Makar Sankranti: मकर संक्रांति क्यों और कैसे मनायें ?
मकर संक्रांति (Makar Sankranti) सूर्य उपासना का पर्व है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होना शुरू होते हैं। यह पर्व समस्त भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। क्या है इस पर्व का महत्व ? आइए विस्तारपूर्वक जानें..
मुख्य बिंदू:
- मकर सक्रांति क्यों मनाया जाता है।
- मकर सक्रांति की पौराणिक मान्यता।
- मकर सक्रांति मुहूर्त, दान पूजा विधि।
- मकर सक्रांति का वैज्ञानिक आधार।
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मकर संक्रांति का पर्व माघ मास के कृष्णा पक्ष की प्रतिपदा को बड़ी धूम धाम से मनाया जाता हैं। यह पर्व उत्तर प्रदेश के पूर्वी प्रांतों में ‘खिचड़ी’ के नाम से प्रसिद्ध है। वे लोग इस दिन पूजन के बाद खिचड़ी ही खाते हैं और खिचड़ी तथा तिल का दान करते हैं।
इसकी भव्यता तो प्रयाग और गंगासागर में विशेष देखने को मिलती है। इस पुण्य स्थली पर एक माह पूर्व से ही लोग झोंपडिया (Tents) बनाकर रहते हैं।
मकर सक्रांति क्यों मनाया जाता है? (Why is Makar Sankranti celebrated?)
मकर संक्रांन्ति भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष जनवरी के महीने में मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, अर्थात उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। चूंकि इस दिन इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इसे “मकर सक्रांति” कहते है। अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह दिन 14 जनवरी को पढ़ता है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इस त्योहार का संबंध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। ये तीनों चीजें ही जीवन का आधार हैं। इसलिए यह पर्व बड़े हर्षो उल्लास से मनाया जाता है।
विस्तार से समझे: पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को ‘सौर वर्ष’ कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना ‘क्रांन्तिचक्र’ कहलाता है। इस परिधि चक्र को बांटकर बारह राशियां बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना ‘संक्रांन्ति’ कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रांन्ति’ कहते हैं।
सूर्य देव सारे संसार के आरम्भ का मूल हैं। सूर्य का प्रकाश जीवन का प्रतीक है। चन्द्रमा भी सूर्य के प्रकाश से आलोकित है। सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना ‘उत्तरायण’ तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना ‘दक्षिणायन’ है।
अतः मकर संक्रांन्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।
मकर संक्रान्ति 2022 मुहूर्त (Makar Sankranti date and Muhury in Hindi)
पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। इस वर्ष मकर सक्रांति 14 जनवरी को मनाया जाएगा।
मकर संक्रांति पुण्य काल मुहूर्त | दोपहर 02:43 से शाम 05:45 तक |
पुण्य काल अवधि | 03 घंटे 02 मिनट |
संक्रांति महापुण्य महा पुण्य काल मुहूर्त | दोपहर 02:43 से रात्रि 04:28 तक |
महापुण्य काल अवधि | 01 घंटा 45 मिनट |
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व (importance of Makar Sankranti)
मान्यता अनुसार जब सूर्य दक्षिणायन (पूर्व से दक्षिण की ओर) चलता है, तो यह समय खराब माना गया है, लेकिन जब सूर्य उत्तरायण (पूर्व से उत्तर की ओर) गमन करने लगता है, तब उसकी किरणें सेहत और आध्यात्मिक रूप से लाभकारी हो जाती है। यह काल साधु-संत और आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े लोगो के लिए शांति और सिद्धि प्रदान करने वाला माना गया है।
- संक्रांति, ग्रहण, अमावस्या एवं पूर्णिमा पर गंगा स्नान महापुण्यदायक माना गया है और ऐसा करने पर व्यक्ति ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है।
- ऐसा भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले भगीरथ ने इसी दिन अपने पूर्वजों का तर्पण किया था।
मकर सक्रांति की पौराणिक मान्यता (Makar Sankranti Mythological stories)
