गुरु अर्जन देव (Guru Arjan Dev)
गुरु अर्जन देव या गुरू अर्जुन देव (25 अप्रेल 1563–9 जून 1606) सिखों के 5 वे गुरु थे। गुरु अर्जन देव जी शहीदों के सरताज एवं शान्तिपुंज हैं। आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें ब्रह्मज्ञानी भी कहा जाता है।
गुरुग्रंथ साहिब में तीस रागों में गुरु जी की वाणी संकलित है। गणना की दृष्टि से श्री गुरुग्रंथ साहिब में सर्वाधिक वाणी गुरु अर्जन देव की ही है।
गुरु अर्जन देव (Guru Arjan Dev)
पूरा नाम | गुरु अर्जन देव |
जन्म | 15 अप्रैल सन् 1563 |
जन्म भूमि | अमृतसर |
मृत्यु (शहादत दिवस) | 30 मई, 1606 ई. |
मृत्यु स्थान | लाहौर |
पिता | गुरु रामदास |
माता | भानी जी |
पत्नी | गंगा जी |
संतान | गुरु हरगोविंद सिंह |
भाषा | पंजाबी |
पुरस्कार-उपाधि | सिक्खों के पाँचवें गुरु |
पूर्वाधिकारी | गुरु रामदास |
उत्तराधिकारी | गुरु हरगोविंद सिंह |
गुरु अर्जन देव जीवनी (Biography of Guru Arjun Dev Hindi)
गुरु अर्जन देव का जन्म सन 25अप्रैल 1563 को गोइंदवाल साहिब में उनका जन्म को हुआ था। गुरु अर्जन देव के पिता का नाम गुरु रामदास और माता का नाम बीवी भानी जी था। वह चौथे गुरु रामदास के तीन पुत्रों में सबसे छोटे थे।
गुरु अर्जनदेवजी ने अध्यात्म के साथ विकास को जोड़कर भक्ति-परंपरा को एक नई दिशा दी। पंजाब की शुष्क धरती सदा पानी के लिए तरसती थी। गुरु अर्जनदेव जी ने राज्य में जगह-जगह कुओं, बावड़ियों और सरोवरों का निर्माण करवाकर पंजाब के लोगों के प्रति महान् उपकार किए।
सिख संस्कृति को घर-घर तक पहुंचाने के लिए अर्जन देव ने अनेक कार्य किए थे। गुरु दरबार की सही निर्माण व्यवस्था में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1590 ई. में तरनतारनके सरोवर की पक्की व्यवस्था भी उनके प्रयास से हुई।
अपने धर्म कार्यों के निर्वाह के लिए सिखों की कमाई में से दशमांश लेने की मर्यादा कायम की। श्री अमृत सरोवर में हरि मंदिर की नींव रखी। यह मंदिर अब ‘स्वर्ण मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध है।
वैवाहिक जीवन और बच्चे (Marriage Life And children)
अर्जन देव जी का विवाह सन 1579 ई. में मात्र 16 वर्ष की आयु में जालंधर जिले के मौ साहिब गांव में कृष्णचंद की बेटी माता “गंगा जी” के साथ हुआ था। इनके पुत्र का नाम हरगोविंद सिंह था, जो गुरू अर्जन देव जी के बाद सिखों के छठे गुरू बने।
गुरु पद की प्राप्ति (Fifth Guru in Sikhism)
1581 ई. में सिखों के चौथे गुरू ‘रामदास‘ ने अर्जन देव जी को अपने स्थान पर सिखों का पांचवें गुरू के रूप में नियुक्त किया था। अर्जन देव सिख धर्म के पहले शहीद होने वाले गुरु भी थे।
गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन
गुरु अर्जन देवजी के जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं रचनात्मक कार्य था। आदिग्रंथ यानी ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ का संकलन। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती चारों गुरुओं की पवित्र वाणी को एकत्र किया और भाई गुरदास जी से चारों गुरुओ और स्वयं की वाणी को लिपिबद्ध करवाया।गुरुग्रन्थ साहिब जी में मात्र सिख गुरुओं के ही उपदेश नहीं है, वरन् 30 अन्य सन्तो और अलंग धर्म के मुस्लिम भक्तों की वाणी भी सम्मिलित है। आदिग्रंथ का पहला प्रकाश 30 अगस्त 1604 को हरिमंदिर साहिब अमृतसर में हुआ था। सन 1705 में दमदमा साहिब में गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु तेगबहादुर जी के 116 शबद जोड़कर इसको पूर्ण किया, इनमे कुल 1430 पृष्ठ है।
