Bandhavgarh (M.P): History & Tourist Places in Hindi
बांधवगढ़ (Bandhavgarh) मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में स्थित है। यहां वर्ष 1968 में राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया था। इसका क्षेत्रफल 450 वर्ग किमी है। यहां बाघ आसानी से देखा जा सकता है।
Bandhavgarh: History, Facts & Tourist Places | wiki
राज्य | मध्य प्रदेश |
जिला | उमरिया |
क्षेत्रफल | 450 वर्ग किलोमीटर |
भाषा | हिंदी और इंग्लिश |
दर्शनीय स्थल | बांधवगढ़ नेशनल पार्क, बांधवगढ़ किला आदि। |
प्रसिद्धि | बाघों का गढ़ |
सम्बंधित लेख | मध्य प्रदेश कर पर्यटन स्थल |
कब जाएं | अक्टूबर से फरवरी। |
मध्य प्रदेश के पूर्वी हिस्से में स्थित बांधवगढ़ हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं में भी यह स्थान अपना विशेष महत्व रखता है। बांधवगढ़ के किले का संबंध रामायण काल से जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि भारत और लंका के बीच रामायण काल में सेतु बनाने वाले नल और नील नामक वानरों ने इस किले को बनाया था।
मान्यता यह भी है कि इस किले का प्रयोग राम और हनुमान ने लंका से वापसी के समय किया था। इस किले को बाद में राम ने लक्ष्मण के हवाले कर दिया जिन्हें बांधवधीश अर्थात् किले के भगवान के नाम से जाना गया। बांधवगढ़ किले के उत्तरी हिस्से की गुफाओं की खुदाई से प्रथम शताब्दी के ब्राह्मी अभिलेख प्राप्त हुए है।
खजुराहों के मंदिरों का निर्माण करवाने वाले चंदेल राजाओं ने भी इस किले पर शासन किया था। रीवा के महाराजा के उत्तराधिकारी बघेल राजाओं ने भी 12वीं शताब्दी में यहां राज किया। बांधवगढ़ उनके साम्राज्य की 1617 ईसवी तक राजधानी थी। उसके बाद रीवा को राजधानी बनाया गया जो 120 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। राजधानी के स्थानांतरण के कारण काफी समय तक बांधवगढ़ को अनदेखा किया जाता रहा।
बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान (Bandhavgarh National Park)
बांधवगढ़ का राष्ट्रीय पार्क पर्यटकों को हमेशा से ही लुभाता रहा है। राष्ट्रीय पार्क बनने से पहले यह स्थान यहां शासन करने वाले राजाओं के शिकार का स्थल था। आजादी के बाद राजशाही का अन्त हुआ और इस स्थान को मध्य प्रदेश सरकार के अधीन लाया गया। यहां के राजाओं को 1968 तक शिकार करने का अधिकार था।
उसके बाद इसे राष्ट्रीय पार्क बनाया गया और यहां शिकार पर पाबंदी लगा दी गई। पार्क बनने और शिकार पर पाबंदी लगने के बाद यहां बाघों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई। 1993 में इस पार्क को टाईगर प्रोजेक्ट के अधीन लाया गया।
यह खासतौर पर टाईगर क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। बाघों से रूबरू होने की यह आदर्श जगह है। सड़कों के बीचोंबीच बाघों को मस्त चाल में चलते हुए यहां आसानी से देखा जा सकता है। बांधवगढ़ राष्ट्रीय पार्क जबलपुर से 195 किलोमीटर और खजुराहो से 210 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बांधवगढ़ को मध्य प्रदेश के वन्य जीव धरोहर का सिरमौर कहा जाता है।
यह स्थान बंगाल टाईगर, चीतल, तेंदुओं, गौर, सांबर और बहुत सी जंगली प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध है। बांधवगढ़ विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित है। मध्य प्रदेश के कान्हा या अन्य पार्को की तुलना में यहां ज्यादा दुर्लभ जीव-जन्तु हैं। इसके अलावा यह स्थान मध्यम आकार की बिसन जड़ी-बूटियों के उत्पादन के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है।
बांधवगढ़ एक राष्ट्रीय पार्क के रूप 1968 में उभरकर सामने आया जिसका क्षेत्रफल 105 किलोमीटर था। 1986 में दो सटे हुए जंगलों को मिलाकर पार्क का विस्तार कर दिया गया। राष्ट्रीय पार्क बनने से पहले यह स्थान रीवा के महाराजाओं के शिकार खेलने के लिए आरक्षित था। लेकिन राजकीय संरक्षण के पतन के बाद इसे तब तक अनदेखा किया गया जब तक सरकार ने इस इलाके में प्रवेश पर अंकुश लगाने के लिए इसे राष्ट्रीय पार्क घोषित नहीं कर दिया।
