लुई ब्रेल (Louis Braille)
लुई ब्रेल, फ्रांस के शिक्षाविद और अविष्कारक थे। इन्होंने नेत्रहीनों के लिये लिखने तथा पढ़ने की प्रणाली विकसित की। यह पद्धति ‘ब्रेल’ नाम से जगप्रसिद्ध है।
लुई ब्रेल (Louis Braille Wiki)
नाम | लुई ब्रेल (Louis Braille) |
जन्म | 4 जनवरी 1809 पेरिस (फ्रांस) |
मृत्यु | 6 जनवरी 1852 |
पिता | सायमन ब्रेल |
माता | मोनिका ब्रेल |
प्रसिद्धि | आविष्कारक, नेत्रहीनों की लिपि |
विवाह | अविवाहित |
लुई ब्रेल जीवनी (Louis Braille Story, History, Biography in hindi)
हर साल 4 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस बनाया जाता हैं क्योंकि इसी दिन ब्रेल लिपि ला आविष्कार करने वाले लुई ब्रेल का जन्मदिन होता है
लुई ब्रेल का जन्म 4 जनवरी 1809 को फ्रांस की राजधानी पेरिस से 40 किलोमीटर दूर कूपर गांव में में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। पिता सायमन ब्रेल घोड़ों की जीन बनाने का एक बनाने का कार्य किया करते थें। मोनिका ब्रेल एक घरेलू एक घरेलू महिला थी।
लुई ब्रेल कैसे अंधे हुए? (How did Louis Braille go blind)
अपने पिता के चमडे के उद्योग में उत्सुकता रखने वाले लुई ने अपनी आखें एक दुर्घटना में गवां दी। यह दुर्घटना लुई के पिता की कार्यशाला में घटी।
तीन वर्षीय लुई अपने नजदीक उपलब्ध वस्तुओं के साथ खेलता रहता था। एक दिन भाई बहनों के साथ खेलते हुए काठी की लकड़ी को काटते में इस्तेमाल किया जाने वाली चाकू लुई की आंख में जा लगी।
लुई की घर में ही साधारण जडी लगाकर आँख पर पट्टी कर दी गयी। शायद यह माना गया होगा कि छोटा बालक है चोट स्वतः ठीक हो जायेगी। बालक लुइस की आंख के ठीक होने की प्रतीक्षा की जाने लगी।
कुछ दिन बाद बालक लुइस ने अपनी दूसरी आंख से भी कम दिखलायी देने की शिकायत की परंतु उसके पिता साइमन की लापरवाही के चलते बालक की आँख का समुचित इलाज नहीं कराया गया।
एक आंख की रोशनी हमेशा के लिए चली गई। उस आंख में हुए संक्रमण की वजह से कुछ दिन बाद दूसरे आंख से भी दिखना कम हो गया और आठ वर्ष का पूरा होने तक पूरी तरह दृष्टि हीन हो गया। रंग बिरंगे संसार के स्थान पर उस बालक के लिये सब कुछ गहन अंधकार में डूब गया।
शिक्षा और प्रारम्भिक जीवन (Early Life and Education)
यह बालक कोई साधरण बालक नहीं था। औसत लंबाई, सौम्य व्यक्तित्व और दयालु स्वभाव के लुई उत्कृष्ट पियानो वाचक भी था।
उसके मन में संसार से लडने की प्रबल इच्छाशक्ति थी। उसने हार नहीं मानी और फ्रांस के मशहूर पादरी बैलेन्टाइन की शरण में जा पहुंचा।
पादरी बैनेन्टाइन के मार्ग दर्शन से पिता ने 10वर्षीय लुइस का दाखिला सन 1819 में पेरिस के ‘रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्ड्रन’ में भर्ती करा दिया। ब्रेल ने यहां इतिहास, भूगोल ओर गणित की पढ़ाई की।
उस स्कूल में वेलन्टीन हाऊ द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी लेकिन यह लिपि अधूरी थी।
