भगवान दत्तात्रेय (Lord Dattatreya)
भगवान दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे। इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक है, और माता अनुसूया को सतीत्व के प्रतिमान के रूप में उदधृत किया जाता है।
त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था, इसीलिए उन्हें त्रिदेव का स्वरूप भी कहा जाता है।
भगवान दत्तात्रेय सम्पूर्ण जानकरी
नाम | भगवान दत्तात्रेय, गुरु दत्तात्रेय |
अवतार | ब्रह्मा-विष्णु-महेश के संयुक्त अवतार |
जन्म | मार्गशीर्ष की पूर्णिमा तिथि |
पिता | अत्रि ऋषि |
माता | अनुसूया |
भाई | चंद्र देव और ऋषि दुर्वाशा |
विवाह | ब्रह्मचारी |
पशु | गाय (कामधेनु) |
प्रतीक चिन्ह | शंख, चक्र, कमल, त्रिशूल, कमंडल, डमरू |
त्यौहार | दत्तात्रेय जयंती |
महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगम्बर है। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना गया है। और पढ़ें; ऋषि अत्री कौन थे?
हिंदू धर्म के त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था, इसीलिए उन्हें त्रिदेव का स्वरूप भी कहा जाता है। दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं।
भगवान दत्तात्रेय जन्म कथा (Guru Dattatreya Birth Story)
एक बार त्रिदेवी (पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती) ने अपने अपने पतियों से कहा कि वे भू लोक जाएं और वहां जाकर देवी अनुसुया के पतिव्रता धर्म की परीक्षा लें।
पहले तो त्रिदेव ने देवी अनुसूया की परीक्षा लेने से मना कर दिया। लेकिन स्त्री हठ के आगे किसकी चलती है? अतः ब्रह्मा, विष्णु और महेश संन्यासियों के वेश में अपनी जीवन संगिनियों के कहने पर देवी अनुसुया की तप की परीक्षा लेने के लिए पृथ्वी लोक चले गए।
उस समय ऋषि अत्रि घर पर नही थे। त्रिदेव ने सन्यासी का रूप धारण करके देवी अनुसूया से भिक्षा मांगी। देवी अनुसूया ने अद्भुत तेज़ युक्त सन्यासी को प्रणाम कर भोजन के लिए पूछा।
सन्यासी ने कहा- देवी! हम सिर्फ वर्ष में एक बार भोजन ग्रहण करते है और शेष समय उपवास रखते है। इसलिए हमारे भोजन करने के कुछ नियम है।
अनुसूया- आप निश्चिंत रहे, आपके सब नियम का पालन होगा।
सन्यासी- देवी!” हमारे नियम का पालन करना सभी के लिए मुमकिन नही है।
अनुसूया- ऋषि अत्रि के घर से कोई ब्राह्मण बिना भोजन के चला जाये ये असम्भव है। आप अपने नियम बताए ब्राह्मणदेव!
