ऋषि पंचमी व्रत कथा और पूजन विधि
ऋषिपंचमी का त्यौहार भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार हरतालिका तीज के 2 दिन बाद और गणेश चतुर्थी के अगले दिन पड़ता है।
मान्यता है कि यह व्रत लोगों के समस्त पापों को समाप्त करता है और शुभ फलदायी होता है। यह व्रत ऋषियों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता, समर्पण और सम्मान की भावना को दर्शाता है।
2021 में ऋषि पंचमी कब है? (Rishi Panchami 2021 Date and Muhurat In Hindi)
इस वर्ष ऋषि पंचमी 11 सितंबर को है।
सूर्योदय (Sunrise) | 11-Sep-2021 6:16 AM |
सूर्यास्त (Sunset) | 11-Sep-2021 6:30 PM |
पंचमी प्रारंभ (Panchami Tithi Begins) | 10-Sep-2021 9:58 PM |
समाप्त समाप्त (Panchami Tithi Ends) | 11-Sep-2021 7:37 PM |
पूजा मुहूर्त (Rishi Panchami Puja Muhurat) | 11 September 11:10 AM से 1:36 PM तक |
ऋषि पंचमी व्रत के फायदे (Benefits of Rishi Panchami Fasting In Hindi)
यह व्रत जाने -अनजाने में हुए पापों को नष्ट करने वाला है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति शुद्ध मन से इस व्रत को करें तो उसके सारे पाप नष्ट हो सकते हैं और अगले जन्म में उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं जाने-अनजाने राजस्वला स्त्री द्वारा किए गए पापों से मुक्ति पाने के लिए ऋषि पंचमी को काट माना गया है।
ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi Panchami Vrat Story in Hindi)
ऋषि पंचमी पहली कथा (Rishi Panchami Story in India)
विदर्भ देश मे एक उनक नामक ब्राह्मण रहना था। पतिव्रत धर्म मे अग्रगण्या उसकी स्त्री का नाम सुशोला था उस ब्राह्मण के घर मे केवल दो सन्ताने थीं-एक कन्या और एक पुत्र। पुत्र परम्परागत संस्कारों के कारण थोड़ी हो उम्र मे सम्पूर्ण वेद-शास्त्रो का ज्ञाता हा गया था।
यद्यपि उसकी बहन भी बहुत सुशीला थी और अच्छे कुल मे ब्याही थी, किन्तु पूर्व जन्म के किसी पाप के कारण वह विधवा हो गई थी। उसी दुःख से संतप्त वह ब्राह्मण अपनी स्त्री और कन्या-सहित गंगा के किनारे वास करने लगा और वहाँ धर्म-चर्चा करते हुए समय बिताने लगा। कन्या अपने पिता की सेवा-सुश्रूषा करती थी और पिता अनेक ब्रह्म चारियों को वेद पढ़ाता था।
एक दिन सोती हुई कन्या के शरीर मे अकस्मात् कीड़े पड़ गये। कन्या ने अपनी दशा देखकर माता से कहा। माता ने कन्या के इस दुःख से दुखी होकर बहुत पश्चात्ताप किया और उसने पति को सब वृत्तान्त सुनाकर पूछा-हे भगवन्। मेरी इस परम साध्वी कन्या की यह दशा क्यों हो गई ?”
उत्तंक ने प्रथम तो समाधिस्थ होकर इस घटना के कारण का विचार किया और स्त्री को उत्तर दिया कि पूर्वजन्म मे यह कन्या ब्राह्मणी थी। इसने रजस्वला अवस्था में अपने बरतनों का स्पर्श किया। इसी पाप के कारण इसके शरीर मे कोड़े पड़ गये हैं।
धर्म-शास्त्र मे लिखा है कि रजस्वला स्त्री प्रथम दिन चाण्डालिनी के समान, दूसरे दिन त्रह्मघातिनी के समान और तीसरे दिन धोबिनी के समान अपवित्र रहती है। चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है। इसके अतिरिक्त इस कन्या ने इसी जन्म में एक और भी अपराध किया है। वह यह कि इसने स्त्रियों को ऋषि पञ्चमी का व्रत करते देख उनकी अवहेलना की। अतः इसके शरीर में कीड़े पड़ने का एक यह भी कारण है।
उक्त व्रत की विधि को देखने के कारण ही इसने ब्राह्मण-कुल मे जन्म पाया है; अन्यथा यह चाण्डाल के घर जन्म लेती। हे प्रिये! ऋषि पञ्चमी का व्रत सब व्रतों में प्रधान है, क्योंकि इसी के प्रभाव से स्त्री सौभाग्य-सम्पन्न रहती है और रजस्वला होने की अवस्था मे अज्ञानपूर्वक होने वाले स्पर्शादि दोषों से मुक्त हो जाती है ।
ऋषि पंचमी दूसरी कथा (Rishi Panchami Story in Nepal)
सत्ययुग मे, विदर्भ देश मे श्येनजित नामक एक राजर्षि राज करता था। उसके राज मे वेद-वेदाङ्ग का ज्ञाता सुमित्र नाम का एक कृृृृृषक ब्राह्मण रहता था। वह खेती करके अपना निर्वाह करता था। उसकी स्त्री जयश्री भी खेती के काम मे उसकी सहायता करती थी।
एक समय जब उसकी पत्नी खेती के कामों में लगी हुई थी, तो वह रजस्वला हो गई। उसको रजस्वला होने का पता लग गया फिर भी वह गृह कार्य करती रही और ब्राह्मणों को भी स्पर्श करती रही। कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए।
