Swastika: जानें, स्वस्तिक का रहस्य
हिन्दू मान्यता में स्वस्तिक का विशेष महत्व है, पूजन अथवा किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वस्तिक बनाया जाता है।
स्वस्तिक क्या है? (What is Swastika)
The swastika symbol: स्वस्तिक (Swastika), हिंदुओ का एक महत्वपूर्ण मांगलिक प्रतीक चिन्ह है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है।
Meaning of Swastik: स्वास्तिक शब्द को ‘सु’ और ‘अस्ति’ का योग माना जाता है। इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला। अमरकोश’ में भी ‘स्वस्तिक’ का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा गया है।
स्वस्तिक कैसे बनाया जाता है? (How to Draw a Swastika, Swastika)
स्वस्तिक का आरंभिक आकार पूर्व से पश्चिम एक खड़ी रेखा और उसके ऊपर दूसरी दक्षिण से उत्तर आड़ी रेखा के रूप में तथा इसकी चारों भुजाओं के सिरों पर पूर्व से एक-एक रेखा जोड़ी जाती है। इसके बाद चारों रेखाओं के मध्य में एक बिंदु लगाया जाता है।
स्वस्तिक को 7 अंगुल, 9 अंगुल या 9 इंच के प्रमाण में बनाए जाने का विधान है। मंगल कार्यों के अवसर पर पूजा स्थान और दरवाजे की चौखट पर स्वस्तिक बनाने की परंपरा है।
स्वास्तिक (Swastika) 卐
स्वस्तिक का चिन्ह मंगल कामना का प्रतीक होने के अलावा भी कई प्रकार के अर्थ और सन्देश देता है। स्वस्तिक की रेखाओं का समकोण पर मिलना जीवन में संतुलन बनाये रखने का सन्देश है। स्वस्तिक की चार रेखाएं इन्हें भी इंगित करती हैं –
- ब्रह्मा के चार मुख
- चार वेद – ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अथर्ववेद
- चार आश्रम – ब्रहचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थान तथा सन्यास आश्रम
- चार युग – सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग और कलियुग
- चार वर्ण – ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शुद्र
- चार पुरषार्थ – धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष
हिन्दू धर्म मे स्वस्तिक का महत्व (importance of swastika in hinduism)
भारतीय संस्कृति में ओम (ॐ) और स्वस्तिक (卐) का विशेष महत्व माना गया है। किसी भी शुभ कार्य से पहले इन दोनों आकृति को बनाया जाता है। जिस प्रकार गणेश के बिना पूजा का आरंभ नहीं हो सकता उसी प्रकार लक्ष्मी की पूजा स्वस्तिक के बिना अधूरी मानी जाती है। और पढ़ें: गणेश जी का रहस्य
स्वस्तिक को सूर्य और विष्णु का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि स्वस्तिक ब्रह्मांड का प्रतीक है। इसके मध्य भाग को विष्णु की नाभि, चारों रेखाओं को ब्रह्मा जी के चार मुख और चारों हाथों को चार वेदों के रूप में माना गया है। और पढ़ें: भगवान विष्णु के दशावतार
किसी भी देवता या देवियों की पूजा करने से पहले कई प्रकार के चौक आंगन व पूजास्थल पर बनाए जाते हैं जिसके साथ स्वस्तिक बनाने की परम्परा है।
किस प्रकार करें वास्तु शास्त्र में स्वास्तिक का प्रयोग? (Swastik and Vastu shastra)
वास्तु शास्त्र की दृष्टि से भी स्वस्तिक का का विशेष महत्व है, आइए जानते है कि स्वस्तिक से वास्तु शास्त्र में कैसे लाभ ले सकते है-
मुख्य द्वार पर स्वस्तिक चिन्ह: घर घर के मुख्य द्वार पर लाल रंग का स्वस्तिक चिन्ह बनाने से मकान को नज़र नही लगता और वास्तु दोष में कमी आती है।
एकाग्रता के लिए: पढ़ाई में एकाग्रता के लिए अपने अध्यन कक्ष में अथवा सोने या चांदी में बना हुआ स्वस्तिक, लाल धागे में धारण करें।
