मंगल पांडे (Mangal Pandey)
मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मंगल पांडे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34 वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है।
Mangal Pandey Quick Info & Facts
पूरा नाम | मंगल पांडे |
जन्म | 19 जुलाई, 1827 ई.बलिया (उत्तर प्रदेश) |
मृत्यु | 8 अप्रैल, 1857 ई.बैरकपुर (कलकत्ता) |
मृत्यु कारण | फाँसी |
पिता | दिवाकर पांडे |
माता | अभय रानी |
नागरिकता | भारतीय |
व्यवसाय | बैरकपुर छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैण्ट्री की 34 वीं रेजीमेण्ट में सिपाही |
प्रसिद्धि | स्वतन्त्रता सेनानी |
धर्म | हिन्दू (ब्राह्मण) |
आंदोलन | भारतीय स्वाधीनता संग्राम, 1857 |
प्रमुख संगठन | जंग-ए-आज़ादी |
मंगल पांडे जीवनी (Mangal Panday Biography / History In Hindi)
क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के नगवा गाँव में हुआ था। कुछ सन्दर्भों में इनका जन्म स्थल फ़ैज़ाबाद ज़िले की अकबरपुर तहसील के सुरहुरपुर ग्राम में बताया गया है।
मंगल पांडे के पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था। वे कोलकाता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना के 1446 नम्बर के सिपाही थे।
मंगल पांडे अथवा मंगल पान्डेय का नाम ‘भारतीय स्वाधीनता संग्राम’ में अग्रणी योद्धाओं के रूप में लिया जाता है, जिनके द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से अंग्रेज़ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन बुरी तरह हिल गया था। मंगल पांडे की शहादत ने भारत में पहली क्रांति के बीज बोए थे।
मंगल पांडे के फौज में भरती होने की कहानी
उन दिनों ईस्ट इंडिया कम्पनी की फौज में हृष्ट-पुष्ट, ताकतवर होंने के कारण पूर्वी जिलों के युवा अधिक भरती होते थे। वे लोग इस कारण भी भरती होते थे क्योंकि ये सम्पन्न और अधिक पढ़े -लिखे भी नहीं थे कि उन्हें अच्छी नौकरी मिल सके।
इन सिपाहियों में ब्राह्मणों, राजपूतों और मुसलमानों की संख्या अधिक होती थी। 21 अप्रैल 1857 को 34 वीं नेटिव इन्फेंट्री के 1089 सिपाहियों में से 335 ब्राह्मण, 237 क्षत्रिय, 231निम्नवर्ग के हिन्दू, 200 मुसलमान, 74 सिक्ख और 12 ईसाई थे।।
मंगल पांडे काफी तन्दुरुस्त और गठीले शरीर के थे। इसलिए “भूमिहार ब्राह्मण” होने के बाद भी मंगल पाण्डेय सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए। अंग्रेजी सेना में उनकी पहली नियुक्ति अकबरपुर की एक ब्रिगेड में हुई थी।
मंगल पांडे अपनी बहादुरी, साहस तथा गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे। अंग्रेज लेखक डब्ल्यू टी० फिशेट ने उनके बारे में लिखा है-
‘मंगल पांडे में अच्छे सैनिक के सभी गुण मौजूद थे वे इतने साहसी थे कि अपनी मृत्यु का आलिंगन भी शांतिपूर्वक करने की क्षमता रखते थे।’
एनफील्ड P-53 राइफल विवाद
अंग्रेज़ सेना अपनी आर्मी को अपग्रेड करने के लिए एनफील्ड पी.53 बंदूक दे रही थी, जिसमे 0.577 कैलीबर की बंदूक थी। जो कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी।
इस बंदूक में कारतूस भरने के लिये पहले उसे दांतों से छीलकर खोलना पड़ता था। फिर उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था।
जब भारतीय सैनिको को इस बात पता चला, कि उस कागज में गौ-मांस और सूअर की चर्बी मिली रहती है। तो हिन्दू-मुसलमान दोनों का गुस्सा फुट पड़ा। उन्हे लगा अंग्रेजी सरकार ने जानकर उनका धर्म भ्रष्ट करने के लिए उन्हे इस प्रकार की राइफल दी है।
मंगल पांडे की बगावत
9 फरवरी 1857 को जब ‘नया कारतूस’ देशी पैदल सेना को बांटा गया तब मंगल पाण्डेय ने उसे लेने से इनकार कर दिया। ब्रिटिश सेना का विरोध और भारतीय सैनिकों को भड़काने के परिणाम स्वरूप मंगल पांडे का हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का हुक्म हुआ।
मंगल पांडे 29 मार्च सन 1857 को शाम के 4 बजे अपने तंबू में बंदूक साफ कर रहे थे। तभी उन्हें भारी मात्रा में अंग्रेज़ी सेनिको के आने की खबर मिली। मंगल पांडे अपनी आधिकारिक जैकेट, टोपी और धोती पहने मंगल पांडेय अपनी तलवार और बंदूक लेकर क्वार्टर गार्ड बिल्डिंग के करीब परेड ग्राउंड की ओर दौड़ कर चले गए।
