परिवर्तिनी एकादशी : व्रत कथा, मुहूर्त एवं पूजा विधि
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को ‘परिवर्तिनी एकादशी’ के नाम से जाना जाता है। इसे पद्मा / पार्श्व एकादशी जयंती भी कहते है।
मान्यता है कि इस दिन व्रत-पूजन करने से अधूरी मनोकामनाएं विष्णु भगवान अवश्य पूरी करते है। इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी 17 सितंबर को है।
पद्मा / परिवर्तिनी / पार्श्व एकादशी व्रत
नाम | परिवर्तिनी एकादशी |
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अन्य नाम | पद्मा एकादशी, पार्श्व एकादशी |
तिथि | भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी |
अनुयायी | हिन्दू |
प्रकार | व्रत |
उद्देश्य | सर्वकामना पूर्ति |
सम्बंधित लेख | एकादशी व्रत |
पद्मा / परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
युधिष्ठिर ने पूछा : केशव ! कृपया यह बताइये कि भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है, उसके देवता कौन है और कैसी विधि है?
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! इस विषय में मैं तुम्हें आश्चर्यजनक कथा सुनाता हूँ, जिसे ब्रह्माजी ने महात्मा नारद कहा था।
नारदजी ने पूछा : चतुर्मुख ! आपको नमस्कार है। मैं भगवान विष्णु की आराधना के लिए आपके मुख से यह सुनना चाहता हूँ कि भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है?
ब्रह्माजी ने कहा : मुनिश्रेष्ठ ! तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है क्यों न हो, वैष्णय जो ठहरे। भादों के शुक्लपक्ष की एकादशी ‘पद्मा एकादशी’ के नाम से विख्यात है। उस दिन भगवान हृषीकेश की पूजा होती है। यह उत्तम व्रत अवश्य करने योग्य है।
सूर्यवंश में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती, सत्यप्रतिज्ञ और प्रतापी राजर्षि हो गये हैं। ये अपने औरस पुत्रों की भाँति धर्मपूर्वक प्रजा का पालन किया करते थे। उनके राज्य में अकाल नहीं पड़ता था. मानसिक चिन्ताएँ नहीं सताती थीं और व्याधियों का प्रकोप भी नहीं होता था। उनकी प्रजा निर्भय तथा धन धान्य से समृद्ध थी। महाराज के कोष में केवल न्यायोपार्जित धन का ही संग्रह था। उनके राज्य में समस्त वर्णों और आश्रमों के लोग अपने अपने धर्म में लगे रहते थे मान्धाता के राज्य की भूमि कामधेनु के समान फल देनेवाली थी। उनके राज्यकाल में प्रजा को बहुत सुख प्राप्त होता था ।
एक समय किसी कर्म का फलभोग प्राप्त होने पर राजा के राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई इससे उनकी प्रजा भूख से पीड़ित हो नष्ट होने लगी। तब सम्पूर्ण प्रजा ने महाराज के पास आकर कहा : नृपश्रेष्ठ ! आपको प्रजा की बात सुननी चाहिए।
पुराणों में मनीषी पुरुषों ने जल को ‘नार’ कहा है। यह ‘नार’ ही भगवान का ‘अयन’ (निवास स्थान) है, इसलिए ये ‘नारायण’ कहलाते है। नारायण स्वरुप भगवान विष्णु सर्वत्र व्यापकरूप में विराजमान हैं। वे ही मेघस्वरुप होकर वर्षा करते हैं, वर्षा से अन्न पैदा होता है और अन्न से पूजा जीवन धारण करती है। नृपश्रेष्ठ ! इस समय अन्न के बिना प्रजा का नाश हो रहा है, अतः ऐसा कोई उपाय कीजिये, जिससे हमारे योगक्षेम का निर्वाह हो।