शनिदेव करते है पिता का सम्मान: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। शनि चूंकि मकर राशि के स्वामी है इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति कहा जाता हैं। लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है। और पढ़ें: रविवार व्रत कथा और पूजा विधि
भीष्म पितामह ने त्यागा था शरीर: महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था। और पढें: कुरुक्षेत्र में ही क्यो हुआ महाभारत का युद्ध
भगवान कृष्ण ने स्वयं गीता में कहा है कि, उत्तरायण के 6 माह के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, तब पृथ्वी प्रकाशमय होती है, अत: इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्मा को प्राप्त होता है। और पढ़ें: महाभारत के प्रमुख पात्रों का परिचय
मकर संक्रांति कैसे मनाएँ (How to Celebrate Makar sankranti)
मकर सक्रांति व्रत विधि: सक्रांति से एक दिन पूर्व व्यक्तिको केवल एक बार मध्याह्न में भोजन करना चाहिए और संक्रांति के दिन तिल युक्त जल से स्नान करना चाहिए। इसके बाद चंदन से अष्टदल का कमल बनाकर उसमें सूर्यदेव का आवाहन कर चाहिए और यथाविधि पूजन करना चबीए।
किसी संयमी ब्राह्मण गृहस्थ को भोजन सामग्रियों से युक्त तीन पात्र (एक गाय, यम, धर्म के नाम ) पर दे। इसके उपरान्त उसे तेल-विहीन भोजन करना चाहिए और यथा शक्ति अन्य लोगों को भोजन और दान देना चाहिए।
मकर संक्रांति में दान का महत्व
इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्त्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुनः प्राप्त होता है।
दान की वस्तु: दान में सफेद या काली तिल्ली, सफेद धान, चावल, आटा, चांदी, दूध, माला, रवा, खिचड़ी, गुड़, नारियल, कपड़ा आदि वस्तु दान में दें।
मकर सक्रांति में पतंग उड़ाने की परंपरा (Makar Sakranti Kite Festival 2022)
मकर संक्रांति के मौके पर पतंग उड़ाने की भी परंपरा है। हालांकि पतंग का चलन कम होता जा रहा है। फिर भी गुजरात और मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में मकर संक्रांति के दौरान पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है। अहमदाबाद के पतंग महोत्सव (Kite Festival) की भव्यता तो देखते ही बनती है।
नेपाल में भी धूमधाम से मनाया जाता है मकर-संक्रान्ति
नेपाल के सभी प्रांतों में उत्साह के साथ मकर सक्रांति का पर्व मनाया जाता है। नेपाल में मकर संक्रांति (संक्रान्ति) को माघे-संक्रांति, सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में ‘माघी’ भी कहा जाता है। इस दिन नेपाल में सार्वजनिक छुट्टी होती है। इस दिन नेपाली तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाते हैं। और पढ़ें: पशुपति नाथ मंदिर का रहस्य
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व (Scientific reason of makar sankranti)
फसलों की कटाई का त्यौहार ( Makar sankranti is a Harvest Festival)
नई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर भी मकर संक्रांति धूमधाम से मनाई जाती है। पंजाब, यूपी, बिहार समेत तमिलनाडु में यह वक्त नई फसल काटने का होता है, इसलिए किसान मकर संक्रांति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं।
- पंजाब और जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति को ’लोहड़ी’ के नाम से मनाया जाता है।
- तमिलनाडु में मकर संक्रांति ’पोंगल’ के तौर पर मनाई जाती है, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार में ’खिचड़ी’ के नाम से मकर संक्रांति मनाई जाती है।
मकर सक्रांति में है तिल का महत्व (This is why we eat Til and Gur on Makar Sankranti)
मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ से बने लड्डू और अन्य मीठे पकवान बनाने की परंपरा है। इन सभी सामग्रियों में सबसे ज्यादा महत्त्व तिल का दिया गया है। इस दिन तिल के महत्त्व के कारण मकर संक्रांति पर्व को ‘तिल संक्रांति’ के नाम से भी पुकारा जाता है।
इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता भी है, दरअसल तिल पौष्टिक होने के साथ ही साथ शरीर को गर्म रखने वाले पदार्थ भी हैं। सम्भवतः मकर संक्रांति के समय जाड़ा होने के कारण तिल जैसे पदार्थों का प्रयोग सम्भव है।