वैद्यनाथ मंदिर, देवघर
वैद्यनाथ मन्दिर (Baidyanath Temple) या बाबा बैधनाथ धाम झारखंड राज्य के देवघर में अवस्थित है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर हिन्दुओ के पवित्र 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है।
Complete Info About Baidyanath Temple With Tourist Guide & Photo
नाम | वैद्यनाथ (Vaidyanath / Baidyanth), बैजनाथ (Baijnath) |
देश | भारत |
राज्य | झांरखण्ड |
ज़िला | देवघर |
धर्म | हिन्दू |
संबंधित देव | भगवान शिव |
धार्मिक महत्त्व | ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ |
वेबसाइट | babadham.org |
बाबा वैद्यनाथ मंदिर, देवघर (Baba Baidyanath Temple)
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (Baidyanath Temple) झारखंड राज्य के देवघर नामक स्थान पर अवस्थित है। जो भारत की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी 479.5 किलोमीटर है।
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर, जिसे आमतौर पर बैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है। यह मंदिर हिंदुओ के पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह एक शक्तिपीठ भी है। यहां देवी सती का हृदय गिरा था। मंदिर के उत्तर-पश्चिम छोर पर बिनवा नदी बहती है, जो की आगे चल कर व्यास नदी में मिलती है।
वैधनाथ मंदिर पौराणिक कथा (Baidyanath Temple Mythological Story)
एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर भगवान शिव की घोर तपस्या की। तपस्या की पराकाष्ठा पर उसने एक-एक कर अपने शीश को काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिया।। जब उसने अपना दसवां सिर काटकर भगवान को अर्पण करना चाहा तो प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने रावण को वैसा करने से रोका भगवान शिव ने उसके पहले चढ़ाए नौ सिर भी जोड़ दिए।
शिव ने रावण से वर मांगने को कहा। रावण ने वर के रूप में उस शिवलिंग को अपने देश लंका की राजधानी में ले जाने को आज्ञा मांगी। भगवान शिव ने उसे वह वर तो दे दिया, लेकिन एक शर्त भी रखी कि यदि तुम रास्ते में इसे कहीं रख दोगे तो यह वहीं स्थापित हो जाएगा।
रावण ने यह शर्त स्वीकार कर ली और लिंग को लेकर अपनी राजधानी को चल दिया। कुछ मील चलने पर उसे लघुशंका करने की इच्छा हुई। उसने इधर-उधर दिखा। वहां उसे एक अहीर दिखाई दिया। रावण ने वह लिंग उसके हाथों में थमा दिया और स्वयं लघुशंका की निवृत्ति के लिए चला गया।
अहीर के हाथ में आते हो शिवलिंग भारी हो गया। उसने काफी प्रयास किया कि वह शिवलिंग को जमीन पर न रखे लेकिन जब उठा पाना असहा हो गया तो घबराकर उस अहीर ने वह लिंग वहीं पृथ्वी पर रख दिया। जब रावण लौटकर आया तो उसे उठा न पाया। इस प्रकार वह लिंग सदा-सदा के लिए वहीं स्थापित हो गया।
रावण दुखी मन से लंका को लौट गया। यही लिंग श्री वैद्यनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। रावण द्वारा लाए जाने की वजह से यह कामना लिंग ‘रावणेश्वर महादेव’ के नाम से भी जाना जाता है।
वैद्यनाथ मंदिर परिसर (Temple Complex and Architecture)
वैद्यनाथ मंदिर परिसर में भगवान शिव व माता दुर्गा के साथ ही ब्रह्मा मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, गणपति मंदिर, कालभैरव मंदिर, मनसा देवी मंदिर, सरस्वती मंदिर, सूर्य मंदिर, संध्या मंदिर, बगलामुखी देवी मंदिर, श्रीराम मंदिर, कालिका मंदिर, देवी अन्नपूर्णा मंदिर, लक्ष्मी-नारायण मंदिर जैसे 21 मंदिरों का परिक्रमा मार्ग बना हुआ है।
मंदिर से थोड़ी दूरी पर एक तालाब है, जिसके ऊपर पक्के घाट बने हुए हैं। तालाब के पास ही धर्मशाला है। लिंगमूर्ति ग्यारह अंगुल ऊंची है। जिस पर जरा-सा गड्ढ़ा है, कहा जाता है कि ये गड्ढा रावण द्वारा किया गया था। श्री वैद्यनाथजी के घेरे में कुल 21 मंदिर हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-
- गौरी मंदिर
- गणपति मंदिर
- संध्या देवी का मंदिर
- हनुमानजी का मंदिर
- सरस्वती का मंदिर
- बगला देवी का मंदिर
- आनंद भैरव मंदिर
- मानिक चौक चबूतरा
- कालिका मंदिर
- चंद्रकूप
- नीलकंठ महादेव मंदिर
- कार्तिकेय मंदिर
- ब्रह्माजी का मंदिर
- कालभैरव मंदिर
- मनसा देवी का मंदिर
- सूर्य मंदिर
- श्री राम मंदिर
- गंगा मंदिर
- हर गौरी मंदिर
- अन्नपूर्णा मंदिर
