Brahma Temple: पुष्कर का पवित्र ब्रह्मा मंदिर
Brahma Temple Pushkar: राजस्थान के अजमेर शहर से 14 की.मी दूरी पर स्थित पुष्कर शहर में विश्वप्रसिद्ध ‘ब्रह्मा मंदिर’ अवस्थित है। यही प्रतिवर्ष ‘पुष्कर मेला’ भी लगता है। जिसे देखने दूर दूर से लोग आते है।

मुख्य बिंदू (Interesting facts):-
- हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थानों में पुष्कर ही एक ऐसी जगह है जहाँ ब्रह्मा का मंदिर स्थापित है।
- यहां प्रत्येक वर्ष कार्तिक और वैशाख मास में एकादशी से पूर्णिमा तक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। जिसे देखने दूर दूर से लोग आते हैं।
- महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ की रचना इसी स्थल पर की थी।
पुष्कर, ब्रह्मा का एक मात्र मंदिर (Why Brahma is not worshipped)

तीन प्रधान देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में विष्णु भगवान और शिव जी के अनगिनत मंदिर हर जगह दिखाई देते हैं लेकिन पुष्कर के सिवा पूरे विश्व में ब्रह्मा जी का कोई और मंदिर नहीं है। इसलिए अकसर लोगों के मन में यह जिज्ञासा रहती है कि आख़िर ऐसा क्यों है? और पढ़ें: भगवान विष्णु कर 10 अवतार
पुष्कर मंदिर कहा हैं? (Where is Pushkar Temple?)
विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मंदिर राजस्थान के अजमेर जिले से करीब 14 की.मी दूरी पर स्थित है। ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार 11वीं सदी में शाकंभरी के प्रसिद्ध चौहान राजा अजयदेव ने इस शहर ‘अजय मेरु’ को बसाया था, जिसे आज ‘अजमेर’ कहा जाता है।
पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर के अतिरिक्त सावित्री, बदरीनारायण, वाराह और शिव आत्मेश्वर के मंदिर भी स्थित है। लेकिन सभी मंदिरों में पुष्कर का प्रमुख मंदिर ‘ब्रह्मा मंदिर’ है।
पुष्कर तीर्थ का माहात्म्य (Significance of Pushkar Tirtha in Hindi)
सनातन धर्म में पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, गंगा और प्रयाग क्षेत्र को पंचतीर्थ कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि यहां सूर्य, वसु, रुद्र सांध्य, मारुत, गंधर्व आदि देवता आठों पहर निवास करते हैं।
महाभारत के एक प्रसंग में भीष्म पितामह के साथ विभिन्न तीर्थों की चर्चा करते हुए पुलस्त्य ऋषि ने पुष्कर को सबसे पवित्र स्थल बताकर उसकी महिमा का गुणगान किया है। और पढ़ें: कुरुक्षेत्र में ही क्यों हुआ महाभारत का युद्ध
मंदिर की संरचना (Structure of Pushkar Temple)
यह मंदिर राजस्थान के रत्नगिरि पर्वत की तलहटी पर स्थित है।इसका निर्माण 14 वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर की संरचना और सजावट बहुत सुंदर है। यहाँ ब्रह्माजी की चतुर्मुखी प्रतिमा विराजित है। इनकी बायीं ओर सावित्री और दायीं ओर गायत्री देवी के विग्रह हैं। मंदिर के प्रांगण में एक कछुआ भी अंकित है। और पढ़ें: ब्रह्मा जी का रहस्य
यहां तीन झीलें हैं, जो ज्येष्ठ, मध्यम और लघु पुष्कर के नाम से प्रसिद्ध हैं। ज्येष्ठ के देवता ब्रह्मा, मध्यम के विष्णु और लघु पुष्कर के महेश हैं। यहां परिक्रमा करते समय कई महर्षियों की तपोभूमि के भी दर्शन होते हैं। और पढें: सप्तऋषियों का रहस्य
पुष्कर की पौराणिक कथा (Puskar Mythological Story in Hindi)
पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है, ब्रह्मा ने यहाँ आकर यज्ञ किया था। पद्म पुराण की एक कथा के अनुसार धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस के उत्पात से तंग आकर ब्रह्मा जी ने उसका वध कर दिया, उसी वक्त उनके सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी का मंदिर इस धार्मिक स्थल की सबसे बड़ी ख़ासियत है।
आइए चलें, पुष्कर की सैर पर हाथों से तीन कमल जहां-जहां गिरे वहां झीलें बन गईं। उसी घटना के बाद इस स्थान का नाम पुष्कर पड़ा। इसके बाद विश्व के कल्याण के लिए ब्रह्मा जी ने यज्ञ करना चाहा, जिसमें हवन के लिए पत्नी के साथ बैठना अनिवार्य था। किसी कारणवश उनकी पत्नी सरस्वती देवी को देर हो गई तो इस यज्ञ के लिए ब्रह्मा जी ने मृत्युलोक में एक कन्या से विवाह कर लिया। जब सरस्वती देवी ने अपने पति के साथ किसी अन्य स्त्री को देखा तो वह क्रोधित हो गईं। उसी क्षण उन्होंने ब्रह्मा जी को शाप दे दिया कि इस स्थल को छोड़ कर पूरे संसार में कहीं भी उनका पूजन नहीं किया जाएगा।
मंदिर की महिमा (importance of Pushkar Brahma Temple)
यहां दिन के तीनों पहर में होने वाले भजन-पूजन और आरती में भारी संख्या में तीर्थयात्री एकत्र होते हैं। यहां आसपास के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में श्री रंगराज जी, नृसिंह भगवान, वाराह देव और आत्मेश्वर महादेव के मंदिर भी शामिल हैं।
पहले अजमेर पहुंचकर वहां से टैक्सी या बस द्वारा पुष्कर के लिए प्रस्थान किया जा सकता है। चूंकि कार्तिक पूर्णिमा को ब्रह्मा जी ने पुष्कर में यज्ञ किया था, इसलिए वहां हर साल एकादशी से पूर्णिमा तक कार्तिक और वैशाख मास में विशाल मेला लगता है। ऊंट और घोड़े की दौड़ के अलावा पारंपरिक नृत्य-संगीत मेले का मुख्य आकर्षण है। पुष्कर में कुछ ऐसा जादू है, जो लोगों को बरबस अपनी ओर खींचता है।
तदनन्तर सरस्वती अपने अंश रूप में भारत भूमि पर अवतीर्ण हो कर भारती कहलायी और अपने अंश रूप से ही ब्रह्मा जी की प्रिय पत्नी बनकर ‘ब्रह्मी’ नाम से भी प्रसिद्ध हुई। किसी-किसी कल्प में सरस्वती ब्रह्मा की कन्या के रूप में भी अवतीर्ण होती हैं, और आजीवन कौमार्य व्रत का पालन करती हुई, ब्रह्मा की सेवा करती हैं।
ब्रह्मा के मन में एक बार विचार आया कि भूलोक पर सभी देवताओं के तीर्थ हैं, केवल मात्र मेरा ही कोई तीर्थ नहीं है। ऐसा सोचकर उन्होंने अपने नाम से एक तीर्थ स्थापित करने का निश्चय किया और एक रत्नरचित शिला को पृथ्वी पर गिराया। यह • शिला अजमेर जिला में चमत्कारपुर स्थान के निकट गिरी, ब्रह्मा जी ने उसे ही अपना तीर्थ स्थल बनाय, जो पुष्कर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
तीर्थ स्थापन के पश्चात् ब्रह्मा ने वहां पवित्र जल से युक्त एक सरोवर बनाने का निश्चय किया. अतः उन्होंने सरस्वती को आवाहित किया। इसके पूर्व सरस्वती नदी के रूप में परिणित हो कर, पापात्माओं के स्पर्श बचने के लिए छिप कर पाताल में बहती थीं। ब्रह्मा द्वारा आवाहन करने पर भूतल और पूर्वोक्त शिलाओं को भेदकर वे प्रकट हुई। उन्हें उपस्थित देख ब्रह्मा ने कहा- “मैं इस पुष्कर तीर्थ में निवास करूंगा, अतः तुम यहीं मेरे समीप रहो, जिससे मैं तुम्हारे जल में तर्पण कर सकूं।”
पुष्कर का मेला (When is Pushkar fair /Camel Fair organised)
पुष्कर का मेला: प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को यहां प्रत्येक वर्ष कार्तिक और वैशाख मास में एकादशी से पूर्णिमा तक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेला लगता है। जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। जो पहले अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान करते हैं। फिर ब्रह्मा मंदिर के र्दशन करते है। उसके बाद मेले का आंनद लेते है।
स्थानीय प्रशासन इस मेले की व्यवस्था करता है एवं कला संस्कृति तथा पर्यटन विभाग इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयाजन करते हैं।
पुष्कर का ऊंट मेला (Pushkar Camel Fair)
पुष्कर का पशु मेला: पशु मेला पुष्कर मेले का एक बड़ा आकर्षण है मेले में गाय, बैल, बकरियों और भैंस आदि कई पशुओं की खरीद-बिक्री होती है।
इनमें ऊँट विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। ऊँटों के तरह तरह के करतब, जैसे- ऊँट-दौड़, ऊँटनृत्य, ऊँटगाड़ी की सवारी। रंग-बिरंगे परिधानों से सुसज्जित पशुओं को देखने का अलग ही आनंद है।