काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी
काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर में स्थित है। जो भारत की राजधानी दिल्ली से 846 किमी दूर है। काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान रखता है और पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का रहस्य Kashi Vishwanath Temple)
सम्बद्धता | हिंदू धर्म |
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देवता | शिव |
अवस्थिति | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
प्रसिद्धि | ज्योतिर्लिंग |
वास्तु शैली | हिन्दू वास्तुकला |
वर्तमान निर्माण | महारानी अहिल्या बाई होल्कर |
स्थापित वर्ष | 1780 |
Website | shrikashivishwanath |
काशी महात्म्य (Mythological Belief)
पुराणों में काशी को “सर्वतीर्थमयी, सर्वसंतापहारिणी एवं मोक्षदायिनी” कहा गया है यहां प्राण त्यागने से ही मुक्ति मिल जाती है। मतस्यपुराण अनुसार- “जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों से पीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है।”
भगवान महादेव मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश देते हैं, जिससे वह आवगमन के चक्र से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो। विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं –
- दशाश्वेमघ,
- लोलार्ककुण्ड,
- बिन्दुमाधव,
- केशव (आदि केशव)
- मणिकर्णिका
इसे अविमुक्ति क्षेत्र भी कहा जाता है।
विश्वनाथ मंदिर का इतिहास (History of Kashi Vishwanath Temple )
वर्तमान मंदिर का निर्माण सन 1780 ई. में महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया गया था। बाद मे सन 1853 ई. में महाराजा रणजीत सिंह ने 1000 किलो सोना मंदिर में लगवाया, इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर भी कहते है।
मुस्लिम शासन काल काशी विश्वनाथ मंदिर में आक्रमण
मुस्लिम शासन काल में काशी के मंदिर सुरक्षित नहीं रहे। कट्टर मुस्लिम शासक कुतुबद्दीन एबक ने सन् 1194 ई. में काशी के एक हजारों मंदिरों को तोड़कर नष्ट करवा दिया था। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने भी लगभग हजार मंदिरों को नष्ट कर दिया।
इस बीच कई बार काशी में मंदिर का निर्माण किया गया, जिसमे सन् 1585 ई. में श्री नारायण ने सम्राट अकबर के राजस्व मन्त्री की सहायता से विश्वनाथ मंदिर का पुनः निर्माण मुख्य है। मगर बाद में इसे भी तोड़ दिया गया।
औरंगजेब ने भी अपने शासन कल में हजारों मंदिरों को नष्ट किया था, उस समय में काशी के 20 हिन्दू मंदिरों को भी गिन पाना कठिन हो गया था। उसके विश्वनाथ के प्राचीन मंदिर को तोड़कर वहाँ मस्जिद बनवाया, जो आज भी मौजूद है।
मंदिर तोड़ने और पुनर्निर्माण का यह क्रम कई बार चला। ऐसे स्थिति तब तक बनी रही जब तक देश में मुस्लिम शासन काल था। लेकिन अंग्रेज़ शासन काल में स्थिति सुधारने लगी।
काशी विश्वनाथ मंदिर पुनर्निर्माण (मंदिर विवाद)
अंग्रेजों के शासन काल में हिन्दू मंदिरों का पुनः निर्माण होने लगा। सन् 1828 ई. में प्रिन्सेप ने गणना करायी थी जिससे पता चला था कि काशी में एक हजार मंदिर विद्यमान थे।
शेकिंरग के अनुसार – “उसके समय में चौदह सौ पंचावन मंदिर थे। हेन सांग ने उल्लेख किया है- कि उनके समय में वाराणसी में लगभग १०० विशाल मंदिर थे। उनमें से एक भी सौ फीट से कम ऊँचा नहीं था।
वाराणसी के देवता विश्वनाथ के जिस मंदिर को औरंगजेब ने नष्ट किया था, उसके समीप ही सन 1780 ई. में महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने मंदिर का निर्माण करवाया। इसके बाद में सन 1853 ई. में महाराजा रणजीत सिंह ने 1000 किलो सोना मंदिर में लगवाया।
वाराणसी के प्रमुख मंदिर (Recommended Places to Visit in Kashi)
काशी क्षेत्र में पग-पग पर तीर्थ है। काशी धर्म एवं विद्या के पवित्र तथा प्राचीनतम् नगरी के रूप मे विख्यात है। पौराणिक ग्रंथ, वैदिक साहित्य आदि धार्मिक पुस्तकों में काशी का उल्लेख मिलता है। पाणिनि, पंतञ्जलि आदि ग्रन्थों में भी काशी की चर्चा है।
स्कन्दपुराण काशी-खण्ड के केवल दशवें अध्याय में चौसठ शिवलिङ्गो का उल्लेख मिलता है। किन्तु मत्स्यपुराण के अनुसार काशी में पाँच तीर्थ प्रमुख है- (1) दशाखमेध, (2) लोलार्क कुण्ड, (3) केशव (आदि केशव), (4) बिन्दु माधव, (5) मणिकर्णिका। इसे अविमुक्ति क्षेत्र भी कहते है। वाराणसी के प्रमुख प्रमुख मंदिर, घाट और पर्यटन स्थल निम्न है-
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple)
यह भगवान शिव को समर्पित है तथा स्वर्ण मंदिर के रूप में भी जाना जाता है. भगवान् शिव का काशी से विशेष महात्य है. इन्हें काशी के नाथ देवता भी कहा जाता है कि जिस बिंदु पर पहले ज्योतिर्लिंग, जो दिव्या प्रकाश में स्थित शिव का प्रकाश है. काशी में घाट और उत्तरवाहिनी गंगा एवं मंदिर में स्थापित शिवलिंग वाराणसी को धर्म, अध्यात्म, भक्ति एवं ध्यान का महत्वपूर्ण केंद्र की ख्याती प्रदान करता है.