लुई ब्रेल ने ब्रेल लिपि की खोज कैसी की? (How did Louis Braille invent Braille system)
एक बार फ्रांस की सेना के एक कैप्टन प्रशिक्षण के सिलसिले में लुई के स्कूल आए और उन्होंने सैनिकों द्वारा अंधेरे में पढ़ी जाने वाले नाइट राइटिंग या सोनोग्राफी लिपि के बारे में बताया। यह लिपि कागजों पर अक्षरों को उभारकर बनाई जाती थी और इसमें 12 बिंदुओं को 6 – 6 की पंक्ति में रखा जाता था। लेकिन इसमें संख्या, विराम चिन्ह, गणितीय चिन्ह का अभाव था।
अपनी मुलाकात के दौरान बालक ने कैप्टेन द्वारा सुझायी गयी कूटलिपि में कुछ संशोधन प्रस्तावित किये। कैप्टेन चार्लस बार्बर उस अंधे बालक का आत्मविश्वाश देखकर दंग रह गये। अंततः पादरी बैलेन्टाइन के इस शिष्य के द्वारा बताये गये संशोधनों को उन्होंने स्वीकार किया।
कालान्तर में स्वयं लुइस ब्रेल ने 8 वर्षो के अथक परिश्रम से इस लिपि में अनेक संशोधन किये और अंततः सन 1829 में छह बिन्दुओ पर आधारित ऐसी लिपि बनाने में सफल हुये।
तेज़ दिमाग वाले लुई ब्रेल ने इस लिपि के आधार पर 12 की बजाय केवल छह बिंदुओं का इस्तमाल कर 64 अक्षर और चिन्ह बनाए तथा उसमे विराम चिन्ह, गणितीय चिन्ह के अलावा संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते थे।
लुई ब्रेल लिपि को नेत्रहीन व्यक्ति के लिपि के रूप में मान्यायता प्राप्त करवाना चाहते थे। लेकिन लुइस ब्रेल द्वारा आविष्कृत इस लिपि को तत्कालीन शिक्षाशाष्त्रियों द्वारा मान्यता नहीं दी गयी। सेना के द्वारा उपयोग में लाये जाने के कारण इस लिपि केा सेना की कूटलिपि ही समझा गया।
परन्तु लुइस ब्रेल ने हार नहीं मानी और पादरी बैलेन्टाइन के सहयोग से इस अविष्कृत लिपि को दृष्ठि हीन व्यक्तियों के मध्य लगातार प्रचारित किया। चूंकि लुई को गणित व्याकरण और भूगोल जैसे विषय में उन्हें महारत हासिल थी। इसलिए बाद में उसी स्कूल में लुई ब्रेल शिक्षक के रूप में नियुक्त हो गए।
लुई ब्रेल की मृत्यु कब हुई? (When did Braille die?)
6 जनवरी 1852 को मात्र 43 वर्ष की आयु में बुखार से उनका निधन हो गया। उन्हें उनके पैतृक गांव कूपवराय में दफनाया गया था
लुई ब्रेल की मृत्यु के 16 वर्ष बाद 1968 में रॉयल इंसिट्यूट ऑफ ब्लाइंड ने इस लिपि को मान्यता दी।1984 से यह लिपि आज दुनिया के लगभग सभी देशों में प्रयोग की जाती हैं।
लुई ब्रेल को सम्मान (Awards and Houners)
उनकी 100 वी पुण्य तिथि पर 1952 में दुनिया भर के अखबारों में उनपर लेख छपे, डाक टिकट जारी हुए ओर उनके घर को संग्रहालय का दर्जा दिया गया ।
हमारे देश में ब्रेल लिपि में नेत्रहीन स्कूली बच्चो के लिए पाठयपुस्तकों के आलावा रामायण, महाभारत जैसे ग्रन्थ छपते है। ब्रेल लिपि में कई पुस्तकें भी प्रकाशित होती है।
भारत सरकार ने लुई ब्रेल पर डाक टिकट जारी किया
लूइस द्वारा किये गये कार्य अकेले किसी राष्ट्र के लिये न होकर सम्पूर्ण विश्व की दृष्ठिहीन मानव जाति के लिये उपयोगी थे। भारत सरकार ने सन 2009 में लुई ब्रेल के जन्म के 200 वर्ष होने के अवसर पर डाक टिकट जारी किया था।