माँ धूमावती (महाविद्या-7)
धूमावती देवी (Goddess Dhumavati)
भगवती ‘धूमावती’ (Dhumavati) महाविद्या में सातवी विद्या है। ये शत्रुओं का नाश करने वाली महाशक्ति तथा दुःखों की निवृत्ति करने वाली देवी हैं। इनकी उपासना करने वाला व्यक्ति कभी शत्रु से पराजित नहीं होता। ये शत्रु का सर्वनाश कर देती हैं। इन्हें दारिद्रय की देवी भी माना गया है इसी कारण इन्हें ‘अलक्ष्मी’ नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना मुख्यतः चातुर्मास्य में की जाती है ।
काली, तारा महाविद्या, षोडशी भुवनेश्वरी ।
भैरवी, छिन्नमस्तिका च विद्या धूमावती तथा ॥
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दश-महाविद्याः सिद्ध-विद्याः प्रकीर्तिता: ॥
ये ‘दारुण विद्या’ हैं। पुरुष-शून्य होने के कारण इनका कोई ‘शिव’ नहीं हैं।
Dhumavati (Sanskrit: धूमावती) is one of the Mahavidyas, a group of ten Tantric goddesses. Dhumavati represents the fearsome aspect of Devi, the Hindu Divine Mother.
धूमावती उत्तपत्ति कथा (Origin of Dhumavati)
एक समय ‘माता पार्वती’ भगवान् शिव के साथ कैलास पर्वत पर बैठी हुई थीं। उन्होंने महादेव से अपनी क्षुधा (भूख) का निवारण करने का निवेदन किया। कई बार कहने पर भी जब भगवान् शिवने उस ओर ध्यान नहीं दिया, तब उन्होंने महादेव को ही निगल लिया। फिर शिव धुंआ बनकर बहार निकले।
शिवजीने उस समय पार्वतीसे कहा कि- ‘आपकी सुन्दर मूर्ति धूएँ से ढक जाने के कारण धूमावती या धूम्रा कही जायगी।’ धूमावती महाशक्ति अकेली है तथा स्वयं नियन्त्रिका है।
इसका कोई स्वामी नहीं है, इसलिये इसे विधवा कहा जाता है। दूसरे शब्दों में जन्म लेते ही अपने पति महादेव को निगल जाने के कारण विधवा हैं।
दरिद्रता की देवी धूमावती (Goddess of poverty)
संसार में दुःख के मूल कारण- (1) रुद्र (2) यम, (3) वरुण तथा (४) निऋति ये चार देवता हैं। विविध प्रकार के ज्वर, महामारी, उन्माद आदि संताप ‘रुद्र’ के कारण होते हैं। मूर्छा, मृत्यु, अङ्ग भङ्ग आदि रोग ‘यम’ की के कारण, गठिया, शूल, पक्षाघात आदि के अधिष्ठाता ‘वरुण’ हैं तथा सब रोगों में भयंकर शोक, कलह, वैधव्य, दारिद्रय आदि की सञ्चालिका ‘निऋति’ हैं। इनमें निऋति ही धूमावति है।
मनुष्यों का भिखारी पन, पृथ्वी का क्षत-विक्षत होना, ऊस पर बने बनाए भवनों का ढह जाना, फटे पुराने वस्त्र, भूख, प्यास और रुदन की स्थिति, वैधव्य, पुत्रशोक आदि महादुःख, महाक्लेश, दुष्परिस्थितियां सब धूमावती के साक्षात रूप है। इसी कारण श्रुति ने निति को ‘दरिद्रा’ नाम से व्यवहृत किया है । यथा-“घोरा पाप्मा वं निऋतिः” (शत० ७।२।१।१) ।
ऋग्वेदोक्त रात्रि सूक्तमें इन्हें ‘सुतरा’ कहा गया है। सुतरा का अर्थ सुखपूर्वक तारने योग्य है। तारा या तारिणी को इनका पूर्वरूप बतलाया गया है।