राजा ने कहा : आप लोगों का कथन सत्य है, क्योंकि अन्न को ब्रह्म कहा गया है। अन्न से प्राणी उत्पन्न होते हैं और अन्न से ही जगत जीवन धारण करता है। लोक में बहुधा ऐसा सुना जाता है तथा पुराण में भी बहुत विस्तार के साथ ऐसा वर्णन है कि राजाओं के अत्याचार से प्रजा को पीड़ा होती है, किन्तु जब मैं बुद्धि से विचार करता हूँ तो मुझे अपना किया हुआ कोई अपराध नहीं दिखायी देता। फिर भी मैं प्रजा का हित करने के लिए पूर्ण प्रयत्न करूँगा।
ऐसा निश्चय करके राजा मान्धाता इने गिने व्यक्तियों को साथ ले, विधाता को प्रणाम करके सघन वन की और चल दिये। वहाँ जाकर मुख्य मुख्य मुनियों और तपस्वियों के आश्रमों पर घूमते फिरे। एक दिन उन्हें ब्रह्मपुत्र अंगिरा ऋषि के दर्शन हुए। उन पर दृष्टि पड़ते ही राजा हर्ष में भरकर अपने वाहन से उतर पड़े और इन्द्रियों को वश में रखते हुए दोनों हाथ जोड़कर उन्होंने मुनि के चरणों में प्रणाम किया। मुनि ने भी ‘स्वस्ति’ कहकर राजा का अभिनन्दन किया और उनके राज्य के सातों अंगों की कुशलता पूछी। राजा ने अपनी कुशलता बताकर मुनि के स्वास्थ्य का समाचार पूछा। मुनि ने राजा को आसन और अर्घ्य दिया। उन्हें ग्रहण करके जब ये मुनि के समीप बैठे तो मुनि ने राजा से आगमन का कारण पूछा।
राजा ने कहा भगवन् ! मैं धर्मानुकूल प्रणाली से पृथ्वी का पालन कर रहा था। फिर भी मेरे राज्य में वर्षा का अभाव हो गया। इसका क्या कारण है इस बात को मैं नहीं जानता।
ऋषि बोले: राजन् ! सब युगों में उत्तम यह सत्ययुग है। इसमें सब लोग परमात्मा के चिन्तन में लगे रहते हैं तथा इस समय धर्म अपने चारों चरणों से युक्त होता है। इस युग में केवल ब्राह्मण ही तपस्वी होते हैं, दूसरे लोग नहीं। किन्तु महाराज तुम्हारे राज्य में एक शुद्र तपस्या करता है, इसी कारण मेघ पानी नहीं बरसाते तुम इसके प्रतिकार का यत्र करो, जिससे यह अनावृष्टि का दोष शांत हो जाय ।
राजा ने कहा : मुनिवर ! एक तो वह तपस्या में लगा है और दूसरे, वह निरपराध है। अतः मैं उसका अनिष्ट नहीं करूँगा आप उक्त दोष को शांत करने वाले किसी धर्म का उपदेश कीजिये।
ऋषि बोले : राजन् ! यदि ऐसी बात है तो एकादशी का व्रत करो। भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में जो ‘पधा’ नाम से विख्यात एकादशी होती है, उसके व्रत के प्रभाव से निश्चय ही उत्तम वृष्टि होगी। नरेश तुम अपनी प्रजा और परिजनों के साथ इसका व्रत करो।
ऋषि के ये वचन सुनकर राजा अपने घर लौट आये। उन्होंने चारों वर्णों की समस्त प्रजा के साथ भादों के शुक्लपक्ष की पथा एकादशी का व्रत किया। इस प्रकार व्रत करने पर मेघ पानी बरसाने लगे। पृथ्वी जल से आप्लावित हो गयी और हरी भरी खेती से सुशोभित होने लगी। उस व्रत के प्रभाव से सब लोग सुखी हो गये।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजन् ! इस कारण इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए। पधा एकादशी के दिन जल से भरे हुए घड़े को वस्त्र से ढककर दही और चावल के साथ ब्राह्मण को दान देना चाहिए, साथ ही छाता और जूता भी देना चाहिए। दान करते समय निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए :
नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञक ।।
अधौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव ।
भुक्तिमुक्तिप्रदश्चेव लोकानां सुखदायकः ॥