- लक्ष्मीनारायण मंदिर
गौरी मंदिर ही यहां का शक्तिपीठ है। इसमें एक ही सिंहासन पर श्री जयदुर्गा तथा त्रिपुरसुंदरी की दो मूर्तियां विराजमान हैं।
वैद्यनाथ मंदिर की सुरक्षा करता है पंचशूल
सभी मंदिरों के शीर्ष पर ‘त्रिशूल’ होता है, परंतु बाबा बैद्यनाथ के मंदिर में ही पंचशूल स्थापित है। इस सुरक्षा कवच के कारण ही इस मंदिर पर आज तक किसी भी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं हुआ है।मान्यता अनुसार रावण ने लंका के चारों कोनों पर पंचशूल का निर्माण करवाया था, जिसे राम को तोड़ना आसान नहीं हो रहा था।
बाद में विभिषण द्वारा इस रहस्य की जानकारी भगवान राम को दी गई और तब जाकर अगस्त मुनि ने पंचशूल ध्वस्त करने का विधान बताया था। रावण ने उसी पंचशूल को वैधनाथ धाम में भी लगाया था, जिससे इस मंदिर को कोई क्षति नही पहुंचा सके।
वैधनाथ मंदिर दर्शन फल
पुराणों में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को महान फलों को देने वाला बताया गया है। जो मनुष्य इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है, उसे अपने सब पापों से छुटकारा मिल जाता है। फलस्वरूप ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध आदि विकारों का उसमें पूर्णत: आभाव हो जाता है। इस स्थान की जलवायु बहुत अच्छी है। अनेक रोगी रोग-मुक्ति के लिए भी यहां आते हैं।
वैधनाथ नाम क्यों पढ़ा?
शिवपुराण के शक्ति खंड में इस बात का उल्लेख है कि माता सती के शरीर का हिस्सा जहां जहां गिरा था वहां महादेव ने उसकी रक्षा के लिए एक भैरव की स्थापना करी थी। देवघर में माता सती का हृदय गिरा था, इसलिए इसे हृदय पीठ भी कहते है। यहां के भैरव वैधनाथ है। इसलिए जब रावण शिवलिंग को लेकर यहां पहुंचा, तो भगवान ब्रह्मा और बिष्णु ने भैरव के नाम पर उस शिवलिंग का नाम बैद्यनाथ रख दिया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार- त्रेतायुग में बैजू नाम का एक शिव भक्त था. उसकी भक्ति से भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए कि अपने नाम के आगे बैजू जोड़ लिया। जिससे इस धाम का नाम बैजनाथ पड़ा। कालातंर में यही बैजनाथ, बैद्यनाथ बन गया।
वैद्यनाथ मंदिर में पवित्र सावन महीना
वैद्यनाथ धाम देश के बारह पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल है। यूं तो यहां सालों भर बाबा पर जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। लेकिन पवित्र यात्रा के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है।
सावन महीने में पवित्र यात्रा का महत्व
वैद्यनाथ धाम की पवित्र यात्रा श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में शुरु होती है। सावन के सोमवार को दर्शन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। हर तरफ बोल बम बम…बोल बम… हर-हर महादेव के जयकारों की गूंज सुनाई देती है।
सबसे पहले तीर्थ यात्री सुल्तानगंज में एकत्र होते हैं जहाँ वे गंगाजल भरते है और गंगाजल को अपनी-अपनी काँवर में रखकर बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ की ओर बढ़ते हैं। 105 किलोमीटर की कष्टप्रद यात्रा का यह सिलसिला पूरे एक महीना चलता है।
महाशिवरात्रि पंचशूल पूजा एवं दर्शन का महत्व
सामान्यतः सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा रहता है मगर वैद्यनाथ धाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं। महा शिवरात्रि से 2 दिनों पूर्व बाबा मंदिर, माँ पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं।
सभी पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा कर सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है। इस दौरान पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।इस दौरान बाबा व पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है।
गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।धर्माचार्यो का इस पंचशूल को लेकर अलग-अलग मत है. मान्यता है कि पंचशूल के दर्शन मात्र से ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं।
“धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान शंकर ने अपने प्रिय शिष्य शुक्राचार्य को पंचवक्त्रम निर्माण की विधि बताई थी, जिनसे फिर लंकापति रावण ने इस विद्या को सिखा था. पंचशूल की अजेय शक्ति प्रदान करता है.”