सन्यासी- तो सुनिए देवी! हम तब ही भोजन ग्रहण करते है जब हमे यजमान निवस्त्र भोजन करवाएं।
त्रिदेव की ये बात सुनकर अनुसुया पहले तो हड़बड़ा गईं लेकिन फिर थोड़ा संभलकर उन्होंने कहा – ‘यदि आप बालक बन जाए तो मैं माता रूप में आपको भोजन करवा सकती हूं।’ इससे आपके नियम का भी पालन हो जाएगा और मेरा पतिव्रता धर्म भी नही टूटेगा।
देवी अनुसूया ने ऋषि अत्रि का नाम लेकर सन्यासी पर अभिमंत्रित पानी के छीटे मारें। जिससे सन्यासी शिशु बन गए और देवी अनुसूया ने उन्हें भिक्षा के रूप में स्तनपान करवाया।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश के स्वर्ग वापस ना लौट पाने की वजह से उनकी पत्नियां चिंतित हो उठी और स्वयं देवी अनुसुया के पास आईं। सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें उनके पति सौंप दें। अनुसुया और उनके पति ने तीनों देवियों की बात मान ली और त्रिदेव अपने वास्तविक रूप में आ गए।
अनुसुया से प्रसन्न और प्रभावित होने के बाद त्रिदेव ने उन्हें वरदान के तौर पर दत्तात्रेय रूपी पुत्र प्रदान किया, जो इन तीनों देवों का अवतार था। दत्तात्रेय का शरीर तो एक था लेकिन उनके तीन सिर और छ: भुजाएं थीं। श्री दत्तात्रेय भगवान जी ने अपने जीवन में चौबीस (24) गुरु बनाये थे।
दत्तात्रेय के अन्य दो भाई चंद्र देव और ऋषि दुर्वाशा थे। चंद्रमा को ब्रह्मा और ऋषि दुर्वाशा को शिव का रूप ही माना जाता है।
भगवान दत्तात्रेय का स्वरूप (Iconography)
पुराणों अनुसार इनके तीन मुख, छह हाथ वाला त्रिदेवमयस्वरूप है। चित्र में इनके पीछे एक गाय तथा इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है।
विभिन्न मठ, आश्रम और मंदिरों में इनके इसी प्रकार के चित्र का दर्शन होता है।
भगवान दतात्रेय से जुड़ी रोचक जानकारी (interesting Facts about Dattatreya)
देश भर में भगवान दत्तात्रेय को गुरु के रूप में मानकर इनकी पादुका को नमन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य प्रात: काशी में गंगाजी में स्नान करते थे। मणिकर्णिका घाट पर भगवान दत्तात्रेय की पादुका है, और कोल्हापुर में प्रेमपूर्वक जप करते हैं।
दतात्रेय सर्वव्यापी हैं और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले हैं। दत्तात्रेय की उपासना में अहं को छोड़ने और ज्ञान द्वारा जीवन को सफल बनाने का संदेश है। आइए जानते हैं
गिरिनार में इनका विष्णु पद आश्रम जग प्रसिद्ध है। रेणुकापुर या मातापुर, सह्याद्रि-शिखर पर मध्य प्रदेश के यवतमाल के अर्णा गांव से सोलाह मील की दूरी पर स्थित अत्रि आश्रम जो आज ‘माहुर’ ग्राम के नाम से प्रसिद्ध है, यही पवित्र स्थल अवधूत दत्तात्रेय जी का जन्म स्थान माना गया है।
भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु की कथा (Lord Dattatreya and His 24 Gurus Story Hindi )
एक बार राजा यदु ने देखा कि एक त्रिकाल दर्शी तरुण अवधूत ब्राहमण निर्भय विचर रहे हैं तो उन्होंने उनसे पूछा, “संसार के अधिकांश लोग काम और लोभ के दावानल से जल रहे हैं, परंतु आपको देखकर ऐसा मालूम होता है कि आप उससे मुक्त हैं।
आप तक उसकी आंच भी नहीं पहुंच पाती। आप सदा-सर्वदा अपने स्वरूप में ही स्थित हैं। आपको अपनी आत्मा में ही ऐसे अनिर्वचनीय आनंद का अनुभव कैसे होता है?”
