महर्षि भारद्वाज (Maharshi Bhardwaj)
महर्षि भारद्वाज प्राचीन भारतीय ऋषि थे। इनकी गणना सप्तऋषियों में होती है। ऋक्तंत्र के अनुसार वे ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद वे चौथे व्याकरण-प्रवक्ता थे। चरक संहिता के अनुसार भारद्वाज ने इन्द्र से आयुर्वेद का ज्ञान पाया।
महर्षि भारद्वाज
नाम | महर्षि भारद्वाज |
पिता | बृहस्पति |
माता | ममता |
पदवी | हिंदु ऋषि, सप्तऋषि |
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अन्य जानकारी | महर्षि भारद्वाज ऋग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा कह गये हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। विमान शास्त्र के रचियता। |
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महर्षि भारद्वाज जन्म कथा, जीवनी (Maharshi Bharadwaj Biography in Hindi)
वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का अति उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं।
देवगुरु बृहस्पति की 3 पत्नियां थी, शुभ, तारा औऱ ममता शुभा से 7 कन्याएं उत्पन्न हुईं- भानुमती, राका, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनीवाली और हविष्मती। तारा से 7 पुत्र तथा 1 कन्या उत्पन्न हुई। उनकी तीसरी पत्नी ममता से भारद्वाज और कच नामक 2 पुत्र उत्पन्न हुए।
महर्षि भारद्वाज मंत्र, अर्थशास्त्र, शस्त्रविद्या, आयुर्वेेद आदि के विशेषज्ञ, विज्ञान वेत्ता और मँत्र द्रष्टा थे। महर्षि भारद्वाज ऋग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा कह गये हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र हैं।
भारद्वाज को व्याकरण का ज्ञान इन्द्र से प्राप्त किया था (प्राक्तंत्र 1.4) तो महर्षि भृगु ने उन्हें धर्मशास्त्र का उपदेश दिया। ऋक्तंत्र के अनुसार वे ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद वे चौथे व्याकरण-प्रवक्ता थे।
चरक संहिता के अनुसार भारद्वाज ने इन्द्र से आयुर्वेद का ज्ञान पाया और आत्रेय पुनर्वसु आदि को काय चिकित्सा का ज्ञान प्रदान किया था। ऋषि भारद्वाज सर्वाधिक आयु प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक थे। चरक ऋषि ने उन्हें अपरिमित आयु वाला बताया है। और पढ़ें: अष्टांग आयुर्वेद (आयुर्वेद के 8 अंग)
वाल्मीकि रामायण अनुसार भारद्वाज महर्षि वाल्मीकि के शिष्य थे। और उन्ही के आश्रम में रहते थे। जब कोंच पक्षी के बाण लगा था तब भारद्वाज वाल्मीकि के साथ ही थे।
ऋषि भारद्वाज ने अनेक ग्रंथों की रचना की उनमें से यंत्र सर्वस्व और विमानशास्त्र की आज भी चर्चा होती है। वनवास के समय प्रभु श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का संधिकाल था।
महर्षि भारद्वाज पुस्तक (Maharshi Bhardwaj Book)
भारद्वाज आयुर्वेद सँहिता, भारद्वाज स्मृति, भारद्वाज सँहिता, राजशास्त्र, यँत्र-सर्वस्व (विमान अभियाँत्रिकी) आदि ऋषि भारद्वाज के रचित प्रमुख ग्रँथ हैं।
वायु पुराण के अनुसार महर्षि भारद्वाज ने एक आयुर्वेद संहिता पुस्तक भी लिखी थी, जिसके आठ भाग करके अपने शिष्यों को सिखाया। दुर्भाय से वर्तमान में इनमें से अधिकांश ग्रंथ दुर्लभ है।
ऐसा माना जाता है कि भारद्वाज ने ही प्रयाग को बसाया था। प्रयाग में इन्होंने गुरूकुल (विश्वविद्यालय) की स्थापना भी करी थी जहां शिक्षार्थी हजारों वर्षों तक विद्या दान करते रहे।
भारद्वाज का वंश परंपरा और गौत्र
प्राचीन काल में भारद्वाज नाम से कई ऋषि हुए है। इसलिए भारद्वाज गोत्र आपको सभी जाति, वर्ण और समाज में मिल जाएगा। जो अपने नाम के आगे भारद्वाज लगाता है, वे सभी भारद्वाज कुल के हैं।
“पाठक” उपनाम लिखने वाले भी महर्षि भारद्वाज के वंशज हैं जिन्होंने उनके द्वारा स्थापित गुरुकुल में पठन ,पाठन और अध्यापन की परंपरा को आगे बढ़ाया ।
भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का अति उच्च स्थान है। ऋषि भारद्वाज की 12 संतानें थीं। ऋजिष्वा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र। और 2 पुत्रियां थीं रात्रि और कशिपा।
ऋषि भारद्वाज की संताने मन्त्रद्रष्टा ऋषियों की कोटि में सम्मानित थीं। पुत्री ‘रात्रि’ था, सुप्रसिद्ध रात्रि सूक्त की मन्त्रद्रष्टा मानी गयी है।
महर्षि भारद्वाज विमान शास्त्र
ऋषि भारद्वाज ने 600 ईसा पूर्व विमान शास्त्र के नाम से जाना जाता है। इस ग्रंथ में वैमानिक शास्त्र के बारे में जानकारी दी गयी है। इस ग्रन्थ में बताया गया है कि प्राचीन काल मेंं विमान रोकिट के समान उड़ने वाले विमान थे। सुप्रसिद्ध पुष्पक विमान भी इसका उदाहरण है।
विमान शास्त्र में कुल 8 अध्याय और 3000 श्लोक हैं। भारद्वाज के विमानशास्त्र में यात्री विमान, लड़ाकू विमान, स्पेस शटल यान, दूसरे ग्रह पर उड़ान भरने वाले विमानों के संबंध में भी लिखा है, साथ ही उन्होंने वायुयान को अदृश्य कर देने की तकनीक का उल्लेख भी किया।
महर्षि भारद्वाज विमान शास्त्र Free Download
मान्यता अनुसार राइट बंधुओं से 2500 वर्ष पूर्व वायुयान की खोज की। हालांकि भारत मे वायुयान पहले से ही मौजूद थे।
पण्डित सुब्बाराय शास्त्री के अनुसार विमान शास्त्र के मुख्य जनक रामायणकालीन महर्षि भरद्वाज थे। आप इस पुस्तक को नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकते है।