Hindu Rituals: हिन्दू पूजा में प्रयोग होने वाले शब्द और उनके अर्थ
Hindu Rituals: पूजा पाठ मे कुछ शब्दों को सुनते हैं जिनका हमें अर्थ पता ही नहीं होता है। आज हम आपको ऐसे ही कुछ शब्दों और उनके अर्थों के बारे मे बताएंगे।
- पूजा (Puja): यह शब्द हिन्दी भाषा में प्रयोग होने वाला है और इसका अर्थ होता है “उपासना” या “आराधना”। पूजा एक आदर्शित रूप से ईश्वर के सामर्थ्य, मान्यताओं और धार्मिक सिद्धांतों की अभिव्यक्ति है।
- आरती (Aarti): आरती में जलती हुई लौ या इसके समान कुछ खास वस्तुओं से आराध्य के सामाने एक विशेष विधि से घुमाई जाती है। कई बार इसके साथ गान (संगीत) भी बजाया जाता है। मंदिरों में इसे प्रातः, सांय एवं रात्रि (शयन) में द्वार के बंद होने से पहले किया जाता है।
- मंत्र (Mantra): मंत्र संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है “मन की शक्ति”। मंत्र धार्मिक पूजाओं में उच्चारित शब्द, वाक्यांश या छंद होते हैं जो ध्यान और आध्यात्मिक साधना को सुगम बनाने के लिए प्रयोग होते हैं।
- प्रसाद (Prasad): प्रसाद वह अन्न, फल, मिठाई या अन्य पदार्थ होता है जो देवी-देवताओं की पूजा के बाद उनके आराधकों को बांटा जाता है। इसे धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा की पवित्रता का प्रतीक माना जाता है और भक्तों को इसे भोग के रूप में लेना चाहिए।
- हवन (Havan): हवन एक वैदिक धार्मिक रीति है जिसमें यज्ञ कुंड में संग्रहित सामग्री को अग्नि में हवन किया जाता है। इसका उद्देश्य ईश्वर के आशीर्वाद की प्राप्ति और भूत-प्रेत, देवताओं या ईश्वर की पूजा के लिए विभिन्न आहुतियों का यज्ञिक रूप से समर्पण होता है।
- पंडित (Pandit): पंडित एक प्रशिक्षित ब्राह्मण पुरोहित होता है जिसे विधिपूर्वक पूजा, हवन और अन्य धार्मिक कार्यों का ज्ञान होता है। पंडित पूजा के निर्देशन, मंत्रों की उच्चारण और धार्मिक आयोजनों को संचालित करने के लिए बुलाया जाता है।
हिन्दू पूजा में अन्य प्रमुख शब्द और उनके अर्थ निम्नलिखित हैं:
1. पंचोपचार – गन्ध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैद्य द्वारा पूजन करने को ‘पंचोपचार’ कहते हैं।
2. पंचामृत – दूध , दही , घृत , मधु { शहद ] तथा शक्कर इनके मिश्रण को ‘पंचामृत’ कहते हैं।
3. पंचगव्य – गाय के दूध , घृत , मूत्र तथा गोबर इन्हें सम्मिलित रूप में ‘पंचगव्य’ कहते हैं।
4. षोडशोपचार – आवाहन् , आसन , पाद्य , अर्घ्य , आचमन , स्नान , वस्त्र, अलंकार , सुगंध , पुष्प , धूप , दीप , नैवैद्य , ,अक्षत , ताम्बुल तथा दक्षिणा इन सबके द्वारा पूजन करने की विधि को ‘षोडशोपचार’ कहते हैं।
5. दशोपचार – पाद्य , अर्घ्य , आचमनीय , मधुपर्क , आचमन , गंध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैद्य द्वारा पूजन करने की विधि को ‘दशोपचार’ कहते हैं।
