Kaal Bhairav: क्यों कहा जाता है काल भैरव को काशी का कोतवाल
Kaal Bhairav: मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान काल भैरव का जन्म हुआ था। भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले बाबा कालभैरव का संबंध काशी से गहरा है। इन्हें काशी का कोतवाल कहते हैं और इनकी नियुक्ति स्वयं भगवान शंकर ने की थी।
ऐसी मान्यता है काशी में रहने वाला हर व्यक्ति को यहां पर रहने के लिए बाबा काल भैरव की आज्ञा लेनी पड़ती है। भगवान विश्वनाथ काशी के राजा हैं और काल भैरव इस प्राचीन नगरी के कोतवाल। इसी कारण से इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। इनका दर्शन किये बिना बाबा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है।
क्यों कहा जाता है काल भैरव को काशी का कोतवाल | Why is Kal Bhairav called the Kotwal of Kashi?
बाबा काल भैरव के काशी के कोतवाल कहे जाने के पीछे बहुत ही रोचक कथा है। शिवपुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी, विष्णु जी और भगवान शिव में कौन श्रेष्ठ है इसको लेकर विवाद पैदा हो गया। इसी बीच ब्रह्माजी ने भगवान शंकर की निंदा कर दी जिसके चलते भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए। तब भगवान ने अपने रौद्र रूप से काल भैको जन्म दिया। (Read more: जानिए, शिवलिंग शिव का रहस्य
काल भैरव ने भगवान के अपमान का बदला लेने के लिए अपने नाखून से ब्रह्माजी के उस सिर को काट दिया जिससे उन्होंने भगवान शिव की निंदा की थी। इस कारण से उन पर ब्रह्रा हत्या का पाप लग गया।ब्रहा हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शंकर ने काल भैरव को पृथ्वी पर जाकर प्रायश्चित करने को कहा और बताया कि जब ब्रहमा जी का कटा हुआ सिर हाथ से गिर जाएगा उसी समय से ब्रह्रा हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी।
अंत में जाकर काशी में काल भैरव की यात्रा समाप्त हुई थी और फिर यहीं पर स्थापित हो गए और शहर के कोतवाल कहलाए।
भैरव दर्शन बगैर अधूरी रहती है पूजा | Without Bhairav Darshan, Puja Remains Incomplete
सती के 52 शक्तिपीठ की रक्षा भी कालभैरव अपने 52 विभिन्न रूपों में करते हैं। भगवान काल भैरव के दर्शन और पूजन की महत्ता इसी बात से समझी जा सकती है कि न तो भगवान शिव की पूजा और न ही देवी के किसी भी शक्तिपीठ के दर्शन भैरव जी के दर्शन के बिना पूरे माने गए हैं।
श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग हो, श्री काशी विश्वनाथ हो या देवी कामाख्या के दिव्य दर्शन हों, बिना भैरव के दर्शन के शिव-शक्ति के दर्शन अधूरे माने गए हैं। पूजन से पहले पढ़ा जाता है ये मंत्रपूजा पाठ और कर्मकांड के क्षेत्र में भी भगवान काल भैरवन एक विशेष स्थान रखते हैं। पूजा करने की आज्ञा, पूजा में की गई त्रुटियां और क्रम टूटने के दोष से मुक्ति भी भैरव जी ही प्रदान करते हैं। (Read More: शिव पूजन में ध्यान रखने योग्य बातें
भैरव तंत्र के अनुसार
ॐ तीखदन्त महाकाय कल्पान्तदोहनम्।
भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि। ‘
निम्न श्लोक का उच्चारण पूजा से पहले किया जाता है, जिससे हमें पूजा करने की आज्ञा भैरव जी से प्राप्त होती है।