वाहन पर स्वस्तिक: प्रायः किसी किसी के घरों में वाहन अथवा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जल्दी जल्दी खराब होते रहते है। ऐसे में नया उपकरण खरीदने पर उसमें स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर धूप-द्वीप दिखाए।
स्वस्तिक निर्माण (वाम और दक्षिण)
स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘स्वस्तिक’ कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है।
दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘वामावर्त स्वस्तिक’ कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ध्वज में यही ‘वामावर्त स्वस्तिक’ अंकित था, जो उसके पतन का कारण बनी।
हिन्दू धर्म के अनुसार दक्षिणमुखी स्वास्तिक विष्णु का प्रतीक है और वाममुखी स्वास्तिक काली का प्रतीक है।
ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है।
विदेशों में स्वस्तिक का प्रयोग (Swastika in other Countries)
स्वस्तिक को भारत में ही नहीं, अपितु विश्व के अन्य कई देशों में विभिन्न स्वरूपों में मान्यता प्राप्त है। जर्मनी, यूनान, फ्रांस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, अमेरिका, स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस और जापान आदि देशों में भी स्वस्तिक का प्रचलन किसी न किसी रूप में मिलता है।
प्राचीन समय से पश्चिमी देशों से आ रहे यात्रियों ने इस चिह्न को अपना लिया और उसे अपनी संस्कृति तक लेकर गए। इसी का परिणाम है कि दुनिया के एकदम अलग कोनों पर बसे देशों और एकदम अलग संस्कृति में भी ये प्रतीक चिह्न दिखता है। पुरातत्ववेत्ताओं को खुदाई के दौरान चीन, मंगोलिया से लेकर जापान, ब्रिटेन और अमेरिका में भी स्वस्तिक का चिन्ह मिल चुका है।
विश्व को विभिन्न संस्कृतियों में विभिन्न समस्याओं के रूप में स्वास्तिक चिन्ह मंगल कामना का प्रतीक माना गया है। स्वास्तिक कितना प्राचीन है विश्व में इसका जन्म कहा और कैसे हुआ तथा प्रसार एवं विकास कैसे हुआ ? यह एक शोध का विषय है।
अमेरिका के प्रसिद्ध विद्धान थामस विल्सन का मत है कि स्वास्तिक का जन्म यदि भारत में हुआ है। तो यह निश्चय है कि अमेरिका और यूरोप में इसका प्रचार बौद्ध धर्म के उदय से पहले 1600 ई. पूर्व में हुआ होगा।
अमेरिका और जर्मन में स्वस्तिक : द्वितीय विश्वयुद्ध के समय एडोल्फ हिटलर ने उल्टे स्वस्तिक का चिह्न अपनी सेना के प्रतीक के रूप में शामिल किया था। सभी सैनिकों की वर्दी एवं टोपी पर यह उल्टा स्वस्तिक चिह्न अंकित था। उल्टा स्वस्तिक ही उसकी बर्बादी का कारण बना। संयुक्त राज्य अमेरिका की आधिकारिक सेना के नेटिव अमेरिकन की एक 45 वीं मिलिट्री इन्फैंट्री डिवीजन का चिह्न एक पीले रंग का स्वस्तिक था। नाजियों की घटना के बाद इसे हटाकर उन्होंने गरूड़ का चिह्न अपनाया।
जैन धर्म मे स्वस्तिक (Swastik in jain Dharma)
जैन धर्म में स्वस्तिक: जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों और उनके चिह्न में स्वस्तिक को शामिल किया गया है। जैन लेखों से संबंधित प्राचीन मंदिरों की दीवारों पर भी यह स्वस्तिक प्रतीक अंकित मिलता है।
बौद्ध धर्म मे स्वस्तिक: बौद्ध धर्म में स्वस्तिक को शुभता और अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। भगवान बुद्ध के ह्रदय हथेली और पैरों पर स्वस्तिक चिन्ह अंकित रहता है।
ईसाई धर्म मे स्वस्तिक: यहूदी और ईसाई धर्म में भी स्वस्तिक का महत्व है। ईसाई धर्म में स्वस्तिक क्रॉस के रूप में चिह्नित है। एक ओर जहां ईसा मसीह को सूली यानी स्वस्तिक के साथ दिखाया जाता है तो दूसरी ओर यह ईसाई कब्रों पर लगाया जाता है। स्वस्तिक को ईसाई धर्म में कुछ लोग पुनर्जन्म का प्रतीक मानते हैं।