Pitra Dosha: कब और क्यों लगता है पितृ दोष? जानिए, कारण, लक्षण और उपाय
Pitru Dosha (A Comprehensive Guide): पितृ दोष (Pitra Dosha) भारतीय ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली दोष माना जाता है। यह दोष तब बनता है जब किसी व्यक्ति के पूर्वजों या पितरों की आत्मा असंतुष्ट होती है, या उनकी किसी इच्छा की पूर्ति नहीं होती है।
इसका प्रभाव जातक के जीवन में कठिनाइयाँ, अवरोध और दुःख के रूप में देखा जाता है। आजके इस लेख में हम जानेंगे कि पितृ दोष कैसे बनता है, इसके लक्षण क्या हैं, और इसे दूर करने के उपाय कौन से हैं..
पितृ दोष: कारण, प्रभाव और उपाय | A Comprehensive Guide
पितृ दोष के लक्षण | Pitra Dosh Symptoms in Hindi
Pitra Dosh Symptoms: मुख्य रूप से जन्म कुण्डली से ही पितृ दोष का निर्णय किया जाता है, लेकिन स्वप्न में पिता को देखना या घर में किसी के मरने पर उनका अहसास करना भी पितृ दोष है। पितृ दोष के अन्य लक्षण निम्न है..
- संतान प्राप्ति में कठिनाई: पितृ दोष के कारण संतान प्राप्ति में कई बार कठिनाई होती है।
- बार-बार गर्भपात: गर्भपात का होना भी पितृ दोष का एक लक्षण हो सकता है।
- संतान की अस्वस्थता: संतान का बीमार रहना या अक्सर बीमार पड़ना भी पितृ दोष का संकेत हो सकता है।
- पारिवारिक कलह: परिवार में अक्सर कलह और तनाव का माहौल बना रहना।
- आर्थिक समस्याएं: आर्थिक तंगी और धन हानि का सामना करना पड़ना।
- व्यवसायिक असफलता: व्यवसाय में बार-बार असफलता मिलना।
- दुर्घटनाएं: बार-बार दुर्घटनाओं का शिकार होना।
- मानसिक तनाव: मानसिक रूप से अशांत रहना और तनावग्रस्त रहना।
कुंडली से पितृ दोष का पता कैसे लगाते है? | How to Identify Pitru Dosha in a Birth Chart
Identify Pitru Dosha: सूर्य दोनों आत्मा और पिता का कारक ग्रह है, इसलिए पिता का विचार सूर्य से होता है। इसी प्रकार चंद्रमा माता और मन का कारक है। ग्रहण योग सूर्य और चंद्र की राहु से युति से ग्रहण दोष उत्पन्न होता है।
सूर्य का पुत्र शनि, सूर्य का नैसर्गिक शत्रु भी है, इसलिए शनि को सूर्य पर देखना पितृ दोष है। यह पितृ दोष जातक आदि व्याधि उपाधि को तीनो प्रकार की पीड़ाओं से पीड़ित करता है और उसके हर काम में बाधा आती है। कोई भी काम आम तौर पर निर्विघ्न नहीं होता, दूसरे की दृष्टि में जातक सुखी दिखाई देता है, लेकिन जातक बहुत दुखी है, जीवन भर कई कष्ट सहता है, सूर्य राहु या सूर्य शनि की युति पर निर्भर करता है कि कष्ट किस प्रकार के होते हैं।
कुंडली में चतुर्थ भाव, नवम भाव और दशम भाव में सूर्य या चाँद की युति से उत्पन्न पितृ दोष को श्रापित पितृ दोष कहते हैं। ठीक उसी तरह, पंचम भाव में राहु और गुरु की युति से बना गुरु चांडाल योग भी पितृ दोष का प्रबल कारक होता है, इस दोष के कारण प्रसव मुश्किल होता है, यदि राहु बुध की युति में आठवे या बारहवे भाव में हो या सप्तम या अष्टम भाव में राहु और शुक्र की युति में हो तो पूर्वजो के दोष से पितृ दोष होता है।
यदि राहु और शुक्र की युति द्वादश भाव में हो तो स्त्री जातक पितृ दोष से पीड़ित होगी। यह भी स्पष्ट है कि बारहवा भाव भोग और शैया सुख का स्थान है, इसलिए स्त्री जातक से दोष होना स्वाभाविक है।
