देवी भागवत पुराण
देवी भागवत पुराण (Devi Bhagwat Puran) हिंदुओं के पवित्र 18 पुराणों में से एक हैं। यह एक शाक्त पुराण है, इसमें देवी ही को सृष्टि का कारण माना गया हैं।
The Devi Bhawata Puran (Devī Bhāgavata purāṇa) also known as the Shrimad Devi Bhagvatam, is a Sanskrit text that belongs to the Purana-genre of Hindu literature. The text is considered a Mahapurana (major Purana) of India.

श्रीमद देवी भागवत पुराण (Shrimad Devi Bhagwat Puran)
देवी भागवत हिंदुओं के पवित्र 18 पुराणों में से एक पुराण हैं। 12 स्कन्ध (खंड), 318 अध्यायों और 18,000 श्लोको में विभक्त विभ यह पुराण शक्त संप्रदाय के महत्वपूर्ण ग्रन्थों में से एक हैं।
खंड | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | Total |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
अध्याय | 20 | 12 | 30 | 25 | 35 | 31 | 40 | 24 | 50 | 13 | 24 | 14 | 318 |
देवी भगवती महाशक्ति ही परब्रह्म है, जो विविध रूपों में विभिन्न लीलाएं करती हैं। इनकी शक्ति से ही ब्रह्मा विश्व की उत्पत्ति करते हैं, विष्णु सृष्टि का पालन करते है और शिव जगत का संहार करते हैं अर्थात यही सृजन, पालन और संहार करने वाली पराशक्ति हैं। यही नवदुर्गा, दश महाविध्या हैं। ये ही अन्नपूर्णा, कात्यायनी, ललिताम्बा हैं।
गायत्री, भुवनेश्वरी, काली, तारा, बंगला, षोडशी, त्रिपुरा, घुमवाती, मातंगी, कमला दुर्गा आदि इनके ही रूप हैं। ये ही शक्तिमान और यही शक्ति हैं। ये ही नर और नारी हैं और ये ही माता, धाता और पितामह भी हैं।
देविभागवत कथा और इतिहास (Devi Bhagwat History & Story in Hindi)
एक बार पुण्यात्मा महर्षियों ने वेदव्यास के परम शिष्य सूत जी से प्रार्थना की-हे ज्ञानसागर! आपके श्रीमुख मे विष्णु भगवान और शंकर के देवी चरित्र तथा अद्भुद लीलाएं सुनकर हम बहुत सुखी हुए। ईश्वर में आस्था बड़ी और ज्ञान प्राप्त किया। अब कृपा कर मानव जाति को समस्त सुख को उपलब्ध कराने वाली, आत्मिक शक्ति देने वाले तथा भोग और मोक्ष प्रदान कराने वाले पवित्रम पुराण आख्यान सुनाकर अनुगुहीत कीजिए।
ज्ञानेच्छु और विनम्र महात्माओं को निष्कपट अभिलाषा जानकर महामुनि सूत जी ने अनुग्रह स्वीकार किया। उन्होंने कहा-जन-कल्याण की लालसा में आपने बड़ी मुंदर इच्छा प्रकट की। मैं आप लोगों को उसे सुनाता हूं।
यह सच है कि श्रीमद देवी भागवत पुराण सभी शास्त्रों तथा धार्मिक ग्रन्थों में महान है। इसके सामने बड़े बड़े तीर्थ और व्रत नगण्य है। इस पुराण के सुनने से पाप सूखे वन की भांति जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे मनुष्य को शोक, क्लेश, दुःख आदि नहीं भोगने पड़ते। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश के सामने अंधकार छंट जाता है, उसी प्रकार भागवत पुराण के श्रवण से मनुष्य के सभी कष्ट, व्याधियां और संकोच समाप्त हो जाते हैं।
महात्माओं ने सूतजी से भागवत पुराण के संबंध में ये जिज्ञासाए रखी:-
- पवित्र श्रीमद देवी भागवत पुराण का आविर्भाव कब हुआ?
- इसके पठन-पाठन का समय क्या है?
- इसके श्रवण-पठन से किन-किन कामनाओं की पूर्ति होती है?
- सर्वप्रथम इसका श्रवण किसने किया? इसके पारायण की विधि विधि क्या है?
पारायण का उपयुक्त समय (Best Time for Bhagwat Puran in Hindi)
सूत जी बोले- देवी भागवत की कथा श्रवण से भक्तों और श्रद्धालु श्रोताओं को सिद्धि प्राप्ति होती है। मात्र क्षणभर के कथा श्रवण से भी देवी के भक्तों को कभी कष्ट नहीं होता। सभी तीर्थों और व्रतों का फल देवी भागवत के एक बार श्रवण मात्र से प्राप्त हो जाता है।
सतयुग, त्रेता तथा द्वापर में तो मनुष्य के लिए अनेक धर्म-कर्म है, किंतु कलियुग में तो पुराण सुनने के अतिरिक्त कोई अन्य धार्मिक आचरण नहीं है। कलियुग के धर्महिन, कर्महीन तथा आधारहीन मनुष्यों के कल्याण के लिए ही हो व्यासजी ने पुराण-अमृत की सृष्टि की थी।
देवी पुराण के श्रवण के लिए यों तो सभी समय फलदायी है, किंतु फिर भी आश्विन, चैत्र, मार्गशीर्ष तथा आषाढ़ माह मासों एवं दोनों नवरात्रों में पुराण के श्रवण में विशेष पुण्य होता हैं।
देवी भागवत पुराण का महत्व (Importance of devi bhagwat puran in Hindi)
देवी भागवत पुराण नवग्रह यज्ञ हैं। जो सभी पुण्य कर्मों में सर्वोपरि एवं निश्चित फलदायक है। इसके पाठ से छली, मूर्ख, अमित्र, वेद-विमुख, निंदक, व्यभचारी, मिथ्याचारी, गो-देवता-ब्राह्मण निंदक तथा गुरुद्वेषी जैसी भयानक पापी शुद्ध और पाप रहित हो जाता हैं।
जो फल बड़े बड़े व्रतों, तीर्थ यात्राओं, यज्ञों ततः तपो से भी वह पुण्य प्राप्त नही होता जो श्रीमद देवी भागवत पुराण (Shrimad Devi Bhagwat Puran) के पाठ होता हैं।