इसी को शांत करने के लिए ‘नेऋत यज्ञ’ किया जाता है। जिसे वेदों में ‘नैऋति इष्ट‘ कहा गया है। वैसे तो यह शक्ति सर्वत्र व्याप्त है, परन्तु इसका भाण्डागार कोष ‘ज्येष्ठा नक्षत्र’ है। वहीं से ‘आसुरी कलह प्रिया’ शक्ति का आविर्भाव होता है। इसी कारण ‘ज्येष्ठा’ नक्षत्र में उत्पन्न प्राणी आजीवन दारिद्रय दुःख का भोग करता है। धूमावती मनुष्य का पतन करती है. इसलिए इसे ‘अवरोहिणी’ कहते हैं। यही ‘अलक्ष्मी’ नाम से भी प्रसिद्ध है।
धूमावती देवी का स्वरुप (Iconography of Dhumavati)
इनके ध्यानमें इन्हें विवर्ण, चंचल, काले रंगवाली, मैले कपड़े धारण करनेवाली, खुले केशोंवाली, विधवा, काकध्वज्ञ वाले स्थपर आरूढ़, हाथ में सूप धारण किये, भूख-प्याससे व्याकुल तथा निर्मम आँखों वाली बताया गया है।
स्वतन्त्र तन्त्र के अनुसार सती ने जब यज्ञ कुंड में अपने-आपको भस्म कर दिया, तब उस समय जो धुआँ उत्पन्न हुआ उससे धूमावती-विग्रह का प्राकट्य हुआ था।
ज्योतिषीय व्याख्या (Astrological Explanation)
वैदिक साहित्य में ‘आप्त प्राण’ को असुर और ‘ऐन्द्र प्राण’ को देवता कहा गया है। आषाढ़ शुक एकादशी से वर्षा ऋतु आरंभ होकर कार्तिक शुक एकादशी को समाप्त होती है। यही वर्षा ऋतु की परम अवधि ज्योतिष शास्त्र ने बताई है आषाढ़ शुक से कार्तिक शुक तक इन चार महिनों में पृथ्वी पिण्ड और सौर प्राण आपोमय रहता है।
इन चार महीनों में नैऋति का साम्राज्य होने से ‘लोक और वेद’ के सभी शुभ कार्य इन चार महीनों के लिए वर्जित हैं। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से इस समय पूजन, ग्रह प्रवेश, विवाह, मंदिर निर्माण आदि किसी भी शुभ कार्य का मुहूर्त नही है। इस समय संन्यासी भी भ्रमण त्याग कर एक स्थान पर चातुर्मास्य व्रत करता हुआ स्थित हो जाता है।
ये चार मास देवताओं के सुषुप्ति काल माने जाते हैं। इस समय देवता सोते रहते है। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी इसकी अन्तिम अवधि है, इसलिए इसे नरक चौदस या छोटी दीपावली भी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन दरिद्ररूपा अलक्ष्मी का गमन होता है और दूसरे ही दिन अमावस्या को रोहिणी रूपा कमला (लक्ष्मी) का आगमन होता है।
कार्तिक कृष्ण अमावस्या को कन्या राशि का सूर्य रहता है। कन्या राशिगत सूर्य नीच का माना जाता है। इस दिन सौर प्राण मलिन रहता है। और रात में तो वह भी नहीं रहता। इधर अमावस्या कारण चन्द्र ज्योति भी नहीं रहती और चार मास तक की बरसात से प्रकृति की प्राणमयी अग्नि ज्योति भी निर्बल पड़ जाती है। इसलिए तीनों ज्योतियों का अभाव हो जाता है।
फलतः ज्योतिर्मय आत्मा इस दिन वीर्यहीन हो जाता है। इस तम भाव को निरस्त करने के लिए साथ ही लक्ष्मी के आगमन के उपलब्ध में ऋषियों ने प्रकाश पर्व ‘दीपावली’ करने का विधान बनाया है।
