Kailadevi Temple: कैलादेवी मंदिर, करौली (राजस्थान)
Kaila Devi Temple: कैला देवी का मंदिर राजस्थान के करौली से 23 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर देवी दुर्गा के पवित्र 51 शक्तिपीठ में से एक है। कैला देवी को यदुवंश (कृष्ण वंशज) की देवी माना जाता हैं।
करौली का इतिहास (History of Karauli)
करौली राजस्थान का ऐतिहासिक नगर है। यह करौली जिला का मुख्यालय है। इसकी स्थापना 955 ई. के आसपास राजा विजय पाल ने की थी। 1818 में करौली राजपूताना एजेंसी का हिस्सा बना 1947 में भारत की आजादी के बाद यहां के शासक महाराज गणेश पाल देव ने भारत का हिस्सा निश्चय किया17 अप्रैल 1949 में करौली भारत में शामिल हुआ और राजस्थान राज्य का हिस्सा बना।
करौली का सिटी पैलेस राजस्थान के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक मदनमोहन जी का मंदिर देश विदेश से बसे श्रद्धालुओं के बीच बहुत लोकप्रिय है। अपने ऐतिहासिक किलों और मंदिरों के लिए मशहूर करौली दर्शनीय स्थल है।
कैला देवी का मंदिर करौली से 23 किलोमीटर दूर स्थित है। यह माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना 1100 ई. में हुई थी। कैला देवी पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लाखों लोगों को आराध्य देवी है। प्रतिवर्ष करीब 60 लाख श्रद्धालु यहाँ दर्शनों के लिए आते हैं। यह मंदिर देवी दुर्गा के पवित्र शक्तिपीठों में से एक है। और पढ़े: 51 शक्तिपीठ का रहस्य
कैला देवी मंदिर परिसर (Kailadevi Temple Complex)
कैला देवी मंदिर पहाड़ियों की तलहटी में बना हुआ है। यह कैला देवी मंदिर न सिर्फ पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है, बल्कि देश के कई राज्यों से लोग इस मंदिर में माता की एक झलक पाने के लिए आते हैं।
इन मंदिरों की खासियत यह है कि यहाँ आने वाले भक्तों की झोली माता खुशियों से भर देती है। मां कैलादेवी की मुख्य प्रतिमा के साथ मां चामुण्डा की प्रतिमा भी विराजमान है।
The daily regime of the temple is as follows:
4:00 am | Temple opens |
4:00 – 4:30 am | Mangaldarshan (1st look at the Goddess) |
4:30 – 5:30 am | Temple closes |
5:30 – 6:30 am | Temple opens for darshan |
6:30 – 6:45 am | Shringar of Devi |
7:00 am | Aarti and Bhog |
11:00 am | Raj Bhog |
12:00 – 1:00 pm | Temple closes |
5:00 pm | Baada aarti |
7:00 pm | Aarti and Bhog |
8:30 pm | Temple closes |
9:00 – 9:30 pm | Jagran |
9:30 pm | Temple closes |
माँ कैला देवी अवतरण कथा (Story of Kailadevi Temple in Hindi)
उत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सती के अंग जहां-जहां गिरे वहीं एक शक्तिपीठ का उदगम हुआ। उन्हीं शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ कैलादेवी है। और पढ़ें: जानें, 51 शक्तिपीठ का रहस्य
ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं किवदन्तियों के अनुसार प्राचीनकाल में कालीसिन्ध नदी के तट पर बाबा केदागिरी तपस्या किए करते थे यहां के सघन जंगल में स्थित गिरी -कन्दराओं में एक दानव निवास करता था जिसके कारण संयासी एवं आमजन परेशान थे। बाबा ने इन दैत्यों से क्षेत्रा को मुक्त कराने के लिए हिमलाज पर्वत पर आकर घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर माता प्रकट हो गई।
बाबा ने देवी मां से दैत्यों से अभय पाने के लिए वर मांगा। बाबा केदारगिरी त्रिकूट पर्वत पर आकर रहने लगे। कुछ समय पश्चात देवी मां कैला ग्राम में प्रकट हुई और उस दानव का कालीसिन्ध नदी के तट पर वध किया। जहां एक बडे पाषाण पर आज भी दानव के पैरों के चिन्ह देखने को मिलते है। इस स्थान का नाम आज भी दानवदह के नाम से जाना जाता है।
कैला देवी मेला कब होता हैं (KailDevi Mela in Chaitra Navratra)
उत्तरी-पूर्वी राजस्थान के चम्बल नदी के बीहडों के नजदीक कैला ग्राम में स्थित मां के दरबार में बारह महीने श्रद्धालु दर्शनार्थ आते रहते हैं लेकिन चैत्रा मास में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले वार्षिक मेले में तो जन सैलाब-सा उमड पडता है।
चैत्रामास में शक्तिपूजा का विशेष महत्व रहा है। राजस्थान के करौली जिला मुख्यालय से दक्षिण दिशा की ओर 24 किलोमीटर की दूरी पर पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य त्रिकूट पर्वत पर विराजमान कैला मैया का दरबार चैत्रामास में लघुकुम्भ नजर आता है।
कैला देवी मंदिर कैसे पहुंचे (How to Reach kaila devi Temple)
रेल मार्ग: कैरोली, पश्चिमी मध्य रेलवे के दिल्ली- मुंबई रेलमार्ग पर हिण्डौन सिटी स्टेशन से 55 किमी एवं गंगापुर सिटी स्टेशन से 48 किमी की दूरी पर है। जहां से राज्य बस सेवा एवं निजी टैक्सी गाडियां हमेशा तैयार मिलती है।
सड़क मार्ग: कैलादेवी की जयपुर से दूरी 195 किमी है। जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर महुवा से कैलादेवी की दूरी 95 किमी है। महुवा से हिण्डौन, करौली तक राज्यमार्ग 22 जाता है, उससे कैलादेवी सीधा सडक मार्ग से जुडा हुआ है। हवाई मार्ग: हवा मार्ग से आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर है जहां से सडक मार्ग द्वारा महवा हिण्डौन होकर करौली से कैलादेवी पहुंच सकते है।
कैला देवी अभ्यारण्य (Kailadevi Wild Life Sanctuary)
यह अभ्यारण्य करौली से 23 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित है। इस अभ्यारण्य की सीमा कैला देवी मंदिर के पास से शुरू होकर करनपुर तक जाती है और रणधंभीर राष्ट्रीय उद्यान से भी मिलती है। कैला देवी अभ्यारण्य में नीलगाय तेंदुए और सियार के अलावा किंगफिशर भी मिलते हैं।
संभल का केला देवी मंदिर (Sambhal KelaDevi temple)
माँ कैला देवी का देश में दो ही मंदिर हैं। पहला राजस्थान में और दूसरा ऊत्तरप्रदेश के संभल शहर के भूड़ इलाके में। मंदिर परिसर में स्थित बरगद के पेड़ का भी काफी महत्व है। बताया जाता है कि बरगद का यह पेड़ सात सौ वर्ष पुराना है। यदुवंश की कुलदेवी मां कैलादेवी के सोमवार को दर्शन करने का विशेष महत्व है।