यदि कुण्डली में अष्टमेश राहु के नक्षत्र में हो और लग्नेश कमजोर या पीड़ित हो तो जातक पितृ दोष और भूत-प्रेत आदि से जल्दी प्रभावित होगा।
अगर जातक का जन्म सूर्य या चन्द्रग्रहण में हुआ हो और लग्न षष्ट या अष्टम भाव से जुड़ा हो तो जातक पितृ दोष, भूत प्रेत और अतृप्त आत्माओं से पीड़ित होगा।
जन्म कुण्डली में लग्नेश नीच राशि में हो और राहु, शनि या मंगल के प्रभाव से हो तो जातक पितृ दोष और अतृप्त आत्माओं का शिकार होगा।
जन्मकुण्डली में अष्टमेश पंचम भाव में, चतुर्थेश षष्ठ भाव में और लग्न और लग्नेश पापकर्तरी योग में होने पर जातक मातृशाप और अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होगा।
जन्म कुण्डली या नवमांश कुण्डली में चन्द्रमा अपनी नीच राशि में होता है और चन्द्रमा और लग्नेश का संबंध क्रूर या पापपूर्ण राशि से होता है तो जातक पितृ दोष, प्रेमी या अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होता है।
यदि शनि और चन्द्रमा की कुंडली में युति हो, चन्द्रमा शनि के नक्षत्र में हो या शनि चन्द्रमा के नक्षत्र में हो तो जातक शीघ्र ही पितृदोष, अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होगा।
अगर लग्नेश जन्म कुंडली में अपनी शत्रु राशि में निर्बल, क्रूर और पाप ग्रहो से युक्त हो और शुभ ग्रहो की दृष्टि लग्न भाव और लग्नेश पर नहीं पड़ती तो जातक ऊपरी हवा और पितृ दोष से पीड़ित होगा।
यदि जातक का जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुक्ल पक्ष की सप्तमी के मध्य हुआ हो और चन्द्रमा अस्त, निर्बल या दूषित हो, या पक्षबल में निर्बल हो, और राहु और शनि के नक्षत्रों में बदलाव हो रहा हो तो जातक मानसिक उन्माद का शिकार होगा।
जन्म कुंडली में चन्द्रमा राहु का नक्षत्रीय योग बना रहा हो और लग्न और लग्नेश भाव पर हो तो जातक अतृप्त आत्माओं को प्रभावित करेगा।
अगर कुंडली में चन्द्रमा राहु के नक्षत्र में हो और अन्य क्रूर और पापपूर्ण ग्रह लग्न, लग्न या चन्द्रमा पर हो तो जातक अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होगा।कुंडली में गुरु राहु से संबंधित है और लग्नेश और लग्न भाव पाप करने वाले योग में हैं तो जातक को अतृप्त आत्मा अधिक परेशान करती है।
पितृ दोष निवारण के उपाय | Remedies for Pitru Dosha
- श्राद्ध करना: पितृ पक्ष में विधि-विधान से श्राद्ध करना सबसे महत्वपूर्ण उपाय है।
- गाय को रोटी खिलाना: गाय को रोटी खिलाने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
- कौओं को खाना खिलाना: कौवे को खाना खिलाना भी पितृ दोष निवारण का एक प्रभावी उपाय है।
- पीपल के पेड़ की पूजा: पीपल के पेड़ की पूजा करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
- गंगा स्नान: गंगा स्नान करने से पापों का नाश होता है और पितरों को शांति मिलती है।
- दान-पुण्य करना: दान-पुण्य करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है और पुण्य का संचय होता है।
- मंत्र जाप: कुछ विशेष मंत्रों का जाप करने से भी पितृ दोष का निवारण हो सकता है। (और पढ़ें: पितृ दोष निवारक शाबर मंत्र