लिंग पुराण
लिंग पुराण, हिंदुओं के 18 पुराणों में से एक हैं। यह एक शैव प्रधान पुराण है। यह पुराण दो भागों में विभक्त है। 163 अध्यायों में 11 हजार श्लोकों से संयुक्त इस पुराण में शिव की महिमा का विस्तार से वर्णन है।
The Ling Puran or Linga Purana is one of the eighteen Mahapuranas, and a Shaivism text of Hinduism. The text’s title Linga refers to the iconography for Shiva.
श्री लिंग पुराण / लिंग महापुराण
लिंग पुराण (Ling Puran in Hindi)
लिंग पुराण, हिन्दुओं के पवित्र 18 पुराणों में से एक पुराण है। पुराणों की सूची में इसका स्थान ग्यारहवा है। यह एक शैव पुराण है। व्यास ऋषि द्वारा रचित भगवान शिव का महात्म्य बताने वाले इस ग्रंथ में कुल 11,000 श्लोक है ।
अट्ठारह पुराणों में भगवान महेश्वर की महान महिमा का बखान करने वाला लिंग पुराण विशिष्ट पुराण कहा गया है। भगवान शिव के ज्योर्तिलिंगों की कथा, ईशान कल्प के वृत्तान्त सर्वविसर्ग आदि दश लक्षणों सहित वर्णित है। और पढ़ें: जनियें, शिवलिंग का रहस्य
लिंग शब्द का अर्थ (Meaning of Ling)
“लिंग” शब्द के विषय में आधुनिक समाज में बड़ी भ्रांति है। लिंग शब्द को कुछ लोग दूसरे अर्थ में प्रयोग करने की अशिष्टता पूर्ण मनोवृति रखते हैं। परंतु लिंग शब्द का अर्थ चिन्ह या प्रतीक है।
भगवान शंकर जो स्वयं आदि पुरुष है, लिंग उनकी ज्योतिः स्वरूप चिन्मय शक्ति का प्रतीक हैं। इस लिंग ने सृष्टि के कल्याणार्थ प्रकट होकर स्वयं ब्रह्मा और विष्णु जैसे अनादि शक्तियों को भी आश्चर्य में डाल दिया था।
लिंग पुराण में क्या है? (What is in Ling Puran In Hindi)
देवधिदेव भगवान शंकर की महिमा से युक्त लिंग पुराण (Ling Puran) 18 पुराणों में अपना विशेष महत्व रखता हैं। इसमे भूत भावन परम कृपालु शंकरजी के ज्योतिर्लिंगों के उद्भव की परम पावन कथा है। इसमें ईशान कल्प का वृतांत, सम्पूर्ण सर्ग, विसर्ग आदि दशा लक्षणों से युक्त लोक कल्याण के लिए कहा गया है।
भगवान वेद व्यास द्वारा रचित इस ग्रंथ में पहले योग का आख्यान फिर कल्प का आख्यान है। इसके बाद लिंग का प्रादुर्भाव तथा उसकी पुजा बताई गई है, सनत्कुमारऔर शैलादी के बीच सुंदर संवाद का वर्णन है। फिर दधीचि का चरित्र तथा युग धर्म का वर्णन है। इसके उपरांत आदि सर्ग का विस्तार से कथन तथा त्रिपुरा का आख्यान है।
इसमे लिंग प्रतिष्ठा, पशुपाश विमोचन, विश्वव्रत सदाचार, निरूपण,प्रायश्चित, अरिष्ट काशी एवं श्री शैल का वर्णन, अंधकासुर की कथा, वाराह भगवान का चरित्र, नरसिंघ चरित्र, जलंधर का वध, शिवजी के हज़ार नाम, कामदेव दहन, पार्वती विवाह, गणेश की कथा, शिव तांडव का वर्णन एवं उपमन्यु की कथा आदि इस पुराण की पूर्वार्ध की कथा हैं।
अमरीश की कथा, सनत्कुमार एवं नंदिश की बीच का संवाद, शिव महात्म्य के साथ-साथ स्नान योग आदि का निरूपण, सूर्य पूजा विधि, मोक्ष देने वाली शिव की पूजा, दान के विविध प्रकार, श्राद्ध, शिवजी की प्रतिष्ठा और अघोर के गुण, प्रभाव एवं नामों का कीर्तन, व्रजेश्वरी महाविध्या और गायत्री की महिमा, त्रयम्ब्क महात्म्य तथा पुराण सुनने का महात्म्य आदि का सुखद वर्णन हैं।
कथा का आरंभ (Story of Ling Puran)
पवित्र लिंग पुराण (Ling puran) कथा का आरंभ नैमिष में सूत जी की वार्ता से होता है कथा कुछ इस प्रकार है-
एक समय देवर्षि नारद भ्रमण करते हुए नैमिषारण्य में जा पहुँचे वहाँ पर ऋषियों ने उनका स्वागत अभिनन्दन करने के उपरान्त लिंगपुराण के विषय में जानने की जिज्ञासा व्यक्त की। नारद जी ने उन्हें अनेक अद्भुत कथायें सुनायी। उसी समय वहाँ पर सूत जी आ गये। उन्होंने नारद सहित समस्त ऋषियों को प्रणाम किया। ऋषियों ने भी उनकी पूजा करके उनसे लिंग पुराण के विषय में चर्चा करने की जिज्ञासा की।
उनके विशेष आग्रह पर सूत जी बोले कि शब्द ही ब्रह्म का शरीर है और उसका प्रकाशन भी वही है। एकाध रूप में ओम् ही ब्रह्म का स्थूल, सूक्ष्म व परात्पर स्वरूप है। ऋग साम तथा यर्जुवेद तथा अर्थववेद उनमें क्रमशः मुख जीभ ग्रीवा तथा हृदय हैं। वही सत रज तम के आश्रय में आकर विष्णु, ब्रह्म तथा महेश के रूप में व्यक्त हैं, महेश्वर उसका निर्गुण रूप है।
ब्रह्मा जी ने ईशान कल्प में लिंग पुराण की रचना की। मूलतः सौ करोड़ श्लोकों के ग्रन्थ को व्यास जी ने संक्षिप्त कर के चार लाख श्लोकों में कहा। आगे चलकर उसे अट्ठारह पुराणों में बाँटा गया जिसमें लिंग पुराण का ग्यारहवाँ स्थान है। अब मैं आप लोगों के समक्ष वही वर्णन कर रहा हूँ जिसे आप लोग ध्यानपूर्वक श्रवण करें।
लिंग पुराण का महत्व (Importance of Ling puran in Hindi)
भगवान महेश्वर की महान महिमा का बखान करने वाला लिंग पुराण (Ling puran) विशिष्ट पुराण है। इसमें भगवान शिव के ज्योर्ति लिंगों की कथा, ईशान कल्प के वृत्तान्त सर्वविसर्ग आदि दशा लक्षणों सहित वर्णित है। वेदव्यास कृत इस पुराण में पहले योग फिर कल्प के विषय में बताया गया है।
नारद पुराण के अनुसार-“लिंग पुराण शिव पुराण का पूरक ग्रंथ हैं और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पदार्थों को देने वाला है।”
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