भविष्यवाणी जो कभी असत्य नही होती | ज्योतिष
नमस्कार मित्रों…🙏 हमारा यह सैदेव प्रयास रहता है कि आपको ज्योतिष का ज्ञान सहज ही प्राप्त हो जाये। इसके लिए हम विभिन्न ज्योतिष कार्यक्रम चलाते है, और साथ ही आपके ज्ञान वर्धन के लिए विभिन्न लेखों, पुस्तकों आदि को आपके समक्ष लेकर हाज़िर होते रहते है। इसी श्रृंखला में आज हम “पी. एन. ओक” साहब की पुस्तक “ज्योतिष स्वयं शिक्षक” से “भविष्य वाणी जो कभी असत्य नही होती” लेकर आये है।
इसमे जो सूत्र बताये गए है वह अत्यंत सामान्य है, यदि आपने हमारे ज्योतिष लेखों को क्रम अनुसार पढ़ा है तो इसे समझने में किसी प्रकार की दिक्कत नही आएगी। आपको अधिकांश सूत्र पूर्व से ही ज्ञात भी होंगे। अतः प्रारंभिक ज्योतिष और एडवांस ज्योतिष दोनों विद्यार्थी इस लेख को पढ़े और कुंडली में लागू करें।
भविष्यवाणी जो कभी असत्य नही होती
यद्यपि ज्योतिष ऐसा उलझा हुआ विज्ञान है जिसमें निपुणता प्राप्त करना पर्याप्त कठिन है तथापि इसके कुछ स्थूल पक्ष भी हैं जिनको ज्योतिष के आलोचक अथवा पूर्ण रूप में अनभिज्ञ व्यक्ति भी सहज रूप में पहचान कर ज्योतिष की विज्ञानरूप में वैधता, सत्यता को अंगीकार कर सकते हैं। इस अध्याय में कुछ ऐसी ग्रह-स्थितियों को तथा उनके सम्बन्ध में भविष्य वाणियों को सार-रूप में संग्रहीत करने का विचार है जिनको पाठक सहज रूप में पहचान ले तथा अपने जान-पहचान के व्यक्तियों की जन्मकुण्डलियों में ग्रहों की वही स्थिति देखकर हमारी भविष्यवाणियों की सत्यता को परख ले ।
(1) किसी भी जन्मकुण्डली में यदि चन्द्र 10 अंक (मकर राशि) के साथ किसी भी घर में है तो उस व्यक्ति को जीवन में कम-से-कम एक भयंकर विफलता भोगनी ही पड़ेगी। यह अपघात इतना भयंकर होगा कि वह जनता में अपना मुख दिखाने में भी संकोच अनुभव करेगा।
(2) जब कभी चन्द्र के साथ (एक ही घर में) शनि और राहु अथवा राहु व मंगल जैसे दो दुष्ट ग्रह हों, तो वह व्यक्ति मानसिक रूप में इतना परेशान होता है कि पूर्णरूपेण पागल मालूम पड़े अथवा ऐसा अनुभव करे कि वह पागल होने वाला है।
(3) जब किसी जन्मकुण्डली में मंगल और शुक्र एक ही घर में हों तो उस व्यक्ति के विवाहेतर-सम्बन्ध होने अवश्यम्भावी हैं-इससे कोई प्रयोजन नहीं कि वह व्यक्ति कितना संयमी, सदाचारी तथा विनीत प्रतीत होता है।
(4) किसी जन्मकुण्डली में यदि मकर राशि में दूसरे घर में मंगल हो, तो दो परिणाम होते हैं। यदि जन्मकुण्डली किसी महिला की है तो उसके पिता का स्वभाव सामान्य बातचीत में भी भद्दी, गन्दी, गाली-गलौज वाली भाषा प्रयोग करने का होगा।
यदि जन्मकुण्डली किसी पुरुष की है, तो ऐसी अभद्र भाषा उसका चाचा प्रयोग करेगा दूसरा परिणाम यह है कि वह व्यक्ति प्रथम श्रेणी का विद्यार्थी होगा।
(5) शानि जब तुला लग्न में होता है, तब वह व्यक्ति विद्वान और प्रथम श्रेणी का विद्यार्थी होता है।
(6) जब गुरु कर्क लग्न में होता है, तो वह व्यक्ति विश्वासयोग्य, उदार-हृदय, सादा जीवन, स्पष्टवक्ता, सत्यप्रिय तथा चारित्रिक शुद्धता और विद्वत्ता के लिए प्रख्यात होता है। यही परिणाम तब भी होते हैं जबकि गुरु 5 वें या 9 वें घर में होता है ।
(7) यदि लग्न में किसी भी राशि में मंगल स्थित है, तो व्यक्ति शीघ्र क्रोधी स्वभाव का होगा। टिप्पड़ी:- लग्न में मंगल का स्थित होना जातक के स्वभाव में मंगल के गुणों की वृद्धि करेगा, फलस्वरूप जातक साहसी और क्रोधी होगा इसमे कैसा आश्चर्य.?
