भुवनेश्वर (Bhubaneswar): History & Tourist Places in Hindi
Bhubaneswar: भुवनेश्वर भारत के पूर्व में स्थित उड़ीसा राज्य की राजधानी है। प्राचीन काल में यह कलिंग के नाम से जाना जाता था। यह बहुत ही खूबसूरत और हरा-भरा प्रदेश है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है।
नाम | भुवनेश्वर |
राज्य | उड़ीसा |
क्षेत्रफल | 135 किमी 2 (52 वर्ग मील) |
तापमान | 7 से 28 डिग्री (सर्दी) 35-45 डिग्री (गर्मी) |
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यह जगह इतिहास में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में यहीं प्रसिद्ध कलिंग युद्ध हुआ था। इसी युद्ध के परिणामस्वरुप अशोक एक लड़ाकू योद्धा से प्रसिद्ध बौद्ध अनुयायी के रुप में परिवर्तित हो गया था।
भुवनेश्वर का इतिहास (history of Bhubaneswar)
भुवनेश्वर को पूर्व का काशी भी कहा जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि यह एक प्रसिद्ध बौद्ध स्थल भी रहा है। प्राचीन काल में 1000 वर्षों तक बौद्ध धर्म यहां फलता-फूलता रहा। बौद्ध धर्म की तरह जैनों के लिए भी यह जगह काफी महत्वपूर्ण है। प्रथम शताब्दी में यहां चेदी वंश का एक प्रसिद्ध जैन राजा ‘खारवेल’ हुआ था। इसी तरह सातवीं शताब्दी में यहां प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों का निर्माण हुआ था। इस प्रकार भुवनेश्वर वर्तमान में एक बहुसांस्कृतिक शहर है।
उड़ीसा की इस वर्तमान राजधानी का निमार्ण इंजीनियरों और वास्तुविदों ने उपयोगितावादी सिद्धांत के आधार पर किया है। इस कारण नया भुवनेश्वर प्राचीन भुवनेश्वर के समान बहुत सुंदर तथा भव्य नहीं है। यहां आश्चर्यजनक मंदिरों तथा गुफाओं के अलावा कोई अन्य सांस्कृतिक स्थान देखने योग्य नहीं है।
अनोखी कंघियां
आप कंघी का प्रयोग किस रुप में करते हैं? चोटी बनाने में ना! लेकिन उड़ीसा के जनजातीय समुदाय अनोखी कंघी बनाते हैं जिसका प्रयोग न सिर्फ चोटी बनाने में बल्कि रोगों को दूर भगाने तथा शरीर को आकर्षक बनाने में भी किया जाता है।
देसीया-कंद जनजाति को इस अनोखी कंघी का जन्मदाता माना जाता है। इस जनजाति के लोग उन भयानक दिनों को याद करते हुए बताते हैं, एक बार उनकी जनजाति के लोग किसी अज्ञात बीमारी के कारण असमय मृत्यु के शिकार हो रहे थे।
तब इस जनजाति के राजा ने अपनी कुल देवी ‘जकीनी पेनू’ की प्रार्थना की। देवी ने राजा को बांस तथा तार से एक कंघी बनाने तथा इस कंघी से नियमित रुप से बाल बनाने को कहा। राजा ने देवी के आदेश का पालन किया तथा सभी को ऐसा करने का आदेश दिया।
ऐसा विश्वास किया जाता है उसके बाद से इस जनजाति के लोग उस रोग से दोबारा कभी ग्रसित नहीं हुए। यह कंघी ‘श्रीदी’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह कंघी दो रुपों में मिलती है। पहला, पुरुषों के लिए चतुर्भुजाकार रुप में तथा महिलाओं के लिए गोलाकार रुप में।