बुधवार और श्रवण नक्षत्र के योग से युक्त द्वादशी के दिन बुद्धश्रवण नाम धारण करने वाले भगवान गोविन्द आपको नमस्कार हैं… नमस्कार है। मेरी पापराशि का नाश करके आप मुझे सब प्रकार के सुख प्रदान करें। आप पुण्यात्माजनों को भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले तथा सुखदायक हैं।
राजन् : इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।
2021 में परिवर्तिनी एकादशी व्रत कब है? (Parivartani Ekadashi Vrat Date and Muhurat)
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष के दौरान ग्यारहवें दिन (एकादशी) को आती है। इंग्लिश कलेंडर के अनुसार, यह अगस्त-सितंबर में पड़ता है। इस वर्ष 2021 में परिवर्तिनी एकादशी शुक्रवार, 17 सितंबर को है।
Parivartani Ekadashi (Parsva Ekadashi) 2021 is on September 17, Friday
सूर्योदय (Sunrise) | 17 September 6:17 AM |
सूर्यास्त (Sunset) | 17 September 6:24 PM |
द्वादशी समाप्त (Dwadashi End) | 18 September 6:54 AM |
एकादशी प्रारम्भ (Ekadashi Begins) | 16 September 9:36 AM |
एकादशी समाप्त (Ekadashi Tithi Ends | 17 September 8:08 AM |
हरि वासरा समाप्त (Hari Vasara End) | 17 September 1:49 PM |
पारण समय (Parana Time) | 18 September, 6:18 AM – 6:54 AM |
Parivartani Ekadashi festival dates between 2021 to 2025
Year | Date |
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2021 | Friday, 17th of September |
2022 | Tuesday, 6th of September |
2023 | Monday, 25th of September |
2024 | Saturday, 14th of September |
2025 | Wednesday, 3rd of September |
2026 | Tuesday, 22nd of September |
2027 | Saturday, 11th of September |
2028 | Wednesday, 30th of August |
2021 एकादशी व्रत दिनांक सूची (ekadashi Vrat date list in 2021)
त्यौहार दिनांक | व्रत |
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जनवरी 10, 2025, शुक्रवार | पौष पुत्रदा एकादशी |
जनवरी 25, 2025, शनिवार | षटतिला एकादशी |
फरवरी 8, 2025, शनिवार | जया एकादशी |
फरवरी 24, 2025, सोमवार | विजया एकादशी |
मार्च 10, 2025, सोमवार | आमलकी एकादशी |
मार्च 25, 2025, मंगलवार | पापमोचिनी एकादशी |
मार्च 26, 2025, बुधवार | वैष्णव पापमोचिनी एकादशी |
अप्रैल 8, 2025, मंगलवार | कामदा एकादशी |
अप्रैल 24, 2025, बृहस्पतिवार | वरुथिनी एकादशी |
मई 8, 2025, बृहस्पतिवार | मोहिनी एकादशी |
मई 23, 2025, शुक्रवार | अपरा एकादशी |
जून 6, 2025, शुक्रवार | निर्जला एकादशी |
जून 21, 2025, शनिवार | योगिनी एकादशी |
जुलाई 6, 2025, रविवार | देवशयनी एकादशी |
जुलाई 21, 2025, सोमवार | कामिका एकादशी |
अगस्त 5, 2025, मंगलवार | श्रावण पुत्रदा एकादशी |
अगस्त 19, 2025, मंगलवार | अजा एकादशी |
सितम्बर 3, 2025, बुधवार | परिवर्तिनी एकादशी |
सितम्बर 17, 2025, बुधवार | इन्दिरा एकादशी |
अक्टूबर 3, 2025, शुक्रवार | पापांकुशा एकादशी |
अक्टूबर 17, 2025, शुक्रवार | रमा एकादशी |
नवम्बर 1, 2025, शनिवार | देवोत्थान / प्रबोधिनी एकादशी |
नवम्बर 15, 2025, शनिवार | उत्पन्ना एकादशी |
दिसम्बर 1, 2025, सोमवार | मोक्षदा एकादशी |
दिसम्बर 15, 2025, सोमवार | सफला एकादशी |
दिसम्बर 30, 2025, मंगलवार | पौष पुत्रदा एकादशी |