Punarvasu: पुनर्वसु नक्षत्र की सम्पूर्ण जानकारी
Punarvasu Nakshtra: पुनर्वसु नक्षत्र राशि पथ में 80.00 अंशों से 93.20 अंशों के मध्य स्थित माना गया है। इस नक्षत्र के प्रथम तीन चरण मिथुन राशि और अंतिम चरण कर्क राशि के अंतर्गत आते हैं।
इस नक्षत्र के 4 तारे है। इसे मलयालम भाषा में पुनर्थम और दक्षिण भारत में पुनर्पुषम कहा जाता है।
पुनर्वसु का अर्थ: प्रकाश की वापसी, अर्थात् दिव्य क्षमता, अंधेरे में आध्यात्मिक प्रकाश लाने के लिये होता है, पुनर्वसु = पुनः+वासु अर्थात् पुनस्थापना।
पुनर्वसु नक्षत्र (पौराणिक मान्यता)
पुनर्वसु के देवता देवी अदिति (ऋषि कश्यप कि पत्नी) है। ये सूर्य की माता तथा जीनव चक्र, जीवो की चेतना और ब्रह्माण्ड के सातो आयाम की देवी है।
ऋषि कश्यप और अदिति से 12 आदित्य हुए। जो क्रमशः 1. इन्द्र, 2. विष्णु 3. वागा, 4. त्वस्था, 5. वरुण 6. अर्यमा, 7. पुषा, 8. मित्र, 9. अग्नि, 10. पर्ज्यन्य, 11. विवस्वान 12. दिनकर है।
विशेषताएँ
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मा जातक भोगी, सुन्दर, लोकप्रिय और पुत्र मित्रादि से युक्त, स्पष्ट भाषी, मेधावी, रत्न-सोना पंसद करने वाला, धार्मिक प्रसिद्ध, विष्णु उपासक और दीर्घायु होता है।
पुनर्वसु का जातक सन्तुष्ट, कठिन परिश्रमी, आत्मविश्वासी भी होता है। एक बार टूट कर पुनः नए सिरे शुरु करने का पुनर्वसु प्रतीक है। पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं शांतिप्रिय तथापि तार्किक प्रकृति की होती है
पुनर्वसु नक्षत्र में क्या न करे?
अनुकूल कार्य: यह नक्षत्र खोज, तीर्थयात्रा, देवीपूजा, नव निर्माण, परिवर्तन, वाहन खरीदना, खेती, बागवानी, शिक्षा, ध्यान, विवाह के अनुकूल है।
प्रतिकूल कार्य: यह नक्षत्र जमीन खरीदना, उधार लेना, कानून संबंधी कार्य के लिए प्रतिकूल है।
प्रस्तुत फल जन्म नक्षत्र के आधार पर है। कुंडली में ग्रह स्थिति अनुसार फल में अंतर संभव है। अतः किसी भी ठोस निर्णय में पहुंचने के लिए सम्पूर्ण कुंडली अध्यन आवश्यक है।