Indra Dev: जानिएं, देवराज इंद्र का रहस्य
Indra Dev: हिन्दू मान्यता अनुसार इंद्रदेव (Indra Dev) देवताओं के राजा हैं। इसलिए इन्हें ‘देवेंद्र’ भी कहते है। जानिएं, इंद्र से जुडी जानकारी…
मुख्य बिंदू:-
- देवराज इंद्र का सामान्य परिचय।
- इंद्र के माता पिता, भाई, पत्नी और बच्चें।
- इंद्र के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य।
- इंद्र की पूजा बंद होने का कारण।
- इंद्र नाम नही पदवी है।
- 14 इंद्र के नाम, वर्तमान में कौन इंद्र है।
इंद्रदेव का रहस्य (Indra: King of the Gods)
The God of the Heavens and Lightning: हिन्दू मान्यता अनुसार इंद्र देवताओं के राजा हैं। इसलिए इन्हें ‘देवेंद्र’ भी कहते है। यह स्वर्ग पर शासन करते है। यही ‘वर्षा या बारिश‘ (Rain) और बादलों में पैदा होने वाले विद्युत (Lightning) के भी देवता है। इंद्र के कारण ही इंद्रधनुष, इंद्रजाल, इंद्रियां, इंदिरा जैसे शब्दों की उत्पत्ति हुई है। इंद्र को ज्येष्ठा नक्षत्र और पूर्व दिशा का स्वामी माना गया है। इंद्रियों की पुष्टि के लिए इंद्र की पूजा की जाती है।
इंद्र गायत्री मंत्र (Indra Gayatri Mantra)
ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात् ||
Om Sahastranetraay Vidmahe Vajra Hastaay Dheemahi Tanno Indrah Prachodayat.
अर्थात: हम उस भगवान श्री इंद्र का ध्यान करें जिनके हजार नेत्र हैं और जो अपने हाथों में वज्र को धारण किये हैं। वो भगवान इंद्र हमारी बुद्धि और मन को ज्ञान का प्रकाश दें और हमें सन्मार्ग में प्रेरित करें।
इंद्र का वाहन, अस्त्र, मित्र और शत्रु (Indra’s vehicle, weapon, friend and foe)
इंद्र देव (Indra Dev) का वाहन ऐरावत हाथी, अश्व उच्चैः श्रवा, अस्त्र वज्र और धनुष इंद्रधनुष है। त्रेतायुग में इंद्र ने महर्षि दधीच की हड्डयों का वज्र बनाकर वृत्रासुर नामक दैत्य का वध किया था। इंद्र के घोड़े का नाम उच्चैः श्रवा और सारथि का नाम मातलि हैं।
वेदों में वायु को इंद्र का मित्र कहा गया है और दोनों एक ही रथ पर चढ़कर चलते हैं। वर्षाकाल में इनकी मित्रता का प्रत्यक्ष दर्शन होता है। वृत्र, त्वष्टा, नमुचि, शंबर, बाण, बलि और विरोचन इंद्र के प्रमुख शत्रु रहे हैं।
इंद्र देव की सभा (The assembly of Indra Dev)
Assembly of Indra Dev: इंद्र देवता का निवास स्वर्ग में है और इंद्र देव की सभा ‘सुधर्मा’ कहलाती हैं, जिसमें देवता, गंधर्व तथा अप्सराएँ रहते है। इनकी पुरी अमरावती है जहाँ पर नंदन वन है, जिसमें पारिजात वृक्ष स्थाथित है।
इंद्र के माता, पिता, पत्नी, बच्चे, भाई (Indradev Mother, Dather, Wife, Children & Brother)
Indra dev Family: इंद्र के पिता का नाम महर्षि कश्यप और माता का नाम अदिति था। महर्षि कश्यप और अदिति के कुल 12 पुत्र हुए। ये पुत्र सूर्य, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और भगवान वामन है। 33 कोटि देवी-देवताओं में अदिति के 12 पुत्र भी शामिल है। और पढें: वामन अवतार
Indradev Wife & Children: इंद्र की पत्नी शची था, जिन्हें इन्द्र की पत्नी होने के कारण ‘इंद्राणी’ भी कहा जाता हैं, इनके पिता ‘पुलोमा’ राक्षस वंश के थे, जो एक युद्ध में अपने दामाद इंद्र के हाथों ही मारे गए थे। इंद्र देव के पुत्र का नाम जयंत तथा पुत्री का नाम जयंती था। जयंती का विवाह दैत्य गुरु शुक्राचार्य से हुआ था।
इंद्र वैदिक काल के सर्वोच्च देवता (Indra the supreme god of the Vedic period)
Supreme God of the Vedic Period: वैदिक काल में इंद्र सर्वोच्च देवता थे। ‘ऋग्वेद’ में त्रिदेवों में अग्नि तथा सूर्य अथवा वरुण के साथ इंद्र का नाम भी मिलता है। ऋग्वेद के लगभग एक-चौथाई सूक्त इन्द्र से सम्बन्धित हैं। 250 सूक्तों के अतिरिक्त 50 से अधिक मन्त्रों में उसका स्तवन प्राप्त होता है।
लेकिन पौराणिक काल में इनकी महत्ता निरन्तर क्षीण होती गयी। इस काल में इंद्र को विलासी और ईर्ष्यालु राजा के रूप में चित्रित किया गया है और त्रिदेवों की श्रेष्ठता स्थापित हो गयी।
इंद्र की पूजा क्यों बंद हुई (Why Indra Dev is not worshipped)
Why are there no temples for Indra Dev: महाभारत’ तथा पुराण के अध्ययन से इंद्र के चरित्र में बहुत सी विसंगतियां दिखने को मिलती हैं। फलस्वरूप चरित्र की दुर्बलता के कारण महान् देवों में इनकी गिनती नहीं होती, न ही इनकी पूजा-अर्चना होती है। आइये जानते है इंद्र देव से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं –
हनुमान की ठोड़ी में व्रज से प्रहार: इन्होंने हनुमान जी की ठोड़ी (हनु) पर वज्र से प्रहार किया था जिससे उनकी ठोड़ी टेढ़ी हो गई थी और वे हनुमान कहलाए। और पढ़ें: हनुमान का रहस्य
श्री कृष्ण ने किया अभिमान दूर: एक बार देवराज इंद्र को खुद पर अभिमान हो गया था। इस घमंड को दूर करने के लिए भगवानक श्री कृष्ण ने लीला रची। उन्होंने अपनी माता यशोदा और ग्रामीणों से कहा कि इंद्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।
गाय गोवर्धन पर्वत पर चरने जाती हैं, ऐसे में पूजा भी पर्वत की होनी चाहिए। उनकी इस बात को सुन सभी ग्रामीणों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की।
इस बात से देवराज इंद्र नाराज हो गए, उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान कृष्ण सभी बृजवासी ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया, जिसके नीचे सभी ग्रामीणों ने शरण ली।
लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा होती रही, लेकिन ग्रामीणों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। तब इंद्र को अहसास हुआ कि उनका मुकाबला किसी सामान्य मानव से नहीं है। वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्हें पूरी बात बताई। इस पर ब्रह्मा जी ने बताया कि वे जिस मानव की बात कर रहे हैं वे भगवान विष्णु के रूप श्रीकृष्ण हैं। और पढ़ें: भगवान विष्णु के 10 अवतार
यह सुन इंद्र श्रीकृष्ण के पास पहुंचे और उन्होंने उन्हें न पहचान पाने के लिए क्षमा मांगी। यह बात सुनकर इंद्र लज्जित हुए और उन्होंने श्रीकृष्ण से अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की। इस घटना के बाद से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाने लगी।
अहल्या से छल पूर्वक प्रणय: ‘महाभारत’ में ऋषि गौतम की पत्नी अहल्या के साथ छलपूर्वक प्रणय करने के कारण ऋषि गौतम ने उन्हें शरीर मे हजार योनि चिन्ह होने का शाप दे दिया था, किंतु बाद में क्षमा मांगने पर उन्होंने उसे आँखों में बदल दिया। जिसके बाद इनका नाम ‘सहस्राक्ष’ पड़ा।
सत्ता छीन जाने के भय से आशंकित: इंद्र हमेशा अपने पद और स्वर्ग को छीने जाने के भय से आशंकित रहते है। इसलिए, किसी भी साधु और राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देते। वह कभी दैत्यों, तपस्वियों की तपस्या भंग करने के लिए अप्सराओं को भेज देते है। तो कभी अश्वमेघ के घोड़े को चुरा लेते है।
इन्द्र नाम नही पदवी हैं (Indra is not a name but a title)
Meaning of indra: लोगों के मन में यह भ्रांति है कि इंद्र देवता का नाम हैं। जबकि ऐसा नही है। देवराज इंद्र एक पदवी है। जिस पर सत्कर्म करने वाले संत पुरुष विराजित होते हैं। (इस चुनाव पद्धति के विषय में स्पष्ट वर्णन उपलब्ध नही है)
दरसअल, देवताओं के राजा के पद को ‘इन्द्र’ कहते हैं। इस पद पर बैठने वाले व्यक्ति का नाम भी इन्द्र हो जाता है। (जैसे- प्रधानमंत्री के पद में बैठने वाले व्यक्ति को लोक व्यवहार में प्रधानमंत्री कह देते है)
हर मन्वंतर में अलग इंद्र होते है (Who are the 14 indras?)
The 14 indras: इंद्र क्रमशः एक मन्वंतर में राजा होते हैं। मन्वंतर की कुल संख्या 14 बताई गयी है। श्री विष्णु पुराण में तृतीय अंश के प्रथम एवं द्वितीय अध्याय में तथा भागवत पुराण के अष्टम स्कन्ध के प्रथम एवं त्रयोदश अध्याय में 14 मन्वन्तरों के अलग-अलग इन्द्रों के नाम दिये गये हैं।
विश्वभुक, विपश्चित, विभु, प्रभु, शिखी, मनोजव, तेजस्वी, बली, अद्भुत, त्रिदिव, सुशांत, सुकीतूंग, ऋता और दिवस्पति ये चौदह इंद्र के नाम है। एक मन्वंतर में 43,20,000 वर्ष होते हैं।
मन्वंतर | इंद्र | |
---|---|---|
1 | स्वायंभुव | यज्न |
2 | स्वारोचिष | विपस्चित |
3 | उत्तम | सुशांति |
4 | तामस | शीबि |
5 | रैवत | विधु |
6 | चाक्षुष | मनोजव |
7 | वैवस्वत | पुरंदर (वर्तमान इंद्र) |
8 | अर्क सावर्णि | बाली |
9 | दक्ष सावर्णि | अद्भुत |
10 | ब्रह्म सावर्णि | शांति |
11 | धर्म सावर्णि | विश |
12 | रुद्र सावर्णि | रितुधाम |
13 | रुचि (देव सावर्णि) | देवास्पति |
14 | भौम (इंद्र सावर्णि) | सुचि |
वर्तमान इंद्र है पुरंदर (Present Indra is Purandar)
Present Indra is Purandar: अब तक 6 वां मन्वन्तर बीत चुके है और 7वां मन्वंतर चल रहा है। वर्तमान समय के इंद्र का नाम पुरंदर है। वर्तमान इंद्र ‘पुरंदर’ महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। जो महर्षि कश्यप और अदिति के बारह पुत्रों में से एक है।