केदारनाथ मन्दिर, उत्तराखंड
केदारनाथ मन्दिर (Kedarnath Temple in Hindi)
केदारनाथ मन्दिर (Kedarnath Temple) हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। जो भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। केदारनाथ मन्दिर की गिनती बारह ज्योतिर्लिंग, चार धाम और पंच केदार में होती है। केदारनाथ मन्दिर में स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। जिसका जीर्णोद्धार आदि शंकराचार्य ने करवाया था।
उतराखंड बाढ़ 2013 (Utrakand Flad 2013)
जून 2013 के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन से मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया था। लेकिन ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे। जिसे लोग चमत्कार से जोड़कर देखते है।
केदारनाथ धाम माहात्म्य (Beliefs of Kedarnath Dham )
हिन्दू धर्म ग्रंथो में केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ ये दो प्रधान तीर्थ माने जाते हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल हो जाता है और केदारनापथ सहित बद्रीनाथ के दर्शन से समस्त पाप नष्ट होकर मुक्ति की प्राप्ति होती है।
केदारनाथ नाम क्यों पड़ा (The Derivation of the Name of Kedarnath)
सतयुग में केदार नाम के एक महान राजा सप्तद्वीप नामक राज्य पर राज किया करते थे। उनका मन सदैव शिव भक्ति में ही रमता था। वृद्ध होने पर वह अपने पुत्र को राज पाठ सौपकर इस क्षेत्र में तप करने चले आए। जिस कारण इस स्थान का नाम केदार पड़ा।
मंदिर का निर्माण काल (History of Kedaranth Temple)
केदारनाथ मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद नहीं है। परंतु एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात रहा है। एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर 8 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर के बगल में है। हिन्दी के महान कवि और लेखक राहुल सांकृत्यायन ने मंदिर का निर्माण काल 12-13वीं शताब्दी का माना है।
मंदिर वास्तुशिल्प (Kedarnath temple Architecture)
केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Temple) वास्तुकला का अद्भुत व आकर्षक नमूना है। मंदिर छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर के बाहर प्रांगण में भगवान शिव के वाहन नन्दी विराजमान हैं। मंदिर के गर्भ गृह में तिकोनी शीला (नुकीली चट्टान) भगवान शिव के रूप में पूजी जाती है।
गर्भ ग्रह में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है। सम्मुख की ओर यात्री जल-पुष्पादि चढ़ाते हैं और दूसरी ओर भगवान को घृत अर्पित कर बाँह भरकर मिलते हैं, मूर्ति चार हाथ लम्बी और डेढ़ हाथ मोटी है।
मंदिर के अंदर जगमोहन में द्रौपदी सहित पाँच पाण्डवों की विशाल मूर्तियाँ है, कहते है पांडवों ने अपना देह यही त्याग किया था। इसके अलावा उषा, अनिरुद्ध, कृष्ण, शिव पार्वती की मूर्ति भी स्थित है। मन्दिर के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है, जिसके चारों और श्रद्धालु परिक्रमा करते है। मंदिर के बाहर अमृतकुंड, इशांकुंड, हंसकुण्ड, रेतसकुंड की स्थिति है। मंदिर के पृष्ठभाग में भगवान शंकराचार्य जी की समाधि बनी है।
पूजा और आरती (Arti and daily Rituals)
केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण होते हैं। प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं।
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