दत्तात्रेय जी ने कहा, “राजन! मैंने अपनी बुद्धि से गुरुओं का आश्रय लिया है, उनसे शिक्षा ग्रहण करके इस जगत में मुक्तभाव से स्वच्छंद विचरता हूं।
राजा यदु ने उनके गुरु का नाम पूछा, तो भगवान दत्तात्रेय ने कहा : “आत्मा ही मेरा गुरु है, तथापि मैंने चौबीस व्यक्तियों से गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण की है।” तुम उन गुरुओं के नाम और उनसे ग्रहण की हुई शिक्षा को सुनो-
पृथिवी वायुराकाशमापोऽग्निश्चन्द्रमा रविः।
कपोतोऽजगरः सिन्धुः पतङ्गो मधुकृद्गजः।।
मधुहा हरिणो मीनः पिङ्गला कुररोऽर्भकः।
कुमारी शरकृत् सर्प ऊर्णनाभिः सुपेशकृत्।।
अनुवाद:- पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, कबूतर, अजगर, समुद्र, पतंग, भौरा या मधुमक्खी, हाथी, शहद निकालने वाला, हरिन, मछली, पिंगला वेश्या, कुरर पक्षी, बालक, कुँआरी कन्या, बाण बनाने वाला, सर्प, मकड़ी और भृंगी कीट ।
1. पृथ्वी
पृथ्वी पर अनेक प्रकार के आघात किए जाते हैं, लेकिन पृथ्वी माता हर आघात को परोपकार की भावना से सहन करती है।
इसलिए मैंने पृथ्वी के धैर्य और क्षमारूपी दो गुणों को ग्रहण किया है। धीर पुरुष को चाहिए कि वह कठिन से कठिन विपत्ति काल में भी अपनी धीरता और आवृत्ति न छोड़े।
2. वायु
शरीर के अंदर रहने वाली प्राणवायु जिस प्रकार आहार मात्र को आकांक्षा रखती है और उसकी प्राप्ति से ही संतुष्ट हो जाती है, उसी प्रकार साधक जीवन निर्वाह के लिए ही भोजन करे, इन्द्रियों की तृत्ति के लिए नहीं तथा शरीर के बाहर रहने वाली वायु जैसे सर्वत्र विचरण करते हुए भी किसी में आसक्त नहीं होती, उसी प्रकार साधक को चाहिए कि हम अपने को शरीर नहीं, आत्मा के रूप में देखे शरीर और उसके गुणों का आश्रय होने पर भी उनसे निर्लिप्त रहे। यही मैंने वायु से सीखा है।
3. आकाश
जितने भी सूक्ष्म-स्थूल शरीर है, जिसमें आत्मरूप में सर्वत्र स्थित होने के कारण सभी में ब्रह्मा है इसका उपदेश मुझे आकाश ने दिया। भिन्न भिन्न लगने पर भी आकाश एक और अखंड ही है।
4. जल
जैसे जल स्वभाव से ही स्वच्छ, सनिग्ध, मधुर और पवित्र करने वाला है, उसी प्रकार साधक को स्वभाव से ही मधुर भाषी और लोकपावन होना चाहिए।
5. अग्नि
मैंने अग्नि से तेजस्वी और ज्योतिर्मय होने के साथ ही यह शिक्षा ग्रहण की कि जैसे अग्नि लंबी-चौड़ी या टेढ़ी-सीधी लकड़ियों में रहकर उनके समान ही रूपांतरित हो जाती है, वास्तव में वह वैसी है नहीं, वैसे ही सर्वव्यापक आत्मा भी अपनी माया से रचे हुए कार्य कारण रूप जगत में व्याप्त होने से उन-उन वस्तुओं के नाम-रूप ग्रहण कर लेती है, वास्तव में वह वैसी है नहीं।
6. चंद्रमा
काल की अदृश्य गति के प्रभाव से चंद्रकला घटती और बढ़ती लगती है। वास्तव में चंद्रमा तो सदा एक-सा ही रहता है, उसी प्रकार जीवन से लेकर मरण तकशारीरिक अवस्थाएं भी आत्मा से अलिप्त हैं यह गूढ़ ज्ञान मैंने चन्द्रमा से ग्रहण किया।
7. सूर्य
सूर्य से मैंने दो शिक्षाएं प्राप्त की -अपनी प्रखर किरणों द्वारा जल-संचय और समयानुसार उस संचय का यथोचित वितरण तथा विभिन्न पात्रों में परिलक्षित सूर्य स्वरूपतः भिन्न नहीं है, इसी प्रकार आत्मा का स्वरूप भी एक ही है।
8. कबूतर
कबूतर से अवधूत दत्तात्रेय जी ने जो शिक्षा ग्रहण की उसके लिए उन्हें युद्ध के समक्ष एक लंबा आख्यान प्रस्तुत करना पड़ा, जिसका भावार्थ संसार से आसक्ति न रखना है।
