गुरु नानक (Guru Nanak)
श्री गुरु नानक देव (shri Guru Nanak Dev) सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु थे। नानक जी का जन्म वर्ष 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) क्षेत्र में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी गांव में हुआ था।
इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से भी संबोधित किया जााता हैै।
Guru Nanak Dev Complete Information
नाम | गुरु नानक (Guru Nanak) |
जन्म | कार्तिक पूर्णिमा, संवत् 1527 (29 नवम्बर 1469) |
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जन्म स्थान | राय भोई की तलवंडी, (वर्तमान ननकाना साहिब, पंजाब, पाकिस्तान) |
मृत्यु | 22 सितंबर 1539, करतारपुर |
पिता | लाला कल्याण राय (मेहता कालू जी) |
माता | माता तृप्ता देवी जी |
विवाह, पत्नी | सुलक्खनी देवी (24 सितंबर 1487) |
संतान / पुत्र | श्री चन्द, (8 September 1494); लक्ष्मी चन्द (12 February 1497) |
स्मारक समाधि | करतारपुर |
सक्रिय वर्ष | 1499–1539 |
उपलब्धि | सिख धर्म की स्थापना |
उत्तराधिकारी | गुरु अंगद देव |
गुरु नानक देव की जीवनी (Guru Nanak Biography in Hindi)
गुरु नानक (Guru Nanak) का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी गाँव में 29 नवम्बर सन 1469 को एक खत्री परिवार में हुआ था। तलवंडी पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त का एक शहर है। जिसका नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना (Nankana) पड़ गया।
कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है।
गुरु नानक के माता पिता और बहन (Guru Nanak Father, Mother and sister)
गुरु नानक (Guru Nanak) के पिता का नाम कालूचंद मेहता तथा माता का नाम तृप्ता देवी था। पिता व्यापारिक खत्री संप्रदाय से थे। इनकी बहन का नाम नानकी था। बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहन नानकी तथा गाँव के शासक राय बुलार प्रमुख थे।
समाज के सम्मानित वर्ग से ताल्लुक रखने वाले नानक जी कम उम्र से ही काफी धार्मिक स्वभाव के थे।
गुरु नानक पत्नी और सन्तान (Guru Nanak Wife and Children)
गुरू नानक का विवाह 24 सितंबर वर्ष 1487 में 18 वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के लाखौकी नामक स्थान में मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। सुलक्खनी भी खत्री परिवार से संबंध रखती थी। जिनसे श्रीचंद और लक्ष्मीचंद नामक दो पुत्र भी हुए।
उनके पुत्र श्री चंद्र का जन्म वर्ष 1491 में और दूसरेे पुत्र लक्ष्मी चंद्र का जन्म वर्ष 1496 में हुआ। दोनों लड़कों के जन्म के उपरांत 1507 में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़।
गुरु नानक की शिक्षा (Guru Nanak at School)
नानक लड़कपन ही से ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगा। 7-8 साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भागवत प्राप्ति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए।
अपने बाल्य काल में श्री गुरु नानक जी नें कई प्रादेशिक भाषाएँ सिखा जैसे फारसी और अरबी। तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे।
गुरु नानक के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण किस्से
गुरु नानक देव ने समाज में फैले अंधविश्वास और जातिवाद को मिटाने के लिए बहुत से कार्य किए। यही कारण है कि हर धर्म के लोग उन्हें सम्मान के साथ याद करते हैं। गुरु नानक देव जी के जीवन के संदर्भ में कई किस्से और कहानी प्रसिद्ब है जिनसे हमें विभिन्न सीख मिलती है। प्रस्तुत है गुरु नानक से जुड़े कुछ प्रसिद्ध किस्से..
