बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt)
बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ मिलकर पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध मे दिल्ली केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट किया था, जिस कारण उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
Batukeshwar Dutt Quick Info
नाम | बटुकेश्वर दत्त |
जन्म | 18 नवम्बर 1910 ओँयाड़ि ग्राम, बर्धमान जिला, ब्रितानी भारत |
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मृत्यु | 20 जुलाई 1965 (उम्र 54) नई दिल्ली, भारत |
मृत्यु कारण | केंसर |
पिता | बिहारी दत्त |
पत्नी | अंजली |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
प्रसिद्धि कारण | भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन, दिल्ली असेम्बली में बम विस्फोट |
बटुकेश्वर दत्त जीवनी (Batukeshwar Dutt Biography History in Hindi)
बटुकेश्वर दत्त, का जन्म 18 नवम्बर 1910 को बंगाल के औरी गांव (वर्धमान जिला) में हुआ था। यह इतना पैतृक गांव था, लेकिन बाद में पिता ‘बिहारी दत्त’ नौकरी करने के लिए कानपुर आ गए। बटुकेश्वर दत्त बंगाली थे। बटुकेश्वर को बीके दत्त, बट्टू और मोहन के नाम से जाना जाता था।
शिक्षा और प्रारम्भिक जीवन
बटुकेश्वर दत्त का बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रांत के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता। यही उनकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई। इसके बाद बटुकेश्वर दत्त कानपुर आ गए। बटुकेश्वर दत्त ने सन 1925 में हाईस्कूल की परीक्षा पास करी। इसी वर्ष बटुकेश्वर दत्त के माता पिता चल बसे।
उसके बाद पी..पी.एन. कॉलेज कानपुर से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करी।
कानपुर में शिक्षा के दौरान बटुकेश्वर दत्त, चन्द्र शेखर आजाद के संपर्क में आ गए। उन दिनों चंद्रशेखर आजाद झांसी, कानपुर और इलाहाबाद के इलाकों में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियां चला रहे थे।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी
सन 1928 में जब हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का गठन चंद्रशेखर आजाद की अगुआई में हुआ, तो बटुकेश्वर दत्त भी उसके अहम सदस्य थे। यहीं पर उनकी मुलाकात भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु से हुई। इनकी दोस्ती बहुत गहरी थी इसकी एक मिसाल हुसैनीवाला में देखने को मिलती है।
बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव और राजगुरु के साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया। इसी क्रम में बम बनाना औऱ हथियार चलाना भी सीखा। बम बनाने के लिए बटुकेश्वर दत्त ने खास ट्रेनिंग ली थी, और इसमें महारत हासिल कर ली। जो संसद में बम फैंका गया था, वो बटुकेश्वर दत्त ने ही बनाया था।
केंद्रीय विधानसभा (संसद भवन) में बम विस्फोट को अंजाम
8 अप्रैल 1929 ब्रिटिश सरकार द्वारा पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पास किया जा रहा था। इससे स्वतंत्रता सेनानियों पर नकेल कसने के लिए पुलिस को ज्यादा अधिकार मिल जाते।
जिसका बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान में संसद भवन) में बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया। बम विस्फोट का उद्देश्य किसी को नुकसान पहुंचाना नही था। इसलिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने उस तरफ बम फैंके जहां बेंच खाली थी।
जॉर्ज सस्टर और बी.दलाल समेत थोड़े से लोग घायल हुए, लेकिन बम ज्यादा शक्तिशाली नहीं थे। सो धुआं तो भरा, लेकिन किसी की जान को कोई खतरा नहीं था। बम फैकने के साथ-साथ दोनों ने पर्चे भी फेंके।
पर्चे पर लिखा हुआ था- ‘बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊंचे शब्द की आवश्यकता होती है।’ गिरफ्तारी से पहले दोनों ने इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद जैसे नारे भी लगाए।
काला पानी की सजा मिली
भगत सिंह सांडर्स हत्याकांड के भी दोषी सिद्ध हुए, इसलिए उन्हें फांसी की सजा और सुखदेव को कालापानी की सजा सुनाई गई। उन्हें अंडमान की कुख्यात सेल्युलर जेल भेजा गया। उन्होंने जेल के अंदर कैदियों के साथ होने वाले अमानवीय बर्ताव को लेकर भुख हड़ताल भी किया। सन 1937 में बटुकेश्वर दत्त को पटना के बांकीपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।
जेल में बटुकेश्वर दत्त की तबीयत अधिक बिगड़ने लगी। तो उन्हें 1938 में रिहा कर दिया गया। उन्हें टीवी भी हो गया था। मगर जेल से बाहर आने के बाद वे फिर से आजादी की लड़ाई में सक्रिय हो गए और महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। इसलिए दत्त को दोबारा गिरफ्तार कर 4 साल मोतिहारी जेल (बिहार के चंपारण जिले में) में रखा गया।