निष्कर्ष यह कि नैऋतिरूपा धूमावति शक्ति का प्राधान्य वर्षा काल के चार महीनों में रहता है।
धूमावती ध्यान और मंत्र (Significance Dhyan and Mantra)
धूमावती स्थिरप्रज्ञताकी प्रतीक है। इनका काकध्वज वासनाग्रस्त मन है, जो निरन्तर अतृप्त रहता है। जीवकी दीनावस्था भूख, प्यास, कलह, दरिद्रता आदि इसकी क्रियाएँ हैं, अर्थात् वेद की शब्दावली में धूमावती कटु है, जो वृत्रासुर आदि को पैदा करती है।
धूमावती अष्टाक्षर मंत्र इस प्रकार है-
मन्त्र
“धूं धूं घूमावती स्वाहा”
ध्यान
“अत्युच्या मलिनाम्बराखिलजनोद्वेगावहा दुर्मना,
रूक्षामित्रितया विशालदशना सूर्योदरी चन्चला।
प्रस्वेदाम्बुचिता क्षुधाकुलतनुः कृष्णातिरूक्षाप्रमा,
ध्येया मुक्तकचा सदप्रिय कलि्धू कलि मावतीमन्त्रिणा” ।।
भगवती धूमावती का स्वरुप विवर्ण है, चंचल है और दीर्घ काया है. कृष्ण वर्ण है। खुले हुए रुखे केश व विधवाओं जैसा वेश है। कौऐ की ध्वजा वाले रथ में बैठी है। विरल दंताक्ती है. सूप जैसे हाथ, रुखे नैत्र हैं। देवी भक्तों को वर तथा अभय मुद्रा में बैठी है। रोग, शोक, कलह, दरिद्रता के नाश के लिए, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
धूमावती उपासना से लाभ (Benefits of Dhumavati Pooja)
धूमावती की उपासना विपत्ति-नाश, रोग-निवारण, युद्ध-जय, उच्चाटन तथा मारण आदि के लिये की जाती है। शाक्तप्रमोद में कहा गया है कि इनके उपासक पर दुष्टाभिचार का प्रभाव नहीं पड़ता है।
तन्त्र ग्रन्थों के अनुसार धूमावती उग्र तारा ही हैं, जो धूम्रा होने से धूमावती कही जाती हैं। दुर्गासप्तशती में वाभ्रवी और तामसी नाम से इन्हीं की चर्चा की गयी हैं। ये प्रसन्न होकर रोग और शोक को नष्ट कर देती हैं तथा कुपित होने पर समस्त सुखों और कामनाओं को नष्ट कर देती हैं। इनकी शरणा गतिसे विपत्ति नाश तथा सम्पन्नता प्राप्त होती है।
माँ धूमावती मंदिर (Dhumavati Temple)
धूमावती देवी के अधिक मंदिर देश मे नही है। मध्यप्रदेश के दतिया शहर में स्थित ‘पीतांबरा पीठ’ धूमावती का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में धूमावती, बंगलामुखी के साथ विराजमान है।
यह एक शक्ति पीठ है। यहां देवी सती का पित्त गिरा था इसलिए माँ बंगलामुखी को यहां पीताम्बरा देवी नाम से पुकारते है। इसके अलावा वाराणसी में भीधूमावती देवी का मंदिर है।
धूमावती जयंती पूजन विधि (Dhumavati Jyanti 2021)
धूमावती जयंती (Simavarti Jyanti) का पर्व हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष धूमावती जयंती 18 जून 2021 को मनाई जाएगी।
इस दिन काले तिल को काले वस्त्र में बांधकर मां धूमावती को चढ़ाने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। परम्परा है कि सुहागिनें मां धूमावती का पूजन नहीं करती हैं।