रामायण के प्रमुख पात्रों का परिचय
रामायण से हम सब परिचित हैं। हमारे परिवार के कई सदस्य तो ऐसे होंगे जो रामायण कई बार पढ़ चुके हैं। फिर भी युवा पीढ़ी में ज्यादातर इस महाकाव्य के सभी पात्रों से परिचित नही है।
राम-सीता परिवार के अमर पात्र (Main Characters of the Ramayana Hindi)
हम यहां दे रहे हैं रामायण के सभी प्रमुख पात्रों का परिचय। इसे पढ़ लेने के बाद रामायण को आसानी से और अच्छे से समझा जा सकाता सकेगा।
राजा दशरथ (वचन के प्रति समर्पित)
अयोध्या के रघुवंशी (सूर्यवंशी) कुल के प्रतापी राजा। उनकी इंद्र से भी मित्रता थी। वे राजा अजा व इन्वदुमती के पुत्र थेे तथा इक्ष्वाकु कुल मे जन्मे थे। राजा दशरथ के चरित्र में आदर्श महाराजा, पुत्रों को प्रेम करने वाले पिता और अपने वचनों के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति दर्शाया गया है।
राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं – कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी। जिनसे विष्णु अवतार ‘राम‘ सहित लक्षमण, भरत और शत्रुघ्न हुए।
राजा जनक (राजा होकर भी ऋषि तुल्य जीवन)
इनका वास्तविक नाम सीरध्वज था। यह जनकपुर के राजा थे। ये राजा होकर भी ऋषियों का-सा जीवन व्यतीत करते थे। इसलिए इन्हें ‘विदेह’ भी कहा जाता था।
इनकी दो कन्याएँ सीता तथा उर्मिला हुईं। जिनका विवाह, राम तथा लक्ष्मण से हुआ। इनके भाई का नाम कुशध्वज था, जिनकी 2 कन्याएँ मांडवी तथा श्रुतिकीर्ति थी। जिनका विवाह भरत तथा शत्रुघ्न से हुआ।
श्री राम (मर्यादा पुरषोत्तम)
राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। इन्हें श्रीराम या श्रीरामचन्द्र के नामों से भी जाना जाता है। रामायण के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ ने पुत्र की कामना से यज्ञ कराया जिसके फलस्वरूप उनके पुत्रों का जन्म हुआ। श्रीराम का जन्म देवी कौशल्या के गर्भ से अयोध्या में हुआ था। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम जयंती या राम नवमी का पर्व मनाया जाता है।
श्रीराम जी चारों भाइयों में सबसे बड़े थे। श्री राम का विवाह राजा जनक की पुत्री सीता के साथ हुआ था। जिनसे उनके ‘लव, कुश‘ पुत्र हुए।
राम ने पिता ने दिये वचन को पूर्ण करने के लिए सीता और लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास स्वीकारा। जहाँ रावण ने सीता का हरण कर लिया। राम और रावण के मध्य भीषण युद्ध हुआ। अंतः राम ने रावण को मृत्यु के घाट उतारकर सीता को छुड़वाया।
सीता (असाधारण पतिव्रता)
देवी सीता मिथिला के नरेश राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं। इन्हें पृथ्वी से उत्पन्न कहा जाता है। त्रेतायुग में इन्हें सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार कहा गया है।
इनका विवाह अयोध्या नरेश राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्री राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था।
लक्ष्मण (राम के प्रति एकनिष्ठा)
लक्षमण राजा दशरथ के तीसरे पुत्र थे, इनकी माता सुमित्रा थी। लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार माना जाता है। लक्ष्मण हर कला में निपुण थे, चाहे वो मल्लयुद्ध हो या धनुर्विद्या।