9. अजगर
प्रारब्धवश जो भी प्राप्त हो जाए उसी में संतोष करना, कर्मेंद्रियों के होने पर भी चेष्टारहित रहना, यह मैंने अजगर से सीखा।
10. समुद्र
समुद्र ने मुझे सर्वदा प्रसन्न और गंभीर रहना सिखाया। समुद्र के शांत भावों की तरह साधक को भी सांसारिक पदार्थों की प्राप्ति और अप्राप्ति पर हर्ष-शोक नहीं होना चाहिए।
11. पतंगा
रूप पर मोहित होकर प्राणो प्राणों त्सर्ग कर देने वाली पतंगे भाति मायिक पदार्थों के लिए बहुमूल्य जीवन का विनाश न हो यह मैंने पतंग से सीखा है।
12. मधुमक्खी
साधक मधुमक्खी की भांति संग्रह न करें। शरीर के लिए उपयोगी रोटी के कुछ टुकड़े कई घरों से मांग ले।
13. हाथ
साधक भूलकर भी पैर से भी काठ की स्त्री का स्पर्श न करें अन्यथा हाथों-जैसी दुर्दशा को प्राप्त होगा।।
14. शहद निकालने वाला
जैसे मधुमक्खियों द्वारा कठिनाई से संचित किए गए मधु का दूसरा ही उपभोग करता है. इसी प्रकार कृपण व्यक्ति भी अपने संचित धन का तो स्वयं उपयोग करता है और न शुभ कार्य में व्यय ही कर पाता। अत: गृहस्थ को अपने अर्जित धन को शुभ कार्य में लगाने की शिक्षा में उक्त पुरुष से ग्रहण की है।
15. हिरन
वनवासी संन्यासी यदि विषय संबंधी गीत में आसक्त हुआ तो हिरण की भांति व्याघ्र के बंधन में पड़ जाता है।
16. मछली
मछली स्वाद के लोभ में मृत्यु को प्राप्त होता है। अतः इन्द्रिय संयम का पाठ मैने मत्स्य गुरु से सीखा।
17. पिंगला
रात्रि भर प्रतीक्षा के पश्चात भी जब उस धन-लोलुपा वेश्या के पास कोई नहीं आया तब वह निराश हो गई और उसे वैराग्य हो गया। आशा का परित्याग करने वाली इस वैश्या से मैंने शिक्षा ली।
18. कुरर पक्षी
इस पक्षी के चोच में जब तक मांस का टुकड़ा था।तभी तक अन्य पक्षी इसके शत्रु थे जैसे ही उसने टुकड़ा छोड़ दिया उसके पास से सभी पक्षी दूर हो गए। इससे मुझे त्याग की शिक्षा मिली।
19. बालक
बालक को जैसे मान-अपमान और परिवार की चिंता नहीं करना चाहिए। अतः मैंने बालक को भी गुरु माना।
20. कुवारी कन्या
धान कूटती कन्या को हाथों में अनेक चूड़ियों के शब्द से जो ग्लानि हो रही थी. वह उस समय दूर गो गई जब दोनों हाथों में केवल एक-एक ही चूड़ी रही, इसलिए मैने कन्या से अकेले ही विचरण करने को शिक्षा ग्रहण की।
21.वाण-निर्माण
इस व्यक्ति से मैंने शिक्षा ली कि साधक अभ्यास द्वारा अपने अपने मन को वश में कर उसे सावधानी से लक्ष्य में लगा दें।
22. सर्प
इससे मैंने कई गुण ग्रहण किए। जैसे एकाकी विचरण, कम बोलना, किसी की सहायता न लेना, घर या मठ न बनाना।
23 मकड़ी
मकड़ी बिना किसी अन्य सहायक के अपनी माया से रचित संसार के अद्भुत कौशल का दर्शन करवाती है। मकड़ी अपने हृदय से मुंह के द्वारा जाला फैलाकर उसी में रमण करती हैं और उसे निगल भी जाते है।
24. भृंगी कीट
: मैने इस कीड़े से यह शिक्षा ग्रहण की कि यदि प्राणी स्नेह, द्वेष अथवा भय में जान-बूझकर एकाग्र रूप से अपना मन किसी में लगा दे तो उसे उसी वस्तु मा स्वरूप प्राप्त हो जाता है, जैसे भृंगी द्वारा पकड़े गए कीड़े का हो जाता है।
दत्तात्रेय जी ने अपने चौबीस गुरु का वर्णन कर उपनगर रूप में कहा” राजन! अकेले गुरु से ही यथेष्ट और सुदृढ बोध नहीं होता। उसके लिए अपने बुद्धि से भी बहुत कुछ सोचने समझने की आवश्यकता हैं। देखो ऋषियों ने एक ही अद्वितीय ब्रह्म का अनेक प्रकार से गान किया है।” (यह तो तुम्हें स्वयं ही निर्णय करना होगा।)