उड़ीसा की 62 जनजातियों में 15 जनजातियां कंघी का उपयोग विभिन्न रुपों में करती हैं। उदाहरणस्वरुप, जुअंग जनजाति के लड़के लड़कियों को कंघी उपहार के रुप में देते हैं ताकि वे अपनी चोटी आकर्षक ढ़ंग से बना सके। दूसरी तरफ संथाल तथा डंगेरियंस जनजाति के लोग कंघी नहीं बेचते हैं। इन जनजातियों में ऐसा माना जाता है कि कंघी बेचने पर ईश्वर दंड देंगे। कुटियन जनजाति में नववधूओं को कंघी उपहारस्वरुप दिया जाता है।
कोई भी दो कंघी कभी समान नहीं होती। कुछ कंघियों में कलात्मकता ज्यादा होती है तो कुछ की निर्माण सामग्री अच्छी होती है तो कुछ कंघी अपनी जादुई शक्ितयों के लिए जानी जाती है। कुछ कंघियों की पूजा भी की जाती है। कुछ जनजातियों में कंघी उपहार में देना शुभ माना जाता है तो कुछ जनजातियों में कंघी बेचना बुरा माना जाता है।
भुवनेश्वर के प्रमुख पर्यटन स्थल (Best Places to Visit in Bhubaneswar)
अनुश्रुतियों के अनुसार भुवनेश्वर में किसी समय 7000 मंदिर थे, जिनका निर्माण 700 वर्षों में हुआ था। लेकिन अब केवल 600 मंदिर ही बचे हैं। राजधानी से 100 किलोमीटर दूर खुदाई करने पर तीन बौद्ध विहारों का पता चला है। ये बौद्ध विहार थें रत्नागिरि, उदयगिरि तथा ललितगिरि।
इन तीनों बौद्ध विहारों से मिले अवशेषों से अनुमान लगाया जा सकता है कि 13वीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म यहां उन्नत अवस्था में था। बौद्ध धर्म की तरह यहां जैन धर्म से संबंधित कलाकृतियां भी मिलती है। राजधानी से 6 किलोमीटर दूर उदयगिरि तथा कंदागिरि की गुफाओं में जैन राजा खारवेल की बनवाई कलाकृतियां मिली है जोकि बहुत अच्छी अवस्था में है।
राजा-रानी मंदिर (Raja Rani Temple)
इस मंदिर की स्थापना 11वीं शताब्दी में हुई थी। इस मंदिर में शिव और पार्वती की भव्य मूर्ति है। इस मंदिर के नाम से ऐसा लगता है मानो इसका नाम किसी राजा-रानी के नाम पर रखा गया हो। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना कि चूंकि यह मंदिर एक खास प्रकार के पत्थर से बना है जिसे राजारानी पत्थर कहा जाता है इसी कारण इस मंदिर का नाम राजा-रानी मंदिर पड़ा। इस मंदिर के दीवारों पर सुंदर कलाकृतियां बनी हुई हैं। ये कलाकृतियां खजुराहो मंदिर की कलाकृतियों की याद दिलाती हैं।
ब्राह्मेश्वर’ मंदिर (Bramheswara Temple)
राजा-रानी मंदिर से थोड़ा आगे जाने पर ‘ब्राह्मेश्वर’ मंदिर स्थित है। इस मंदिर की स्थापना 1060 ई. में हुई थी। इस मंदिर के चारों कानों पर चार छोटे-छोटे मंदिर स्थित हैं। इस मंदिर की दीवारों पर अदभूत नक्काशी की गई है। इनमें से कुछ कलाकृतियों में स्त्री- पुरुष को कामकला की विभिन्न अवस्थाओं में दर्शाया गया है।
मुक्तेश्वर मंदिर (Mukteshwar Temple)
राजा-रानी मंदिर से 100 गज की दूरी पर मुक्तेश्वर मंदिर समूह है। इस समूह में दो महत्वपूर्ण मंदिर है: परमेश्वर मंदिर तथा मुक्तेश्वर मंदिर। इन दोनों मंदिरों की स्थापना 650 ई. के आसपास हुई थी। परमेश्वर मंदिर सबसे सुरक्षित अवस्था में है। यह मंदिर इस क्षेत्र के पुराने मंदिरों में सबसे आकर्षक है। इसके जगमोहन में जाली का खूबसूरत काम किया गया है। इसमें आकर्षक चित्रकारी भी की गई है। एक चित्र में एक नर्त्तकी और एक संगीतज्ञ को बहुत अच्छे ढ़ंग से दर्शाया गया है। इस मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है। यह शिवलिंग अपने बाद के लिंगराज मंदिर के शिवलिंग की अपेक्षा ज्यादा चमकीला है।
