Shiva Linga: जानिए, शिवलिंग का रहस्य
Shiva linga Screats: लिंग परम्परा अधिकांश विश्व में प्रारम्भ से ही रही है। यूरोपीय सभ्यता के आदिकालीन राज्य यूनान तथा रोम में भी लिंग पूजा का प्रचलन था। यूनान में इस देवता को ‘फल्लस’ तथा रोम में ‘प्रियेपस’ कहा जाता था। कर्नल टाड़ के अनुसार ‘फल्लुस’ शब्द ( टॉड़ का राजस्थान – खंड प्रथम, पृष्ठ 603) संस्कृत के ‘फलेश’ शब्द का ही अपभ्रंश है, जिसका प्रयोग शीघ्र फल देने वाले ‘शिव’ के लिए किया जाता है।
लिंग पूजन एक प्राचीन परंपरा | Linga worship is an ancient tradition
भारत में लिंग पूजा की परम्परा लगभग आदिकाल से ही है। हिमालय के शिखरों से लेकर कन्याकुमारी तक हमारे यहां असंख्य शिवलिंग हैं, जिनमें से काफी बड़ी संख्या शिवालयों में प्रतिष्ठित है। विभिन्न स्थानों पर की गयी खुदायी में भी बड़ी मात्रा में शिवलिंग मिलते रहे हैं। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई में भी शिवलिंग मिले हैं, जो हमारे यहां लिंग पूजन की प्राचीन परम्परा को प्रमाणित करते हैं। और पढ़ें; शिव द्वादश ज्योतिर्लिंग
पुराणों में वर्णित शिवलिंग | Shivling in Puranas
पुराणों में शिवलिंग पूजन की विशद विवेचना है। शिवपुराण, लिंग पुराण, स्कन्दपुराण, मत्स्य पुराण, कूर्म पुराण और ब्रह्मांड पुराण तो मुख्य रूप में शैव साहित्य ही हैं, जिनमें लिंग पूजा की बड़ी महिमा प्रकट की गयी है। वाल्मीकि रामायण में भी लिंग-पूजा का स्पष्ट उल्लेख है। शिवभक्त रावण के लिए उसमें कहा गया कि ‘वह जहां-जहां जाता है, वहां स्वर्णलिंग भी जाता है और बालू की वेदी पर उसे पधराकर वह विधिवत पूजन करता है और लिंग के सामने नृत्य करता है। और पढ़ें: एकादश रूद्र (भगवान शिव के 11 स्वरुप)
‘महाभारत के अनुशासन पर्व में लिंगपूजन के अतिरिक्त, शिव कथाओं की भी विशद विवेचना है। विश्वव्यापी इस लिंग पूजन के पीछे अनेक प्रकार की विचारधाराएं रहीं। मूल भावना का सम्बन्ध संभवतः सृष्टि के प्रजनन से ही रहा, किन्तु उसका पूजन किसी न किसी देवता के रूप में ही किया गया। लिंगपूजन की दार्शनिक पृष्ठभूमि हमारे यहां कहीं अधिक मान्य और उल्लेखनीय रही है ।
शिवलिंग पूजन क्यों किया जाता है? | Why Shivling is worshipped?
‘लिंग’ का सामान्य अर्थ ‘चिह्न होता है। इस अर्थ में लिंग-पूजन, शिव के चिह्न या प्रतीक के रूप में ही होता है। प्रश्न उठता है कि लिंगपूजन केवल शिव का ही क्यों होता है, अन्य देवताओं का क्यों नहीं ? कारण यह है कि शिव को आदिशक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है, जिसकी कोई आकृति नहीं। इस रूप में शिव निराकार हैं।
कालांतर में शिव ने आकृति धारण की, कैलाश पर्वत पर निवास किया, सती और बाद में पार्वती से विवाह भी किया। उस स्थिति में उनकी प्रतिमाएं भी मिलती हैं और साकार रूप में उनका पूजन भी किया जाता है किन्तु निराकार स्वरूप में तो उनके चिह्न या प्रतीक का ही पूजन किया जा सकता है। और वही शिवलिंग है।
आदिशक्ति का ही विषय रूप है शिवलिंग | Shivalinga is the subject form of Adishakti
अगला प्रश्न शिवलिंग की आकृति का उठता है। भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड मूल रूप में केवल अंडाकार ज्योतिपुंज के रूप में था। वर्तमान विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार करता है। इसी ज्योतिपुंज को आदिशक्ति (या शिव) भी कहा जा सकता है, बाद में बिखरकर अनेक ग्रहों और उपग्रहों में बदल गयी। ‘एकोऽहम् बहुस्यामि’ का भी यही साकार रूप और प्रमाण है।
