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गुरु हरगोबिन्द सिंह (Guru Hargobind Singh)

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गुरु हरगोबिंद सिंह (Guru Hargobind Singh) सिक्खों के छठे गुरु थे, इनका जन्म 14 जून, सन् 1595 ई. में बडाली (अमृतसर) में हुआ था। इन्होंने सिख समुदाय को सेना के रूप में संगठित होने के लिए प्रेरित किया था।

गुरु हरगोबिंद सिंह (Guru Hargovind Singh)

जन्म14 जून, सन् 1595 (बडाली, अमृतसर)
मृत्यु3 मार्च, 1644 (कीरतपुर, पंजाब2)
पितागुरु अर्जन देव
मातागंगा
पत्नीमाता नानकी, माता महादेवी और माता दामोदरी
बच्चेंबाबा गुरदिता, बाबा सूरजमल, बाबा अनि राय, बाबा अटल राय, गुरु तेग बहादुर और बीबी बीरो
पुरस्कार-उपाधिसिक्खों के छ्ठे गुरु
विशेष योगदानगुरु हरगोबिंद सिंह ने एक मज़बूत सिक्ख सेना संगठित की और अपने पिता गुरु अर्जुन के निर्देशानुसार सिक्ख पंथ को योद्धा-चरित्र प्रदान किया था।

रोहिला की लड़ाई, करतारपुर की लड़ाई, अमृतसर की लड़ाई , हरगोबिंदपुर की लड़ाई,नगुरुसर की लड़ाई, कीरतपुर की लड़ाई, कीरतपुर साहिब की स्थापना
पूर्वाधिकारीगुरु अर्जन देव
उत्तराधिकारीगुरु हरराय

गुरु हरगोबिन्द जीवनी (Biography of Guru Hargovind Hindi)

गुरु हरगोबिंद सिंह (Guru Hargobind Singh) सिक्खों के छठे गुरु थे। इसका जन्म बडाली (अमृतसर, भारत) में 14 जून, सन् 1595 में हुआ था। गुरु हरगोबिंद सिंह के पिता का नाम अर्जुनसिंह (सिखों के पांचवे गुरु) और माता का नाम गंगा था।

‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के संकलनकर्ता और पाँचवें सिख गुरु श्री गुरु अर्जनदेव की धर्मपत्नी माता गंगाजी विवाह के पंद्रह वर्ष पश्चात भी संतान न होने से दिन-रात इस चिंता में घुलती रहती थी, कि परिवार के वंश को कौन आगे बढ़ाएगा।

एक दिन उन्होंने अपनी चिंता पति गुरु अर्जनदेव से कही। गुरुजी ने माता गंगाजी को सलाह दी कि वह वह बाबा बुड्डाजी के पास जाकर उनकी सेवा करें और आशीर्वाद लें तो निश्चित रूप से उनकी संतान की मनोकामना पूरी होगी।

गुरुजी के कहे मुताबिक माता गंगाजी ने अगले दिन प्रात:काल अपने हाथों से खाना बनाकर तपती गरमी में अकेली नंगे पाँव चलकर बाबा बुड्डाजी के निवास पर पुनः पहुँचीं। माता गंगाजी के हाथ का बना हुआ भोजन खाकर बाबा बुड्डाजी अत्यंत प्रसन्न हुए।

भोजन के दौरान एक मोटे से प्याज को मुक्का मारकर तोड़ते हुए उन्होंने माता गंगाजी को वर दिया, “आपके घर एक ऐसा पराक्रमी युगपुरुष जन्म लेगा जो मीरी और पीरी का मालिक होगा। वह योद्धा दुष्टों के सिर वैसे ही तोड़ेगा जैसे हम यह प्याज तोड़ रहे हैं।” बाबा बुड्ढाजी की वाणी सत्य साबित हुई।

वैवाहिक जीवन (Marriage Life)

गुरु गुरु हरगोबिन्द का 3 विवाह हुआ था। इनकी पत्नी का नाम माता नानकी, माता महादेवी और माता दामोदरी था। जिनसे पांच पुत्र (बाबा गुरदिता, बाबा सूरजमल, बाबा अनि राय, बाबा अटल राय, गुरु तेग बहादुर) और एक पुत्री (बीबी बीरो) का जन्म हुआ।

आपके पाँच साहिबजादे में से तीन (बाबा गुरदिताजी, बाबा अटल राय और श्री अणीरायजी) पहले ही ईश्वर प्यारे हो गए थे। श्री सूरजमलजी दुनियादारी में बहुत अधिक प्रवृत्त रहते थे।जबकि तेगबहादुरजी आगे चलकर सिखों केे नौवें गुरु बने।

गुरु पदवी (Akal Takht)

गुरु हरगोविंद सिंह को गुरु पदवी 25 मई, 1606 ई. को अपने पिता और सिखों के पांचवे गुरु अर्जन देव से हुई। तब गुरु हरगोबिंद सिंह मात्रा 11 वर्ष की के थे। वे इस पद पर 28 फ़रवरी, 1644 ई. तक रहे।

सिखों के गुरु के रूप में उनका कार्यकाल सबसे अधिक था। उन्‍होंने 37 साल, 9 महीने, 3 दिन तक यह जिम्मेदारी संभाली थी।

सिख सेना का संगठन

गुरु गोबिंद सिंह एक महान योद्धा थे। इन्होंने अपना ज्यादातर समय युद्ध प्रशिक्षण एव युद्ध कला में लगाया तथा बाद में वह कुशल तलवारबाज, कुश्ती व घुड़सवारी में माहिर हो गए। गुरु हरगोबिंद सिंह ने एक मज़बूत सिक्ख सेना संगठित की।

उन्होंने ही सिक्खों को अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया व सिक्ख पंथ को योद्धा चरित्र प्रदान किया।

अंतिम समय

अपने पचास वर्षीय जीवनकाल के अंतिम दस वर्ष गुरु हरिगोबिंद साहिब ने ईश्वर के चिंतन में व्यतीत किए। अतः अपना अंतकाल निकट आया महसूस कर गुरु हरिगोबिंदजी ने अपने पौत्र श्री हरिराय को गुरुपद परंपरा के निर्वहण का दायित्व सौंपा और 6 चैत्र, संवत् 1701 (19 मार्च, 1644) के दिन परम ज्योति में समा गए।


गुरु हरगोबिन्द सिंह रोचक जानकारी (Guru Hargobind Singhi Interesting Facts)

  • गुरु हरगोबिंद सिंह सिक्खों के छठे गुरु थे। इसका जन्म बडाली (अमृतसर, भारत) में 14 जून, सन् 1595 में हुआ था।
  • गुरु गोविंद सिहं का जन्मोत्सव को ‘गुरु हरगोबिंद सिंह जयंती’ के रूप में मनाया जाता।
  • गुरु हरगोबिंद सिंह के पिता का नाम अर्जुनसिंह था, जो सिखों के पांचवे गुरु थे।
  • गुरु हरगोविंद सिंह को गुरु पदवी 25 मई, 1606 ई. को अपने पिता और सिखों के पांचवे गुरु अर्जन देव से हुई।
  • सिखों के गुरु के रूप में उनका कार्यकाल सबसे अधिक था। उन्‍होंने 37 साल, 9 महीने, 3 दिन तक यह जिम्मेदारी संभाली थी।
  • गुरु हरगोबिंद सिंह के तीन विवाह हुए थे, का नाम माता नानकी, माता महादेवी और माता दामोदरी था।
  • एक बार गुरु हरगोबिंद सिंह उदासी संत श्रीचंद्र के आश्रम में गएम महात्मा श्रीचंद्र ने उनसे गुरु दित्ता को मांग लिया और उन्हें अपने बाद अपनी गद्दी का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
  • मुगल बादशाह जहांगीर ने उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हें व उनके साथ 52 राजाओं को अपनी कैद से मुक्ति दी थी।
  • गुरु गोविंद सिंह ने एक साथ दो तलवारें धारण कीं। ये दोनों तलवारें उन्हें बाबा बुड्डा जी ने पहनाई थीं.
  • अपनी मृत्यु से पूर्व गुरु परंपरा का निर्वाह करते हुए इन्होंने गुरु गद्दी अपने पौत्र ‘हरराय’ को गद्दी सौंप दी। उस समय हरराय 14 साल के थे।
  • 19 मार्च, 1644 को गुरु हरगोबिंद सिंह ने कीरतपुर साहिब में चोला छोड़ दिया।

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