परमेश्वर मंदिर की अपेक्षा मुक्तेश्वर मंदिर छोटा है। इस मंदिर की स्थापना 10वीं शताब्दी में हुई थी। इस मंदिर में नक्काशी का बेहतरीन काम किया गया है। इस मंदिर में की गई चित्रकारी काफी अच्छी अवस्था में है। एक चित्र में कृशकाय साधुओं तथा दौड़ते बंदरों के समूह को दर्शाया गया है। एक अन्य चित्र में पंचतंत्र की कहानी को दर्शाया गया है। इस मंदिर के दरवाजे आर्क शैली में बने हुए हैं। इस मंदिर के खंभे तथा पिलर पर भी नक्काशी की गई है। इस मंदिर का तोरण मगरमच्छ के सिर जैसे आकार का बना हुआ है।
इस मंदिर के दायीं तरफ एक छोटा सा कुआं है। इसे लोग मरीची कुंड कहते हैं। स्थानीय लोगों का ऐसा कहना है कि इस कुंए के पानी से स्नान करने से महिलाओं का बाझंपन दूर हो जाता है।
लिंगराज मंदिर (Lingraj Temple)
इस मंदिर समूह का निर्माण सोमवंशी वंश के राजा ययाति ने 11वीं शताब्दी में करवाया था।185 फीट ऊंचा यह मंदिर कंलिगा स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर का प्रतिनिधित्व करता है। यह मंदिर नागर शैली में बना हुआ है। इतिहासकारों के अनुसार यह उड़ीसा का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है।
इस मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही 160 मी x 140 मी आकार का एक चतुर्भुजाकार कमरा मिलता है। इस मंदिर का शहतीर इस प्रकार बना हुआ है कि यह विस्मय और कौतुहल का एक साथ बोध कराता है। इस मंदिर का आकार इसे अन्य मंदिरों से अलग रुप में प्रस्तुत करता है। इस मंदिर में स्थापित मूर्तियां चारकोलिथ पत्थर की बनी हुई हैं। ये मूर्तियां समय को झुठलाते हुए आज भी उसी प्रकार चमक रही हैं।
इन मूर्तियों की वर्तमान स्थिति से उस समय के मूर्तिकारों की कुशलता का पता चलता है। इस मंदिर की दीवारों पर खजुराहों के मंदिरों जैसी मूर्तियां उकेरी गई हैं। इसी मंदिर के भोगा मंडप के बाहरी दीवार पर मनुष्य और जानवर को सेक्स करते हुए दिखाया गया है। पार्वती मंदिर जो इस मंदिर परिसर के उत्तरी दिशा में स्थित है, अपनी सुंदर नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
नोट: गैर हिन्दुओं को लिंगराज मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है।
बैताला मंदिर (Baitala Temple)
इस मंदिर के चारों ओर कई छोटे-छोटे मंदिर हैं लेकिन ‘वैताला’ मंदिर इनमें विशेष महत्व रखता है। इस मंदिर की स्थापना 8वीं शताब्दी के आसपास हुई थी। इस मंदिर में चामुंडा देवी की मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति देखने में काफी भयावह प्रतीत होती है। यह मंदिर चतुर्भुजाकार है। इस मंदिर में तांत्रिक, बौद्ध तथा वैदिक परम्परा सभी के लक्षण एक साथ देखने को मिलता है।
उड़ीसा राज्य संग्रहालय (,Odisha State Museum)
