Naina Devi Temple: नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश
नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है। यह मंदिर देवी के 51 शक्ति पीठों में शामिल है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे।
नैना देवी पैराणिक मान्यता (Naina Devi mythological story in Hindi)
श्री शिवपुराण की कथानुसार देवी सती के शव को लेकर जब भगवान शिव तीनों लोकों का भ्रमण कर रहे थे तो भगवान विष्णु ने उनका मोह दूर करने के लिए सती के शव को चक्र से काटकर गिरा दिया था। जिन-जिन स्थानों पर अंग गिरे वहां शक्ति पीठ माने गए। इस स्थान पर सती के दोनों नेत्र गिरे थे। और पढ़ें: 51 शक्तिपीठ का रहस्य
हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर स्थित यह स्थान पंजाब की सीमा के काफी समीप है। मंदिर में भगवती नैना देवी के दर्शन पिण्डी रूप में होते हैं। श्रावण मास की अष्टमी तथा नवरात्रों में यात्रा बहुत अधिक संख्या में होती है, अन्य दिनों यहां अपेक्षाकृत कम यात्री जाते हैं।
नैनादेवी मंदिर का धार्मिक पृष्ठभूमि (Naina Devi Religious Beliefs in Hindi)
वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा मे माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं।
इस मंदिर के निर्माण तथा उत्पत्ति के विषय में कई दंतकथाएं प्रचलित हैं। जिसमे से सर्वाधिक प्रचलित अवधारणा निम्न है-
एक नैना नाम का गूजर अपने गाय-भैंस आदि पशुओं को चराने के लिए इस पहाड़ी पर आया करता था। इस पर जो पीपल का वृक्ष अब भी विराजमान है उसके नीचे आकर नैना गूजर की एक अनव्याही गाय खड़ी हो जाती और उसके स्तनों से अपने आप दूध निकल पड़ता।
वह यह देखकर सोच-विचार में डूब गया कि एक बिनाब्याई गाय के थनों में इस पीपल के पेड़ के नीचे आकर दूध क्यों आ जाता है। अंततः एक बार उसने उस पीपल के पेड़ के नीचे जाकर जहां गाय का दूध गिरता था वहां पड़े हुए सूखे पत्तों के ढेर को हटाना आरंभ कर दिया।
पत्ते हटाने के बाद उसमें दबी हुई पिण्डी के रूप में मां भगवती की प्रतिमा दिखाई दी। नैना गूजर ने जिस दिन पिण्डी के दर्शन किए, उसी रात को माता ने स्वप्न में उसे दर्शन दिए और कहा कि मैं आदिशक्ति दुर्गा हूं, तू इसी पीपल के नीचे मेरा स्थान बनवा दे। मैं तेरे ही नाम से प्रसिद्ध होउंगी।
उसने प्रातः काल उठते ही देवी मां की आज्ञानुसार उसी दिन से मंदिर की नींव रख दी। शीघ्र ही इस स्थान की महिमा चारों तरफ फैल गई, श्रद्धालु भक्त दूर-दूर से आने लगे। देवी के भक्तों ने भगवती का सुंदर, भव्य तथा विशाल मंदिर बनवा दिया और तीर्थ नैना देवी नाम से प्रसिद्ध हो गया।
नैना देवी मंदिर परिसर (Naina Devi Temple Complex)
नैनादेवी मंदिर शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर स्थित एक भव्य मंदिर है। यह समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अनेको शताब्दी पुराना है। मंदिर के मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति है। मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात आपको दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देगी।
मंदिर के गर्भ ग्रह में मुख्य तीन मूर्तियां है। दाई तरफ माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बाई ओर भगवान गणेश की प्रतिमा है। पास ही में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है।
इस तीर्थ पर माता के मंदिर के अतिरिक्त तीन अन्य दर्शनीय स्थल हैं जो निम्न है-
हवन कुंड
शाक्त सम्प्रदाय में हवन करने का विशेष फल बताया गया है। नवरात्रों में लगातार नौ दिन तक दुर्गा सप्तशती का पाठ करवाने के उपरांत होम करके कन्या पूजन से दुर्गा की पूजा समाप्त करने का विधान है। इसी उद्देश्य से सभी शक्ति पीठों पर हवन कुंड निर्मित किए गए हैं।
नयना देवी तीर्थ पर स्थित इस हवनकुंड का महत्त्व इसलिए भी अधिक माना जाता है क्योंकि गुरु गोविंदसिंह जैसे इतिहास पुरुष ने इस हवन कुंड में हवन किया था।
ब्रह्मकपाली कुंड
नयना देवी मंदिर के समीप ही एक सुंदर सरोवर है जिसे ‘ब्रह्मकपाली कुंड’ कहा जाता है। कपाली भगवान शिव का एक नाम है। संभवतः इस सरोवर का संबंध भगवान शिव के साथ है। कपाली कुंड में स्नान करने से अनेक प्रकार के पाप दूर होते हैं।
प्राचीन गुफा