बांधवगढ़ किला (Bandhavgarh Fort)
लगभग 2000 साल पुराना यह किला बांधवगढ़ पहाड़ियों की खड़ी चोटी पर स्थित है जिसे रीवा के महाराजाओं ने बनवाया था। 800 मीटर की ऊंचाई पर बने इस किले से शहर और जंगल का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। इस किले की अपनी एक पौराणिक कथा है।
कहा जाता है कि इस किले को भारत और लंका के बीच सेतुसमुद्रम बनाने वाले वानरों ने बनाया था। राम, लक्ष्मण और हनुमान ने लंका से वापसी के समय यहां विश्राम किया था। तब राम ने यह किला लक्ष्मण को भाई के प्रेम की निशानी के तौर भेंट किया। लक्ष्मण को बांधवधीश की उपाधि यहीं से मिली। बाद में यह किला रीवा के राजाओं के अधीन रहा।
किले के बगल से चरनगंगा नदी बहती है। कहा जाता है कि इस नदी का स्रोत विष्णु का चरण है। इसी कारण इस नदी का नाम चरणगंगा पड़ा। पास ही शेष शय्या पर विराजमान विष्णु की विशाल मूर्ति है। इस मूर्ति को चट्टानों से काटकर बनाया गया है। किले के मुख्य रास्ते से थोड़ा हटकर विष्णु के दस अवतारों की मूर्तियां देखी जा सकती हैं। साथ ही 12 शताब्दी के तीन छोटे किन्तु सुन्दर मंदिरों के दर्शन भी किए जा सकते हैं।
बघेल म्युजियम (Baghel Museum, Bandhavgarh)
बांधवगढ़ की खास बात यह रही है कि यहां अब भी सफेद टाईगर पाए जाते हैं। इस संग्रहालय में प्रवेश शुल्क 50 रूपये और प्रवेश करने का समय सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक है।
गुफा दर्शन (Bandhavgarh Cave)
पार्क के उत्तरी हिस्से में 35 बलुआ पत्थर की गुफाएं हैं। इन गुफाओं में पहली शताब्दी के ब्राह्मी अभिलेख प्राप्त हुए हैं।
बांधवगढ़ के आसपास दर्शनीय स्थल Tourist Attractions Near Bandhavgarh)
भांमरा बांध- यह बांध ताला से बीस किलोमीटर दूर स्थित है। पनपाथा अभ्यारण्य के करीब स्थित यह बांध खूबसूरत पक्षियों को देखने का उत्तम स्थल है। पार्क से दस किलोमीटर दूरी पर स्थित घपूडी बांध भी पक्षियों को देखने लायक बहुत सुन्दर स्थान है।
परफेक्ट पिक्चर सफारी– बांधवगढ़ अपने पर्यटकों के लिए तीन दिन का जीव जन्तुओं की फोटोग्राफी का अद्वितीय कैम्प आयोजित करता है। इस कैम्प में जंगल और उसमें रहने वाली प्रजातियों के बारें में काफी कुछ जानने में मदद मिलती है।
इसका आयोजन दिल्ली आधारित नेचर सफारी नामक एक समूह के माध्यम से किया जाता है। कैम्प का आयोजन अप्रैल-जून के बीच किया जाता है जिसमें 15 वर्ष से ऊपर के व्यवसायिक फोटोग्राफर हिस्सा ले सकते हैं। कैम्प टाईगर डेन रिसोर्ट में यह तीन रातों तक चलता है।
बांधवगढ़ कैंसे पहुंचे (How To Reach me Bandhavgarh)
वायु मार्ग- बांधवगढ़ से 200 किलोमीटर की दूरी पर जबलपुर एयरपोर्ट है। यह एयरपोर्ट दिल्ली और भोपाल एयरपोर्ट से जुड़ा है। जबलपुर से बांधवगढ़ जाने में लगभग 4 घन्टे का समय लगता है।
रेल मार्ग- उमरिया रेलवे स्टेशन बांधवगढ़ से 32 किलोमीटर दूर है। लगभग 45 मिनट में उमरिया से बांधवगढ़ पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग- राष्ट्रीय राजमार्ग-3 से ग्वालियर पहुंचकर उमरिया प्रस्थान किया जा सकता है।
कब जाएं- सुविधाजनक यात्रा के लिए नवम्बर-मार्च की अवधि उत्तम है। जीव-जन्तुओं को देखने के उद्देश्य से यदि जाना हो तो मई-जून का समय उत्तम है। जुलाई से अक्टूबर के बीच यह पार्क मॉनसून और जानवरों के प्रजनन के कारण बन्द रहता है।
सर्दियों में यहां का तापमान शून्य से बीस डिग्री सेल्सियस तक रहता है जबकि गर्मियों में तापमान अधिकतम 46 डिग्री तक पहुंच जाता है। अप्रैल से जून तक यहां गर्मियों का मौसम होता है। इस मौसम में टाईगर और तेंदुओं का नजारा देखा जा सकता है।