Kashi Vishwanath Mandir Live Darshan
माँ अन्नपूर्णा मन्दिर (Maa Annpurna Temple)
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ही देवी अन्नपूर्णा का मंदिर स्थित है, जिन्हे “अन्न की देवी” माना जाता है।
संकटा मन्दिर (Sankata Temple, Varanasi)
सिंधिया घाट के पास, “संकट विमुक्ति दायिनी देवी” देवी संकटा का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। इसके परिसर में शेर की एक विशाल प्रतिमा है। इसके अलावा यहां 9 ग्रहों के नौ मंदिर हैं।
कालभैरव मन्दिर (Kaal Bhairv Temple)
विश्वनाथ मंदिर से लगभग दो मील की दूरी पर काल भैरो का मंदिर है। इन्हे काशी का कोतवाल कहा जाता है। इनके हाथ में बड़ी एवं मोटे पत्थर की लाठी होने के कारण इन्हें दण्डपाणि भी कहते है। रविवार को इनके दर्शन का विशेष महत्व है।
मृत्युंजय महादेव मन्दिर (Mritunjay Mahadev Temple)
कालभैरव मंदिर के निकट ही दारानगर के मार्ग पर मृत्युंजय महादेव मन्दिर स्थित है। यहाँ के जल का विशेष महत्व हैं, इसका पानी कई भूमिगत धाराओं का मिश्रण है, जिसे असाध्य रोगों को नष्ट करने वाला माना जाता है।
नया विश्वनाथ मन्दिर बी. एच. यू (New Vishwnath Temple)
मदन मोहन मालवीय जी द्वारा स्थापित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय () के परिसर में नया विश्वनाथ मन्दिर स्थित है जिसे बिड़ला जी ने बनवाया था।
तुलसी मानस मन्दिर (Tulsi Mansas Manadir)
तुलसी मानस मन्दिर दुर्गा मंदिर के निकट स्थित है। यहाँ यह मंदिर भगवान श्री राम को समर्पित है। यही पर रहकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने महाकाव्य “श्री रामचरितमानस” लिखा था। मंदिर संगमरमर पत्थर से बना और दीवारों पर सम्पूर्ण रामचरितमानस के छंद अंकित है।
कुष्मांडा दुर्गा मन्दिर (Sankat Mochan Durga Temple)
यह प्रसिद्ध मन्दिर 18 वी सदी में बनाया गया था। इस मंदिर में माँ दुर्गा कुष्मांडा स्वरूप में विद्यमान हैं। मदिर में पत्थर कारीगरी से बहुत सुन्दर कार्य किया गया है, इस मंदिर को नागौर शिल्प का एक अच्छा उदाहरण माना जाता है।
संकटमोचन हनुमान मन्दिर (Sankat Mochan Hanuman Temple)
दुर्गा मंदिर के रास्ते पर असी नदी धारा के निकट “संकटमोचन” हनुमान का मंदिर स्थित है यह मंदिर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित किया गया था। इस मंदिर के परिसर में बहुत सारे बंदर है, इसलिए इसे बंदर मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
भारत माता मन्दिर (Bharat Mata Temple)
यह मंदिर भारत माता को समर्पित है। सन 1936 में महात्मा गांधी ने इस मंदिर का उद्घाटन किया था।
हमारा वाराणसी यात्रा का अनुभव (Varanshi Complete Travel Guide in Hindi)
वाराणसी के पग पग में मंदिर स्थित है। जिसमे से कुछ प्रमुख मंदिरों का वर्णन ऊपर किया जा चुका है। काशी विश्वनाथ मंदिर और अन्नपूर्णा मंदिर में भीड़ रहती है। विश्वनाथ मंदिर के निकट ही गंगा आरती होती है, जिसका विशेष महत्व है। इन तीनों स्थान का दर्शन कर आप बाकी दर्शनीय स्थल को 1 दिन के भीतर ऑटो अथवा टेक्सी बूक करके कर सकते है। अतः वाराणसी और उसके आसपास के दर्शनीय स्थल को देखने के लिए 2 दिन का समय लगता है।
दर्शन कैसे करें?
