मार्कण्डेय पुराण
मार्कण्डेय पुराण प्राचीनतम पुराणों में से एक है। यह लोकप्रिय पुराण मार्कण्डेय ऋषि ने क्रौष्ठि को सुनाया था। सुप्रसिद्ध दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का ही एक अंश है। मार्कन्डेय पुराण का भारत वर्ष के वैष्णव, शाक्त, शैव आदि जितने भी सम्प्रदाय के लोग हैं, बड़ी श्रद्धा से पाठ करते हैं।
मार्कण्डेय पुराण (Markandeya Purana in Hindi)
मार्कण्डेय पुराण, हिंदुओं के पवित्र 18 पुराणों में से एक पुराण है। पुराणों की सूची में इसका स्थान सप्तम है। यह पुराण मार्कण्डेय ऋषि ने क्रौष्ठि को सुनाया था, जिस कारण इसका नाम मार्कण्डेय पुराण पड़ा।
इसे शाक्त संप्रदाय का पुराण माना जाता है। भगवती की विस्तृत महिमा का परिचय देने वाले इस पुराण में दुर्गा चरित्र, दुर्गासप्तशती, राजा हरिश्चंद्र, दत्तात्रेय-चरित्र, मदालसा चरित्र, अत्री-अनसूया आदि अनेक सुन्दर कथाओं का विस्तृत वर्णन है।
कथा एवं विस्तार (Story & History of Markandeya Purana in Hindi)
मार्कण्डेय पुराण के 137 अध्याय में कुल नौ हजार श्लोकों का संग्रह है। इस पुराण में 1 से 42 वें अध्याय तक के वक्ता जैमिनि और श्रोता पक्षी हैं, 43 वें से 90 अध्याय में वक्ता मार्कण्डेय और श्रोता क्रप्टुकि हैं तथा इसके बाद के अंश के वक्ता सुमेधा तथा श्रोता सुरथ-समाधि हैं। मार्कण्डेय ऋषि द्वारा इसके कथन से ही इसका नाम ‘मार्कण्डेय पुराण’ पड़ा।
मार्कन्डेय पुराण, पुराण के सभी लक्षणों को यह अपने भीतर समेटे हुए है। इसमें ऋषि ने मानव कल्याण हेतु सभी तरह के नैतिक, सामाजिक आध्यात्मिक और भौतिक विषयों का प्रतिपादन किया है। इस पुराण में भारतवर्ष का विस्तृत स्वरूप उसके प्राकृतिक वैभव और सौन्दर्य के साथ प्रकट किया गया है।
मार्कण्डेय पुराण में क्या है? (What is in Markandeya Purana in Hindi)
मार्कन्डेय पुराण के अन्दर पक्षियों को प्रवचन का अधिकारी बनाकर उनके द्वारा सब धर्मों का निरूपण किया गया है। मार्कण्डेय पुराण में पहले मार्कण्डेयजी के समीप जैमिनि का प्रवचन है। फ़िर धर्म संज्ञम पक्षियों की कथा कही गयी है।
फ़िर उनके पूर्व जन्म की कथा और देवराज इन्द्र के कारण उन्हें शापरूप विकार की प्राप्ति का कथन है, तदनन्तर बलभद्रजी की तीर्थ यात्रा, द्रौपदी के पांचों पुत्रों की कथा, राजा हरिश्चन्द्र की पुण्यमयी कथा, आडी और बक पक्षियों का युद्ध, दत्तात्रेयजी की कथा, मदालसा की कथा, नौ प्रकार की सृष्टि का पुण्यमयी वर्णन, कल्पान्तकाल का निर्देश, यक्ष-सृष्टि निरूपण, रुद्र आदि की सृष्टि, द्वीपचर्या का वर्णन, मनुओं की अनेक पापनाशक कथाओं का कीर्तन और उन्हीं में दुर्गाजी की अत्यन्त पुण्यदायिनी कथा है जो आठवें मनवन्तर के प्रसंग में कही गयी है।
तत्पश्चात तीन वेदों के तेज से प्रणव की उत्पत्ति सूर्य देव की जन्म की कथा, उनका महात्मय वैवस्त मनु के वंश का वर्णन, वत्सप्री चरित्र, तदनन्तर महात्मा खनित्र की पुण्यमयी कथा, किमिक्च्छिक व्रत का वर्णन, नरिष्यन्त चरित्र, इक्ष्वाकु चरित्र, नल चरित्र, श्री रामचन्द्र की उत्तम कथा, कुश के वंश का वर्णन, सोमवंश का वर्णन, पुरुरुवा की पुण्यमयी कथा, राजा नहुष का अद्भुत वृतांत, ययाति चरित्र, यदुवंश का वर्णन, श्रीकृष्ण लीलायें, सब अवतारों की कथा, प्रपञ्च के मिथ्यावाद का वर्णन, मार्कण्डेयजी का चरित्र तथा पुराण श्रवण आदि का फल यह सब विषय मार्कण्डेय पुराण में बताये गये है।
मार्कण्डेय पुराण का महत्व (Importance of Markandeya Purana in Hindi)
मार्कन्डेय पुराण को ‘शाक्त ग्रंथ’ माना जाता हैं। इसमे चण्डी देवी का महात्मय विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। सुप्रसिद्ध दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का ही एक अंश है। दूर्गा सप्तसती का भारत वर्ष के वैष्णव, शाक्त, शैव आदि जितने भी सम्प्रदाय के लोग हैं, बड़ी श्रद्धा से पाठ करते हैं।
विभिन्न उपाख्यान एवं महात्मय से भरे हुये इस पुराण में राजा हरीशचन्द्र का उपाख्यान बहुत करूण एवं मार्गिक प्रसंग है। वचन की पूर्ति के लिए के लिये किस प्रकार राजा हरीशचन्द्र ने अपना राज्य धन, ऐश्वर्य अपितु पुत्र एवं पत्नी को भी बेच दिया एवं स्वयं ऋषि विश्वामित्र की दक्षिणा पूरी करने के लिये श्मशान में चाण्डाल बनकर सेवा करने लगे।
ऐसे पवित्र मार्कण्डेय पुराण सुनने से जीव के सारे पाप क्षय हो जाते हैं, और माँ दुर्गा के इन चरित्रों को सुनने से ‘धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष’ की प्राप्ति होती है।