माँ कमला (महाविद्या-10)
लक्ष्मी (Laxmi) या कमला धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। यह भगवान विष्णु की पत्नी है। इन्हें धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। इनका उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद के श्री सूक्त में मिलता है।
श्री कमला लक्ष्मी (महाविद्या-10)
नाम | कमला, लक्ष्मी |
संबंध | देवी, महाविमातंगी द्या |
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निवासस्थान | बैकुंठ |
अस्त्र | कमल |
जीवनसाथी | विष्णु |
सवारी | उल्लू |
मंत्र | श्री कमलायै नमः |
सम्बंधित लेख | 1- काली, 2- तारा, 3- त्रिपुरा, 4- भुवनेश्वरी 5- छिन्नमस्ता, 6-भैरवी, 7-धूमावती, 8- बगलामुखी, 9- मातंगी |
देवी लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) को कमला या षोडशी भी कहा जाता है। भगवान नारायण (विष्णु) की पत्नी होने के कारण इन्हें नारायणी भी कहते हैं। भार्गवों के द्वारा पूजित होने के कारण इनका एक नाम भार्गवी हैं।
धूमावती और कमला में प्रतिस्पर्धा है क्योंकि धूमावती ज्येष्ठा और कमला कनिष्ठा है धूमावती को विधवा माना जाता है और अलक्ष्मी तथा भूखी माँ भी कहते हैं। धूमावती अवरोहिणी हैं तथा इन्हें आसुरी भी माना जाता है। इसके विपरीत कमला सधवा हैं और इन्हें लक्ष्मी कहते हैं। ये रोहिणी हैं तथा इन्हें दिव्या माना जाता है।
कमला लक्ष्मी उत्तप्ति कथा
यूँ तो सभी महाविद्याएँ आदि अन्त से रहित हैं फिर भी इनके प्रादुर्भाव को विभिन्न प्राच्य विद्वानों ने अपने अपने ज्ञानानुसार प्रकट किया है। जिसके अनुसार समुद्र-मंथन के समय धन्वन्तरी जी के बाद उच्चैःश्रवा-घोड़ा फिर ऐरावत तत्पश्चात् लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव हुआ था।
श्रीमद्धागवत के आठवें स्कन्ध के आठवें अध्याय में कमला के उद्भव की विस्तृत कथा है। जिसके अनुसार देवताओ और असुरों के द्वारा अमृत-प्राप्तिके उद्देश्य से किये गये समुद्र-मन्थनके फलस्वरूप इनका प्रादुर्भाव हुआ था। इन्होंने भगवान् विष्णुको पतिरूप में वरण किया था।
भगवती कमला वैष्णवी शक्ति हैं तथा भगवान् विष्णु की लीला सहचरी हैं। ये एक रूप में समस्त भौतिक या प्राकृतिक सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं और दूसरे रूप में सच्चिदानन्दमयी लक्ष्मी हैं। देवता, प्रजापति और प्रजा सभी इनकी कृपा-दृष्टि से शील आदि उत्तम गुणों से सम्पन्न होकर सुखी हो जाते हैं।
महाविद्याओं में ये दसवें स्थान पर परिगणित हैं। इसलिये आगम और निगम दोनों में इनकी उपासना समानरूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, सिद्ध और गन्धर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिये लालायित रहते हैं।
माता का स्वरूप
माता महालक्ष्मी के अनेक रूप है जिसमें से आठ स्वरूप प्रसिद्ध है। इसे अष्टलक्ष्मी भी कहते है-
- आदि लक्ष्मी
- धन लक्ष्मी
- विद्या लक्ष्मी
- धान्य लक्ष्मी
- धैर्य लक्ष्मी
- संतान लक्ष्मी
- विजय लक्ष्मी
- राज लक्ष्मी
लक्ष्मी की कान्ति सुवर्ण के समान है। हिमालय के सदृश श्वेत वर्ण के चार हाथी अपने सूंड में चार सुवर्ण कलश लेकर इन्हें स्नान करा रहे हैं। वह कमल के आसन पर विराजमान है। कमल कोमलता का प्रतीक है। लक्ष्मी के एक मुख, चार हाथ हैं। वे एक लक्ष्य और चार प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं।
अपनी दो भुजाओं में वर एवं अभय मुद्रा तथा दो भुजाओं में दो कमल पुष्प धारण की हैं। दान मुद्रा से उदारता तथा आशीर्वाद मुद्रा से अभय अनुग्रह का बोध होता है। दो कमल-सौंदर्य और प्रामाणिकता के प्रतीक है।
इनके सिर पर सुन्दर किरीट तथा तन पर रेशमी परिधान सुशोभित है। ये कमलके सुन्दर आसनपर आसीन हैं। वाहन-उलूक, निर्भीकता एवं रात्रि में अँधेरे में भी देखने की क्षमता का प्रतीक है।
कमला मन्त्र
वैसे तो देवी कमला के विभिन्न शास्त्रों और तांत्रिक ग्रंथो में वर्णित है, लेकिन हम यहां कुछ ऐसे मंत्र दे रहे है, जिसमें लंबी चौड़ी विधि विधान की आवश्यकता नही है। आप निम्न में से किसी भी एक मंत्र का जाप कर सकते है-
१. श्रीं।
२. श्री कमलायै नमः ॥
कमला ध्यान
कान्त्या काञ्चनसन्निभां हिमगिरिप्रख्यैश्चतुर्भिर्गजे- ह्हस्तोत्क्षिप्तहिरण्मयामृतघटैरासिच्यमानां श्रियम् ॥ विभ्राणां वरमब्जयुग्ममभयं हस्तैः किरीटोज्ज्वलां। क्षौमाबद्धनितम्बबिम्बललितां वन्देऽरविन्दस्थिताम् ॥
कमला लक्ष्मी उपासना से लाभ
समृद्धि की प्रतीक महाविद्या कमला की उपासना स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति तथा नारी-पुत्रादि के प्राप्ति लिये की जाती है।
कमलगट्टों की माला पर श्री मन्त्र का जप, बिल्वपत्र तथा बिल्वफल के हवन से कमला की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसके अलावा लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भगवान् आद्य शंकराचार्य के द्वारा विरचित कनकधारा स्तोत्र और श्रीसूक्त का भी पाठ किया जाता है।