Mrigashirsha: मृगशीर्ष नक्षत्र की सम्पूर्ण जानकारी
Mrigashīrsha Nakshtra: मृगशीर्ष नक्षत्र की स्थिति राशि पथ में 53.20 अंशों से 86.40 अंशों के मध्य मानी गयी है। इसलिए इसका आधा भाग वृषभ राशि और शेष आधा भाग मिथुन राशि मे पड़ता है। इस नक्षत्र में तीन तारे हैं। इसके चरणाक्षर- बे, बो क, की है। अरबी में इसे ‘अल अकाई’ कहते हैं।
प्रश्न: मृगशीर्ष का शाब्दिक अर्थ क्या है?
मृगशीर्ष, संस्कृत शब्द मृगः (हिरण) और शीर्ष (सिर) से बना है। इस शब्द का संबंध ब्रह्मा की लगे लांछन से है कथा कुछ इस प्रकार है..
मृगशीर्ष नक्षत्र (पौराणिक मान्यता)
पौराणिकता मान्यता अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा ने रोहणी पर आसक्त होकर मृग का रूप धारण कर अपनी पुत्री रोहिणी का पीछा किया था। इस अपराध के कारण महादेव ने उनका सिर काट दिया। यही कटा सिर मृग शिर नक्षत्र के रूप में है। कदाचित रोहणी नक्षत्र इसी लांछन का प्रतीक है।
मृगशीर्ष नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति की विशेषताएं
मृगशिर नक्षत्र में जन्मे जातक बलिष्ठ, सुंदर, सुदृढ शरीर, लंबे कद के होते हैं। जातक, आत्म खोजी शौकीन, सुंदरता प्रेमी, पर्यटन पसंद, और अनैतिक सम्बंध से भी न हिचकिचाने वाला होता है।
इस नक्षत्र के देवता चन्द्र और स्वामी शुक्र दोनो स्त्री ग्रह है, किन्तु दोनो के प्रभाव भिन्न भिन्न है।
- चन्द्र – मातृत्व, मातृ प्रवृत्ति, सुन्दरता,
- शुक्र – स्त्री (पत्नी रूप), शारारिक आकर्षण, सौंदर्य का प्रतीक है।
प्रस्तुत फल जन्म नक्षत्र के आधार पर है। कुंडली में ग्रह स्थिति अनुसार फल में अंतर संभव है। अतः किसी भी ठोस निर्णय में पहुंचने के लिए सम्पूर्ण कुंडली अध्यन आवश्यक है।