गुरु तेग़ बहादुर (Guru Tegh Bahadur)
गुरू तेग बहादुर (1 अप्रैल 1621 – 19 दिसंबर, 1675) सिखों के नवें गुरु थे। इनके द्वारा रचित 115 पद्य गुरु ग्रंथ साहिब में सम्मिलित हैं। विश्व के इतिहास में धर्म एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में इनका अद्वितीय स्थान है।
गुरु तेग़ बहादुर (Guru Tegh Bahadur)

पूरा नाम | गुरु तेग़ बहादुर सिंह |
जन्म | 18 अप्रैल, 1621 |
जन्म भूमि | अमृतसर, पंजाब |
मृत्यु | 24 नवम्बर, 1675 |
मृत्यु स्थान | चांदनी चौक, नई दिल्ली |
पिता | गुरु हरगोविंद सिंह |
माता | माता नानकी |
पत्नी | माता गुजरी |
संतान | गुरु गोविन्द सिंह |
उपाधि | सिक्खों के नौवें गुरु |
जीवन परिचय (Biography of Guru tegh Bahadur)
सिखों के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर का जन्म 01 अप्रैल, 1621 ई को गुरु के महल, अमृतसर में हुआ था। इनके पिता का नाम हरिगोविंद (सिखों के छठे गुरु) और माता का नाम नानकी था। यह अपने माता पिता की पाँचवीं संतान थे।
गुरु तेग बहादुर नाम क्यों पड़ा? (Meaning of the Name)
गुरु तेग़ बहादुर के बचपन का नाम ‘त्यागमल’ था। मगर मात्र 14 वर्ष की आयु में मुग़लों के ख़िलाफ़ हुए करतारपुर के ऐतिहासिक युद्ध में अपने ‘तेग’ (तलवार) का कमाल दिखाया, उससे प्रभावित होकर पिता हरिगोबिंद ने उनका नाम ही ‘तेगबहादुर’ रख दिया।
वैवाहिक जीवन और संतान (Marriage and children)
गुरु तेग बहादुर का विवाह करतारपुर निवासी श्री लालचंदजी की सुपुत्री ‘बीबी गुजरी’ के साथ 15 आश्विन, संवत 1689 में हुआ था. उनकी संतान गोविंद राय थे जो 10 वें बादशाह व खालसा पंथ की स्थापना के बाद ‘गुरु गोविंद सिंह’ के नाम से जाने गये।
आध्यात्मिक चिंतन की ओर झुकाव (Inclination to spiritual)
सन् 1644 में जब गुरु हरिगोबिंद के स्वर्गवास के बाद गुरु तेगबहादुर ने अमृतसर शहर छोड़ दिया और माँ नानकी तथा पत्नी गुजरी को लेकर ‘बकाला गाँव’ चले गए। उनका का मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर हुआ। वहाँ उन्होंने एकांत में लगातार बीस वर्ष तक कठोर साधना की। तैंतालीस वर्ष की अवस्था में श्रावण पूर्णिमा के दिन तेगबहादुरजी ने एकांतवास त्यागकर गुरुपद ग्रहण किया।
गुरु तेगबहादुर ने कुल उनचास शब्दों और सत्तावन श्लोकों की रचना की, जो ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में ‘महला 9’ के शीर्षक से दर्ज है।
धर्म प्रसार के लिए भ्रमण
गुरु तेग बहादुर ने धर्म के प्रसार के लिए कई भारत के कई स्थानों का भ्रमण किया। जिसमें आनंदपुर साहब से रोपण, सैफाबाद, कुरुक्षेत्र, कड़ामानकपुर, प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि।
इन्हीं यात्राओं में 1666 में गुरुजी के यहाँ पटना साहब में ‘गुरु गोविंद सिंह’ पुत्र का जन्म हुआ। जो बाद में सिख धर्म के दसवें गुरु बने।
गुरु गद्दी की प्राप्ति (9th Guru of Sikhism)
आठवें गुरु व इनके पोते ‘हरिकृष्ण राय’ जी की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण जनमत द्वारा गुरु तेग बहादुर को नवम गुरु बनाया गया था।