बटुकेश्वर दत्त की पत्नी और संतान
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया उस वक्त वो पटना में रह रहे थे। नवम्बर, 1947 में बटुकेश्वर दत्त ने अंजली से शादी कर ली। जिनसे उन्हें एक पुत्री ‘भारती’ हुई। प्रो. भारती बागची पटना के मगध महिला कॉलेज में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं।
आज़ादी के बाद भी जीवन मे संघर्ष किया
बटुकेश्वर दत्त जी ने देश की आजादी के लिए 15 साल से ज्यादा का समय जेल में बिताया था और जब भारत आजाद हुआ तो उनके सामने कमाने और घर चलाने की समस्या आ गई। देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने के कारण दत्त के पास कुछ बचा ही नही था। उनके पास न तो कोई रोजगार था न अपना जीवन चलाने का कोई साधन। सरकार ने लोन पर जक्कनपुर में जमीन दी जहां बटुकेश्वर दत्त ने बाकी का जीवन संघर्ष करते हुए बिताया।
प्रारम्भ में बटुकेश्वर दत्त ने एक सिगरेट कंपनी में एजेंट की नौकरी करी। वह जगह-जगह सिगरेट बेचकर अपना गुजारा करते थे। बाद में उन्होंने बिस्कुट बनाने का एक छोटा कारखाना भी खोला, लेकिन नुकसान होने की वजह से इसे बंद करना पड़ा।
जब पटना में स्वतंत्रता सेनानी होने का सबूत मांगा
एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे। बटुकेश्वर दत्त के आवेदन करने पर जब कमिश्नर के सामने पेशी हुई तो उनसे कहा गया कि वे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लेकर आएं।
हालांकि बाद में जब यह बात राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद कोबात पता चली तो कमिश्नर ने बटुकेश्वर से माफ़ी मांगी थी। बटुकेश्वर का सम्मान हुआ और पचास के दशक में उन्हें चार महीने के लिए विधान परिषद् का सदस्य मनोनीत किया गया। परंतु बटुकेश्वर राजनीति के चकाचौंध से परे थे। (एक अन्य जीवनी के अनुसार 1963 में विधान परिषद के सदस्य बनाये गए)
सरकारी हस्पताल में हुआ इलाज
अपनी जिंदगी की जद्दोजहद में लगे बटुकेश्वर दत्त 1964 में गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। उन्हें ट्यूबरक्लोसिस हो गया था गम्भीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। पटना के सरकारी अस्पताल में उन्हें कोई पूछने वाला नहीं था।
बिहार सरकार नींद से जागी
जब कुछ पत्रकारों ने इस बात को छापा। तो सत्ता में बैठे लोगों के कानों पर जूं रेंगी। पंजाब सरकार ने बिहार सरकार को एक हजार रुपए का चेक भेजकर वहां के मुख्यमंत्री केबी सहाय को लिखा कि यदि पटना में बटुकेश्वर दत्त का ईलाज नहीं हो सकता तो राज्य सरकार दिल्ली या चंडीगढ़ में उनके इलाज का खर्च उठाने को तैयार है।
इस पर बिहार सरकार हरकत में आई और बटुकेश्वर दत्त का का इलाज शुरू किया गया।
बटुकेश्वर दत्त की मृत्यु कैसे हुई?
बटुकेश्वर दत्त को 22 नवंबर 1964 को दिल्ली रेफर कर दिया गया। पहले उन्हें सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया. फिर वहां से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) ले जाया गया। जांच में पता चला कि उन्हें कैंसर है और बस कुछ ही दिन उनके पास बचे हैं।
दिल्ली पहुंचने पर पत्रकार को कहे शब्द-
“मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था कि उस दिल्ली में मैंने जहां बम डाला था, वहां एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लादा जाऊंगा.”
भगत सिंह की माँ विद्यावती जी को बीमार होने व एम्स आने की खबर मिलते ही वह अस्पताल आ गईं। वे बटुकेश्वर दत्त को अपना दूसरा बेटा मानती थीं। जब तक बटुकेश्वर दत्त भर्ती रहे वह बेटी प्रो भारती के साथ अस्पताल में चादर बिछाकर सोती थी।
बटुकेश्वर दत्त छह महीने तक एम्स (AIIMS) में भर्ती रहे। 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर पचास मिनट पर भारत के इस महान सपूत ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
बटुकेश्वर दत्त की अंतिम इच्छा
पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन बटुकेश्वर दत्त से मिलने पहुंचे तो उन्होंने छलछलाती आंखों के साथ ने मुख्यमंत्री से कहा, ‘मेरी यही अंतिम इच्छा है कि मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए‘।
बटुकेश्वर दत्त की अंतिम इच्छा को सम्मान देते हुए उनका अंतिम संस्कार भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के पास किया गया।
बटुकेश्वर दत्त ने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, मगर बदले में आज़ाद भारत ने उन्हें क्या दिया? हम उन्हें सम्मान तक नही दे सकें। टुकेश्वर दत्त का त्याग और बलिदान हमेशा इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा…🙏