बिरजा शक्तिपीठ, उड़ीसा
Short Introduction :- The Biraja Temple, or Birija Kshetra is a historic Hindu temple located in jajpur (about 125 kilometres) north of Bhubaneswar, Odisha, India. Biraja or Viraja Temple is one of the important Maha Shakthi Peetas.
बिरजा मंदिर, या बिरिजा क्षेत्र एक ऐतिहासिक हिंदू मंदिर है, जो भुवनेश्वर से 152 किलोमीटर उत्तर में, जाजपुर उड़ीसा में पड़ता है। बिरजा या विरजा मंदिर महत्वपूर्ण महाशक्ति पीठों में से एक है। यहाँ मुख्य मूर्ति दुर्गा देवी को गिरिजा (विराज) और भगवान शिव को जगन्नाथ के रूप में पूजा की जाती है।
बिराजा देवी शक्तिपीठ, उड़ीसा (Biraja Devi Temple, Odisha in Hindi)
बिराजा (विराजा) देवी मंदिर (Biraja Temple) भारत के ओडिशा राज्य के जाजपुर जनपद में स्थित एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह मंदिर हिन्दुओ के पवित्र 51 शक्तिपीठ में से एक है मान्यता यहां देवी सती का नाभि गिरा था।
इस शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री देवी को बिराजा (विराजा) या देवी गिरिजा के नाम से पूजा जाता है, जो दुर्गा की दिव्य मूर्ति के रुप में यहां विराजमान हैं, जबकि देवी सती के साथ विराजमान भगवान शिव या भैरव भगवान जगन्नाथ के रुप में पूजे जाते हैं।
महात्म्य (Greatness)
जाजपुर एक प्राचीन हिंदू तीर्थस्थल है, जिसका नाम राजा जजाति केशरी के नाम पर पड़ा था। यह क्षेत्र प्राचीन समय से ही बिराजय / विराज क्षेत्र के रुप में विख्यात् रहा है। ओडिशा का यह पवित्र शहर ब्रह्मा के पंचक्षेत्रों में से एक माना जाता है, जो प्रसिद्ध दशाश्वमेध नामक यज्ञ की पावन-स्थली भी रहा चुका है। विमला देवी के कारण इस क्षेत्र को विमलपुरी भी कहा जाता है।
जाजपुर को पौराणिक कथाओ में “वैतरणी तीर्थ” कहा जाता है। यहां के प्रसिद्ध मंदिरों में बिराजा देवी मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, बराह, मंदिर, राम मंदिर, किलातेश्वर मंदिर, वरुणेश्वर मंदिर, सिद्धेश्वर मंदिर, वेलेश्वर मंदिर, छत्तिया बाता मंदिर और दशाश्वमेध घाट आदि प्रमुख हैं।
मान्यता है कि बिराजा देवी मंदिर के नवी गया में भक्तों द्वारा अर्पित किया गया चढ़ावा सीधे गंगा सागर (बंगाल की खाड़ी) तक पहुंच जाता है।
पौराणिक कथा (Mythology & Legends)
बिरजा (गिरिजा) क्षेत्र में प्रसिद्ध मान्यता अनुसार एक बार भगवान् ब्रह्मा ने वैतरणी नदी के तट पर एक यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ से प्रसन्न होकर देवी पार्वती, यज्ञ कुंड से महिषासुरमर्दिनी के रूप में प्रकट होती है। और उसी स्थान पर भगवान् माहदेव के साथ विराजमान होने की विन्नति स्वीकार कर लेती है।
माँ पार्वती ने एक द्विभुजी देवी का रूप धारण कर लेती है, जिनके एक हाथ से महिषासुर की पूंछ और दूसरे हाथ में एक त्रिशूल धारण किए हुए है, जो दानव के सीने में घुसा हुआ है। देवी अपने मस्तिष्क से नवदुर्गा, आठ चंडिकाओं, चौंसठ योगिनियों की उत्पत्ति कर उस क्षेत्र में स्थापित कर दिया।
क्षेत्र के रक्षक के रूप में प्रत्येक कोने पर एक-एक शिवलिंग की स्थापना कर दी। पश्चिमी कोने पर उत्तरेश्वर/विल्वेश्वर, दक्षिण-पूर्वी कोने पर वरुणेश्वर और उत्तर-पूर्वी कोने पर किलाटेश्वर/किलटेश्वर महादेव। और माँ बिरजा स्वयं इस त्रिकोण के मध्य में विराजमान हो गईं। इस प्रकार यह स्थान एक पावन तीर्थ के रूप में पूजा जाता है।
बिरजा मंदिर का इतिहास (History of The Biraja Temple)
बिरजा मंदिर (Biraja Temple ) की स्थापना वर्ष संदर्भ में कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नही है। लेकिन शक्तिपीठ होने के कारण बिराजा (विराजा) देवी मंदिर अंत्यन्त प्राचीन इस बात में कोई संदेह नही है। मध्ययुगीन काल से बिरजा क्षेत्र एक शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध होने लगा था।
बिरजा मंदिर परिसर और वास्तु ( Biraja Temple Complex & Architecture)
बिराजा देवी मंदिर (Biraja Temple) का परिसर अत्यंत विशाल है, जहां बहुत सारे शिवलिंग और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां शोभायमान हैं। जिसके गर्भगृह में शेर पर सवार बिराजा देवी (दुर्गा)) के एक हाथ से महिषासुर की पूंछ और दूसरे हाथ में एक त्रिशूल धारण किए हुए है, जो दानव के सीने में घुसा हुआ है।
लेखक:- Gvat