6. त्रिधातु – सोना , चांदी और लोहा। कुछ आचार्य सोना , चांदी, तांबा इनके मिश्रण को भी ‘त्रिधातु’ कहते हैं।
7. पंचधातु – सोना , चांदी , लोहा, तांबा और जस्ता।
8. अष्टधातु – सोना , चांदी , लोहा , तांबा , जस्ता , रांगा , कांसा और पारा।
9. नैवैद्य – खीर , मिष्ठान आदि मीठी वस्तुये।
10. नवग्रह – सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध, गुरु , शुक्र , शनि , राहु और केतु।
11. नवरत्न – माणिक्य , मोती , मूंगा , पन्ना , पुखराज , हीरा , नीलम , गोमेद , और वैदूर्य
12. अष्टगंध – अगर , तगर , गोरोचन, केसर , कस्तूरी , ,श्वेत चन्दन , लाल चन्दन और सिन्दूर [ देव पूजन हेतु ]
अगर , लाल चन्दन , हल्दी , कुमकुम ,गोरोचन , जटामासी , शिलाजीत और कपूर [ देवी पूजन हेतु ]
13. गंधत्रय – सिन्दूर , हल्दी , कुमकुम।
14. पञ्चांग – किसी वनस्पति के पुष्प , पत्र , फल , छाल ,और जड़।
15. दशांश – दसवां भाग।
16. सम्पुट – मिट्टी के दो शकोरों को एक-दुसरे के मुंह से मिला कर बंद करना।
17. भोजपत्र – एक वृक्ष की छाल। मन्त्र प्रयोग के लिए भोजपत्र का ऐसा टुकडा लेना चाहिए , जो कटा-फटा न हो।
18. मन्त्र धारण – किसी भी मन्त्र को स्त्री पुरुष दोनों ही कंठ में धारण कर सकते हैं ,परन्तु यदि भुजा में धारण करना चाहें तो पुरुष को अपनी दायीं भुजा में और स्त्री को बायीं भुजा में धारण करना चाहिए।
19. ताबीज – यह तांबे के बने हुएबाजार में बहुतायत से मिलते हैं। ये गोल तथा चपटे दो आकारों में मिलते हैं | सोना , चांदी , त्रिधातु तथा अष्टधातु आदि के ताबीज बनवाये जा सकते हैं।
20. मुद्राएँ – हाथों की अँगुलियों को किसी विशेष स्तिथि में लेने कि क्रिया को ‘मुद्रा’ कहा जाता है | मुद्राएँ अनेक प्रकार की होती हैं।
21. स्नान – यह दो प्रकार का होता है | बाह्य तथा आतंरिक ,बाह्य स्नान जल से तथा आन्तरिक स्नान जप द्वारा होता है।
22. तर्पण – नदी , सरोवर ,आदि के जल में घुटनों तक पानी में खड़े होकर, हाथ की अंजुली द्वारा जल गिराने की क्रिया को ‘तर्पण’ कहा जाता है।
जहाँ नदी , सरोवर आदि न हो ,वहां किसी पात्र में पानी भरकर भी ‘तर्पण’ की क्रिया संपन्न कर ली जाती है।
23. आचमन – हाथ में जल लेकर उसे अपने मुंह में डालने की क्रिया को आचमन कहते हैं।
24. करन्यास – अंगूठा , अंगुली , करतल तथा करपृष्ठ पर मन्त्र जपने को ‘करन्यास’ कहा जाता है।
25. हृद्याविन्यास – ह्रदय आदि अंगों को स्पर्श करते हुए मंत्रोच्चारण को ‘हृदय्विन्यास’ कहते हैं।
26. अंगन्यास – ह्रदय , शिर , शिखा , कवच , नेत्र एवं करतल – इन 6 अंगों से मन्त्र का न्यास करने की क्रिया को ‘अंगन्यास’ कहते हैं।
27. अर्घ्य – शंख , अंजलि आदि द्वारा जल छोड़ने को अर्घ्य देना कहा जाता है। घड़ा या कलश में पानी भरकर रखने को अर्घ्य-स्थापन कहते हैं। अर्घ्य पात्र में दूध , तिल , कुशा के टुकड़े , सरसों , जौ , पुष्प , चावल एवं कुमकुम इन सबको डाला जाता है।