गुरू हर किशन (Guru Har Krishan)
गुरु हर किशन सिंह (Guru Har Krishan Singh) अथवा ‘गुरु हरि कृष्ण जी) सिक्खों के आठवें गुरु थे। वे 6 अक्टूबर, 1661 ई. में गुरु बने थे और इस पद पर 1664 ई. तक रहे।
गुरू हर किशन (Eight Guru Of Sikh)

पूरा नाम | गुरु हर किशन सिंह |
जन्म | 31 मार्च, 1656 |
जन्म भूमि | कीरतपुर, पंजाब |
मृत्यु | 30 मार्च, 1664 |
मृत्यु स्थान | अमृतसर |
पिता | गुरु हर राय साहेब |
माता | किशन कौर |
भाषा | पंजाबी |
धर्म | सिख धर्म |
पुरस्कार-उपाधि | सिक्खों के आठवें गुरु |
पूर्वाधिकारी | गुरु हरराय |
उत्तराधिकारी | गुरु तेग़ बहादुर |
गुरु हर किशन जीवनी (Biography of Guru Har Krishan in Hindi)
गुरु हर किशन (Guru Har Krishan) जी का जन्म 7 जुलाई, 1656 (विक्रम संवत 1713) को ‘किरतपुर साहेब‘ में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘गुरु हर राय’ और माता का नाम ‘किशन कौर’ था।
इन्हें मात्र 8 वर्ष की छोटी-सी आयु में ही गुरु गद्दी प्राप्त हुई। इन्होंने सिर्फ़ तीन वर्ष तक शासन किया, लेकिन वह बहुत बड़े ज्ञानी थे और हिन्दू धर्मग्रंथ भगवद्गीता के ज्ञान से अपने पास आने वाले ब्राह्मणों को चमत्कृत कर देते थे।
केवल पाँच वर्ष और तीन माह की छोटी सी अवस्था में पिता हरिराय से गुरुगद्दी का उच्च आध्यात्मिक पद होने के कारण श्रद्धालु और भक्त गुरु हरिकृष्णजी को प्यार से बाला प्रीतम’ (बाल गुरु) के नाम से भी पुकारते।
मात्र 8 वर्ष की आयु में मिला गुरुपद
हरकिशनजी (Guru Har Krishan) जी को मात्र 8 वर्ष की आयु में सन 1661 में गुरू हर किशन आठवें गुरु के रूप में गुरुपद प्रदान किया गया। हरकिशनजी जी के बड़े भाई ‘रामराय’ को गुरु पद और सिख धर्म से निष्काषित करने के कारण उन्हें गुरु बनाया गया था।
वे गुरू हर राय साहिब जी एवं माता किशन कौर के दूसरे पुत्र थे। राम राय जी गुरू हरकिशन साहिब जी के बड़े भाई थे। गुरु हरकिशनजी सिखों के एकमात्र ऐसे गुरु रहे, जिन्हें बाल्यकाल में हो गुरुपद प्राप्त हुआ और बाल्यकाल में ही उनकी मृत्यु भी हो गई।
राम राय को गुरु पद से क्यों निष्काषित किया गया?
वे गुरु हर रायजी के छोटे सुपुत्र थे, जिन्हें गुरुपद इसलिए प्राप्त हुआ कि उनके बड़े भाई राम राय ने मुगल दरबार में जाकर गुरुग्रंथ की त्रुटिपूर्ण व्याख्या की जिससे गुरु हर राय जी अप्रसन्न होकर राम राय को सिख पंध से निष्कारित कर दिया था।
गुरू हर किशन को गुरु पद देने से होकर उनके भाई ‘राम राय’ जी ने औरंगजेब से इस बात की शिकायत की। इस बावत शाहजांह ने राम राय का पक्ष लेते हुए राजा जय सिंह को गुरू हर किशन जी को उनके समक्ष उपस्थित करने का आदेश दिया।
औरंगजेब ने गुरु हर किशन को दिल्ली बुलाया
हर किशन के बड़े भाई राम राय, जो पहले से ही मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के समर्थक थे, ने उन्हें गुरु नियुक्त किए जाने का विरोध किया। इस मामले का फ़ैसला करने के लिए औरंगज़ेब ने आठ वर्षीय हर किशन को दिल्ली बुलाया गया।
राजा जय सिंह ने अपना संदेशवाहक कीरतपुर भेजकर गुरू को दिल्ली लाने का आदेश दिया। पहले तो गुरू साहिब ने अनिच्छा जाहिर की। परन्तु उनके गुरसिखों एवं राजा जय सिंह के बार-बार आग्रह करने पर वो दिल्ली जाने के लिए तैयार हो गये।
गुरु हरकिशन सिंह ने की हैजा पीड़ितों की सेवा
उन दिनों दिल्ली में हैजे की महामारी फैली हुई थी। मुगल राज जनता के प्रति असंवेदनशील थी। गुरुजी का दिल्ली आगमन सुनकर रोगी अपने कष्ट निवारण के लिए उनके पास पहुंचने लगे।
आध्यात्मिक गुरु ने पवित्र जल का एक कुंड बनवाया। जो भी इस कुंड से पवित्र जल लेता, उसके सभी रोग दूर हो जाते। दिल्ली के गुरुद्वारा ‘बैंगला साहिब‘ में वह कुंड आज तक कायम है।
जात पात एवं ऊंच नीच को दरकिनार करते हुए गुरू साहिब ने सभी भारतीय जनों की सेवा का अभियान चलाया। इस बात से दिल्ली में रहने वाले मुस्लिम उनसे बहुत प्रभावित हुए एवं वो उन्हें बाला पीर कहकर पुकारने लगे।
गुरु हरिकृष्ण (Guru Har Krishan) को दिल्ली में रहते हुए कई दिन बीत गए, लेकिन औरंगजेब ने उन्हें अपने दरबार में नहीं बुलाया और न स्वयं ही उनसे मिलने आया।
गुरु साहब खुद भी चेचक की चपेट में आ गए
हैजा का प्रकोप कम हुआ तो छोटी माता चेचक (Chickenpox) फैल गई। गुरु हरिकृष्ण अपने शिष्यों को साथ लेकर बस्ती-बस्ती जाते और दुखियों की मदद करते। लगातार रोगियों के संपर्क में रहने से गुरुजी स्वयं भी को चेचक से पीड़ित हो गए।
जब उनकी हालत कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गयी तो उन्होने अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि उनका अंतिम समय अब निकट है।
अंतिम समय (मृत्यु)
अंतिम समय मे जब गुरु हर किशन (Guru Har Krishan) को अपने उत्तराधिकारी को नाम लेने के लिए कहा, तो उन्हें केवल बाबा ‘बकाला’ का नाम लिया। जिसका अर्थ था कि हमारे उत्तराधिकारी गुरु बकाला गाँव में हैं। यह कहकर गुरु हरिकृष्ण 30 मार्च, 1644 में परलोक सिधार गए। यह नाम बकाला गांव में रह रहे गुुुुरु तेग़ बहादुर के लिए प्रयोग हुआ था।
दिल्ली के जिस आवास में गुरु हरकिशन रहे थे, वहां उनकी स्मृति में श्री बंगला साहिब गुरुद्वारा बनाया गया है।