मंगल पांडे क्वार्टर गार्ड (बिल्डिंग) के सामने घूमते हुए अपनी रेजिमेंट को विद्रोह के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहने लगे- ‘इन फिरंगियों ने जानकर हमें गाय और सुवर की चर्बी वाले कारतूस दिए है ताकि हमारा धर्म भ्रष्ट कर सकें। इन कारतूसों को दाँत से काट कर हम अपवित्र हो जायेंगे। यदि कारतूस को दाँत से खोलकर अपवित्र नही होना चाहते तो विद्रोह करो। तब उन्होंने एक नारा भी दिया ‘मारो फिरंगी को’।
दो ब्रिटिश अधिकारी को मौत के घाट सुलाया
मंगल पांडे ने राइफल छीनने के लिये आगे बढे अंग्रेज अफसर सार्जेंट मेजर जेम्स थार्नटन ह्यूसन पर मंगल पाण्डे की बन्दूक गरज उठी और सार्जेंट मेजर ह्यूसन वहीं लुढक गया।
अपने साथी की यह स्थिति देख घोड़े पर सवार लेफ़्टिनेन्ट एडजुटेंट बेम्पडे हेनरी वाग मंगल पाण्डे की तरफ बढ़ा। मंगल पांडे ने उस पर भी गोली चला दी, वह गोली सीधे घोड़े के जाकर लगी, वाग नीचे गिरते हुये फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। उसने पिस्तौल निकालकर गोली चलाई पर निशाना नही लगा। इस बीच मंगल पाण्डे ने अपनी तलवार निकाल ली जो पलक झपकते ही वाग के सीने और कंधे को चीरते हुये निकल गई।
अपनी बंदूक से स्वयं को गोली मारी
मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा, “अरे! अब कब निकलोगे? तुम लोग अभी तक तैयार क्यों नहीं हो रहे हो? ये अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट कर देंगे। हम इन्हें अभी खत्म कर देते हैं।”
मंगल पांडे अपने साथियों से समर्थन का आह्वान करते रहे, पर डर के कारण कोई उनके साथ नहीं आया। वे अकेले ही मोर्चे पर डटे रहे और अंग्रेजी हुकूमत को ललकारते रहे।
इसके बाद जनरल हियर्से ने मंगल पांडे को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया तो, शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने के लिए आगे नही बड़ी। इस प्रकार भोख पल्टू ने ब्रिटिश अधिकारियों के साथ मिलकर मंगल पांडे को पकड़ लिया।
मंगल पाण्डे ने गिरफ्तार होने से बेहतर मौत को गले लगाना उचित समझा और बंदूक की नली अपने सीने पर रख पैर के अंगूठे से फायर कर दिया। लेकिन, इस कदम से वह सिर्फ घायल हो सकें। इसके बाद अंग्रेजी सेना ने उसे चारों तरफ से घेर कर बंदी बना लिया गया।
फांसी की सजा
6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया। फौजी अदालत में मामला चलाया गया जिसमें उनको विद्रोह का दोषी करार देकर फांसी की सजा सुनाई गई।
मंगल पांडे की लोकप्रियता गिरफ्तारी के बाद बढ़ती जा रही थी। मंगल पांडे की लोकप्रियता और सम्मान की ऐसी स्थिति थी कि बैरकपुर के जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से इनकार कर दिया। तब कलकत्ता से चार जल्लादों को बुलाया गया।
समय से पहले दी गयी फांसी
अंग्रेजों के बीच मंगल पांडे का भय इतना था, इसका अंदाजा समय से पहले दी गई फांसी से लगाया जा सकता है। दरअसल मंगल पांडे को 18 अप्रैल, 1857 को फांसी होनी थी।
लेकिन ब्रिटिश सरकार को यह भय था कि इससे बगावत और फैल जाएगी, इसलिए मंगल पांडे को फांसी के निर्धारित दिन से 10 दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को प्रातः 5.30 में फांसी दी गयी।
जब मंगल पांडे को फांसी दी गयी, तब उनकी उम्र मात्र 26 वर्ष 2 मास 9 दिन थी।
बगावत का परिणाम
मंगल पांडेय के इस बलिदान ने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया। मंगल पांडे के बलिदान के बाद जगह-जगह अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के तेवर दिखाई देने लगे।
पांडे जी के मृत्यु के करीब एक महीने बाद ही 10 मई, 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गई जो देखते-देखते देश के बड़े हिस्से में फैल गई। इससे डरकर ब्रिटिश सरकार ने भारतीय जनता पर कई कानून थोप दिए ताकि फिर दोबारा कोई मंगल पांडे पैदा न हो सके।
निष्कर्ष:- यह कहा जा सकता है कि 1857 की क्रांति की नींव मंगल पांडे के बगावत के समय ही पड़ गई थी। जिसका परिणाम 15 अगस्त 1947 को सामने आया जब हमेशा के लिए अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए।