छिन्नमस्ता देवी (महाविद्या-5)
छिन्नमस्ता (Chinnamasta) ‘छिन्नमस्तिका ‘प्रचण्ड चण्डिका’ दस महाविद्यायों में से छठवीं महाविद्या हैं। छिन्नमस्ता देवी के हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है तथा दूसरे हाथ में कटार है। छिन्नमस्ता सकल चिंता का अंत करती है। इसलिए इनका एक अन्य नाम चिंतपुरनी भी है।
Chinnamasta, Chhinnamastika and Prachanda-Chandika is a hindu goddess. She is one of the Mahavidyas, ten goddesses from the esoteric tradition of Tantra.
छिन्नमस्ता देवी (Chinnamasta Devi in Hindi)
काली, तारा महाविद्या, षोडशी भुवनेश्वरी ।
भैरवी, छिन्नमस्तिका च विद्या धूमावती तथा ॥
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दश-महाविद्याः सिद्ध-विद्याः प्रकीर्तिता: ॥
परिवर्तनशील जगत का अधिपति कबन्ध है और उसकी शक्ति छिन्मस्ता है। विश्व की वृद्धि हास तो सदैव होती रहती है। जब हास की मात्रा कम और विकास की मात्रा अधिक होती है, तब भुवनेश्वर का प्राकट्य होता है। इसके विपरीत जब निर्गम अधिक और आगम कम होता है, तब छिनमस्ता का प्राधान्य होता है।
देवी की उत्पत्ति से जुड़ी कथा
पौराणिक मान्यता अनुसार- एक बार भगवती भवानी अपनी सहचरी जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने के लिये गयी लेकिन वह श्रुधाग्नी से पीड़ित होकर कृष्णवर्ण की हो गई। उस समय उनकी सहचारियों ने भगवती से कुछ भोजन करने के लिये मांगा।
देवी ने उनसे कुछ समय प्रतीक्षा करने के लिये कहा। थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद सहचरियों ने जब पुनः भोजन का निवेदन किया। तब देवी ने उनसे कुछ् देर और प्रतीक्षा करने के लिये कहा। इस पर सहचरियोने देवीसे विनम्र स्वर में कहा- “मा तो अपने शिशु को भूख लगने पर अविलम्ब भोजन प्रदान करती है। आप हमारी उपेक्षा क्यों कर रही है?”
अपने सहचरीयों के मधुर वचन सुनकर कृपामयी देवी ने अपने खड्ग से अपना सिर काट दिया। कटा हुआ सिर देवी के बायें हाथ में आ गिरा और उनके कबंध से तीन धारा प्रवाहित हुई। दो धाराओं को अपनी दोनों सहचरियोंकी और प्रवाहित कर दी, जिससे दोनों प्रसन्न होने लगी और एक धारा का देवी पान करने लगी। तभी से देवी छीनमस्ता (Chinnamasta) नाम से प्रसिद्ध हुई।
ऐसा विधान है कि आधी रात या अर्थात चतुर्थ संध्याकाल में देवी की उपासना करने से सरस्वती सिद्ध हो जाती हैं शत्रु विजय, समूह स्तम्भन, राज्य प्राप्ति और दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति के लिये छिन्मास्ता की उपासना अमोध है।
माता का स्वरूप
भगवती छिनमस्ता (Goddess Chinnamasta) का स्वरूप अत्यन्त ही गोपनीय है। इसे कोई अधिकारी साधक ही जान सकता है। महाविद्या में इनका तीसरा स्थान है।
माता का आध्यात्मिक स्वरूप अत्यंत महत्वपूर्ण है। छिन यज्ञ शीश की प्रतीक यह देवी श्वेत कमल पीठ पर खड़ी है। दिशाएं ही इनका वस्त्र है। इनकी नाभी में इनका योनिचक्र है। कृष्ण (तम) और रक्त (रज) ही इनकी सहचारिया है। यह अपने शीश काटकर भी जीवित है। यह अपने आप में पूर्ण अंतर्मुखी साधना का संकेत है।
विद्वानों ने इस कथा में सिद्धि की चरम सीमा का का निर्देश माना है। योगशास्त्र में तीन विधियां बतायी गयी हैं, जिनके भेदन के बाद योगीको पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है। इन्हें ब्रह्मग्रंथी, विष्णुग्रंथी और रुद्र ग्रंथि कहा गया है मूलाधार में ब्रह्मग्रंथि, माणिपूर में विष्णुग्रंथि और आज्ञाचक में शिव ग्रंथि का स्थान है।
इन ग्रंथि के भेदन से ही अद्वितानन्द की प्राप्ति होती है। योगियों का अनुभव है कि मणिपुर के नीचे कीनाडिया ही काम और रती का मूल है। उसी पर छिंमस्ता शक्ति का आरूढ़ है इसका उधर्व प्रवाह होने पर ही रुद्र ग्रंथि का भेदन होता है।
छिन्नमस्ता व्रत, पूजन और जयंती
छिन्नमस्ता देवी ((Chinnamasta devi) अपने भक्तो के लिए अत्यंत दयालु है, अपने सहचारियों की सुधा शांत करने के लिए देवी ने अपने शीश को ही काट दिया था। शांत भाव से देवी की आराधना करने पर शांत स्वरूप और उग्र रूप में पूजा करने पर देवी उग्र रूप धारण करती हैं। यदि सच्चे मन से देवी की पूजा की जाए तो देवी समस्त मनोरथ अवश्य पूर्ण करती है।
#छिन्नमस्ता जयंती (Chinnamasta Jayanti)
छिन्नमस्ता जयंती (Chinnamasta Jyanti) बैसाख मास की शुक्ल पक्ष चर्तुदशी को छिन्नमस्ता जयंती मनायी जाती है। इस दिन माता के दरबार को धूम धाम से सजाया जाता है और लंगर का आयोजन किया जाता है।
#छिन्नमस्ता व्रत विधि (Fasting procedure of Chinnamasta Vrat)
छिन्नमस्ता जयंती के दिन व्रत रखकर देवी का पूजन करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में स्नानादी से निवृत्त होकर देवी को लाल पुष्पो की माला चढ़ाये, फल मिष्ठान का भोग लगाए। यदि संभव हो तो दुर्गा सप्तशती या देवी स्तुति का पाठ करें।
मां छिन्नमस्ता मंदिर (Maa Chinnamasta Temple)
छिन्नमस्ता देवी का सिद्ध पीठ (Chinnamasta shakipeeth) झारखंड में स्थित है। यह मंदिर असम के कामख्या और काली घाट के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है।
रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है। यहां केवल मां छिन्नमस्ता का ही मंदिर नहीं है बल्कि शिव मंदिर, सूर्य मंदिर और बजरंग बली सहित सात मंदिर मौजूद हैं।