कपाली कुंड के कुछ ही अंतर पर एक प्राचीन गुफा है। जिस प्रकार माता वैष्णों की गुफा अत्यंत प्राचीन मानी जाती है उसी प्रकार प्रकृति निर्मित यह गुफा कितनी पुरानी है, इस संबंध में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता।
नैना देवी मंदिर के प्रमुख त्योहार (Major Festivals of Naina Devi Temple)
नैना देवी मंदिर में नवरात्रि का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। वर्ष में आने वाली दोनो नवरात्रि, चैत्र मास और अश्विन मास के नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि में आने वाले श्रद्धालुओं कि संख्या दोगुनि हो जाती है। बाकि अन्य त्योहार भी यहां पर काफी धूमधाम से मनाये जाते है।
नैना देवी मंदिर कैसे पहुंचे (How to Reach Naina Devi Temple)
वायु मार्ग: नैनादेवी का नज़दीकी हवाई अड्डा चढ़िगड है। जिसकी मंदिर से दूरी 104 किलोमीटर है। हवाई जहाज से जाने वाले पर्यटक चंडीगढ़ विमानक्षेत्र तक वायु मार्ग से जा सकते है। इसके बाद बस या कार की सुविधा उपलब्ध है।
रेल मार्ग: नैना देवी जाने के लिए पर्यटक चंडीगढ और पालमपुर तक रेल सुविधा ले सकते है। इसके पश्चात बस, कार व अन्य वाहनो से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग: नैनादेवी दिल्ली से 350 कि॰मी॰ कि दूरी पर स्थित है। दिल्ली से करनाल, चण्डीगढ, रोड होते हुए पर्यटक नैना देवी पहुंच सकते है। सड़क मार्ग सभी सुविधाओ से युक्त है।
ठहरने और भोजन की व्यवस्था (Hotel & Dharmashala in Nainda Devi)
इस तीर्थ स्थान पर ठहरने के लिए कई अच्छे होटल और धर्मशाला उपयुक्त दामों पर उपलब्ध है। नैना देवी ट्रस्ट द्वारा यात्री निवास और लंगर की सुविधा भी उपलब्ध है।
नैना देवी मंदिर लंगर
मंदिर न्यास श्री नैना देवी जी द्वारा श्रधालुओं के लिए लंगर भवन का निर्माण किया गया है जिसमे लगभग एक समय में 500 श्रद्धालु बैठकर खाना खा सकते हैं। न्यास द्वारा लंगर में नाश्ता, दोपहर का खाना एवं रात्रि को भोजन नि:शुल्क उपलब्ध करवाया जाता है।
मुफ्त धर्मशाला
न्यास द्वारा श्रधालुओं कि सुविधा हेतु मंदिर के समीप पटियाला धर्मशाला,लंगर एवं लंगर के समीप धर्मशाला का निर्माण करवाया गया है,जिसमे लगभग 1000 श्रद्धालु के नि:शुल्क ठहरने की व्यवस्था है
आसपास के पर्यटन स्थल (Places to visit near Naina Devi)
#1 श्री बाबा बालक नाथ मंदिर
श्री बाबा बालक नाथ का धाम दियोटसिद्ध में जिला मुख्यालय हमीरपुर से 45 कि० मी० दूर बिलासपुर जिला की सीमा रेखा पर पड़ता है। यह स्थान उतरी भारत का एक दिव्य सिद्ध पीठ है जहाँ सिद्धबाबा बालक नाथ का मंदिर स्थित है। मंदिर से करीब छहः कि॰मी॰ आगे एक स्थान “शाहतलाई” स्थित है, ऐसी मान्यता है, कि इसी जगह बाबाजी “ध्यानयोग” किया करते थे।
#2 गुरु का लाहौर
गुरु का लाहौर जिला बिलासपुर में आनंदपुर साहिब पंजाब से 12 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह तीन लोकप्रिय गुरुद्वारों का समूह है। ये तीन गुरद्वारे त्रिवेणी साहिब, गुरुद्वारा पुर साहिब और गुरुद्वारा सेहरा साहिब हैं। गुरु गोविंद सिंह जी कि शादी जीत कौर के साथ 1734 में इसी स्थान पर हुई थी।
#3 कीरतपुर साहिब
कीरतपुर साहिब 1627 में गुरु हर गोबिंद सिंह जी द्वारा बनाया गया था। यहाँ पाताल पुरी स्थित है जो सिखों द्वारा उनके मृतकों की राख लेने का स्थान है। यह सतलुज नदी के तट पर नंगल-रूपनगर-चंडीगढ़ मार्ग पर स्थित है। कीरतपुर साहिब सिखों के लिए एक पवित्र स्थान है। और पढ़ें: सिक्ख धर्म प्रश्नोत्तरी
#4 आनंदपुर साहिब
आनंदपुर साहिब पंजाब के जिला रूपनगर में स्थित है और सिखों के लिए सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। यह वर्ष 1665 में गुरु तेग बहादुर द्वारा स्थापित किया गया था। यहाँ पर होली का त्यौहार “होला मोहल्ला” नाम श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिया गया और हर साल 1,00,000 से भी अधिक श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
#5 बाबा नाहर सिंह जी मंदिर
बाबा नाहर सिंह मंदिर गोबिंद सागर झील के तट पर स्थित है जोकि धोल्रा और बजिया मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह बिलासपुर जिले के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर कुल्लू की रानी द्वारा बाबा नाहर सिंह के सम्मान में बनवाया गया था।
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