इक्ष्वाकु वंशी राजा ‘अनरण्य’ का रावण को श्राप
रावण रामायण का एक प्रमुख चरित्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण दशानन नाम से भी प्रसिद्ध था। रावण के जीवन से जुडी कई कथाएं है, जिमसे से एक इक्ष्वाकु वंशी राजा ‘अनरण्य’ का रावण को श्राप देना है आइयें जानते है इस कथा…
ये उस समय की बात है जब ब्रह्मा और शिव से शक्ति प्राप्त कर युद्धकांक्षी रावण नगरों में विचरने लगा। उसने श्रेष्ठ राजाओं के समीप जाकर कहा कि, या तो तुम मुझसे युद्ध करो या अपनी हार मानो। रावण को युद्ध मे परास्त करना देवताओं के लिए सम्भव न था, तो आम मनुष्यो की तो बात ही क्या? इसलिए तब बुद्धिमान् राजाओं ने परस्पर गोष्ठी कर अपनी हार मान ली।
जब मरुत, महेन्द्र, वरुण, सुरथ, गाधि, गय और पुरूरवा आदि सब राजाओं ने उससे अपनी पराजय स्वीकार ली।तब रावण अयोध्यापुरी में पहुँचा। वहाँ रावण ने महाराज अनरण्य से भी वैसा ही कहा। किन्तु अयोध्यापति महाराज अनरण्य ने कहा- “मै युद्ध करूँगा।” महाराज अनरण्य ने पहले ही से रावण का वृत्तान्त सुनकर अपनी सेना सजा रखी थी।
महाराज अनरण्य और रावण का अद्भुत युद्ध होने लगा किन्तु कुछ ही क्षणों में रावण के मायावी राक्षसों ने हाहाकार मचा दिया। पृथ्वी रक्तरंजित हो गई। महाराज अनरण्य ने राक्षसराज के शिर में आठ सौ बाण मार उसे विक्षिप्त कर देना चाहा। किन्तु उन जब बाणों से रावण को खरोंच तक न लगी। और पढ़ें: जब, भूल से करवा दिया रावण ने पुत्री का विवाह
इतने में क्रोध में भरकर रावण ने महाराज के मस्तक पर जो एक थप्पड़ लगाया तो उसे वे सहन न कर सके और जैसे वन में बिजली का मारा साखू का वृक्ष गिर पड़ता है, वैसे ही वे धराशायी हुए।
आहत होने पर उन्होंने कहा- ‘हे राक्षस! यह तुमने इक्ष्वाकुकुल का अपमान किया है, इसके कारण मैं कहता हूँ कि यदि मैंने दान दिया हो, होम किया हो, तप किया हो और न्यायपूर्वक प्रजापालन किया हो तो इक्ष्वाकुकुल में उत्पन्न योद्धा (राम) तुम्हार वध करें। और पढ़ें: रामायण के प्रमुख पात्रो का परिचय
महाराज अनरण्य के भुख से यह वचन निकलते ही मेघों की गर्जना के तुल्य आकाश से नगाड़े के बजने का शब्द सुनाई पड़ा और पुष्प वृष्टि हुई। तदनन्तर महाराज अनरण्य स्वर्ग सिधारे और रावण भी चला गया।
इतिहास साक्षी है कि इक्ष्वाकु कुल में राजा दशरथ के पुत्र के रूप में श्री राम का जन्म हुआ। जिन्होने रावण का वध किया। इसलिए कहाँ जाता है कभी अपनी शक्ति का दुरुप्रयोग नही करना चाहिए।
jai shri ram 🙏
जय श्री राम 🙏