महर्षि अगस्त्य (Maharshi Agastya)
महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे। इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। इनका जन्म श्रावण शुक्ल पंचमी मेंं काशी में हुआ था। वर्तमान में वह स्थान अगस्त्यकुंड के नाम से प्रसिद्ध है।
Maharshi Agastya Biography in Hindi / Wiki
नाम | अगस्त्य |
जन्म | श्रावण शुक्ल पंचमी |
पिता | पुलस्त्य ऋषि |
संबंध | ऋषि, सप्तर्षि |
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जीवनसाथी | लोपामुद्रा |
सम्बंधित लेख | सप्तऋषि, ऋषि पंचमी व्रत, रामायण के प्रमुख पात्र |
ऋषि अगस्त्य जन्म कथा (Story of Maharshi Agastya Birth)
ऋषि अगस्त्य वेदी के मंत्रदृष्टा ऋषि थे जिनको उत्पत्ति के बारे में बहुत-सी किवदन्तियाँ मिलती है। कुछ मतानुसार वे मित्र तथा वरुण के साथ घड़े में उत्पन्न हुये थे।
जबकि कुछ लोग उन्हें पुलस्त्य की पत्नी हविर्भू के गर्भ से उत्पन्न मानते हैं। इनके प्रारम्भिक जीवन के बारे में बहुत विस्तृत सूचना नहीं मिलती।
अगस्त्य ऋषि की पत्नी थी लोपा मुद्रा (Agastya Rishi Wife)
अगस्त्य ऋषि की पत्नी का नाम लोपामुद्रा मिलता है जो विदर्भराज की पुत्री थीं। इसके बारे में यह कथा मिलती है कि-
एक बार ऋषि अगस्त्य ने घूमते हुये कुछ लोगों की मुँह नीचे किये एवं लटके हुए देखा। पता करने पर ज्ञात हुआ कि वे उनके पितर थे तथा उनके उद्धार हेतु जरूरी था कि अगरस्य सन्तानोत्पत्ति करते इसलिए उन्होंने लोपामुद्रा को अपनी पत्नी स्वीकारा।
अगस्त्य मुनि का योगदान (Contribution of agstya Muni)
ऋग्वेद के अनेक मंत्र इनके द्वारा दृष्ट हैं। महर्षि अगस्त्य ने ही ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तों को बताया था। साथ ही इनके पुत्र दृढ़च्युत तथा दृढ़च्युत के बेटा इध्मवाह भी नवम मंडल के 25वें तथा 26वें सूक्त के द्रष्टा ऋषि हैं।
महर्षि अगस्त्य को पुलस्त्य ऋषि का बेटा माना जाता है। उनके भाई का नाम विश्रवा था जो रावण के पिता थे। पुलस्त्य ऋषि ब्रह्मा के पुत्र थे।
अगस्त्य ने विध्याचल पर्वत का घमंड चूर किया
अगस्त्य के बारे में कहा जाता है कि एक बार इन्होंने अपनी मंत्र शक्ति से समुद्र का समूचा जल पी लिया था, विंध्याचल पर्वत को झुका दिया था और मणिमती नगरी के इल्वल तथा वातापी नामक दुष्ट दैत्यों की शक्ति को नष्ट कर दिया था।
हिमालय के ही समान विध्याचल दक्षिण भारत के उत्तर में फैला हुआ था। एक बार विन्ध्याचल पर्वत को घमण्ड बहुत बढ़ गया था तथा उसने अपनी ऊँचाई बहुत बढ़ा दी जिस कारण सूर्य की रोशनी भी पृथ्वी पर पहुँचनी बन्द हो गई तथा प्राणियों में हाहाकार मच गया।
विध्याचल अगस्त्य मुनि के शिष्य थे। अतः सूर्यादि समस्त देवताओं ने महर्षि से अपने शिष्य को समझाने की प्रार्थना की। तब अगस्त्य मुनि ने विंध्याचल के घमंड चूर करने के लिए एक युक्ति लगायी।
उन्होंने विंध्याचल पर्वत से कहा कि उन्हें दक्षिण में जाना है। उन्हें मार्ग दें। विंध्याचल अपने गुरु के आगे नतमस्तक हो गया और अपना आकर छोटा कर दिया, महर्षि ने उसे कहा कि “जब तक मैं दक्षिण देश से न लौटूँ, तब तक तुम ऐसे ही निम्न बनकर रुके रहो।” फिर अगस्त्य जी लौटे ही नहीं।
अत: विन्ध्य पर्वत उसी प्रकार निम्न रूप में स्थिर रह गया और भगवान सूर्य का सदा के लिये मार्ग प्रशस्त हो गया।
महर्षि अगस्त्य के प्रसिद्ध आश्रम और मंदिर (Famous Ashram and Temple of Agastya Rishi)
महर्षि अगस्त्य के भारतवर्ष में अनेक आश्रम हैं। एक उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग नामक जिले के अगस्त्यमुनि नामक शहर में है। यहाँ महर्षि ने तप किया था। तथा आतापी-वातापी नामक दो असुरों का वध किया था। आश्रम स्थान पर वर्तमान में एक मन्दिर है।
अगस्त्य शिव के भक्त थे। उन्होंने उज्जैन में शिव जी उपासना की थी। वर्तमान में वहाँ ‘अगस्त्येश्वर’ नामक प्रसिद्ध शिव मन्दिर है।
भगवान श्रीराम ने भी ऋषि अगस्त्य को वन जाते समय उनके आश्रम में दर्शन दिया और दिवयास्त्र प्रदान कर उनका स्वागत सत्कार किया। राम के वापस लौटने एवं राज्याभिषेक के मौके पर स्वतः ऋषि अगस्त्य वहाँ उपस्थित थे।
दूसरा आश्रम महाराष्ट्र के नागपुर जिले में है। यहाँ महर्षि ने रामायण काल में निवास किया था। श्रीराम ने वनवास काल मे यही अगस्त्य मुनि से भेंट की थी। महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को इस कार्य हेतु कभी समाप्त न होने वाले तीरों वाला तरकश प्रदान किया था।
एक अन्य आश्रम तमिलनाडु के तिरुपति में है। पौराणिक मान्यता के अनुसार विंध्याचल पर्वत को लांघकर जब अगस्त्य दक्षिण को चले गए थे। उसके पश्चात यही आश्रम बनाकर उन्होंने तप किया था।