इनका भातृ प्रेम अनुकरणीय है। इन्होंने श्रीराम की सेवा में अपना जीवन व्यतीत किया और जीवन भर छाया की भाँति उनकी सेवा में लगे रहे। इनके अन्य भाई भरत और शत्रुघ्न थे। इन्होंने राम-सीता के साथ 14 वर्षों का वनवास प्राप्त किया। इनकी पत्नी का नाम उर्मिला था।
भरत (भ्रातृ प्रेम की सजीव मूर्ति)
राजा दशरथ और कैकेयी के पुत्र। भ्रातृ प्रेम की तो ये सजीव मूर्ति थे। नन्दिग्राम में तपस्वी जीवन बिताते हुए ये श्रीराम के आगमन के इंतजार में चौदह वर्ष तक राम की प्रतीक्षा करते रहे।
भरत का विवाह मांडवी के साथ हुआ था, जिनसे तक्ष और पुष्कल नामक दो पुत्र हुए।
शत्रुघ्न (महान योद्धा)
राजा दशरथ और सुमित्रा के पुत्र, राम के सबसे छोटे भाई। जिस प्रकार लक्षमण, राम की छाया की भाँति उनकी सेवा में लगे रहे। उसी प्रकार शत्रुघ्न भी भरत की सेवा में लगे रहते थे। इन्होंने राम-राज स्थापित होने पर अनेक राजाओं को पराजित किया और मथुरा के दुष्ट राजा लवणासुर का वध किया।
उर्मिला (त्याग और समर्पण की देवी)
राजा जनक रानी सुनयना की पुत्री। सीता की बहन और लक्ष्मण की पत्नी। वह जनकपुर के राजा जनक और सीता की छोटी बहन और लक्ष्मण की पत्नी। लक्ष्मण और उर्मिला के दो पुत्र थे जिनका नाम थे – ‘अंगद और चन्द्रकेतु’। अंगद ने अंगदीया पुरी तथा चन्द्रकेतु ने चन्द्रकांता पुरी की स्थापना की थी।
श्रुतकीर्ति (शत्रुघ्न की पत्नी)
श्रुतकीर्ति राजा कुशध्वज की पुत्री थी, श्रुतकीर्ति का विवाह भगवान राम के अनुज शत्रुघ्न से हुआ था। इनके दो पुत्र हुए, शत्रुघति और सुबाहु। कुशध्वज मिथिला के राजा निमि के पुत्र और राजा जनक के छोटे भाई थे।
मंथरा (राम के विरुद्ध भड़काने वाली)
मंथरा अयोध्या के राजा दशरथ की रानी कैकेयी की प्रिय दासी थी। वह एक कुबड़ी स्त्री थी। शारीरिक दुर्गुण के कारण वह आजीवन अविवाहित रही। जब कैकेयी का विवाह हो गया तो वह कैकेयी के साथ अयोध्या आ गयी।
ये केकई को राम के खिलाफ भड़काती थी, तांकि मंदोदरी के पुत्र भरत को राज गद्दी मिल सके। इसी के कारण प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष के लिए वनवास भोगना पड़ा था।
रावण कुल के प्रमुख अमर पात्र
रावण (महान शिव भक्त)
रावण रामायण का एक प्रमुख चरित्र है। रावण लंका (वर्तमान श्री लंका) का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश = दस + आनन = मुख) भी था।
रावण ऋषि पुलस्त्य का पौत्र और विश्रवा का पुत्र था। विश्रवा ऋषि के तीन पत्नियाँ थीं- पुष्पोत्कटा, राका और मालिनी। रावण पुष्पोत्कटा (केकसी) केे पुत्र थे। महाभारत के सत्योपख्यान के अनुसार रावण के एक भाई और एक बहन थे। भाई कुंभकर्ण था और कुंभीनसी बहन थी। मालिनी के गर्भ से विभीषण, राका से खर और सुपनाखा हुए।
जबकि कूर्म पुराण के अनुसार विश्रवा ने देववर्णिनी से वैश्रवण को, कैकसी से रावण, कुम्भकर्ण, शूर्पणखा तथा विभीषण को, पुष्पोत्कटा से महोदर, प्रहस्त, महापार्शव खर एवं कुम्भीनसी को तथा राका से त्रिशरा, दूषण तथा विधुजिह्न को उत्पन्न करते हैं।