भुवनेश्वर जाने पर यहां का राज्य संग्रहालय जरुर घूमना चाहिए। यह संग्रहालय जयदेव मार्ग पर स्थित है। इस संग्रहालय में हस्तलिखित तारपत्रों का विलक्षण संग्रह है। यहां प्राचीन काल के अदभूत चित्रों का भी संग्रह है। इन चित्रों में प्रकृति की सुंदरता को दर्शाया गया है। इसी संग्रहालय में प्राचीन हस्तलिखित पुस्तक ‘गीतगोविंद’ है जिससे जयदेव ने 12वीं शताब्दी में लिखा था।
भुवनेश्वर के आसपास देखने योग्य स्थान (Places to visit near bhubaneswar)
हीरापुर: हीरापुर भुवनेश्वर से 15 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है। इसी गांव में भारत की सबसे छोटी योगिनी मंदिर ‘चौसठ योगिनी’ स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था। इसका उत्खनन 1958 ई. में किया गया था।
यह मंदिर गोलाकार आकृति के रुप में बनी हुई है जिसका व्यास 30 फीट है। इसकी दीवारों की ऊंचाई 8 फीट से ज्यादा नहीं है। यह मंदिर भूरे बलूए पत्थर से निर्मित है। इस मंदिर में 64 योगिनियों की मूर्त्तियां बनाई गई है। इनमें से 60 मूर्त्तियां दीवारों के आले में स्थित है। शेष मूर्त्तियां मंदिर के मध्यम में एक चबूतरे पर स्थापित है। इस मंदिर का बाहरी दीवार भी काफी रोचक है। इन दीवारों में नौ आले हैं जिनमें महिला पहरेदार की मूर्त्तियां स्थापित है।
धौली: धौली भुवनेश्वर के दक्षिण में राजमार्ग संख्या 203 पर स्थित है। यह वही स्थान है जहां अशोक कलिंग युद्ध के बाद पश्चात्ताप की अग्नि में जला था। इसी के बाद उसने बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया और जीवन भर अहिंसा के संदेश का प्रचार-प्रसार किया। अशोक के प्रसिद्ध पत्थर स्तंभों में एक यहीं है।
इस स्तंभ (257 ई.पू.) में अशोक के जीवन दर्शन का वर्णन किया गया है। यहां का शांति स्तूप भी घूमने लायक है जो कि धौली पहाड़ी के चोटी पर बना हुआ है। इस स्तूप में भगवान बुद्ध की मूर्त्ति तथा उनके जीवन से संबंधित विभिन्न घटनाओं की मूर्त्तियां स्थापित है। इस स्तूप से ‘दया नदी’ का विहंगम नजारा दिखता है।
उदयगिरि और कंडागिरि: उदयगिरि और कंडागिरि की पहाडियां भुवनेश्वर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। उदयगिरि (प्राचीन नाम स्कंदगिरि) और कंडागिरि की पहाडियों में पत्थरों को काट कर गुफाएं बनाई हुई हैं। इन गुफाओं का निर्माण प्रसिद्ध चेदी राजा खारवेल जैन मुनियों के निवास के लिए करवाया था। इन गुफाओं में की गई अधिकांश चित्रकारी नष्ट हो गई है।
गुफा संख्या 4 जिसे रानी गुफा के नाम से भी जाना जाता है, दो तल का है। यह एक आकर्षक गुफा है। इसमें बनाई गई कई मूर्त्तियां अभी भी सुरक्षित अवस्था में हैं। इस गुफा में सफाई का उत्तम प्रबंध था। ऐसा लगता है कि इसे बनाने वाले कारीगरों का तकनीकी ज्ञान काफी उन्नत था।
गुफा संख्या 10 में जिसे गणेश गुफा भी कहा जाता है वहां गणेश की मनमोहक मूर्त्ति है। इस गुफा के दरवाजे पर दो हाथियों को दरबान के रुप में स्थापित किया गया है। लेकिन कंदगिरि गुफा में बनी हुई जैन तीर्थंकरों की सभी मूर्त्तियां नष्ट प्राय अवस्था में है।