(8) यदि मेष लग्न है तो व्यक्ति इतना अधैर्य वाला होगा कि अज्ञात भावी तिथि पर सफलता की प्रतीक्षा करने की अपेक्षा शीघ्र ही विपरीत परिणाम सुनना पसन्द करेगा।
(9) यदि कर्क लग्न में अथवा वें घर में कर्क राशि में गुरु और चन्द्र स्थित हों, तो वह व्यक्ति महान् नेता तथा सत्य का निडर पुजारी हो महान् ख्याति का अर्जन करता है।
(10) जब मकर लग्न में केतु अकेला होता है, तब वह व्यक्ति बुभुक्षित, क्षयोन्मुख, मांसहीन और पीतशरीर दिखाई देता है। उसे क्षय रोग होना ही सम्भव है।
यदि मकर राशि में 7 वें घर में केतु स्थित है, तो उसके दूसरे पक्ष को (अर्थात् पति या पत्नी को) भी क्षयरोग होने की सम्भावना है दूसरा पक्ष मांसहीन और पीत शरीर दिखाई देगा ।
(11) जब मंगल दूसरे घर में स्थित हो, तो चाचा के साथ व्यक्ति के सम्बन्ध खराब या अच्छे होते हैं (जो इस बात पर निर्भर करते हैं कि मंगल किस राशि में है) ।
(12) यदि मंगल (किसी भी राशि में) तीसरे घर में हो, तो वह व्यक्ति बहादुर और साहसी होता है तथा किसी भी युद्ध, संघर्ष अथवा लड़ाई में भाग लेने के लिए सहसा आगे बढ़ जाने से कभी भयभीत नहीं होता ।
(13) किसी भी घर में मकर राशि में चार या अधिक ग्रहों वाला व्यक्ति लज्जा, कलंक या पराजय की भावना से ग्रस्त होता है तथा समाज या उच्च लोगों की सन्निद्धता में प्रकट होने में असमर्थ होता है महान् नेता, देशभक्त तथा योद्धा राणाप्रताप के तीसरे घर में (पराक्रम और शौर्य के घर में) पाँच ग्रह-स्थित थे। किन्तु वे सभी चूंकि मकर राशि में थे, अतः महाराणाप्रताप को वह सफलता नहीं मिली जो उनको मिलनी चाहिए थी।
(14) किसी भी जन्मकुण्डली में किसी भी घर में राहु और चन्द्र का इकट्ठा होना व्यक्ति के लिए कारावास, भयंकर आरोपों द्वारा उत्पन्न मुकदमेबाजी, परिवार में रोटी कमाने वाले की अकस्मात तथा दुःखान्त मृत्यु के कारण अनाधितावस्था, शारीरिक आघात आदि घोर विपदाओं का देने वाला है।
(15) यदि किसी भी घर में, कर्क राशि में गुरु और चन्द्र अथवा शुक्र और चन्द्र एकत्र है, तो सम्बद्ध व्यक्ति अत्यन्त सुन्दर व स्वस्थ होगा। उदाहरणार्थ, यदि वे लग्न में है, तो वह व्यक्ति स्वयं बहुत सुन्दर होगा।
(16) यदि गुरु और चन्द्र अथवा गुरु और शुक्र माता के घर में हैं, तो उसकी माता का व्यक्तित्व अत्यन्त आकर्षक होगा। यदि ये दोनों ग्रह सातवें घर में है, तो दूसरा पक्ष (अर्थात् पति या पत्नी) अत्यन्त लुभावनी मुखाकृति का होगा। यदि इन दोनों ग्रहों की कोई-सी भी जोड़ी 10 वें घर में है, तो व्यक्ति के पिता का व्यक्तित्व आकर्षक तथा प्रभावी होगा।
(17) यदि गुरु, शुक्र और चन्द्र सभी कर्क राशि में हैं, तो सम्बद्ध व्यक्ति का सौन्दर्य विशिष्टतापूर्वक होगा।
(18) चन्द्र और शनि का 4 थे घर में इकट्ठा होना व्यक्ति के लिए दौशवावस्था और किशोरावस्था में घोर विपदाओं का फल देने वाला होता है। उत्तरोत्तर जीवन में भी यह संगति नौकरियों की अकस्मात हानि अथवा वित्तीय हानियों का कारण होती है। यदि चन्द्र तीसरे धर में हो और शनि चौथे घर में, तो भी परिणाम समान ही होंगे। किन्तु ऐसी स्थिति में व्यक्ति प्रचुरता अथवा प्राधान्य को उत्तरोत्तर जीवन में प्राप्त होता है विशेष रूप से तब जबकि चन्द्रमा मिथुन में और शनि कर्क में हो ।
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