रावण एक महान शिव भक्त, प्रकान्ड विद्वान, उद्भट राजनीतिज्ञ, महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली, शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकान्ड विद्वान एवं महाज्ञानी था।
रावण के शासन काल में लंका का वैभव अपने चरम पर था और उसने अपना महल पूरी तरह स्वर्ण से बनाया था, इसलिये उसकी लंकानगरी को सोने की नगरी भी कहा जाता है। रावण का विवाह मंदोदरी से हुआ।
मंदोदरी (रावण की पत्नी)
मंदोदरी मयदानव की पुत्री थी। मंदोदरी रामायण के पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा गया है। मंदोदरी का विवाह लंकापति रावण के साथ हुआ था।
मंदोदरी एक पतिव्रता स्त्री थी, वह रावण को सदा अच्छी सलाह देती थी। कि बुराई के मार्ग को त्याग कर सत्य की शरण में आ जाए, लेकिन अपनी ताकत पर घमंड करने वाले रावण ने कभी मंदोदरी की बात को गंभीरता से नहीं लिया।
कुंभकर्ण (महान अविष्कारक)
रावण का भाई। राम-रावण-युद्ध में राम ने इसका वध किया था। वह ऋषि व्रिश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र तथा लंका के राजा रावण का छोटा भाई था।
कुम्भ अर्थात घड़ा और कर्ण अर्थात कान, बचपन से ही बड़े कान होने के कारण इसका नाम कुम्भकर्ण रखा गया था। यह विभीषण और शूर्पनखा का बड़ा भाई था। बचपन से ही इसके अंदर बहुत बल था, इतना कि एक बार में यह जितना भोजन करता था उतना कई नगरों के प्राणी मिलकर भी नहीं कर सकते थे।
विभीषण (रावण का रामभक्त भाई)
विभीषण रावण का छोटा भाई था। विभीषण की पत्नी का नाम सरमा और बेटी का नाम त्रिजटा था। विभीषण राम भक्त थे। इन्होंने लंका में रहते हुए भी राम भक्ति की, जहाँ भगवान श्री राम का शत्रु रावण का राज था।
किन्तु वलरावण ने इन्हें लंका से निकाल दिया था। यह राम से जाकर मिल गए और राम की सहायता की। रावण की मृत्यु के बाद यही लंका का राजा बने।
मेघनाद (इंद्र को पराजय किया)
मेघनाद’ अथवा इन्द्रजीत रावण के पुत्र था। इंद्र को परास्त करने के कारण ही ब्रह्मा जी ने इसका नाम इन्द्रजीत रखा था। मेघनाद पितृभक्त पुत्र था। यह पता चलने पर की राम स्वयं भगवान है फिर भी उसने पिता का साथ नही छोड़ा।
जब उसकी माँ मन्दोदरी ने उसे यह कहा कि मनुष्य मुक्ति की ओर अकेले जाता है तब उसने कहा कि पिता को ठुकरा कर अगर मुझे स्वर्ग भी मिले तो मैं ठुकरा दूँगा। राम-रावण युद्ध में इसका वध लक्ष्मण ने किया था।
शूर्पणखा (रावण की बहन)
शूर्पणखा, रावण की बहन थी। सूपे जैसी नाखूनों की स्वामिनी होने के कारण उसका नाम शूर्पणखा पड़ा। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब राम और लक्ष्मण ने शूर्पणखा केे विवाह करने की याचना को अस्वीकार कर दिया तब वह क्रोधित होकर सीता पर आक्रमण करने के लिये झपटी।
इस पर लक्ष्मण ने उसके नाक काट दिये। अपमानित होकर वह अपने भाई रावण के पास गयी और रावण ने इस अपमान का बदला लेने की प्रतिज्ञा की। रावण, सीता को चुरा ले गया। राम-रावण युद्ध हुआ। अन्ततः राम ने जब रावण का वध कर सीता को छुड़वाया।
ताड़का (100 हाथियों का बल)
सुकेतु की पुत्री थी जिसका विवाह सुड नामक राक्षस के साथ हुआ था। यह अयोध्या के समीप स्थित सुंदर वन में अपने पति और दो पुत्रों ‘सुबाहु और मारीच’ के साथ रहती थी।