वैधनाथ मंदिर के आस-पास दर्शनीय स्थल (Best Places to Visit in Deoghar)
बैजू मंदिर (baiju Temple)
बाबा बैद्यनाथ मन्दिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन और मन्दिर भी हैं। इन्हें बैजू मन्दिर के नाम से जाना जाता है। वैजू भील ही श्री वैद्यनाथ का प्रथम पूजक था। इन मन्दिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मन्दिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने किसी जमाने में करवाया था। प्रत्येक मन्दिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है।
वासुकिनाथ मन्दिर (Vasukinath Temple)
वासुकिनाथ अपने शिव मन्दिर के लिये जाना जाता है। वैद्यनाथ मन्दिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक वासुकिनाथ में दर्शन नहीं किये जाते। यह मन्दिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुण्डी गाँव के पास स्थित है। वासुकिनाथ मन्दिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं।
शिवगंगा सरोवर (Shivganga Sarova)
मंदिर के पास ही यह यह सरोवर स्थित है। कहा जाता है कि रावण ने जल की आवश्यकता होने पर पदाघात से यह सरोवर उत्पन्न किया था। यात्री इसमें स्नान करके ही वैधनाथ मंदिर जाते है।
तपोवन (Tapovan)
वैद्यनाथ से चार मील पूर्व एक पर्वत पर यह स्थान है। यहां शिखर पर एक शिव मंदिर है। इसके साथ ही शूलकुंड नामक एक कुंड है। स्थानीय लोग इसे महर्षि वाल्मीकि का तपोवन कहते हैं।
त्रिकूट पर्वत (Trikut Parvat)
वैद्यनाथ से 10 मील पूर्व त्रिकूट पर्वत अवस्थित है। यह एक तीर्थ स्थल और लोकप्रिय पिकनिक स्थान दोनो है।। त्रिकुट पहाड़ देवघर में सबसे रोमांचक पर्यटन स्थल में से एक है, जहां आप ट्रेकिंग, रोपेवे, वन्यजीवन एडवेंचर्स और एक सुरक्षित प्राकृतिक वापसी का आनंद ले सकते हैं।
चढ़ाई पर घने जंगल में प्रसिद्ध त्रिकुटेश्वर शिव मंदिर (त्रिकुटाचल महादेव मंदिर) और ऋषि दयानंद आश्रम है।
नौलाखा मंदिर (Naulakha Temple, Devghar)
यह मंदिर वैद्यनाथ मंदिर से 1.5 किमी मीटर स्थित है। यह मंदिर बेलूर में रामकृष्ण के मंदिर की तरह दिखता है। इसके अंदर राधा-कृष्ण की मूर्तियां हैं। इसकी ऊंचाई 146 फीट है।
हरिला जोड़ी (Harila Jodi)
यह वैद्यनाथ से उत्तर-पूर्व में एक गांव है। कहा जाता है कि यहीं एक हर्र के वृक्ष के नीचे रावण ने वैद्यनाथलिंग विष्णुजी के हाथ में दिया था तथा लघुशंका के लिए चला गया था।
नंदन पहाड़ (Nandan Pahar, Devaghar)
नंदन पहाड़ वैद्यनाथ मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। पहाड़ी पर कई मंदिरों के झुंड है। जिसमें शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिक की खूबसूरत मूर्तियां हैं।
मंदिर के आवास के अलावा, पहाड़ी में नंदन हिल एंटरटेनमेंट पार्क नामक एक प्रसिद्ध पार्क भी है।पर्यटक इस साइट से जिले, सूर्योदय और सूर्यास्त के सुंदर दृश्य भी देख सकते हैं।
वैद्यनाथ मंदिर कैसे पहुंचे (How to Reach Baidyanath Temple, Deoghar in Hindi)
वैसे तो बैद्यनाथ धाम की यात्रा जुलाई और अगस्त के महीने में शुरू होती है लेकिन शिवरात्रि के अवसर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। देवघर देश का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है और आप रेलमार्ग, सड़क मार्ग तथा हवाई यात्रा द्वारा देवघर ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए जा सकते हैं।
हवाई मार्ग (By Air)
देवघर का अपना हवाई अड्डा है। देश के किसी भी बड़े शहर से यहां के लिए हवाई यात्रा का टिकट बुक किया जा सकता है।
रेल मार्ग (By Rail)
बैजनाथ धाम का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो जसीडीह (Jasidih) से 8 कि.मी. दूर दिल्ली-पटना हावड़ा मेन लाइन पर है। यहाँ से विभिन्न स्थलों के लिए ट्रेन उपलब्ध हैं। जसीडीह से देवघर के लिए टैक्सी या ऑटो रिक्शा सुलभ हैं।
सड़क मार्ग (By Road)
देवघर देश के प्रमुख राजमार्गों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। देवघर के लिए राँची, पटना, धनबाद, जमशेदपुर, भागलपुर से सीधी बस सेवा भी उपलब्ध है।
वैधनाथ मंदिर में कहाँ ठहरें (Where to saty in Baidyanath Dham, Deoghar)
देवघर में ठहरने के लिए होटल, धर्मशाला एवं रेस्ट हाउस हैं। इनमें प्रमुख हैं होटल नटराज विहार, होटल वैद्यनाथ विहार, बासुकी बिहार, बासुकीनाथ
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