बादशाह अकबर से गुरु ग्रंथ की शिकायत
एक बार असामाजिक तत्वों ने बादशाह अकबर के पास यह शिकायत की कि गुरु ग्रंथ साहिब में इस्लाम धर्म के विरुद्ध बातें लिखी गई है। लेकिन बाद में जब अकबर को गुरु वाणी का पता चला, तो उन्होंने खेद प्रकट कर 51 मोहरें भेंट स्वरूप दिए।
गुरु अर्जन देव शहादत (Martyrdom day of Guru Arjan Dev
बढ़ती हुई सिख परंपरा के प्रसिद्धि के अंदर जहाँगीर को एक बड़ा खतरा दिख रहा था। सिख गुरुओं के कारण पंजाब में हिंदुओं द्वारा इसलाम स्वीकार करने का क्रम थम-सा गया था। मुसलमान, मुल्ला, मौलवियों तथा पीर फकीरों के लिए यह चिंता की बात थी। इसलिए सबने मिलकर गुरु अर्जनदेव की हत्या के लिए षड्यंत्र बनाना आरंभ कर दिया।
सन् 1605 में जब जहाँगीर अकबर का उत्तराधिकारी बना तो उसके पुत्र खुसरो ने उसके खिलाफ बगावत कर दी वे शाही सेनाओं से घबराकर भागने लगा। ओर संयोग से अर्जन देव के रहने के स्थान पर उतरा और वह तथा सेवा की। खुसरू का भी अतिथि सत्कार किया गया, उसके माथे पर कैसर का ‘टीका’ लगाया गया।
जब इस बात का पता जहाँगीर को गुप्त सूत्रों से चला तो गुरु अर्जन पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया गया। परन्तु गुरु अर्जन देव ने अनुचित जुर्माना देने से इनकार कर दिया। 8 मई, 1606 ई. को बादशाह ने गुरु जी को परिवार सहित पकडने का हुक्म जारी किया। अंततः उन्हें बंदी बनाकर घोर अमानवीय यातनाएँ दी गयी।
गुरु अर्जन देव को “यासा व सियासत” कानून के तहत सजा दी गई। “यासा व सियासत” कानून में किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है।
गुरुजी को जलते तवे पर बिठा कर ऊपर से गर्म रेत डाली गयी। जब गुरूजी का शरीर बुरी तरह से जल गया तो उन्हें ठंडे पानी वाले रावी नदी में नहाने के लिए भेजा दिया गया। मृत्यु के पूर्व वे रावी नदी में स्नान के लिए उतरे पर बाहर नहीं निकले। वहीं जल में उन्होंने प्राण त्याग दिया।
श्री अर्जनदेवजी का परलोक गमन पंजाब के लाहौर (वर्तमान में पाकिस्तान) के रावी नदी के किनारे 30 मई, 1606 ज्येष्ठ शुक्ल-4 को हुआ।
गुरु अर्जन देव से जुड़े रोचक तथ्य (Intresting Facts About Guru Arjan dev Hindi)
- अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था।
- अर्जन देव के पिता का नाम गुरू रामदास और माता का नाम बीवी भानी जी था।
- अर्जन देव जी के नाना “गुरू अमरदास” और पिता “गुरू रामदास” क्रमशः सिखों के तीसरे और चौथे गुरू थे।
- अर्जन देव जी का पालन-पोषण गुरू अमरदास जी तथा बाबा बुड्ढा जी जैसे महापुरूषों की देख-रेख में हुआ था।
- अकबर के देहांत के बाद जहांगीर दिल्ली का शासक बना। वह कट्टर-पंथी था। उसे अर्जन देव के धार्मिक और सामाजिक कार्य भी सुखद नहीं लगते थे।
- इतिहासकारों का मानना है कि खुसरोको शरण देने के कारण जहांगीर गुरु जी से नाराज था।
- अर्जन देव जी ने 1588 ई. में गुरू रामदास द्वारा निर्मित अमृतसर तालाब के मध्य में हरमंदिर साहिब नामक गुरूद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसे वर्तमान में ‘स्वर्ण मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।
- इस गुरूद्वारे का नक्शा खुद गुरू अर्जन देव जी ने तैयार किया था।
- श्री गुरू ग्रंथ साहिब में कुल 5894 शब्द हैं जिनमें से 2216 शब्द श्री गुरू अर्जन देव जी के हैं।
- गुरु अर्जन देव सिखों के पांचवें गुरु हैं. वह सिख धर्म के पहले शहीद भी थे।
- ग्रंथ साहिब का संपादन गुरु अर्जन देव जी ने भाई गुरदास की सहायता से 1604 में किया।
- ग्रंथ साहिब में 36 महान वाणीकारों की वाणियां बिना किसी भेदभाव के संकलित हुई।