हमने अपनी यात्रा दिल्ली से प्रारम्भ की थी, हमारी ट्रेन प्रातःकाल 5 बजे वाराणसी station पहुंची। अपनी यात्रा को सुगम बनाने के लिए हमने काशी विश्वनाथ मंदिर के नजदीकी निवास स्थान (किसी को व्यापारिक लाभ या हानि न हो इसलिए नाम छुपाया जा रहा है) का चयन किया।
लगभग प्रातः काल 7.00 बजे हम दशाश्वमेध घाट की और चल दिए, जो हमारे निवास से कुछ ही मीटर की दूरी पर था। घाट में पहुँचकर सभी ने स्नान किया। दल में जो सदस्य पिंड दान करवाना चाहते थे, वह पिंड दान करवाने लगे। बाकी घाट पर ही स्थित मंदिर का दर्शन कर नाव की सवारी करने चले गए।
यदि आप भी पिंड दान (मृत व्यक्ति की आत्मा के शांति के लिए किए जाने वाली पूजा) करवाना चाहते है, तो आपको वही पर पंडे मिल जाएंगे। पूजा के लिए जरूरी सामाग्री भी उनके पास रहता है जिसे आप कुछ निश्चित धन राशि देकर प्राप्त कर सकते है। पूजा करवाने से पूर्व दक्षिणा की बात अवश्य कर लें, अन्यथा आपको अनुचित मांग का सामना करना पड़ सकता है।
पिंडदान करने के बाद हमने घाट ही में स्थित माता गंगा के मंदिर का दर्शन किया और बाकी दल के सदस्यों के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शन करने के लिए चले गए। मंदिर का रास्ता पतली संकरी गलियों से होकर गुजरता है।
मंदिर के लिए लम्बी लाइन लगी थी, लगभग 50 मिनट लाइन में लगने के बाद हम भगवान विश्वनाथ के दर्शन कर पाये। यदि आप चाहे तो भगवान महादेव की विशेष पूजा भी करवा सकते है, जिसकी जानकारी आपको मंदिर समिति से मिल जाएगी।
काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने के पश्चात हम निकट ही में स्थित माता अन्नपूर्णा मंदिर के दर्शन करने गए। उसके बाद अन्नपूर्णा मंदिर ट्रस्ट की और से चलने वाले भंडारे में भोजन ग्रहण किया।
भोजन ग्रहण करने के बाद हम आसपास का बाज़ार घूमने लगे। तत्पश्चात दोपहर को लगभग 3.30 बजे वापस अपने होटल में आ गए। हमने होटल आकार थोड़ा विश्राम किया और शाम को होने वाली गंगा आरती में सम्मलित होने के लिए होटल से करीब 6 बजे निकल गये। गंगा आरती देखकर लोटते वक्त हमने रास्ते में ही भोजन किया और होटल पहुँचकर सो गए।
अगली सुबह हम स्नान आदि से निवृत होकर 8 बजे टेक्सी बूक कर वाराणसी के प्रमुख दार्शनिक स्थल की यात्रा के लिए निकल गए। (वाराणसी में कई दर्शनीय स्थल है, जिसके दर्शन के लिए टेक्सी अथवा ओटो अच्छा विकल्प है। इससे धन और समय दोनों की बचत होती है।)
शाम को करीब 5 बजे हम अपनी यात्रा पूर्ण कर अपने होटल में वापस आ गए। होटल से समान लिया और अपने अगले गंतव्य “बोद्ध गया” (बिहार) के लिए ट्रेन से निकल गए।
वाराणसी से जुड़े रोचक तथ्य (Interesting Facts About Varanasi)
- वाराणसी शहर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। जो भारत की राजधानी दिल्ली से किमी दूर है।
- पुराणों में काशी को “सर्वतीर्थमयी, सर्वसंतापहारिणी एवं मोक्षदायिनी” कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि यहां प्राण त्यागने से ही मुक्ति मिल जाती है।
- काशी धर्म एवं विद्या के पवित्र तथा प्राचीनतम् नगरी के रूप मे विख्यात है।
- यही पर काशी विश्वनाथ का मंदिर स्थित है, जो द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
- काशी के पग पग में तीर्थ है। हैवेल के अनुसार काशी में 3500 मंदिर थे। तो हेन सांग ने उल्लेख किया है- कि उनके समय में वाराणसी में लगभग 100 ऐसे विशाल मंदिर थे, जिनकी उचाई सौ फीट से अधिक थी।
- औरंगजेब ने प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बना दिया था, उसके समीप ही सन 1780 ई. में महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने मंदिर का निर्माण करवाया।
- काशी विश्वनाथ मंदिर में 1000 किलो सोना लगा है जिस कारण इसे हिन्दुओ का स्वर्ण मंदिर भी कहते है।
- यही पर माता अन्नपूर्णा (अन्न की देवी) प्रकट हुई थी।
- काशी के कोतवाल भगवान भैरव है।
- तुलसीदास ने काशी में ही राम चरित्र मानस की रचना करी थी।
- कबीर वराणसी में रहते थे, लेकिन प्राण त्यागते समय चले गए थे।