महर्षि वेदव्यास: महाभारत के रचयिता और वेदों के संपादक
महर्षि कृष्णद्वैपायन (वेदव्यास) हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ऋषियों में से एक हैं। उन्हें महाभारत (सबसे लंबे महाकाव्य) का लेखन करने के लिए जाना जाता है। इसके अलावा इन्हे 18 पुराण और ब्रह्मसूत्र लिखने का भी श्रेय दिया जाता है।

विशेषता | विवरण |
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पूर्ण नाम | कृष्ण द्वैपायन व्यास |
अन्य नाम | वेद व्यास, बादरायण, व्यास, कृष्ण द्वैपायन |
जन्म | 3102 ईसा पूर्व |
मृत्यु | 576 ईसा पूर्व |
माता-पिता | पाराशर और सत्यवती |
संतान | शुकदेव, पांडु और विदुर |
व्यवसाय | ऋषि, लेखक, दार्शनिक |
प्रसिद्धि | महाभारत, पुराण, ब्रह्मसूत्र |
ऋषि वेद व्यास जन्म कथा (Birth Story of Rishi Vedvyas in Hindi)
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपने शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया।
पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी पर दूसरे शिकारी पक्षी ने हमला कर दिया। दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर यमुना में जा गिरा। यमुना में ब्रह्मा के शाप से मछ्ली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुए वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई।
एक निषाद ने गर्भ पूर्ण होने पर उस मछली को अपने जाल में फँसा लिया। निषाद ने जब मछली का पेट चीरा तो उसके पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली। वह निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया।
महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया, जिसका नाम ‘मत्स्यराज’ हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम ‘मत्स्यगंधा’ रखा गया, क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को ‘सत्यवती’ के नाम से भी जाना जाता था।
बड़ी होने पर वह बालिका नाव खेने का कार्य करने लगी। एक बार पाराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करनी पड़ी। पाराशर मुनि सत्यवती के रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले- “देवि! हम तुम्हारे साथ सहवास के इच्छुक हैं।” सत्यवती ने कहा- “मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।”
तब पाराशर मुनि बोले- “तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।” इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुए कहा- “तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है, वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।”
समय आने पर सत्यवती के गर्भ से वेद-वेदांगों में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला- “माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।” इतना कह कर वे तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये।
द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर का रंग काला होने के कारण उन्हे “कृष्ण द्वैपायन” कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों का भाष्य करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुए।
व्यास ऋषि के बारे में 10 दिलचस्प तथ्य (Intresting Facts about Vedavyas)
- महर्षि व्यास का जन्म 3102 ईसा पूर्व में गंगा नदी के एक द्वीप पर हुआ था।
- इनके पिता पाराशर एक महान ऋषि थे, और उनकी माँ सत्यवती एक मछुआरे की बेटी थीं।
- महर्षि वेदव्यास के बचपन का नाम कृष्णद्वैपायन था।
- व्यास ऋषि एक बुद्धिमान बालक थे और उन्होंने जल्दी ही वेदों, हिंदू शास्त्रों को सीख लिया था।
- व्यास ऋषि एक महान ऋषि और विद्वान थे जिन्होंने हिंदू विचार और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी रचनाओ में महाभारत, पुराण और ब्रह्मसूत्र शामिल है।
- महाभारत प्रेम, हानि, विश्वासघात और मोक्ष की कहानी है।यह अच्छाई और बुराई के बीच युद्ध पर आधारित है। यह युद्ध पांडवों और कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र की भूमि पर लड़ा गया था। जो कौरवों के विनाश के साथ समाप्त हुआ था।
- महाभारत के अलावा, व्यास ऋषि को पुराण (अठारह हिंदू धार्मिक ग्रंथों) के लेखन का भी श्रेय दिया जाता है।
- पुराण देवताओं और देवी-देवताओं की ब्रह्मांड की रचना और दुनिया के इतिहास को बताते हैं।वे नैतिक और नैतिक शिक्षाओं का भी स्रोत हैं।
- व्यास ऋषि को ब्रह्मसूत्र, वेदान्त दर्शन की एक आधारभूत पाठ के लेखन का भी श्रेय दिया जाता है। ब्रह्मसूत्र एक नीतिवचनों का संग्रह है जो ब्रह्म, अंतिम वास्तविकता की प्रकृति पर चर्चा करते हैं।
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