अन्य मत से 30 मार्च, सन् 1664 ई को गुरु हरिकृष्ण (8वें गुरु) ने दिल्ली में परलोकगमन के पहले अपने उत्तराधिकारी के लिए बाथा बकाला (गुरु तेग बहादुर) की घोषणा के लगभग एक वर्ष के बाद गुरु तेग बहादुर 44 वर्ष की आयु में, 20 मार्च सन् 1665 ई. को गुरु की गद्दी’ पर विराजमान हुए थे।
गुरु तेग बहादुर की शहादत (Guru Tegh bahadur Martyrdom Hindi)
जब उत्तरी भारत में औरंगजेब द्वारा जोर-जबरदस्ती के बल पर लोगों का धर्म-परिवर्तन किया जा रहा था, तो कुछ लोगों का एक जत्था आनंदपुर साहिब आकर गुरु तेगबहादुरजी से मिलने पहुंचे।
उनकी फरियाद सुनकर गुरुजी सोच में पड़ गए। पिता को विचारमग्न देखकर बालक गोविंद ने कारण पूछा। गुरुजी ने फरमाया, “बेटा, इनका धर्म खतरे में है और यह धर्म किसी पुण्यात्मा की कुरबानी से ही बच सकता है।” बालक गोबिंद ने उत्तर दिया, “तो पिताजी, आपसे बड़ी पुण्यात्मा और कौन हो सकता है? आप अपनी कुरबानी देकर इनका धर्म बचाइए।
गुरु तेग बहादुर ने उन्हें भरोसा दिलाते हुए कहा, “आप लोग बेफिक्र होकर जाएँ और अपने सूबे या औरंगजेब को यह सूचना दे दें कि यदि वह गुरु तेग बहादुर को इसलाम कबूल करवा लेगा तो हम भी मुसलमान बन जाएँगे; अगर औरंगजेब इसमें नाकामयाब रहा, फिर वह अपनी यह नीति छोड़ देगा।
“गुरुजी ने फरियादी को आश्वस्त करके विदा किया और पुत्र गोबिंद राय को गुरुपद परंपरा के निर्वाह का दायित्व सौंपकर 5 अन्य सिख (मतिदास, सतीदास, गुरदित्ता, दयाला और उदय) के साथ दिल्ली के लिए रवाना हो गए।
आगरा में उन्हें और उनके साथ आए पाँचों सिखों को बंदी बना लिया गया और दिल्ली लाया गया। दिल्ली पहुँचने के उपरांत गुरुजी तथा उनके सिखों के आगे इस्लाम कबूल करने की बात कही। पहले औरंगजेब ने नरमी बरतते हुए गुरुजी को अपना नजरिया बताया कि वह सारे हिंदुस्तान को ‘दारुल-इसलाम’ (इसलामिक देश) बनाना चाहता है। गुरु साहब ने कहा – “सीस कटा सकते है केश नहीं।”
जब गुरु तेग बहादुर नही माने तो उनके सिखों पर भारी जुल्म ढाने लगा। शायद उनकी हालत देख भयभीत हो या तरस खाकर इस्माल कबूल करने के लिए राजी हो जाएँ; मगर यह उसकी भूल थी। वह उन पाँचों शिष्यों को अमानवीय शारीरिक कष्ट देने के बावजूद किसी को भी इसलाम कबूल करवाने में सफल न हो सका।
अपनी जिद तथा हठधर्मिता के कारण उसने भाई मतिदास को आरे से दो फाड़ करवा दिया। भाई सतीदास को रुई में लपेटकर जिंदा जला दिया। भाई दयाला को उबलती देग में डालकर शहीद कर दिया। भाई गुरदित्ता तथा भाई उदय को भी दो टुकड़ों में काट दिया गया।
औरंगज़ेब द्वारा सिर कलम (Aurangzeb beheaded Guru Tegh Bahadur)
अगले दिन 11 नवंबर, 1675 को गुरु तेग बहादुर को दिल्ली के चांदनी चौक में भरी सभा सबके सामने उनका सिर कटवा दिया।
गुरुद्वारा ‘शीश गंज साहिब’ तथा गुरुद्वारा ‘रकाब गंज साहिब’ उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वाले ‘गुरु तेग बहादुर‘ को शत शत नमन..🙏