इस स्थिति में मूल अंडाकार ज्योतिपुंज का प्रतीक सहज रूप में वही आकृति बनती है, जिसको हम लिंग रूप में पूजते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से भी यदि हम सम्पूर्ण ब्रह्मांड की आकृति को देखें तो वह निश्चित ही शिवलिंग की आकृति से मिलती जुलती नजर आयेगी। इस तरह शिवलिंग का पूजन, वस्तुतः आदिशक्ति का और उस वर्तमान ब्रह्मांड का पूजन है, जो आदिशक्ति का ही बिखरा हुआ रूप है।
सृष्टि के रचयिता शिव | Shiva the creator of the universe
भारतीय संस्कृति के अनुसार ब्रह्मा इस सृष्टि के जन्मदाता हैं, विष्णु पालनकर्त्ता और शिव संहारकर्ता। फिर भी मूल रूप में ये तीनों शक्तियां एक ही हैं और वह हैं आदिशिव। शिव ने ही अपने को तीन अलग-अलग रूपों में बनाया हुआ है। इस प्रकार शिव ही सृष्टि को बनाने वाले हैं, वही उसका पालन करने वाले हैं और वही उसका विनाश करने वाले भी हैं। जब ब्रह्मांड में कहीं कुछ नहीं था, तब भी शिव थे और महाप्रलय के उपरान्त जब सब कुछ नष्ट हो जाएगा, तब भी शिव ही रहेंगे। इस अर्थ में भी लिंग शब्द की सार्थकता है। और पढ़ें: शिव भक्त उपमन्यु की कथा
स्कंदपुराण में कहा गया है। – “लयनाल्लिंगमुच्यते” अर्थात् ‘जिससे लय और प्रलय होता है, उसे ही लिंग कहते हैं।’ शिव के निराकार स्वरूप को शब्दों में प्रणव रूप (ॠ) माना जाता है। इसलिए ऋ के ऊपर के चन्द्र चिह्न के प्रतीक स्वरूप, शिवलिंग के ऊपर कुछ उभरा हुआ भाग रखा जाता है। मिट्टी से बने शिवलिंग पर भी मिट्टी की एक गोली बनाकर रखने का स्पष्ट विधान है।
शिवलिंग में त्रिदेवो (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के अतिरिक्त महादेवी पार्वती का भी निवास माना गया है। यह इस प्रकार है – नीचे की वेदी, महादेवी की प्रतीक हैं, शिवलिंग के नीचे के भाग में ब्रह्मा निवास करते हैं, मध्य में विष्णु और सबसे ऊपर स्वयं शिव का निवास माना गया है। और पढ़ें: मासिक शिवरात्रि: कथा और पजा विधि
शिवलिंग के विभिन्न रूप | Different forms of Shivling in Hindi
मन्दिरों में हमें सामान्यतः पाषाण (पत्थर) निर्मित लिंग ही मिले हैं, जिनकी लम्बाई चौड़ाई और पूजन की विस्तृत व्यवस्था शैव ग्रन्थों में दी हुई है। सर्वश्रेष्ठ लिंग बाण – लिंग माने जाते हैं, जो पवित्र नदियों में स्वनिर्मित रूप में प्राप्त होते हैं। नर्मदा नदी के तो सभी कंकर, शंकर माने गए हैं। इनका वजन आधा तोला से लेकर अस्सी मन तक का होता है। बाणासुर को दिये गए एक वरदान के अन्तर्गत ही इन्हें बाण लिंग का नाम मिला है।
शास्त्रों में अन्य अनेक वस्तुओं से बने लिंगों का भी उल्लेख है, जिनके पूजन से अलग अलग प्रकार के फल मिलते हैं। उदाहरणार्थ-
- पुष्पों से बने शिवलिंग का पूजन करने से भूमि लाभ होता है।
- रजोमय लिंग, विद्या देने वाला होता है ।
- अनाज से निर्मित लिंग, परिवार का सुख देता है।
- मिश्री से बने लिंग का पूजन करने से स्वास्थ्य लाभ होता है।
- लवण-लिंग, सौभाग्य देता है।
- गुड़-लिंग, प्रीति में वृद्धि करता है।
- नवनीत से निर्मित लिंग, कीर्ति तथा सौभाग्य देने वाला होता है । (8)
- स्वर्ण-लिंग, महामुक्ति देता है।
- रजत लिंग, विभूति देने वाला होता है।
- कांस्य तथा पित्तलमय लिंग से सामान्य मोक्ष मिलती है।
- सीसकादि से शत्रु नाश होता है और अष्टधातु का लिंग सर्वसिद्धि देने वाला होता है।
सअभार: साधना पथ (प्रो० योगेश चन्द्र शर्मा)