दत्तात्रेय जयंती, व्रत और पूजन विधि (Dattatreya Jyanti, puja vidhi & Mantra)
भगवान दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। इस दिन को हिन्दू धर्म के लोग दत्तात्रेय जयंती के तौर पर मनाते हैं। वर्ष 2021 में दत्तात्रेय जयंति 18 दिसम्बर को है।
Important Timings On Dattatreya Jayanti 2021
सूर्योदय (Sunrise) | December 18, 2021 7:06 AM |
सूर्यास्त (Sunset) | December 18, 2021 5:40 PM |
पूर्णिमा आरंभ (Tithi Begins) | December 18, 2021 7:24 AM |
पूर्णिमा समाप्त (Tithi Ends) | December 19, 2021 10:05 AM |
दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं इसीलिए उन्हें ‘परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु‘और ‘श्रीगुरुदेवदत्’ भी कहा जाता हैं
दत्तत्रेय जयंती कि विधिपूर्वक पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
भगवान दत्तात्रेय पूजा विधि (Bhagwan dattatreya Puja vidhi)
- प्रातः काल स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
- घर के मंदिर अथवा साफ-सुथरे जगह पर भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
- धूप, दीप, पीले फूल और पीली चीज़ अर्पित करें।
- यथासंभव दत्तात्रेय मंत्र का जाप करें।
दत्तात्रेय बीज मंत्र:-
ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नम:’
दत्त गायत्री मंत्र –
‘ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात’
भगवान दत्तात्रेय उपासना से लाभ (Benefits Of Dattatreya mantra Sadhan)
हिन्दू धर्म शास्त्रों में भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव (ब्रह्म, विष्णु और महेश) का स्वरूप माना गया है। तीनो ईश्वरीय शक्तियों से समाहित महाराज दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफल और जल्दी से फल देने वाली है।
गुरु दत्तात्रेय सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले हैं। अगर मानसिक, या कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जाये तो भक्त किसी भी कठिनाई से शीघ्र दूर हो जाते हैं।
भगवान दत्तात्रेय के प्रमुख मंदिर (Famous Temple of Guru Dattatreya In Hindi)
गुजरात के नर्मदा में भगवान दत्तात्रेय का मंदिर है। गरुडे़श्वर महादेव मंदिर और गरुडे़श्वर दत्त मंदिर के नाम से प्रख्यात यह मंदिर गुजरात के तिलकवाड़ा में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ श्रद्धापूर्वक लगातार 7 हफ्ते तक गुड़, मूंगफली का प्रसाद अर्पित करने से बेरोजगार को रोजगार प्राप्त होता है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ब्रह्मपुरी स्थित श्री दत्तात्रेय भगवान का मंदिर है। यह मंदिर मनोकामना पूर्ति करने वाला माना जाता है। यहां भगवान भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं।
- माहूर किनवट, जनपद नांदेड (महाराष्ट्र)
- गिरनार जुनागढ के निकट (गुजरात)
- दत्तात्रय मंदिर माउंट आबू
- रायपुर छत्तीसगढ़
- वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
- श्रीशैल्य भाग्यनगर हैदराबाद
- पांचाळेश्वर : जिल्हा बीड, महाराष्ट्र.