इसी वन में विश्वामित्र सहित अनेक ऋषि-मुनि भी रहते थे। उनके जप, तप और यज्ञ में ये राक्षस गण हमेशा बाधाएँ पहुंचाते थे। ताड़का के प्रकोप से सुंदर वन का नाम ताड़का वन पड़ गया था।
विश्वामित्र राजा दशरथ से अनुरोध कर राम और लक्ष्मण को अपने साथ सुंदर वन लाए। जहां राम लक्षण ने ताड़का और सुबाहु का वध कर दिया। मारीच राम के बाण से आहत होकर दूर दक्षिण में समुद्र तट पर जा गिरा।
त्रिजटा (राम-सीता पर आस्था)
रावण की अशोक वाटिका में रहने वाली एक राक्षसी थी। मन्दोदरी ने सीताजी की देख-रेख के लिए उसे विशेष रूप से सुपुर्द किया था। वह राक्षसी होते हुए भी सीता की हितचिंतक थी।
जब राम और रावण की सेनाओं के बीच युद्ध हो रहा था, तब त्रिजटा अपने स्रोतों से मिल रही तमाम जानकारियों को सीता तक पहुंचती थी।
सुरसा (सर्पो की माता)
सुरसा समुद्र में रहने वाली नागमाता थी। सीताजी की खोज में समुद्र पार करने के समय सुरसा ने राक्षसी का रूप धारण कर हनुमान का रास्ता रोका था। उसने पवनपुत्र हनुमान से कहा था कि मैं तुमको खाऊँगी।
हनुमान के समझाने पर जब वह नहीं मानी, तब हनुमान ने अपना शरीर उससे भी बड़ा कर लिया। जैसे-जैसे सुरसा अपना मुँह बढ़ाती जाती, वैसे-वैसे हनुमान शरीर बढ़ाते जाते। बाद में हनुमान ने अचानक ही अपना शरीर बहुत छोटा कर लिया और सुरसा के मुँह में प्रवेश करके तुरंत ही बाहर निकल आये।
सुरसा ने बाद में बताया कि वह देवताओं के कहने पर परीक्षा लेने के उदेश्य से आयी थी। सुरसा ने हनुमान के बुद्धि और बल से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया तथा उनकी सफलता की कामना की।
मारीच (रावण का मामा)
मारीच, ताड़का का पुत्र था तथा उसक पिता का नाम सुन्द था। यह भी विश्वामित्र के यज्ञ का विध्वंस करने आया था। लेकिन राम के विष्णु अवतार होने की असलियत जानकर राम के प्रति आस्था जागी।
रावण के कहने पर स्वर्णमृग बनकर सीता हरण में इसने रावण को सहयोग प्रदान किया और श्रीराम के द्वारा मारा गया।
प्रहस्त (रावण का सेनापति)
प्रहस्त लंका के राजा रावण का सेनापति था। युद्ध में अकम्पन की मृत्यु हो जाने के बाद रावण ने प्रहस्त को युद्ध के लिए भेजा था। लक्ष्मण तथा प्रहस्त के बीच भीषण युद्ध हुआ तथा अंत में लक्ष्मण ने उसका वध कर डाला।
विराध (दंडक वन का राक्षस)
दंडक वन में रहने वाला एक राक्षस। इसका राम-लक्ष्मण ने मिलकर वध किया था।
शंबासुर (इंद्र और दशरथ के साथ युद्ध)
एक राक्षस जिसको इंद्र ने मारा था। उस युद्ध में इंद्र की सहायता के लिए राजा दशरथ भी गए थे।
Your Just Read:- Ramayan Ke pramukh Patra
प्रस्तुत लेख में रामायण के विभिन्न पत्रों को संक्षेप में बताया गया है, यह लेख गागर में सागर है। अति शीघ्र अन्य पात्रों को भी इस सूचि में जोड़ दिया जायेगा।
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thank you
haa kaiikaii chhe
Hanuman ka naam kidar hai
thanks
Good
Good arcticle
Oo bhai hanuman(sankar swaim Kesari Nandan,ram ji kaa Bharat jaise bhai)ji kitthe hai
अभी लेख में राम और राक्षस कुल का ही बताया गया है। वानर कुल शेष है। रामायण में सेकडो किरदार है। लेख को आगे भी अपडेट किया जाता रहेगा।
Thank you 😊