Hateshwari Mata Temple: हाटेश्वरी माता मंदिर, शिमला
हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में स्थित नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण जुब्बल तहसील में मां हाटेश्वरी का प्राचीन मंदिर है। यह शिमला से लगभग 104 कि.मी. की दूरी पर समुद्रतल से 1370 मीटर की ऊंचाई पर पब्बर नदी के किनारे समतल स्थान पर है।
हाटेश्वरी माता मंदिर परिसर (Hateshwari Mata Temple Complex)
इस मंदिर में वास्तुकला, शिल्पकला के उत्कृष्ठ नमूनों के साक्षात दर्शन होते हैं। लोक मान्यता है कि यह मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी के आस-पास बना हुआ है। मूलत: यह मंदिर शिखराकार नागर शैली में बना हुआ था। बाद में एक श्रद्धालु ने इसकी मुरम्मत कर इसे पहाड़ी शैली के रूप में परिवर्तित कर दिया।
मां हाटकोटी के मंदिर में मां महिषासुर मर्दिनी की 2 मीटर ऊंची कांस्य की विशाल प्रतिमा विद्यमान है। इतनी विशाल प्रतिमा केवल हिमाचल में ही नहीं, बल्कि भारत के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में भी देखने को नहीं मिलती।
इसके साथ ही शिव मंदिर भी है जहां पत्थर पर बना प्राचीन शिवलिंग है। द्वार को कलात्मक पत्थरों से सुसज्जित किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में लक्ष्मी, विष्णु, दुर्गा, गणेश आदि की प्रतिमाएं हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर के प्रांगण में देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियां, तांबे का घड़ा और पांच पांडव भी विराजमान हैं.
लोक मान्यता अनुसार मंदिर के साथ लगते सुनपुर के टीले पर कभी विराट नगरी थी, जहां पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान कई वर्ष व्यतीत किए थे। और पढ़ें: महाभारत के प्रमुख पात्र
मंदिर का रहस्यमयी घड़ा (चुरू)
मंदिर का रहस्यमयी घड़ा: मंदिर के बाहर प्रवेश द्वार के बाईं ओर एक तांबे का कलश लोहे की जंजीर से बंधा है, जिसे स्थानीय भाषा में “चरू” कहा जाता है। चरू के गले में लोहे की जंजीर बंधी है, जो एक ओर से माता चरणों के नीचे दबी है।
लोगों की मान्यता है कि सावन भादों में जब पब्बर नदी में अत्यधिक बाढ़ आती है तब हाटेश्वरी मां का यह चरू सीटियां बजाता है और भागने का प्रयास करता है। मंदिर के दूसरी ओर बंधा चरू नदी के वेग से भाग गया था, जबकि पहले को मंदिर के पुजारी ने पकड़ लिया था। इसमें यज्ञ में ब्रह्म भोज के लिए बनाया गया हलवा रखा जाता है।
गोरखा नही ले जा पाए थे चुरू को: स्थानीय निवासी बताते हैं कि जब गोरखा लड़ते लड़ते मंदिर के पास पहुंचे तो उन्होंने इस चरू को ले जाने की कोशिश की थी परंतु मां के चरणों में एक ओर से बंधा होने के कारण वे इसे नहीं ले जा सके। वे शिवलिंग ले जाने में कामयाब हुए जिसकी उन्होंने नेपाल में पशुपति नाथ मंदिर में स्थापना कर दिया।
संकटहरणी माँ हाटेश्वरी (Story of Hateshwari Mata Temple)
इन देवी के संबंध में मान्यता है कि बहुत वर्षों पहले एक ब्राह्मण परिवार में दो सगी बहनें थीं। उन्होंने छोटी उम्र में ही संन्यास ले लिया और घर से भ्रमण के लिए निकल पड़ीं। उन्होंने संकल्प लिया कि वे गांव-गांव जाकर लोगों के दुख दर्द सुनेंगी और उसके निवारण के लिए उपाय बताएंगी।
दूसरी बहन हाटकोटी गांव पहुंची जहां मंदिर स्थित है। उसने यहां एक खेत में आसन लगाकर ईश्वरीय ध्यान किया और ध्यान करते हुए वह लुप्त हो गई जिस स्थान पर वह बैठी थी वहां एक पत्थर की प्रतिमा निकल पड़ी।
इस आलौकिक चमत्कार से लोगों की इस कन्या के प्रति श्रद्धा बढ़ी और उन्होंने इस घटना की पूरी जानकारी तत्कालीन जुब्बल रियासत के राजा को दी। जब राजा ने इस घटना को सुना तो वह तुरंत पैदल चल कर वहां पहुंचा और इच्छा प्रकट की कि वह प्रतिमा के चरणों में सोना चढ़ाएगा।
जैसे ही प्रतिमा के आगे कुछ खुदाई की गई तो वह स्थान दूध से भर गया। इसके उपरांत खोदने पर राजा ने यहां पर मंदिर बनाने का निश्चय लिया। लोगों ने उस कन्या ने को देवी रूप माना और गांव के नाम से इसे ‘हाटेश्वरी देवी’ कहा जाने लगा। माना जाता है कि हाटेश्वरी माता समस्त दुखों का निवारण करने वाली है। मां रोग व अनेक कष्टों का भी नाश करती है। इसी मान्यता से लोग मां के दरबार में पहुंचते हैं और समस्त रोगों एवं कत्रों से मक्ति पाते हैं।
हाटेश्वरी माता मंदिर कैसे पहुंचे (How to Reach Hateshwari Mata Temple)
हाटेश्वरी माता मंदिर शिमला से लगभग 104 कि.मी. की दूरी पर अवस्थित है। शिमला से बस अथवा टेक्सी के माध्यम से सरलता से हाटेश्वरी माता कस मंदिर पहुंचा जा सकता है। अगर श्रद्धालु सुबह 7-8 बजे शिमला से चलें तो दोपहर लगभग 11 बजे तक मंदिर में आसानी से पहुंच सकते हैं। और माता के दर्शन करके उसी दिन वापस शिमला आ सकते हैं।