दूसरे जन्म मे स्त्री ने कुतिया का जन्म पाया और ब्राह्मण ने बैल का। क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था। इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा।
ब्राह्मण के पुत्र का नाम सुमति था। वह भी अपने पिता की तरह वेद-वेदाङ्ग का ज्ञाता तथा ब्राह्मण और अतिथि का पूजक था। उसके माता-पिता, कुतिया और बेल योनि मे उसी के घर मे रहते थे।
एक समय सुमति ने अपने माता-पिता का श्राद्ध किया। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए। जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने खीर के बर्तन में विष उगल गया।
इस घटना को उस कुतिया ने देखा लिया। अतः उसने यह विचार कर कि इस खीर को खाकर ब्राह्मण मर जायगे, अतः उसने पुत्र-बहु को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया।
इससे क्रुद्ध होकर सुमति की स्त्री ने कुतिया का जलती हुई लकड़ी से मारा और उसने सब बरतन पुनः माँजकर फिर से खीर बनाई। जब सब ब्राह्मण भोजन कर चुके, तो उनका जो जूठन बचा, उसे सुमति की स्त्री ने पृथ्वी मे गाड़ दिया। इस कारण कुतिया उस दिन भूखी ही रही ।
उसी घर में बंधे हुए बैल से रात्रि मे कुतिया ने सब व्यथा बताई। वह बोली-“मै भूख के मारे मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को मैंने छूकर न खाने योग्य कर दिया था। इसी कारण उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को भी कुछ नहीं दिया।
आज मैं भी खेत में दिनभर हल में जुता रहा। बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है। मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत।
तब बैल बोला-“मुझको भी आज सुचित्र ने खेत मे जोता था बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है। मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत। इस कारण सुमति का श्राद्ध करना व्यर्थ हो हुआ।
सुमति पशु-पक्षियों की भाषा समझता था। संयोग से सुमति ने अपने माता-पिता की इन बातों को सुन लिया, उसने उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और ऋपि-मुनियो के आश्रमों पर दौड़ा गया और उसने उनसे अपने माता-पिता के पशुयोनि मे जन्म पाने का कारण पूछा।
ऋषियों ने उन दोनों के पूर्व-जन्म के पापों का हाल कह सुनाया और यह भी समझाया कि यदि तुम स्त्री-पुरुष दोनों ऋषि-पञ्चमी का व्रत करके उसका फल अपने माता-पिता को दो। तो अवश्य ही तुम्हारे माता-पिता की मुक्ति होगी। ऋषि-पञ्चमी के व्रत में वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज इन सात ऋषियों के पूजा का विधान है।
सुमति ने माता-पिता की मुक्ति के निमित्त जिस प्रकार से ऋषियों ने बताया था, उसी विधि से ऋषि-पंचमी का व्रत किया। अतः ऋषि-पञ्चमी के व्रत के कारण सुमति के माता-पिता मुक्ति को प्राप्त हो गये।
भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना। इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नीसहित विधि-विधान से पूजन व्रत किया। उसके पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट गए। इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है।
ऋषि-पञ्चमी व्रत विधि (Rishi Panchami Vrat Pujan Vidhi In Hindi)
- प्रायः यह व्रत स्त्रियां रखती है। व्रत करनेवाली को चाहिये कि वह भाद्रपद शुक्ला पञ्चमी को 108 अथवा 8 अपामार्ग से दातुन करे।
- तत्प्श्चात स्नानादि करने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहने।
- पूरे घर गंगाजल का छिड़कर पवित्र कर देना चाहिए।
- फिर अपने घर में भूमि पर चौक बना कर सप्त ऋषियों की स्थापना कर श्रद्धा पूर्वक सुगंध, पुष्प, धूप, दीप, यज्ञोपवी, नैवेद्य आदि से पूजन करें।
- पूजन के बाद ऋषि पंचमी व्रत कथा सुनें।
- अंत ब्राह्मणों को भोजन करवाकर कर व्रत का उद्यापन करें।
यदि ब्राह्मण से ऋषि पंचमी की पूजा करवाये तो ज्यादा उपयुक्त रहेगा। इसके लिए बहुत सारी महिलाएँ मिलकर एक स्थान पर संयुक्त रूप से भी पूजा कर सकती है।
सावधानी:- इस दिन अकृष्ट भूमि (बिना जुती हुई भूमि) से उत्पन्न फल आदि का शाकाहारी भोजन करना चाहिए।
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