भुवनेश्वर में प्रसिद्ध खानपान (Fomous Food in Bhubaneswar)
उडिया और बंगाली भोजन को लगभग एक समान माना जाता है लेकिन स्वाद के मामले में एक-दूसरे से बहुत भिन्न है। चावल बंगाल की तरह ही उड़ीसा का प्रधान भोजन है। ‘पक्कल भात’ यहां का एक लोकप्रिय डिश है। यह भोजन एक दिन पहले के चावल को आलू के साथ तल कर बनाया जाता है। इसके साथ आम, आलू भरता, बडी चूड़ा (एक मसालेदार व्यंजन), पोई- साग ( यह साग उड़ीसा के तटीय क्षेत्रों में पाया जाता है) खाया जाता है।
अगर उड़ीसा जाएं तो ‘चाटु तरकारी’ जरुर खाएं। यह एक तीखा भोजन है जो मसरुम से बनता है। यहां हर खाने में पंचफोरन मिलाने का रिवाज है। यह एक खास तरह का मसाला होता है। जिसे हर भोजन में मिला दिया जाता है। इसे भोजन में मिलाने से खाना स्वादिष्ट हो जाता है। इसके अलावा यहां का तड़का, दालमा, पीठा तथा नारियल के तेल में बने पूड़ी जरुर खाएं।
उड़ीसा के लोगों को बंगाली की तरह ही मछली खाने का बहुत शौक है। मछली का यहां कई डिश लोकप्रिय है। ‘महूरली-चडचडी’ एक प्रकार का डिश है जो छोटी मछली से बनाया जाता है। ‘चिंगुडिश’ भी एक प्रकार डिश है जो चिलका झील में पाए जाने वाले झींगा मछली से बना होता है। यह भोजन तरकारी की तरह बनाया जाता है। इसी प्रकार का एक अन्य भोजन ‘माचा-भाजी’ है जो मीठे पानी में पाये जाने वाले रोहू मछली से बना होता है। उड़ीया लोग ‘मनसा’ मछली को सरसों के तेल में तल कर भी खाते हैं।
भुवनेश्वर से क्या खरीदे (What are the things to buy in Bhubaneswar?)
यहां पत्थर से बने बहुत खूबसूरत सामान मिलते हैं। इन सामानों में मूर्त्तियों से लेकर बर्त्तन तक शामिल है। पत्थर के बने कुछ बर्त्तनों को जरुर खरीदना चाहिए। जैसे, पत्थर के बने कप जिसे ‘पथौरी’ कहा जाता है।
स्थानीय लोगों का मानना है यह दही जमाने के लिए सबसे अच्छा बर्त्तन है। पत्थर के बने इन सामानों को राज्य के हस्तशिल्प हाट(जोकि उत्कलिका बाजार में स्थित है) से खरीदना चाहिए। इसके अलावे अन्य उपयोगी सामानों को मंदिरों के आसपास से भी खरीदा जा सकता है।
पत्थरों से बने वस्तुओं के अलावा सींग से बने वस्तुओं जैसे, पेन स्टैंड, कंघी, सिगरेट पाइप तथा अन्य सजावटी वस्तुओं को भी खरीदा जा सकता है। उड़ीसा की साडि़यां भी काफी प्रसिद्ध हैं। खास कर जरीदार काम वाली साड़ी।
भुवनेश्वर कैसे पहुंचे? (How To Reach Bhubneswar)
हवा मार्ग: भुवनेश्वर में बीजू पटनायक हवाई अड्डा दैनिक आधार पर दिल्ली, चेन्नई, वाराणसी, नागपुर, कलकत्ता और विशाखापत्तनम से उड़ाने उपलब्ध है। हवाई अड्डा शहर के केंद्र से मात्र 4 किमी दूर है।
रेल मार्ग: भुवनेश्वर कोलकाता, गुवाहाटी, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलोर, तिरुवनंतपुरम, मुंबई, अहमदाबाद और देश के अन्य महत्वपूर्ण स्टेशनों के साथ सुपर फास्ट ट्रेन से लिंक हैं।
सड़क मार्ग: सड़क द्वारा भुवनेश्वर राष्ट्रीय राजमार्गों द्वारा शेष भारत से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।