मूल त्रिकोण राशि | ज्योतिष सीखें
नमस्कार..🙏 हमारा सदैव प्रयास रहता है कि आपको ज्योतिष का ज्ञान सरलता से हो जाएं। इसके लिए हम ज्योतिष के विभिन्न कार्यक्रम चलाते हैं। आजका यह लेख ” मूल त्रिकोण राशि” से संबंधित है।
मूल त्रिकोण राशि
इससे पूर्व के लेखों में भी हमने मूल त्रिकोण के बारे में थोड़ा बहुत पढ़ा भी है। हम यह भली भांति जानते है कि प्रत्येक ग्रह की अपनी मूल त्रिकोण राशि होती है, जिसमे ग्रह अत्यंत शुभ फल देता है। जैसे- सूर्य सिंह राशि मे 1-20 अंश (डिग्री) तक मूल त्रिकोण राशि कहलाता है। इसी प्रकार अन्य ग्रह का होता है, जो नीचे तालिका में दिया है।
लेकिन आपको सिर्फ ग्रह किस राशि मे ग्रह मूल त्रिकोण में होता है याद करना है। सिंह राशि का सूर्य, वृष राशि का चन्द्रमा, मेष राशि का मंगल कन्या राशि का बुध, धनु राशि का गुरु, तुला राशि का शुक्र तथा कुम्भ राशि का शनि मूल त्रिकोण गत ग्रह कहलाते हैं।
ग्रह | राशि | अंश |
---|---|---|
सूर्य | सिंह | 1-20 |
चन्द्र | वृषभ | 4-30 |
मंगल | मेष | 1-18 |
बुध | कन्या | 1-15 |
गुरु | धनु | 1-13 |
शुक्र | तुला | 1-10 |
शनि | कुम्भ | 1-20 |
विशेष:– हम ऊपर कह आये है मूल त्रिकोण मे ग्रह शुभ फल देता है, अतः कुंडली में जितने अधिक ग्रह मूल त्रिकोण में होंगे कुंडली की शुभता बढ़ती जाएगी। और जातक उतना ही भाग्य शाली होगा। मूल त्रिकोण में ग्रह नही होगा तो क्या कुंडली शुभ नही होगी? हो सकती है। क्योंकि यह एक लक्षण है, एक मात्र लक्षण नही।
आपने अक्सर पंडित जी के मुख से सुना होगा, अमुक ग्रह गोपुरांश में हैं। गोपुरांश आदि योग कुंडली मे बनने वाला अत्यंत शुभ योग है। जो आजकल पंडितों द्वारा कम ही प्रयोग में लाया जाता है, लेकिन आपसे कुछ चीज़ अछूती न रहें इस उद्देश्य से दिया जा रहा है। आपको इसे याद करने की अवश्यजता नही है, सिर्फ इसका कॉन्सेप्ट समझना है जो कहानी की तरह पढ़ने मात्र से हो जाएगा।
जैसा कि हम जानते है कुण्डली में कुल सोलह वर्ग होते हैं। होरा, द्रेष्काण, सप्तमांश, नवमांश, दशमांश, द्वादशांश, षोडशांश, त्रिशांश आदि-आदि। इनमें जब ग्रह एक से अधिक वर्गों में अपनी-अपनी राशि में ही होते हैं, तो उस ग्रह विभिन्न नामों से जाना जाता है। जिसकी सूची नीचे दी जा रही है-
- यदि कोई ग्रह दो बार अपनी राशि में हो, तो उसे पारिजातांश कहते है।
- यदि कोई ग्रह तीन बार अपनी राशि में हो, तो उसे उत्तमांश कहते हैं।
- यदि कोई ग्रह चार बार अपनी राशि में हो, तो उसे गोपुरांश है।
- यदि कोई ग्रह पांच बार अपनी राशि में हो, तो उसे सिंहासनांश कहते है।
- यदि कोई ग्रह छह बार अपनी राशि में हो, तो उसे पारावतांश कहते है।
- यदि कोई ग्रह सात बार अपनी राशि में हो, तो उसे देवलोकांश कहते हैं।
- यदि कोई ग्रह आठ बार अपनी राशि में हो, तो उसे ब्रह्मलोकांश कहते है।
- यदि कोई ग्रह नौ बार अपनी राशि में हो, तो उसे शुक्रवाहनांश कहते हैं।
- यदि कोई ग्रह दस बार अपनी राशि में हो, तो उसे श्रीधामांश कहते हैं।
- यदि कोई ग्रह ग्यारह बार अपनी राशि में हो, तो उसे वैष्णवांश कहते है।
- यदि कोई ग्रह बारह बार अपनी राशि में हो, तो उसे नारायणांश कहते है।
- यदि कोई ग्रह तेरह बार अपनी राशि में हो, तो उसका नाम वैशेषिकांश कहते है। यदि कोई ग्रह वैशषिकांश हो जाता है, तो वह सर्वोच्च कोटि का ग्रह माना जाता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि जो ग्रह जितनी अधिक वर्ग कुंडली मे स्थित होगा, वह उतना ही अधिक शुभ फल देगा।
नोट:- छात्रों को इनका नाम याद करने की आवश्यकता नही है, सिर्फ इतना ही देखना प्रयाप्त है कि ग्रह कितनी बार अपनी राशि मे विराजमान है। जो कंप्यूटर सॉफ्टवेर के माध्यम से कुछ ही सेकिंड में हो जाता है।
आज आपने सरलता से ज्योतिष सीखने की श्रृंखला में “मूल त्रिकोण” राशि को समझा। हमारा प्रयास है कि आपको पढ़ने मात्र से ज्योतिष की समझ हो जाए, कोई विशेष श्रम न करना पड़े। आशा करते है आपको आजका यह लेख पसंद आया होगा..