गुरु नानक की उदासियाँ यात्रा (Travels of Guru Nanak Dev)
दोनों पुत्रों के जन्म के बाद गुरुनानक देवी जी अपने चार साथी मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। ये चारों ओर घूमकर उपदेश देने लगे। उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक सारे भारत की यात्रा की।
वर्ष 1521 तक इन्होंने तीन यात्रा चक्र पूरे किए, नानक ने भारत के अलावा बर्मा, तुर्की, श्रीलंका, अफगानिस्तान और अरब आदि देशों की भी यात्रा की। इन यात्राओं को पंजाबी में “उदासियाँ” कहा जाता है।
नानकजी जहाँ भी गए वहीं उन्होंने जातियों, धर्मों तथा वर्णों की सीमाओं को तोड़कर उनमें परस्पर समन्वय तथा संबंध स्थापित किया। नानकजी के लिए संपूर्ण मानव सृष्टि एक देश था और सब मानव जाति एक परिवार थी।
गुरु नानक मक्का-मदीना यात्रा (Guru Nanak In Mecca)
भारत में अपने ज्ञान की ज्योति जलाने के बाद उन्होंने मक्का मदीना की यात्रा की और वहां के निवासी भी उनसे अत्यंत प्रभावित हुए।
25 वर्ष के भ्रमण के पश्चात् नानक कर्तारपुर में बस गये और वहीँ रहकर उपदेश देने लगे। उनकी वाणी आज भी ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ (Guru Nanak Sahib) में संग्रहित हैं।
जब गुरु नानक ने काबा की दिशा बदल दी (Guru Nanak Changed Direction Of Kaba)
मक्के में मुसलमानों का एक प्रसिद्ध पूजा स्थान है जिसे काबा कहते है| गुरु जी रात के समय काबे की तरफ विराज गए तब जिओन ने गुस्से में आकर गुरु जी से कहा कि तू कौन काफ़िर है जो खुदा के घर की तरफ पैर पसारकर सोया हुआ है?
गुरु जी ने बड़ी नम्रता के साथ कहा, मैं यहाँ सरे दिन के सफर से थककर लेटा हूँ, मुझे नहीं मालूम की खुदा का घर किधर है तू हमारे पैर पकड़कर उधर करदे जिधर खुदा का घर नहीं है। यह बात सुनकर जिओन ने बड़े गुस्से में आकर गुरु जी के चरणों को घसीटकर दूसरी ओर कर दिया और जब चरणों को छोड़कर देखा तो उसे काबा भी उसी तरफ ही नजर आने लगा। इस प्रकार उसने जब फिर चरण दूसरी तरफ किए तो काबा उसी और ही घुमते हुआ नज़र आया।
जिओन ने जब यहे देखा कि काबा इनके चरणों के साथ ही घूम जाता है तो उसने यह बात हाजी और मुलानो को बताई जिससे बहुत सारे लोग वहाँ एकत्रित हो गए। गुरु जी के इस कौतक को देखकर सभी दंग रहगए और गुरु जी के चरणों पर गिर पड़े| उन्होंने गुरु जी से माफ़ी भी माँगी। जब गुरु जी ने वहाँसे चलने की तैयारी की तो काबे के पीरों ने विनती करके गुरु जी की एक खड़ाव निशानी के रूप में अपने पास रख ली।
हिन्दू-मुस्लिम एकता समर्थक (Guru Nanak Believed in Hindu Muslim Unity)
गुरु नानक (Guru Nanak) हिन्दू-मुस्लिम एकता के भारी समर्थक थे। धार्मिक सदभाव की स्थापना के लिए उन्होंने सभी तीर्थों की यात्रायें की और सभी धर्मों के लोगों को अपना शिष्य बनाया। उन्होंने हिन्दू धर्म और इस्लाम, दोनों की मूल एवं सर्वोत्तम शिक्षाओं को सम्मिश्रित करके एक नए धर्म की स्थापना की जिसके मिलाधर थे प्रेम और समानता। यही बाद में सिख धर्म कहलाया।
नानक सर्वेश्वरवादी थे। उन्होंने सनातन मत की मूर्तिपूजा की शैली के विपरीत एक परमात्मा की उपासना का एक अलग मार्ग मानवता को दिया। उन्होंने हिंदू धर्म मे फैली कुरीतिओं का सदैव विरोध किया। साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी नज़र डाली है।
इनके उपदेश का सार यही होता था कि ईश्वर एक है और उनकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिये हैं। मूर्तिपुजा, बहुदेवोपासना को ये अनावश्यक कहते थे। हिंदु और मुसलमान दोनों पर इनके मत का प्रभाव पड़ता था।
गुरु नानक का हिंदी साहित्य से संबंध (Guru Nanak as A Poet)
हिंदी साहित्य में गुरुनानक भक्तिकाल के अतंर्गत आते हैं। वे भक्तिकाल में निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी शाखा से संबंध रखते हैं। नानक अच्छे सूफी कवि भी थे। उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, वह निराली है।
उनकी भाषा “बहता नीर” थी। जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समा गए थे
गुरु नानक देव की मृत्यु कैसे हुई? (How Guru Nanak Dev Deid)
जीवन के अंतिम दिनों में गुरु ख्याति बहुत बढ़ गई। वह जहां भी जाते लोगो की भीड़ उन्हें घेर लेते थे। उन्हें ईश्वर का अवतार समझा जाने लगा था। सभी धर्म के लोग उन पर समान रूप से आस्था रखते थे। इनके विचारों में भी परिवर्तन हुआ। स्वयं ये अपने परिवार वर्ग के साथ रहने लगे और मानवता कि सेवा में समय व्यतीत करने लगे।
उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया था, जो कि अब पाकिस्तान में है। एक बड़ी धर्मशाला भी उसमें बनवाई। इसी स्थान पर आश्वन कृष्ण 10, संवत् 1597 (22 सितंबर 1539 ईस्वी) को गुरु नानक परलोक सिधार गए थे।
मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।
प्रकाश पर्व कब और क्यों मनाया जाता है?
सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु- गुरू नानक जी के जन्म उपलक्ष में गुरु नानक जयंती, प्रकाश पर्व या गुरु पर्व के रूप में मनाई जाती है।
नानक जी का जन्म पाकिस्तान (पंजाब) में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में हुआ था। 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन इनका जन्म हुआ था।
गुरु नानक देव के जीवन से जुड़े मुख्य गुरुद्वारे
सिख धर्म के संस्थापक प्रथम पातशाह साहिब श्री गुरु नानक देव जी महान आध्यात्मिक चिंतक व समाज सुधारक थे।
पंजाब में उनके चरण जहां-जहां पड़े वहां आज ऐतिहासिक गुरुद्वारे सुशोभित हैं। प्रकाश पर्व के दिन गुरुद्वारों और अन्य स्थानों पर कई तरह के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। प्रसिद्ध गुरुद्वारों की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है…
गुरुद्वारा कंध साहिब (Gurudwara Kandh Sahib)
बटाला (गुरुदासपुर) गुरु नानक का यहां बीबी सुलक्षणा से 18 वर्ष की आयु में संवत् 1544 की 24वीं जेठ को विवाह हुआ था।
गुरुद्वारा हट्ट साहिब (Gurudwara Shri Hatt Sahib)
गुरु द्वारा हाट साहिब, सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में है। गुरु नानक ने बहनोई जैराम के माध्यम से सुल्तानपुर के नवाब के यहां शाही भंडार के देख-रेख की नौकरी प्रारंभ की। वह यहां पर मोदी बना दिए गए। नवाब युवा नानक से काफी प्रभावित थे। यहीं से नानक को ‘तेरा’ शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।
गुरुद्वारा साहिब गुरु का बाग (Gurdwara Sahib Guru Ka Bag)
सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में स्थित गुरुद्वारा गुरु का बाग में गुरु नानक देव जी का घर था, जहां उनके दो बेटों बाबा श्रीचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था।
गुरुद्वारा कोठी साहिब (Kothi Sahib)
गुरुद्वारा कोठी साहिब, सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में है जहां नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में गड़बड़ी की आशंका में नानक देव जी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानक देव जी को छोड़ कर माफी ही नहीं मांगी, बल्कि प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
गुरुद्वारा बेर साहिब (Guru Ber Sahib)
गुरुद्वारा बेर साहिब सिखों के लिए एक लोकप्रिय धार्मिक स्थल है जो सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में स्थित है। यही वो जगह है जहाँ गुरु नानक देव का ईश्वर से साक्षात्कार हुआ था। गुरुनानक देव जी ने यहाँ अपने जीवन के 14 साल बिताए थे।
गुरुद्वारा श्री अचल साहिब (Gurudwara Sri Achal Sahib)
यह गुरुद्वारा गुरुदासपुर के बटाला-जालंधर रोड पर स्थित है। यही वह जगह है जहां अपनी यात्राओं के दौरान नानक देव रुके थे। यहीं पर नाथपंथी योगियों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद भी हुआ था।
गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक (Dera Baba Nanak)
गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक पंजाब केे गुरुदासपुर में स्थित है। यहां से पाकिस्तान का बॉर्डर मात्र 1 किलोमीटर दूरी पर है। यहाँ गुरु नानक देव जी ने अपने अंतिम दिन बिताए थे।
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