उच्चारण से ‘महापातक’ नामक दोष लगता है। लेकिन मंत्र, स्तोत्र आदि के पाठ से पूर्व और अंत मे ‘हरि ॐ’ का उच्चारण करने से दोष नही लगता। इसलिए वेद पाठ के प्रारम्भ में मंत्रोच्चारण से पूर्व हरि ओम्’ उच्चारण करने की वैदिक परम्परा है।