राजकुमारी अमृत कौर । जीवनी
राजकुमारी अमृत कौर आहलुवालिया स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा सामाजिक कार्यकर्ता थीं। अमृृृत कौर 16 वर्ष तक महात्मा गांधी की सचिव और स्वतंत्र भारत की प्रथम महिला केंद्रीय मंत्री (दस वर्षों तक स्वास्थ्य मंत्री) भी रही थी।
Rajkumari Amrit Kaur Complete Information
पूरा नाम | राजकुमारी अमृत कौर आहलुवालिया |
जन्म | 2 फ़रवरी, 1889 कपूर थला, पंजाब |
मृत्यु | 2 अक्टूबर, 1964 |
पिता | राजा हरनाम सिंह |
माता | रानी हरनाम |
धर्म | कैथोलिक |
विवाह | अविवाहित |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता |
जेल यात्रा | वर्ष 1930 में ‘दांडी मार्च’ के दौरान |
विशेष योगदान | 1927 में ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन’ की स्थापना। AIIMS (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान। |
अन्य जानकारी | भारत की प्रथम महिला केंद्रीय मंत्री। 1950 में इन्हें ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (WHO) का अध्यक्ष बनाया गया था। यह सम्मान हासिल करने वाली वह पहली एशियायी महिला थीं। |
राजकुमारी अमृत कौर आहलुवालिया जीवनी (Rajkumari Amrit Kaur Biography in Hindi)
राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फ़रवरी, 1889 को पंजाब के कपूर थला में हुआ था।इनके पिता का नाम राजा हरनाम सिंह औऱ माता का नाम रानी हरनाम सिंह था। पिता कपूरथला, पंजाब के राजा थे।
राजा हरनाम सिंह की आठ संतानें थीं, जिनमें राजकुमारी अमृत कौर अपने सात भाईयों में अकेली बहन थीं। अमृत कौर के पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था।
शिक्षा और प्रारम्भिक जीवन
राजकुमारी अमृत कौर का जन्म पंजाब के कपूर थला में हुआ था। लेकिन लखनऊ में बड़ी हुई, जहां उनके पिता राज परिवार की अवध वाली जमीन की देखरेख करते थे। सरकार ने उन्हें अवध की रियासतों का मैनेजर बनाकर अवध भेजा था।
अमृत कौर की स्कूली पढ़ाई इंग्लैंड के ‘शेरबॉर्न स्कूल फॉर गर्ल्स’ से शुरू हुई। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एम. ए किया और पढाई पूरी होते ही भारत लौट आईं।
अमृत कौर को थी खेल में रुचि
राजकुमारी अमृत कौर बचपन से ही खेल कूद में आगे रहती थी। उन्हें टेनिस खेलना बेहद पसंद था। वे स्कूल में वे हॉकी, लैकरोस क्रिकेट टीम की कप्तान भी बनी थी। ब्रिटेन में वे अपने स्कूल की हेड गर्ल थी। उन्होंने देश में ‘नेशनल स्पोर्ट्स ऑफ इंडिया’ की स्थापना की।
स्वतंत्रता सेनानी के रूप में
अमृत कौर के पिता के गोपाल कृष्ण गोखले से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। गोखले से प्रभावित होकर अमृत ने स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ने का फैसला किया। 1919 में महात्मा गांधी से मुलाकात के बाद उनके जीवन को दिशा ही बदल गई।
हालांकि बापू के संपर्क में आने से पूर्व भी उन्होंने सामाजिक बुराइयों, पर्दा पर्था, बाल विवाह और देव दासी प्रथा के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू की थी। 1927 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (पीडब्ल्यूडी) की स्थापना हुई। अमृत कौर इसकी संस्थापक थी।
दो साल बाद उन्होंने महात्मा गांधी के साथ ‘सविनय आज्ञा आंदोलन’ में भाग लिया। गांधीजी के नेतृत्व में 1930 में ‘दांडी मार्च ‘ यात्रा की और जेल की सजा भी काटी। लगभग उसी समय (1930) उन्हें गांधीजी का सचिव बनने के लिए कहा गया। इस पद पर वे करीब 16 साल तक रही। 1934 से वे गांधीजी के आश्रम में ही रहने लगी और भौतिक जीवन की सभी सुख्-सुविधाओं को छोड़ कर देशहित के कार्य में लग गई।
अमृत कौर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रतिनिधि के तौर पर 1937 में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्नू गई। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया।
राजकुमारी अमृत कौर की उपलब्धियां
ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें ‘सलाहकार बोर्ड ऑफ एजुकेशन’ के सदस्य के रूप में नियुक्त किया, लेकिन उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था।
नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना में भी उनकी अहम भूमिका थी। वे एम्स की पहली अध्यक्ष भी बनाई गई। वे टीबी एसोसिएशन आफ इंडिया और हिन्द कुष्ठ निवारण संघ की अध्यक्ष पद पर रहने के साथ 1950 से 1964 अन्तर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसाइटी की अपाध्यक्ष भी रहीं।
वह सेंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड को मुख्य आयुक्त भी रही। 1950 में उन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन का अध्यक्ष भी बनाया गया। वह यह सम्मान पाने वाली पहली एशियाई महिला थी। 1957 में बाल कल्याण के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ चाइल्ड वेलफेयर की स्थापना की। दिल्ली के ‘लेडी इर्विन कॉलेज’ को कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं।
भारत की प्रथम महिला केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री
अमृत कौर हिमाचल प्रदेश के मंडी-महासू लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर जोती थी। उन्हें जवाहरलाल नेहरू ने अपने मंडल में स्थास्थ्य मंत्री बनाया। राजकुमारी अमृत कौर आजाद भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री रही थी।
1951-57 में पहले लोकसभा चुनाव में कुल चौबीस महिलाएं चुनाव जीत कर आई थी, उनमें राजकुमारी अमृत कौर भी थीं। वे 1947 से 1957 तक इस पद पर रहीं। 1957 से 1964 वे राज्यसभा की सदस्य भी वहीं।यही नहीं उन्होंने दिल्ली में एम्स की स्थापना के लिए भी काम किया ऐम्स उन्हीं की देन है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका
स्वास्थ्य मंत्री के रूप में, कौर ने नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसके पहले अध्यक्ष बनी।
कौर ने 1956 में AIIMS की स्थापना के लिए लोकसभा में एक विधेयक पेश किया, जिसके बाद भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराने के बाद की गई सिफारिश के बाद कौर ने एम्स की स्थापना के लिए धन जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राजकुमारी अमृत कौर की मृत्यु कैसे हुई?
राजकुमारी एक प्रसिद्ध विदुषी महिला थीं। उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय, स्मिथ कालेज, वेस्टर्न कालेज, मेकमरे कालेज आदि से डाक्ट्रेट मिली थी। उन्हें फूलों से तथा बच्चों से बड़ा प्रेम था। वे बिल्कुल शाकाहारी थीं और सादगी से जीवन व्यतीत करती थीं। बाइबिल के अतिरिक्त वे रामायण और गीता को भी प्रतिदिन पढ़ने से उन्हें शांति मिलती थी।
राजकुमारी अमृत कौर की मृत्यु 2 अक्टूबर 1964 को दिल्ली में हुई। उनकी इच्छा के अनुसार उनको दफनाया नहीं गया, बल्कि जलाया गया।